तुर्की 2016 में कई घातक आतंकी हमलों का शिकार बना और 2017 की शुरुआत भी इस्तांबुल के एक क्लब में हमले के साथ हुई जिसमें 39 लोग मारे गए. जानकारों का कहना है कि तुर्की में हमलों का सिलसिला इस साल भी जारी रहने के आसार हैं.
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तुर्की में होने वाले हमलों को सीरिया और इराक में उसकी नीतियों से जोड़ कर देखा जा रहा है. इसके अलावा, पिछले साल जुलाई में नाकाम तख्तापलट के बाद तुर्की की सरकार ने सीरिया से लगने वाले अपने सरहदी इलाकों में सैन्य अभियान छेड़ा हुआ है ताकि वहां से काम करने वाले इस्लामिक स्टेट के लड़ाकों का सफाया किया जा सके. तुर्की ने देश के दक्षिण पूर्वी हिस्से और उत्तरी इराक में सक्रिय कुर्द चरमपंथियों के खिलाफ भी कार्रवाई तेज की है.
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस्लामिक स्टेट और कुर्दिश वर्कर्स पार्टी (पीकेके) तुर्की के लिए गंभीर खतरा हैं. टर्किश सेंटर फॉर इंटरनेशनल रिलेशंस एंड स्ट्रैटजिक एनालिसिस में सुरक्षा और आंतकवाद मामलों के विशेषज्ञ इब्राहिम चेविक कहते हैं, "सीरिया को लेकर अमेरिका और रूस के बीच बहुत खींचतान चल रही है. इस खींचतान ने तनाव को उसी स्तर पर पहुंचा दिया है जैसा शीत युद्ध के जमाने में हुआ करता था. सीरिया में किसी का कंट्रोल नहीं है इसलिए बंदूकों पर भी कंट्रोल खत्म हो जाता है. हमें उसका सीधा नुकसान उठाना पड़ेगा."
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सुरक्षा और पीकेके से जुड़े विषयों पर विशेषज्ञता रखने वाले निहात अली ओजकान भी मानते हैं कि 2017 तुर्की के लिए अच्छा साल नहीं रहेगा. उनके मुताबिक, "पूरे क्षेत्र में, और खास तौर से सीरिया और इराक में हालात तेजी से बदल रहे हैं और इसकी अपनी वजहें हैं. दूसरा, तुर्की में भी बहुत से आतंकवादी गुट सक्रिय हैं. वे कभी एक दूसरे को निशाना बनाते हैं तो कभी जनता को और कभी देश को." इन गुटों में वह पीकेके और आईएस के अलावा प्रतिबंधित धुर दक्षिणपंथी रेवोल्यूशनरी पीपुल्स लिबरेशन पार्टी-फ्रंट का नाम गिनाते हैं. अमेरिका, यूरोपीय संघ और तुर्की ने इस संगठन को आतंकवादी संगठनों की सूची में डाल रखा है.
ओजकान मानते हैं कि तुर्की में तख्लापलट की नाकाम कोशिश के बाद जिस तरह बड़े पैमाने पर धरपकड़ हुई है, उससे भी सुरक्षा के लिए खतरे पैदा हुए हैं. इसी के तहत, देश के बड़े शैक्षिक और न्यायिक संस्थानों में हजारों लोगों की छुट्टी हुई और नए लोगों को तैनात किया गया है. ओजकान कहते हैं कि सरकार राष्ट्रपति पद समेत सभी पदों का राजनीतिकरण कर रही है. उनके मुताबिक, "जब एक साथ इतनी सारी बातें हो तो निश्चित तौर पर यह साल सुरक्षा के लिहाज से बहुत समस्याओं वाला साल बन जाता है."
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मानवाधिकारों पर नजर रखने वाले तुर्की समेत 47 सदस्य देशों के संगठन काउंसिल ऑफ यूरोप का कहना है कि दिसंबर 2016 तक तुर्की में सवा लाख लोगों को नौकरियों से बर्खास्त किया गया जबकि 40 हजार लोग गिरफ्तार किए गए. यह सब व्यवस्था को साफ करने के नाम पर हो रहा है.
इस्तांबुल की ओजयेगिन यूनिवर्सिटी में अंतरराष्ट्रीय संबंधों के प्रोफेसर मेसुत हक्की चासिन नए साल से पहले दिन इस्तांबुल में हुए हमले को एक खतरनाक संकेत मानते हैं. वह कहते हैं, "मुझे लगता है कि यह इस बात का संकेत है कि 2017 में भी आतंकवाद हमें परेशान करता रहेगा. मेरे ख्याल से यह एक संगठित हमला था. पहली बार तुर्की में आम लोगों के मनोरंजन की जगह को निशाना बनाया गया."
