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तुर्की में भड़का लोगों का गुस्सा

३ जून २०१३

तुर्की में पिछले कई दशकों का सबसे हिंसक दंगा शुरू तो हुआ छोटे से इस्तांबुल पार्क को ध्वस्त करने पर, लेकिन अब इसने प्रधानमंत्री तैय्यप एर्दोआन के खिलाफ बड़े विरोध प्रदर्शन का रूप ले लिया है.

तस्वीर: Adem Altan/AFP/Getty Images

दशक भर से देश की सत्ता पर काबिज एर्दोआन की इस्लामी जड़ों वाली एके पार्टी ने पिछले तीन चुनावों में हर बार अपने वोटों की हिस्सेदारी बढ़ाई है और तुर्की को अभूतपूर्व राजनीतिक स्थिरता के साथ ही यूरोप में कुछ सबसे तेज आर्थिक विकास वाले देश का मॉडल भी पेश किया है. आखिरी कार्यकाल को पूरा कर रहे प्रधानमंत्री एर्दोआन अब तुर्की पर अपने शासन की स्थायी मुहर लगाने की फिराक में हैं और इसके लिए विदेश नीति से लेकर संविधान और यहां तक कि प्राचीन माने जाने वाले इस्तांबुल के हवाई मार्गों तक को बदलने की तैयारी है.

हालांकि प्रधानमंत्री के पुराने समर्थकों समेत बहुत से लोग उन पर ज्यादा निरंकुश होने का आरोप लगा रहे हैं. आरोप है कि एर्दोआन मीडिया का मुंह बंद करने, सरकारी संस्थाओं पर एके पार्टी का नियंत्रण मजबूत करने और तुर्की के संविधान की अवहेलना कर देश की राजनीति के केंद्र में धर्म को लाने में जुटे हुए हैं. यूनिवर्सिटी ग्रेजुएट लेकिन फिलहाल बेरोजगार 25 साल की तुगबा बिटिक्टास ने सरकार विरोधी प्रदर्शन में हिस्सा लेने से पहले कहा, "अगर प्रधानमंत्री की चली तो मुझे माथे पर हिजाब लेकर चलना होगा."

तस्वीर: picture-alliance/dpa

बिटिक्टास की तरह हजारों लोग इस्तांबुल में प्रदर्शन करने निकले जिनमें 1000 से ज्यादा लोग तीन दिन में दंगा पुलिस के साथ हुई झड़पों में घायल हुए हैं. इसी तरह के प्रदर्शन राजधानी अंकारा और देश भर के दूसरे शहरों में भी हुए हैं. एर्दोआन प्रमुख विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी पर प्रदर्शनों को हवा देने का आरोप लगा रहे हैं. उधर दूसरे सरकारी अधिकारियों ने चेतावनी दी है कि यह अशांति देश में सेना की दखलंदाजी की जमीन तैयार करने की साजिश है. इसके बावजूद यह साफ साफ दिख रहा है कि प्रदर्शन कर रहे लोग अलग अलग राजनीतिक पृष्ठभूमि के हैं. साथ ही इनमें पर्यावरणवादियों से लेकर राष्ट्रवादी और कट्टर वामपंथी भी शामिल हैं.

तस्वीर: Reuters

विरोध प्रदर्शनों की उग्रता ने निश्चित रूप से एर्दोआन को भी हिलाया होगा. माना जा रहा है कि तीन कार्यकाल की सीमा खत्म होने का समय नजदीक आता देख एर्दोआन की नजर अब देश के राष्ट्रपति पद पर है. 59 साल के एर्दोआन संविधान में बदलाव कर राष्ट्रपति को कार्यकारी अधिकार दिलाने की तैयारी कर रहे हैं. देश में राष्ट्रपति का पद प्रमुख रूप से दिखावे के राष्ट्रप्रमुख का ही है.

विरोध प्रदर्शन का केंद्र है इस्तांबुल का तकसिम चौराहा और उससे लगता गेजी पार्क. चार प्रदर्शनकारियों ने पार्क के कुछ पेड़ों को काटने का विरोध किया और देखते देखते पिछले हफ्ते हजारों लोग उनके साथ आ खड़े हुए. यह लोग गेजी पार्क को शॉपिंग सेंटर और उसके ऊपर रिहायशी घरों में तब्दील किए जाने का विरोध कर रहे हैं. बॉस्फोरस यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर बेतुल तांबे का कहना है, "जब नागरिकों से एक पार्क के बारे में भी नहीं पूछा जा रहा तो फिर देश लोकतांत्रिक नहीं हो सकता."

तकसिम सरकार की बड़ी निर्माण योजनाओं में एक है. जिसमें दुनिया का सबसे बड़ा एयरपोर्ट, बॉस्फोरस पर तीसरा पुल और एक बड़ी नहर बनाने की योजना है जिससे मालवाही जहाज गुजर सकें. निर्माण की इस योजना के पूरा होते ही आधा इस्तांबुल एक द्वीप में बदल जाएगा.

विरोध करने वालों में बहुत से लोग एर्दोआन के समर्थक रहे हैं, पर अब वो मानने लगे हैं कि सत्ता पर लगातार पकड़ और आर्थिक विकास ने उन्हें निरंकुश बना दिया है.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)

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