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तेंदुलकर और स्पेन की बादशाहत

२३ दिसम्बर २०१०

2010, खेलों के लिहाज से यह साल प्रतिभाशाली खिलाड़ियों और बड़े विवादों के नाम रहा. फुटबॉल को इस बार स्पेन के रूप में नया वर्ल्ड चैंपियन मिला, तो सचिन तेंदुलकर ने टेस्ट क्रिकेट में अपने 50 शतक पूरे किए.

तस्वीर: AP

शियावोने ने पहली बार इटली के लिए फ्रेंच ओपन जीता. रेस ट्रैक पर माइकल शूमाकर, फर्नांडो ओल्जो, लुईस हैमिल्टन जैसे स्टार हांफ गए. और सबेस्टियन फेटल ने अपना दावा ठोंक दिया. क्रिकेट में सारा माहौल तेंदुलकरमय रहा. लेकिन खेलों के उत्साह के साथ ही विवाद और कई खिलाड़ियों की मौतें भी इस साल खेल प्रेमियों को चोट पहुंचाती रहीं. एक नजर खेल के उन पन्नों पर जो 2010 का इतिहास बन गए.

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क्रिकेट:

क्रिकेट की बात की जाए तो 2010 भारत, बांग्लादेश और इंग्लैंड के नाम रहा. इंग्लैंड ने इस साल ऑस्ट्रेलिया को पटखनी देकर टी-20 वर्ल्ड कप जीता. उनकी जीत कोई तुक्के वाली जीत नहीं थी. बांग्लादेश ने भी न्यूजीलैंड को धोकर साबित कर दिया कि अगर भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका अच्छा क्रिकेट खेल सकते हैं तो वो क्यों नहीं. बांग्लादेश ने वनडे सीरीज में न्यूजीलैंड को 4-0 से धो डाला.

टीमों से इतर अगर किसी खिलाड़ी की बात की जाए तो 31 दिसंबर 2009 के बाद साल भर का समय क्रिकेट के भगवान माने जाने वाले सचिन तेंदुलकर को समर्पित रहा. उन्होंने सबसे ज्यादा टेस्ट मैच खेलने के साथ 14,000 रनों का आंकड़ा छुआ. फरवरी में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेले गए वनडे में उन्होंने 200 रन मारकर पूरे क्रिकेट जगत को मुग्ध कर दिया. कभी उनके रिकॉर्ड्स की बराबरी की कोशिश करने वाले एकाध खिलाड़ियों ने तो यहां तक कह दिया कि, ''हे भगवान, बस सचिन किसी तरह थम जाएं.''

साल जाते जाते सचिन ने एक और करिश्मा कर दिया, जब 19 दिसंबर को सेंचुरियन पार्क पर उनके बल्ले ने 50वां टेस्ट शतक ठोंक डाला. सवा सौ साल के इतिहास में क्रिकेट ने बहुत कुछ देखा है लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा होगा कि टेस्ट क्रिकेट में कोई एक खिलाड़ी 50 शतक बना सकता है. सिर्फ शतकों से 5000 से ज्यादा रन. बीसियों नामी गिरामी बल्लेबाजों के पूरे करियर में इतने रन नहीं बनते. वह भी ऐसे वक्त में, जब वनडे और ट्वेन्टी 20 क्रिकेट का बोलबाला है और जब यह खिलाड़ी अपने करियर के 21वें साल में प्रवेश कर गया है.

क्रिकेट ने इस साल कुछ जख्म भी खाए और महान खिलाड़ी भी खोए. 2010 में क्रिकेट जगत के सर्वकालीन महान स्पिनरों में शुमार होने वाले श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन ने टेस्ट क्रिकेट को अलविदा कह दिया. भारत के खिलाफ आखिरी टेस्ट खेलने वाले मुरली ने 800 विकेट लेकर भावी पीढ़ी के लिए चुनौती भरा लक्ष्य रख दिया.

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लंबे समय तक क्रिकेट के मैदान पर रहने के बावजूद मुरली का जाना क्रिकेट प्रेमियों को खलता रहेगा. वैसे खेल और इसके प्रेमियों का दिल दुखाया क्रिकेट की आड़ में पैसा बनाने वालों ने. धूमधड़ाके वाला आईपीएल इस बार खेल की वजह से नहीं बल्कि अरबों रुपये के हेर फेर के चलते बदनाम हुआ. घोटाले के पता चलने और एक के बाद एक पर्ते खुलने के बाद बीसीसीआई ने अपने दुलारे ललित मोदी की छुट्टी कर दी. मोदी का आरोप है कि उन्हें फंसा कर बाकी बच गए. कालिख के छींटे भारत के विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर पर भी पड़े और उन्हें जाना पड़ा.