कहां कहां हो रहे हैं पानी पर झगड़े
भारत में कावेरी जल विवाद हो या सतलुज यमुना लिंक का मुद्दा, पानी को लेकर अकसर खींचतान होती रही है. वैसे पानी को लेकर झगड़े दुनिया में और भी कई जगह हो रहे हैं. एक नजर बड़े जल विवादों पर.
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ब्रह्मपुत्र नदी विवाद
2900 किलोमीटर लंबी ब्रह्मपुत्र नदी चीन के तिब्बत से निकलती है. अरुणाचल प्रदेश और असम से होते हुए ये बांग्लादेश में गंगा में मिल जाती है. उर्जा के भूखे चीन के लिए जहां इस नदी का पनबिजली परियोजनाओं के लिए महत्व है, वहीं भारत और बांग्लादेश के बड़े भूभाग को ये नदी सींचती है. भारत और चीन के बीच इसके पानी के इस्तेमाल के लिए कोई द्विपक्षीय संधि नहीं है लेकिन दोनों सरकारों ने हाल में कुछ कदम उठाए हैं.
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ग्रांड रेनेसॉ बांध और नील नदी
2011 में अफ्रीकी देश इथियोपिया ने ग्रांड इथियोपियन रेनेसॉ बांध बनाने की घोषणा की. सूडान की सीमा के नजदीक ब्लू नील पर बनने वाले इस बांध से छह हजार मेगावॉट बिजली बन सकेगी. बांध बनाने का विरोध सूडान भी कर रहा है लेकिन मिस्र में तो इससे पानी की आपूर्ति प्रभावित होने का खतरा है. 1929 और 1959 में संधियां हुई हैं. लेकिन इथियोपिया किसी बात की परवाह किए बिना बांध बना रहा है जो 2017 तक पूरा हो सकता है.
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इलिसु बांध और तिगरिस नदी
तुर्की सीरियाई सरहद के पास तिगरिस नदी पर इलिसु बांध बना रहा है. इस महत्वाकांक्षी परियोजना के से सिर्फ तिगरिस बल्कि यूफ्रेटस की हाइड्रोइलेक्ट्रिक क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल किया जाना है. तुर्की अपनी अनातोलियन परियोजना के तहत तिगरिस-यूफ्रेटस के बेसिन में कई और बांध और हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्लांट लगाना चाहता है. लेकिन इससे सबसे बड़ा घाटा इराक का होगा जिसे अब तक इन नदियों का सबसे ज्यादा पानी मिलता था.
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सिंधु जल संधि विवाद
पानी के बंटवारे के लिए विश्व बैंक ने 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक संधि कराई जिसे सिंधु जल संधि के नाम से जाना जाता है. इसके तहत ब्यास, रावी और सतलज नदियों का नियंत्रण भारत को सौंपा गया जबकि सिंधु, चेनाब और झेलम का नियंत्रण पाकिस्तान को. पानी का बंटवारा कैसे हो, इसे लेकर विवाद रहा है. चूंकि पाकिस्तान के नियंत्रण वाली नदियां भारत से होकर जाती है, भारत इसका इस्तेमाल सिंचाई के लिए कर सकता है.
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शायाबुरी बांध
दक्षिण पूर्व एशियाई देश लाओस मेकॉन्ग नदी पर शायाबुरी बांध बना रहा है जिसका उसके पड़ोसी देश और पर्यावरणविद् विरोध कर रहे हैं. बांध के बाद ये नदी कंबोडिया और वियतनाम से गुजरती है. उनका कहना है कि बांध के कारण उनके मछली भंडार और लाखों लोगों की जिंदगियां प्रभावित होंगी. गरीब लाओस शायाबुरी बांध को अपनी आमदनी का जरिया बनाना चाहता है. उसकी योजना इससे बनने वाली बिजली को पड़ोसी देशों को बेचना है.
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पानी पर सियासत
मध्य पूर्व में जॉर्डन नदी का बेसिन इस्राएल और अन्य देशों के बीच सियासत का एक अहम मुद्दा है. मध्य पूर्व में पानी के स्रोतों की कमी होने की वजह इस्राएल, पश्चिमी तट, लेबनान, सीरिया और जॉर्डन के बीच अकसर खींचतान होती रहती है. 1960 के दशक में पानी के बंटवारे को लेकर इस्राएल और अरब देशों के बीच तीन साल तक चले गंभीर विवाद को जल युद्ध का नाम दिया जाता है.