तुर्की के प्रधानमंत्री अहमत दावुतोग्लू के अचानक पद छोड़ने की घोषणा से उनका देश ही नहीं यूरोपीय संघ भी परेशान है. कारण है ईयू-तुर्की रिफ्यूजी डील पर टिकी यूरोपीय उम्मीदों को झटका लगने की चिंता.
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घोषणा के दो हफ्तों के भीतर पद छोड़कर हट जाने वाले तुर्की के सत्ताधारी दल के नेता और प्रधानमंत्री दावुतोग्लू ने सबको चौंकाया है. इससे देश के राष्ट्रपति एर्दोवान को पहले से भी ज्यादा शक्तियां मिल जाएंगी. कई महीनों से राष्ट्रपति एर्दोवान और प्रधानमंत्री दावुतोग्लू में मनमुटाव की चर्चाएं थीं. आपसी संकट को निपटाने के लिए राष्ट्रपति भवन में मिलकर चर्चा करने के बावजूद जब दोनों नेताओं में सहमति नहीं बनी तो इसका नतीजा दावुतोग्लू के इस्तीफे के रूप में सामने आया.
प्रधानमंत्री दावुतोग्लू ने बताया है कि 22 मई को उनकी सत्ताधारी पार्टी एकेपी के विशेष कांग्रेस में वे किसी पद के लिए चुनाव नहीं लड़ेंगे. इसका अर्थ हुआ कि उन्होंने केवल प्रधानमंत्री पद ही नहीं बल्कि पार्टी की जिम्मेदारियां भी छोड़ने का फैसला कर लिया है. 2014 में जब से एर्दोवान तुर्की के राष्ट्रपति बने तबसे दावुतोग्लू ही प्रधानमंत्री हैं.
एर्दोवान स्वयं एकेपी पार्टी के सहसंस्थापक हैं जिसका गठन उन्होंने तुर्की की सेकुलर मुख्यधारा में इस्लामिक पार्टी को शामिल करवाने के मकसद से किया था. इस पार्टी का अध्यक्ष और सरकार का मुखिया एक ही व्यक्ति होता है. दावुतोग्लू ने कहा, "एकेपी पार्टी की एकता बरकरार रखने के लिए एक नया नेता चुनना ही सही होगा."
प्रधानमंत्री की कुर्सी और पार्टी की अध्यक्षता अपने विश्वासपात्र दावुतोग्लू को सौंपने वाले एर्दोवान ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ही रखी. पिछले कुछ समय से दावुतोग्लू एर्दोवान से स्वतंत्र होने के संकेत दे रहे थे. देश में राष्ट्रपति व्यवस्था लागू करने के मुद्दे पर तो वे एर्दोवान से बिल्कुल सहमत नहीं थे. माना जा रहा है कि एर्दोवान किसी ऐसे व्यक्ति को प्रधानमंत्री बनाएंगे जो उनसे पूरी तरह सहमत हो.
दावुतोग्लू ने ऐसे चुनौतीपूर्ण समय में पद छोड़ा है जब देश के दक्षिणपूर्व और इराक में कुर्द लड़ाकों से, तो सीरियाई सीमा पर इस्लामी जिहादियों से लड़ाई चल रही है. इसके अलावा तुर्की ने सीरिया से भागे 27 लाख लोगों को शरण दे रखी है. मार्च में ईयू के साथ रिफ्यूजी डील पर सहमति बनाने में दावुतोग्लू ने ही अहम भूमिका निभाई थी. इस दौरान एर्दोवान ने इसमें ज्यादा दिलचस्पी कभी नहीं दिखाई. जर्मन चांसलर अंगेला मैर्केल और यूरोपीय संघ के दूसरे नेताओं के साथ शरणार्थी मुद्दे पर बातचीत के दौरान अंग्रेजी और अरबी के अलावा जर्मन में बात करने वाले दावुतोग्लू के बिना यूरोपीय संघ के नेताओं को ऐसे पार्टनर की कमी खल सकती है.
तुर्की की 10 दिलचस्प बातें
रिपब्लिक ऑफ तुर्की, जी हां, 1923 से तुर्की का यही असली नाम है और इसकी राजधानी विश्वप्रसिद्ध इस्तांबुल नहीं, बल्कि अंकारा है. समुद्री किनारों और चहल पहल भरे बाजारों के अलावा समृद्ध इतिहास वाले तुर्की के कुछ मजेदार तथ्य.