अभी क्रिकेट का खेल इन करारे तमाचों से उबरा ही था कि पाकिस्तानी खिलाड़ियों ने फिक्सिंग का नया तरीका ढूंढ लिया. इंग्लैंड में मोहम्मद आमेर, मोहम्मद आसिफ और सलमान बट्ट स्पॉट फिक्सिंग के आरोप में फंस गए. इन घटनाओं ने हजारों क्रिकेट प्रेमियों में हर मैच पर शक करने की मानसिकता का संचार किया.

फुटबॉल:

मेसी, रोनाल्डो और काका इन नामों का बुखार 2010 में जनवरी से ही शुरू हुआ. वर्ल्ड कप से पहले इनके नाम की खूब टीशर्ट बिकीं. लेकिन जून जुलाई में जब फाइनल शो हुआ तो ये तारे फीके साबित हुए.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

कोच मैराडोना की अगुवाई में अर्जेंटीना को विश्वकप जीतने का प्रबल दावेदार माना जा रहा था लेकिन सेमीफाइनल में जर्मनी ने उसे 4-0 से सन्न कर दिया. वर्ल्ड कप के बाद डियागो मैराडोना को कोच के पद से हटा दिया गया. रोनाल्डो तो बिना सुर्खियों में आए टीम समेत वर्ल्ड कप से वापस चले गए. दो बार वर्ल्ड कप जीत चुका फ्रांस पहला राउंड भी पार नहीं कर सका और वर्ल्ड कप के दौरान खिलाड़ियों ने कोच के खिलाफ बगावत कर दी.

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वहीं उरुग्वे, जर्मनी, स्पेन और हॉलैंड ने फुटबॉल के महाकुंभ में गजब का प्रदर्शन कर दिखाया. इन चारों टीमों से किसी को ऐसे प्रदर्शन की उम्मीद नहीं थी. जर्मन टीम दिग्गज अनुभवियों और नए खून के साथ मैदान पर उतरी और वर्ल्ड कप में तीसरे स्थान पर रही. जबकि वर्ल्ड कप के प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट डिएगो फोरलान उरुग्वे को अकेले दम पर सेमीफाइनल तक खींच ले गए. हैरानी की बात रही कि सात मैचों में सिर्फ आठ गोल करने के बावजूद स्पेन हॉलैंड को पस्त कर वर्ल्ड कप ले उड़ा. वर्ल्ड कप जीतने के बाद स्पेन के कप्तान कासियास ने एक महिला पत्रकार को बांहों भरकर चूम लिया, अब खबर हैं कि दोनों शादी करने जा रहे हैं.

वर्ल्ड कप और पॉल बाबा

2010 के फुटबॉल वर्ल्ड कप को ऑक्टोपस पॉल के लिए याद किया जाएगा. जर्मनी के शहर ओवरहाउजन में शीशे के एक एक्वेरियम में बंद पॉल ने वर्ल्ड कप के आठ मैचों की सटीक भविष्यवाणी की. फाइनल से पहले ही उसने बता दिया कि स्पेन वर्ल्ड चैंपियन बनेगा. सेमीफाइनल में जर्मनी के स्पेन से हारने की पॉल की भविष्यवाणी भी सही साबित हुई. वर्ल्ड कप खत्म होने के बाद 12 जुलाई को पॉल को इस काम से मुक्ति दे दी गई.

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फिर तीन महीने बाद अक्टूबर में पॉल की मौत हो गई. पॉल की भविष्यवाणियों को लेकर अब भी बहस जारी है. यह बहस भले ही किसी नतीजे पर पहुंचे, लेकिन बाबा पॉल दुनिया भर के लोगों को ताउम्र याद रहेगा.

इन दिलचस्प घटनाओं के अलावा फुटबॉल को 2010 ने कुछ गहरी खाइयां भी दिखाई. फ्रांस के जाबांज खिलाड़ी रिबेरी एक अव्यस्क युवती से यौन संबंध बनाने के मामले में फंसे. जर्मन फुटबॉल लीग बुंडेसलीगा के मैचों के दौरान ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. रिबेरी जेल में थे तो बाहर खेलों पर एक और धब्बा लगा. जर्मन पुलिस के मुताबिक बुंडेसलीगा समेत यूरोप में होने वाले कई बड़े फुटबॉल टूर्नामेटों में मैच फिक्सिंग हुई. मैच फिक्सिंग के आरोप में कई लीग अधिकारी, रेफरी और खिलाड़ी पूछताछ की जद में आए.

