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तेंदुलकर वर्ष रहा 2010

२३ दिसम्बर २०१०

क्रिकेट की दुनिया में 2010 का आरंभ और अंत सचिन तेंदुलकर के नाम से हुआ. नवंबर 2009 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 175 रन की पारी खेलने के बाद तेंदुलकर ने विपक्षी टीमों पर गजब का आंतक मचाना जारी रखा. साल भर उनका बल्ला खूब गरजा.

तस्वीर: AP

24 फरवरी 2010 को उन्होंने यादगार बना दिया. ग्वालियर में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उनकी नाबाद 200 रन की पारी सबको मुग्ध कर गई. चारों ओर से बधाइयों का तांता लग गया.

कुछ आलोचक कहने लगे कि बस सचिन ने एक पारी खेल दी है अब उनका बल्ला खामोश ही रहेगा. लेकिन साल भर मास्टर ब्लास्टर ने ऐसे स्ट्रोक लगाए कि आलोचक अपनी जगह से हिल भी न सके. कमेंट्रटर कहते रह गए कि, अविश्वसनीय तेंदुलकर.

तस्वीर: AP

लेकिन साल के बीच का समय सचिन, उनके प्रशंसकों और भारतीय राजनीति में सुधार की वकालत करने वालों के लिए कड़वा अनुभव रहा. सभी पार्टियों के नेता जब राजनीति के नाम पर मुंबई और मराठी चालें खेल रहे थे तो सचिन ने कहा, मुंबई सबकी है. इसके बाद एक राज्य से बाहर एक सीट न जीत पाने वाले कई नेता सचिन पर मीडिया के जरिए चढ़ बैठे. हालांकि एकाध महीने बीतते ही यही नेता सचिन को भारत रत्न देने की मांग करने लगे. इस घटना से भी पता चलता है कि 2010 में सचिन ने सिर्फ मैदान पर नहीं बल्कि आम लोगों और इंसानियत के लिए भी बल्लेबाजी की.

सचिन की बल्लेबाजी का कायल पूरा पाकिस्तान दिखा. खिलाड़ियों ने जहां दिल खोल कर सचिन के कारनामे पर उन्हें सलाम किया, वहीं पाकिस्तान के एक अखबार ने उन्हें मानव श्रेष्ठता का अगुवा बता दिया. यह पहला मौका रहा, जब किसी ने आगे बढ़ कर कहा कि सचिन सिर्फ क्रिकेटर या बल्लेबाज नहीं हैं, बल्कि वह अपनी कला से मानव श्रेष्ठता को साबित करते हैं. पाकिस्तानी अखबार डॉन इस संपादकीय की वजह से न सिर्फ अपने देश, बल्कि पूरी दुनिया में चर्चित रहा.

तस्वीर: AP

बहरहाल इन घटनाओं के आगे, 2010 में सचिन ने सर्वाधिक टेस्ट मैच खेलने का रिकॉर्ड बनाया. ये रिकॉर्ड मैदान पर टुक टुक करते हुए या जबरदस्ती खड़े रहकर नहीं बना. इस कीर्तिमई माला का श्रृंगार सचिन ने रनों से किया. 2010 में खेले गए 13 टेस्ट मैचों में उन्होंने करीब 86 के औसत से रन बनाए. इनमें सात शतक और पांच अर्धशतक शामिल हैं.

सेंचुरियन में उन्होंने 50वां शतक जड़कर क्रिकेट और इंसानी पराकाष्ठा को नए चरम तक पहुंचा दिया. भारत वह टेस्ट भले ही हार गया लेकिन सचिन की पारी यादगार रही. जिस मैदान पर द्रविड़ जैसी दीवार ढह गई और लक्ष्मण रेखा तक मिट गई वहां तेंदुआ अकेले आखिरी दम तक लड़ा.

अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से दूर नौजवानों का आईपीएल भी सचिनमय रहा. एक सफल सारथी की तरह वह अपनी टीम को फाइनल तक ले गए. इस सफर में उन्होंने खुद गजब का प्रदर्शन किया.

आंकड़ों में उलझे रहने वाले अब सचिन की तुलना बार बार सर डॉन ब्रैडमैन से करने लगे हैं. लेकिन ऐसे लोगों को जवाब देते हुए मशहूर पूर्व तेज गेंदबाज रिचर्ड हेडली कहते हैं, "सचिन ने जितने गेंदबाजों को खेला है, उन्होंने जितने मैदानों पर खेला है और जितने प्रकार की क्रिकेट खेली है, उससे साफ जाहिर है कि वह सर डॉन से कहीं आगे हैं. दुनिया भर के मैदानों पर एक से एक गेंदबाजों को खेल चुके सचिन के आंकड़े इस बात की गवाही देते हैं."

आंकड़ों की बात आते ही कुछ लोग सचिन पर एक लांछन लगाते हैं. कहते हैं कि वह रिकॉर्ड बनाने के लिए खेल रहे हैं. इसका जवाब सचिन स्ट्रेट ड्राइव के अंदाज में देते हैं. 46 वनडे शतक लगा चुका बल्लेबाज कहता है, "अगर रिकॉर्ड ही बनाने होते तो इस साल फरवरी के बाद वनडे खेलना न छोड़ता."

तस्वीर: AP

वैसे आंकड़ों के इस खेल में सचिन ने डॉन ब्रैडमैन को पीछे धकेल दिया है. खुद ऑस्ट्रेलिया के लोगों ने सचिन को ब्रैडमैन से आगे रखा है. ऑस्ट्रेलिया में सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड नाम के अखबार ने ऑनलाइन पोल कराया, जिसमें लोगों से पूछा गया कि ज्यादा बड़ा खिलाड़ी कौन, ब्रैडमैन या सचिन. भारत के मास्टर ब्लास्टर को 67 फीसदी वोट मिले, जबकि ब्रैडमैन को सिर्फ 33 फीसदी.

सचिन ने अपने बल्ले से सबको जवाब दिया है. उनका यह जवाब आलोचकों के लिए है. प्रशंसकों के लिए तो बस उनका मैदान पर पैर रखना ही काफी है. 2010 में हर तरह की भड़ाभड़ करने के बाद वह फिर वनडे के मैदान पर लौट रहे हैं. समीकरण कहते हैं कि वर्ल्ड कप के लिए भारतीय टीम के पास धुंरधरों की फौज है.... और सारथी के तौर पर सचिन भी हैं.

रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी

संपादनः ए जमाल

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