15 जुलाई को तख्तापलट की नाकामयाब कोशिश के बाद से तुर्की में जारी धरपकड़, बर्खास्तगी और हिंसा का सिलसिला और आगे बढ़ गया है. अब सरकार ने सेना और मीडिया पर अपना शिंकजा और कस लिया है.
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तुर्की में तख्तापलट की कोशिश के पीछे अमेरिका के रहने वाले जिस उलेमा फतेहुल्ला गुलेन का नाम आ रहा है, उसके मानने वालों को तुर्की में चुन चुन कर निशाना बनाया जा रहा है. इसके अलावा अब तक करीब 1,700 सेनाकर्मियों को बर्खास्त किया जा चुका है. ऐसे 131 मीडिया संगठनों को भी बंद करवा दिया गया है जिनके संबंध पश्चिमी देशों से हैं.
अब तक पुलिसकर्मियों, जजों, शिक्षकों समेत हजारों लोगों को या तो पदों से हटाया गया है या उनसे हिरासत में लेकर पूछताछ चल रही है. मुस्लिम उलेमा गुलेन अमेरिका के पेंसिल्वेनिया प्रांत में रहता है और तुर्की में उसके तमाम स्कूलों समेत कई गतिविधियां चलती हैं. गुलेन ने कू के पीछे होने से साफ इंकार किया है.
पश्चिमी सरकारें और मानवाधिकार संगठन तुर्की के इन सख्त कदमों की निंदा कर रहे हैं. उन्हें लगता है कि इस अवसर का इस्तेमाल कर राष्ट्रपति एर्दोआन अपने सभी विरोधियों का सफाया करना चाहते हैं. वहीं एर्दोआन समझते हैं कि गुलेन के अभियान ने देश में लोकतंत्र को नुकसान पहुंचाया है और सेना, मीडिया और जनता के साथ मिलकर देश में एक "समानांतर शासन" खड़ा करने की कोशिश की है.
ऐसे हुई थी तख्तापलट की कोशिश
तुर्की में तख्तापलट नाकाम क्यों हुआ था?
तुर्की में तख्ता पलट की यह कोई पहली कोशिश नहीं थी. इससे पहले चार बार तख्तापलट हो चुका है. लेकिन 2016 में यह विफल हो गया था. क्यों? जानिए...
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
हैरतअंगेज कदम
15 जुलाई को तुर्की की राजधानी अंकारा में सैनिकों की बगावत ने पूरी दुनिया को हैरान कर दिया था. किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था कि तख्तापलट की इस तरह की कोशिश हो सकती है.
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20 साल बाद
20 साल पहले 1997 में तुर्की में पिछली बार तख्तापलट हुआ था. लेकिन 2016 में ऐसा नहीं हो पाया. क्या तैयारी नहीं थी?
तस्वीर: Reuters/O. Orsal
इरादा तो बड़ा था
जानकारों का मानना है कि तैयारी पूरी थी और बागियों ने रणनीति भी ठोस बनाई थी. इस रणनीति को अंजाम भी सलीके से दिया गया था. फिर भी वे विफल हो गए. क्यों?
तस्वीर: Getty Images/G.Tan
औचक और तेज हमला
बागियों ने तेजी से कार्रवाई की. वे चौंकाने में भी कामयाब रहे. देश के तीन चार-स्टार जनरल इसके पीछे थे. तैयारी पूरी थी.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/T. Bozoglu
12 बागी टीमें
12 बागी टीमों को अलग अलग जगहों पर नियंत्रण के लिए भेजा गया था. तीनों सैन्य प्रमुखों को हिरासत में ले लिया गया था. रेडियो और टेलिविजन चैनल पर भी कब्जा कर लिया गया. लेकिन गलती कहां हुई?
तस्वीर: Reuters/Stringer
तीन बड़ी गलतियां
बागियों ने तीन बड़ी गलतियां कीं. एक तो वे राष्ट्रपति एर्दोआन को काबू करने में देर कर बैठे. एर्दोआन कुछ ही मिनट पहले निकल भागने में कामयाब रहे थे.
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महल पर नाकामी
दूसरी सबसे बड़ी गलती थी, अंकारा में राष्ट्रपति महल पर कब्जे में ढील. ऐसा लगता है कि बागी महल के सुरक्षाकर्मियों की ताकत को पूरी तरह आंक नहीं पाए. सुरक्षाकर्मियों ने महल पर हमले का करारा जवाब दिया और उन्हें वहीं हरा दिया.
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पुलिस से दूरी
तीसरी गलती पुलिस के साथ निपटने में हुई. बागियों ने पुलिस को अपने साथ नहीं मिलाया था. हालांकि शुरू में पुलिस निष्पक्ष होकर सिर्फ देख रही थी. लेकिन जैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि बागी हार रहे हैं, पुलिस ने पूरी ताकत से उन्हें कुचल दिया.
तस्वीर: Reuters/H. Aldemir
कट्टरपंथियों को छोड़ दिया
एक गलती धार्मिक कट्टरपंथियों के मामले में भी हुई थी. बागियों ने उन पर नियंत्रण नहीं किया. नतीजतन देशभर की मस्जिदों से उनके खिलाफ फरमान जारी हो गए और लोग उनके विरोध में निकल आए.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/S. Suna
नेताओं पर ढील
बागी तत्कालीन प्रधानमंत्री बिनाली यिल्दरिम और गृह मंत्री एफकान एला को भी गिरफ्तार नहीं कर पाए थे. वे गृह मंत्रालय पर भी कब्जा नहीं कर पाए थे.
तस्वीर: picture-alliance/AA/H. Goktepe
टीवी चैनलों पर ढील
निजी टीवी चैनलों पर कब्जा न करना भी बागियों की बड़ी गलती साबित हुई थी. इन टीवी चैनलों से उनके खिलाफ खूब प्रचार हुआ था.
तस्वीर: DW/D. Cupolo
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तुर्की मीडिया में आई खबरों के मुताबिक बुधवार को सेना से 1,684 कर्मियों को निकाल दिया गया. 149 जनरल और एडमिरल रैंक के सेना अधिकारियों समेत इन सब पर तख्तापलट में शामिल होने का आरोप है. अमेरिकी न्यूज नेटवर्क सीएनएन टर्क ने बताया है कि 15,000 से ज्यादा लोगों को हिरासत में लिया जा चुका है.
मीडिया पर शिंकजा कसते हुए सरकार ने तीन न्यूज एजेंसियों, 16 टीवी चैनलों, 45 अखबारों, 15 पत्रिकाओं और कई प्रकाशकों को बंद करवा दिया है. सरकार को इन सब का संपर्क गुलेन से होने का संदेह है. अमेरिका ने कहा है कि वह तुर्की में दोषियों को पकड़े जाने का मकसद समझता है लेकिन इसके नाम पर इतने सारे पत्रकारों को पकड़ा जाना एक "परेशान करने वाला रुझान" लगता है.
तुर्की के मशहूर अखबार जमान को मार्च में ही बंद करवा दिया गया था और अब उससे जुड़े 47 और पत्रकारों को हिरासत में लिया गया है. इसके अलावा वामपंथी विचारधारा वाले पत्रकार भी निशाने पर हैं.
एर्दोआन की सत्ताधारी इस्लामिक एके पार्टी और विपक्ष देश में संवैधानिक बदलाव लाए जाने को लेकर काफी बंटे हुए हैं. इसके अलावा तुर्की सरकार मृत्युदंड जैसी सजा को फिर से बहाल करना चाहती है, जिसका जनता समेत पश्चिमी देश विरोध कर रहे हैं.