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कल्पना का घोड़ा: ट्रोजन हॉर्स
ट्रॉय के पुरातात्विक स्थल के प्रवेश द्वार पर रखी लकड़ी के घोड़े की एक शानदार प्रतिकृति. तुर्की के कुछ पुरातत्व विज्ञानियों ने दावा किया था कि उन्हें ऐतिहासिक ट्रॉय शहर में खुदाई के दौरान बड़ी लकड़ी की संरचना मिली जो ट्रोजन हॉर्स हो सकता है. कई इतिहासकार इसे केवल एक मिथक का हिस्सा मानते हैं.
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दो विश्व अजूबे
दुनिया के 7 प्राचीन अजूबों में शामिल इफेसस और हेलिकार्नासुस तुर्की में ही हैं. माना जाता है कि इफेसस के दक्षिण में स्थित एक घर में खुद वर्जिन मेरी रही थीं. प्राचीन शहर हेलिकार्नासुस में राजा मुसोलस का मकबरा विश्व अजूबा माना गया.
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असली सांता क्लॉज
दुनिया भर में सांता क्लॉज के नाम से मशहूर संत का असली नाम सेंट निकोलस था. उनका जन्म तुर्की के पटारा में हुआ माना जाता है. बाद में वे तुर्की में भूमध्यसागर के तट पर बसे शहर डेमरी के बिशप बने.
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दो महाद्वीपों की कड़ी
दुनिया भर में केवल इस्तांबुल ही एक ऐसा शहर है जो दो महाद्वीपों में बसा है. वैसे तुर्की का केवल 3 प्रतिशत हिस्सा ही यूरोप में और बाकी एशिया में है. 2010 में यूरोपीय संघ ने इस्तांबुल को यूरोपियन कैपिटल ऑफ कल्चर घोषित किया था.
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नीदरलैंड्स के नहीं थे ट्यूलिप
इतिहासकारों ने पाया है कि 16वीं सदी में तुर्की के व्यापारियों ने ही सबसे पहले डच लोगों को ट्यूलिप के फूलों से परिचित करवाया. आधुनिक समय में ट्यूलिप का पर्याय बन चुके नीदरलैंड्स के मशहूर कोएकेनहोफ बागीचे में ईरान, तुर्की, बुल्गारिया के ट्यूलिप पहली बार 1954 में बोए गए.
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कॉफी का यूरोप से परिचय
15वीं सदी में तुर्की के रास्ते ही यूरोप में कॉफी आई. तुर्की के तत्कालीन ओटोमन साम्राज्य ने सबसे पहले कॉफी के बीजों से इतावली लोगों को परिचित कराया. फिर इटली से इसकी लोकप्रियता दूसरे यूरोपीय देशों में फैली.
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हेजलनट का दबदबा
आज तमाम चॉकलेट, केक और मिठाइयों में इस्तेमाल होने वाले मेवे हेजलनट का करीब 80 फीसदी केवल तुर्की से ही निर्यात होता है. मेवों से बनने वाली बकलावा जैसी कई तुर्क मिठाइयां आज विश्व भर में पसंद की जाती हैं.
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नाम के अनुरूप- ग्रैंड
इस मशहूर बाजार में 64 गलियां, करीब 4,000 दुकाने और 25,000 से भी ज्यादा लोग काम करते हैं. ग्रैंड बाजार दुनिया के सबसे विशाल और सबसे पुराने ढके हुए बाजारों में एक है. हर साल दुनिया भर से लाखों पर्यटक इन बाजारों का रूख करते हैं.
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धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक
तुर्की मुस्लिम बहुल होकर भी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष मूल्यों पर चलता है. 1923 में आजादी की लड़ाई के बाद से यह रिपब्लिक ऑफ तुर्की बना और साथ ही देश में इन सेकुलर और डेमोक्रेटिक प्रक्रियाएं लागू हुईं.
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महिला अधिकारों में अव्वल
जून 2015 में 25वें आम चुनावों में अपना वोट देती तुर्क महिला. 1750 ईसा पूर्व से 1190 के बीच तुर्की में प्रभावशाली हितितीज ने शासन किया, जो महिला और पुरुष अधिकारों में समानता के पक्षधर थे. आधुनिक काल में भी, अमेरिका या किसी भी यूरोपीय देश से पहले तुर्की में ही महिलाओं को मत का अधिकार मिला था.