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तुर्की में क्यों बढ़ रही है नास्तिकता

११ जनवरी २०१९

एक सर्वेक्षण के मुताबिक, तुर्की में नास्तिकों की तादाद पिछले 10 सालों में तीन गुनी हो गई है. क्या इसमें राष्ट्रपति रेचेप तैयप एर्दोवान की धर्म आधारित राजनीति का भी हाथ है?

Türkei, Ankara: Erdogan spricht auf einer Zeremonie
तस्वीर: Reuters//Presidential Press Office/K. Ozer

सर्वेक्षण कराने वाली कंपनी 'कोंडा' ने बताया है कि बड़ी संख्या में तुर्क लोग अपने आपको नास्तिक मानने लगे हैं. कोंडा ने अनुसार, पिछले दस साल में नास्तिकों की संख्या तीन गुना बढ़ गई है. ये भी पाया गया कि वे लोग जो इस्लाम को मानते थे उनकी संख्या 55 प्रतिशत से गिर कर 51 प्रतिशत हो गई है.

10 वर्षों से नास्तिक 36 साल के कंप्यूटर वैज्ञानिक अहमत बाल्मेज बताते हैं कि "तुर्की में धार्मिक जबरदस्ती होती है. लोग खुद से पूछते हैं कि क्या ये असली इस्लाम है? जब हम अपने निर्णयकर्ताओं की राजनीति को देखते हैं, तो हमें इस्लाम का पहला युग दिखता है. इसलिए अभी जो हम देख रहे हैं वह पुराना इस्लाम है."

बाल्मेज ने बताया कि वो एक बहुत ही धार्मिक परिवार में पैदा हुए थे. उन्होंने कहा, "मेरे लिए उपवास और प्रार्थना करना सामान्य चीजें थीं." मगर एक वक्त ऐसा आया कि उन्होंने नास्तिक बनने का फैसला लिया.

तुर्की के धार्मिक मामलों के आधिकारिक निदेशक डायनेट ने 2014 में अपनी घोषणा में देश की 99 प्रतिशत से अधिक आबादी को मुसलमान बताया था. जब कोंडा का हालिया सर्वेक्षण इसके उलट साबित हुआ तो इस पर सार्वजनिक बहस छिड़ गई.

धर्मशास्त्री केमिल किलिक का मानना है कि दोनों आंकड़े सही हैं. उनका कहना है कि "हालांकि 99 प्रतिशत तुर्क मुसलमान हैं मगर वो इस्लाम को सिर्फ सांस्कृतिक और सामाजिक तौर पर लेते हैं. वे आध्यात्मिक मुस्लिम होने के बजाए सांस्कृतिक मुस्लिम हैं."

अहमत बाल्मेज, खुद को नास्तिक मानते हैं.तस्वीर: Tunca Ögreten

किलिक ने कहा कि वे मुस्लिम जो नमाज पढ़ते हैं या हज पर जाते हैं या नकाब पहनते हैं, उनको धार्मिक माना जाता है. मगर धर्म सिर्फ ये सब करने से या कुछ खास पहनने से नहीं होता. उन्होंने कहा कि "कोई इंसान धार्मिक है या नहीं ये इस बात से साबित होता है कि क्या उसके कुछ नैतिक और मानवीय मूल्य हैं या नहीं. अगर हम सिर्फ उन लोगों की बात करें जो इस्लाम को मानते हैं, तो तुर्की में केवल 60 प्रतिशत ही ऐसे लोग हैं. नास्तिक होने का ये मतलब नहीं हैं कि आप नैतिक नहीं हैं. कुछ नास्तिक कई मुसलमानों की तुलना में अधिक नैतिक और ईमानदार हैं."

पछले सोलह सालों में एर्दोवान के शासन में तुर्की प्रशासन ने अपनी राजनीति को सही साबित करने के लिए इस्लाम का खूब इस्तेमाल किया है. किलिक बताते हैं, "लोग इस्लाम, संप्रदायों, धार्मिक समुदायों, धार्मिक मामलों के निदेशालय और सत्ता में इस्लाम की प्रमुख व्याख्या को अस्वीकार करते हैं. वे इस तरह का धर्म और धार्मिकता का आधिकारिक रूप नहीं चाहते हैं." इससे भी पता चलता है कि इतने सारे तुर्क अब नास्तिक क्यों हो गये हैं.

आस्था पर सवाल

एटिजम डर्नेगी नास्तिकों के लिए तुर्की का मुख्य संगठन है. उसकी प्रमुख सेलिन ओजकोहेन का कहना है, "एर्दोवान ने सोचा कि वो धर्मनिष्ठ मुसलमानों की एक पूरी पीढ़ी पैदा कर सकते हैं और उनकी ये योजना बुरी तरह से पीट गई है. धार्मिक संप्रदायों और समुदायों ने खुद को बदनाम कर लिया है. हमने हमेशा कहा है कि राज्य को धार्मिक समुदायों द्वारा शासित नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि इससे लोग अपनी आस्था पर सवाल उठाते हैं और मानवतावादी नास्तिक बन जाते हैं. लोगों ने ये सब होते हुए देखा और खुद को इन सब चीजों से दूर कर लिया. जो लोग तर्क से सोचते हैं वो नास्तिक बन जाते हैं."

ओजकोहेन का कहना है कि "आज लोगों को ये बोलने में डर नहीं लगता की वो नास्तिक हैं." मगर सरकार अभी भी लोगों को धर्म का पालन करने के लिए मजबूर कर रही है. वे बताती हैं, "लोगों के ऊपर अभी भी उनके पड़ोस और मस्जिदों में दबाव बनाया जा रहा हैं. इसका सबसे बड़ा संकेत ये है कि 2019 में भी स्कूलों में बच्चों को धर्म की पढ़ाई करनी पड़ती है."

टुंका ओगरेटेन/एनआर

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