नए कृषि कानूनों के खिलाफ लगभग डेढ़ महीने से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसानों ने अब एक ट्रैक्टर रैली निकालने का फैसला किया है. कुछ किसान संगठनों ने कहा है कि वे गणतंत्र दिवस पर अपनी अलग परेड भी निकालेंगे.
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किसानों और सरकार के बीच गतिरोध बना ही हुआ है और अभी तक कोई समाधान नजर नहीं आया है. सोमवार को दोनों पक्षों के बीच बातचीत का एक और दौर भी बेनतीजा रहा. अब 8 जनवरी को होने वाले अगले दौर के पहले किसानों ने घोषणा की है वो 7 जनवरी को दिल्ली एनसीआर इलाके में एक ट्रैक्टर रैली निकालेंगे.
भारतीय किसान यूनियन हरियाणा के प्रवक्ता राकेश बैंस ने मीडिया को बताया कि रैली बुधवार 6 जनवरी को ही निकाली जानी थी लेकिन इलाके में तीन दिनों से हो रही बारिश की वजह से उसे आगे बढ़ा कर गुरूवार के लिए तय कर दिया गया है. मीडिया में आई खबरों के अनुसार, रैली में करीब 2,500 ट्रैक्टरों के शामिल होने की संभावना है.
योजना के अनुसार कुंडली-मानेसर-पलवल एक्सप्रेसवे पर 1,000 ट्रैक्टर कुंडली बॉर्डर से टिकरी बॉर्डर की तरफ जाएंगे. उसी तरह, 1,000 और ट्रैक्टर दूसरी तरफ से बढ़ेंगे और एक्सप्रेसवे के टोल प्लाजा पर पहुंच कर दोनों तरफ के ट्रैक्टर अपने अपने शुरूआती बिंदुओं की तरफ वापस मुड़ जाएंगे. रास्ते में दो और स्थानों से भी करीब 500 ट्रैक्टरों को एक्सप्रेसवे पर भेजने की योजना है.
किसान यह कदम सरकार पर दबाव बनाने के लिए उठा रहे हैं क्योंकि आंदोलन के दौरान अभी तक करीब 60 किसान मारे गए हैं लेकिन इसके बावजूद सरकार ने उनकी मांगें अभी तक मानी नहीं हैं. माना जा रहा है कि यह रैली 26 जनवरी को होने वाली ट्रैक्टर परेड का ट्रेलर होगी. किसान संगठनों का संयुक्त मोर्चा पहले ही घोषणा कर चुका है कि अगर 26 जनवरी तक दोनों पक्षों में कोई सहमति नहीं बनी तो किसान उस दिन गणतंत्र दिवस के मौके पर अपनी ही परेड निकालेंगे.
इसकी तैयारी में सात जनवरी से किसान संगठन 15 दिनों का देश जागरण अभियान शुरू करेंगे, जिसमें पूरे देश में कई स्थानों में ट्रैक्टर रैलियां निकाली जाएंगी और आंदोलन के बारे में जागरूकता फैलाई जाएगी. इस बीच दिल्ली में कड़ाके की ठंड और तीन दिनों से हो रही बारिश के बावजूद किसान दिल्ली की सीमाओं पर अभी भी खुले आसमान के नीचे डटे हुए हैं.
सबसे पहले अध्यादेश के रूप में जून में लाए गए कानूनों का किसान अपने प्रांतों में विरोध कर रहे थे. लेकिन जब दिल्ली ने उनकी आवाज नहीं सुनी तो वो अपनी मांगों को लेकर दिल्ली ही आ गए. देखिए किसान आंदोलन को कैमरे की नजर से.
तस्वीर: Aamir Ansari/DW
आतंकवादी नहीं किसान
पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से हजारों किसान नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में प्रदर्शन करने के लिए निकले लेकिन पुलिस ने उन्हें दिल्ली की सीमाओं पर ही रोक दिया. राशन-पानी ले कर आए किसानों ने वही डेरा जमाया और आंदोलन छेड़ दिया. पुलिस के डंडे, ठंडे पानी की बौछार और आंसू गैस के गोलों के अलावा किसान प्रदर्शनकारियों ने जाहिल, आढ़तियों के एजेंट और आतंकवादी होने तक के आरोपों का सामना किया.