हॉकी:

लंबे अर्से बाद इस खेल में भारत और पाकिस्तान जैसे देश कुछ बढ़िया प्रदर्शन करते नजर आए. दिल्ली में हुए हॉकी वर्ल्ड कप में भले ही ऑस्ट्रेलिया की जीत हुई लेकिन भारत और पाकिस्तान ने साल भर संतुलित प्रदर्शन किया. स्पेनिश कोच खोसे ब्रासा की अगुवाई में भारत ने अजलान शाह हॉकी टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया को बुरी तरह हराया और संयुक्त चैंपियन बना. कॉमनवेल्थ गेम्स में राजपाल सिंह की टीम ने कांस्य पदक जीता. वहीं पाकिस्तान ने एशियाड में गोल्ड जीतकर क्रिकेट से मिले जख्मों पर मरहम लगाया.

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लेकिन अपनी खूबसूरती और कला के वाबजूद हॉकी भी विवाद से नहीं बची. भारतीय महिला हॉकी खिलाड़ियों ने कोच एमके कौशिक पर संगीन आरोप लगाए. खिलाड़ियों के मुताबिक कोच और उनके स्टाफ के सदस्य महिला खिलाड़ियों पर यौन संबंध बनाने का दबाव डालने लगे. पहले एक खिलाड़ी ने यह आरोप लगाए और बाद में कइयों ने इसकी पुष्टि की. कुछ दिन चले विवाद और पुलिस एफआईआर के बाद कौशिक और उनके साथियों की छुट्टी कर दी गई.

टेनिस:

2010 और टेनिस को स्विटजरलैंड के खिलाड़ी रोजर फेडरर के लिए याद किया जाएगा. रिकॉर्डों का अंबार लगाने वाले फेडरर के बारे में हमेशा यही कहा जाएगा कि 2010 से उनका प्रदर्शन हाशिए पर चला गया. सात साल तक लगातार कोर्ट पर राज करने वाले फेडरर 2010 में सिर्फ ऑस्ट्रेलियन ओपन जीत सके. फ्रेंच ओपन, विम्बलडन और अमेरिकन ओपन में उन्हें हार का सामना करना पड़ा.

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फ्रेंच ओपन और विम्बलडन में वह फाइनल तक नहीं पहुंच पाए. तो यूएस ओपन में स्पेन के नडाल ने उन्हें पस्त कर दिया.

महिला टेनिस में भी इस साल एक नया चेहरा निकला. इटली की फ्रांसिस्का शियावोने ने फ्रेंच ओपन जीता. टेनिस इतिहास में यह पहला मौका रहा जब इटैलियन खिलाड़ी ने फ्रेंच ओपन जीता. वहीं इंडो-पाक एक्सप्रेस के नाम से मशहूर भारत के रोहन बोपन्ना और पाकिस्तान के एहसान उल हक कुरैशी ने यूएस ओपन डबल्स के फाइनल में पहुंच कर दिलों को भी खोल दिया. सोमदेव ने कॉमनवेल्थ खेलों में भी स्वर्ण पदक जीतकर अपना और देश का नाम ऊंचा किया.

वैसे टेनिस में इस साल एक बेहद दिलचस्प रिकॉर्ड भी बना. यह रिकॉर्ड सबसे लंबे मैच का रहा. विम्बलडन में अमेरिका के जॉन आइजनर और फ्रांस के निकोलस मेहट के बीच मैच दिन तक चला. 11 घंटे पांच मिनट तक खेले गए इस मैच को अंत में 6-4, 3-6, 6-7 (7), 7-6 (3) 70-68 से आइजनर ने जीता. मैच के बाद दोनों खिलाड़ी थककर ऐसे चूर हुए कि कोर्ट पर कई मिनटों तक लेटे रहे.

कॉमनवेल्थ गेम्स:

भ्रष्टाचार के दलदल और अस्त व्यस्त कामकाज के बवंडर के साथ अक्टूबर में नई दिल्ली में खेलों की शुरूआत हुई. पूरी दुनिया में जब भारत का काफी मजाक उड़ाया जा चुका था तब दिल्ली में खेलों की भव्य ढंग से शुरुआत हुई. आलोचनाओं को बंद करने में भारतीय खिलाड़ियों के स्वर्णिम प्रदर्शन ने बड़ी भूमिका निभाई. सायना नेहवाल, गगन नारंग, सुशील कुमार जैसे स्टार खिलाड़ियों ने अपने नाम के मुताबिक प्रदर्शन किया.

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इनके अलावा चर्चाओं से दूर रहने वाले कई अंजान चेहरे भी कॉमनवेल्थ में गोल्ड मेडल के साथ ही चमके.

कॉमनवेल्थ खेलों के इतिहास में इस बार भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन स्वर्णिम रहा. उन्होंने पहली बार 38 स्वर्ण, 27 रजत और 36 कांस्य पदक जीते. निशानेबाजी, कुश्ती और यहां तक एथलेक्टिक्स में भी पदक आए. अंकतालिका में भारत दूसरे स्थान पर रहा. पहला स्थान 74 स्वर्ण पदक जीतने वाले ऑस्ट्रेलिया को मिली.