तस्वीर: Mohsin Javed
बात चंद किसानों की नहीं
हजारों की संख्या में किसान जीन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, वो हैं आवश्यक वस्तु (संशोधन) कानून, कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) कानून और कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार कानून. इनका उद्देश्य ठेके पर खेती को बढ़ाना, भंडारण की सीमा तय करने की सरकार की शक्ति को खत्म करना और अनाज, दालों, सब्जियों के दामों को तय करने को बाजार के हवाले करना है.
तस्वीर: Mohsin Javed
आर-पार की लड़ाई
किसान सिर्फ भारी संख्या में ही नहीं आए, बल्कि महीनों का राशन साथ लेकर आए हैं. सरकार ने नए कानूनों को किसानों के लिए कल्याणकारी बताया है, लेकिन किसानों का मानना है कि इनसे सिर्फ बड़े उद्योगपतियों का फायदा होगा और छोटे और मझौले किसानों को अपने उत्पाद के सही दाम नहीं मिल पाएंगे. उनका कहना है कि इन कानूनों की वजह से कृषि उत्पादों की खरीद की व्यवस्था में छोटे और मझौले किसानों का शोषण बढ़ेगा.
तस्वीर: Mohsin Javed
पुलिस की बर्बरता का सामना
जय जवान और जय किसान का नारा लगाने वाले देश में किसान और जवान आमने सामने हैं. आंदोलन के दौरान किसानों को पुलिस की लाठियों का भी सामना करना पड़ा. कई बुजुर्ग किसान घायल हो गए और हालात कठिन होने की वजह से कुछ किसानों की मौत भी हो गई.
तस्वीर: Mohsin Javed
सर्दी में संघर्ष
सभी स्थानों पर किसान या तो खुले में या पतले शामियानों के नीचे दिन और रात बिता रहे हैं. सड़क-मार्ग से ही राजधानी आए किसान अपने ट्रैक्टरों को भी साथ लाए हैं, जो अब यहां पर उनका वाहन भी बना हुआ है, बेंच भी, बिस्तर भी और छत भी.
तस्वीर: Mohsin Javed
लंबी जद्दोजहद की तैयारी
किसान मान कर आए हैं कि केंद्र सरकार आसानी से उनकी मांगें नहीं मानेगी. इसलिए वो लंबे समय तक डेरा डालने की तैयारी करके आए हैं. धरना स्थलों पर खुद ही रोज अपना खाना पकाते हैं और खा-पी कर फिर धरने पर बैठ जाते हैं. सरकार के साथ बातचीत में भी वे अपना ही खाना लेकर जाते हैं और सरकारी खाना ठुकरा देते हैं.
तस्वीर: Seerat Chabba/DW
महिला शक्ति भी मौजूद
आंदोलन सिर्फ पुरुषों के कंधों पर ही नहीं चल रहा है. कुछ महिलाएं गांवों में खेती संभाल रही हैं तो कुछ मोर्चे पर डटी हुई हैं और पुरुषों का कंधे से कंधा मिला कर साथ दे रही हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
किताबों का साथ भी
धरना स्थलों पर प्रदर्शनकारियों का साथ देने, उनका हौसला बढ़ाने और उनकी सेवा करने कई लोग पहुंचे हुए हैं. कोई खाना खिला रहा है, कोई पानी पिला रहा है, कोई डॉक्टरी मदद दे रहा है तो कोई किताबें भी बांट रहा है.
तस्वीर: Mohsin Javed
मीडिया से नाराजगी
प्रदर्शनकारियों में मीडिया के एक धड़े के खिलाफ भी सख्त नाराजगी है. उनका आरोप है कि कुछ बड़े मीडिया संस्थान सिर्फ सरकार का पक्ष जनता के सामने परोस रहे हैं और सिर्फ किसानों की आलोचना कर रहे हैं.
तस्वीर: Mohsin Javed
हुक्के के बिना कैसे हो किसान आंदोलन
विशेष रूप से दिल्ली और नॉएडा की सीमा पर धरने पर बैठे पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आए किसान जरूरत जी दूसरी चीजों के साथ हुक्का भी साथ लाए हैं. सरकार के सामने पहले पलक किसानों की ना झपक जाए, इसीलिए इस लंबी लड़ाई में धैर्य और हुक्के का सहारा भी लिया जा रहा है.