हालांकि एशियाड में भारत का प्रदर्शन बेहद चमकीला नहीं रहा लेकिन इतना कहा जा सकता है कि ध्यान दिया जाए तो भारत में क्रिकेट के अलावा कई अन्य खेल फल फूल सकते हैं.

बैडमिंटन का उदाहरण सामने है. प्रतिभाशाली सायना नेहवाल ने इस साल चार सुपर सीरीज खिताब जीते. सुपर सीरीज खिताब ऐसे खिताब हैं जैसे टेनिस के ग्रैड स्लैम. राजीव गांधी खेल रत्न से नवाजी गई सायना ने कॉमनवेल्थ में गोल्ड जीता. एशियाड में वह हारीं लेकिन जिससे हारीं उससे हांगकांग सुपर सीरीज में हिसाब चुकता कर दिया और सुपर सीरीज अपने नाम की.

विंटर ओलंपिक्स:

इस साल सुर्खियों में कनाडा में हुए विंटर ओलंपिक्स भी रहे. वैंकूवर में खेलों का आयोजन जनवरी से शुरू हुआ. लेकिन न जाने क्या कनाडा में बर्फ ही नहीं गिरी. आनन फानन में आयोजकों ने दूर दराज के इलाकों से लाखों टन बर्फ मंगवाई. उसे फैलाया गया, तब जाकर खेल शुरू हुए. आयोजकों और खिलाड़ियों को बड़ा धक्का पहले ही दिन लगा. ल्यूज खेल के अभ्यास के दौरान जार्जिया के नोडार कुमारितास्विली की मौत हो गई. प्रैक्टिस करते वक्त नोडार तेज रफ्तार से ट्रैक से बाहर चले गए फिर रेलिंग और दीवार से जा भिड़े.

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विंटर ओलंपिक्स में इस बार अमेरिका को खासा धक्का लगा. अंकतालिका में वह तीसरे स्थान पर रहा. पहला स्थान कनाडा और दूसरा जर्मनी को हासिल हुआ. भारत समेत 56 से ज्यादा देश तो एक पदक तक नहीं जीत सके.

मोटर रेसिंग:

पूत के पांव पालने में दिख जाते हैं, यह कहावत फॉर्मूला वन ट्रैक पर एकदम फिट बैठी.

सात बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुके माइकल शूमाकर की वापसी फीकी रही. वह एक भी रेस नहीं जीत सके. सारा करिश्मा चुराया उन्हीं के देश के दूसरे जर्मन ड्राइवर सबेस्टियन फेटल ने. सीजन की जब आखिरी पांच रेसें बची थी तो किसी को दूर दूर तक अंदाजा नहीं था कि फेटल फॉर्मूला वन के नए चैंपियन होंगे.

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खुद फेटल भी दुर्भाग्य का शिकार हो रहे थे, कभी कार टकराती तो कभी तकनीकी खराबी आ जाती. लेकिन आखिरी पांच में से तीन रेसें जीतकर उन्होंने फेरारी और दो बार वर्ल्ड चैंपियन रह चुके ओलंजो की हवा निकाल दी. आखिरी रेस में वह ओलंजो से 15 और अपने रेड बुल टीम के साथ मार्क वेबर से सात अंक पीछे थे. लेकिन ब्राजील में फेटल ने ऐसा फर्राटा भरा कि सबसे कम उम्र के फॉर्मूला वन चैंपियन बन बैठे. वेबर और उनकी जोड़ी ने पहली बार रेड बुल की झोली में डबल विन यानी पहला और दूसरा स्थान हासिल करने का खिताब डाला.

बाइक रेसिंग में कोई बड़ा बदलाव नहीं हुआ. लेकिन हां, एक दुर्घटना ने सभी खिलाड़ियों को हिला कर रख दिया. सितंबर में इटली सैंट मारिनो ग्रा प्री में जापान के 19 साल के बाइकर शोया तोमिजावा की मौत हो गई. तोमिजावा के आगे एक बाइक फिसली, जिसकी वजह से वह भी गिर गए और उनके पीछे आते तीसरे खिलाड़ी की मोटरसाइकिल उनकी गर्दन से लगी. तोमिजावा को तुरंत अस्पताल ले जाया गया लेकिन वह नहीं बच सके. इस हादसे के बाद मोटरसाइकिल रेसिंग में सुरक्षा को लेकर एक बार फिर बहस हो रही है.

मोटो जीपी 1949 से हो रही है और अब तक इसके 46 खिलाड़ी ट्रैक पर दम तोड़ चुके हैं. सड़कों पर इसका अभ्यास करने के चक्कर में हजारों युवक मारे जा चुके हैं.

संकलन: ओंकार सिंह जनोटी

संपादन: एस गौड़

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