क्या आपने कभी अपने किसी टीचर को तोहफा दिया है? बर्लिन में एक टीचर का अपने छात्रों से तोहफा लेना गले की फांस बन गया है. उसे 4000 यूरो का जुर्माना देना पड़ा. लेकिन मामला खत्म नहीं हुआ है.
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मामला 2011 का है. दसवीं के एक क्लास की पढ़ाई पूरी हो रही थी और छात्रों को अपनी प्रिय क्लासटीचर से विदाई लेनी पड़ रही थी. उन्होंने टीचर को कोई तोहफा देने की सोची जिसके लिए छात्रों ने क्लास में पैसा जमा किया और करीब 200 यूरो में जर्मनी के लोकप्रिय हास्य कलाकार लोरियो का एक स्कल्पचर टीचर को भेंट किया गया. यहीं से समस्या शुरू हुई क्योंकि सब अभिभावकों को यह बात पसंद नहीं आई. एक ने तो इस बात की ओर इशारा भी किया कि सरकारी अधिकारियों को तोहफा लेने की अनुमति नहीं है और शिक्षक भी राजपत्रित कर्मचारी होते हैं.
तोहफा दे दिया गया और मामला खत्म होता लगा. लेकिन कुछ महीने बाद यह फिर भड़क गया जब तोहफे में शामिल नहीं होने वाले छात्र को कम नंबर मिले. बर्लिन के दैनिक टागेसश्पीगेल के अनुसार इस पर झगड़ा हो गया क्यों कम नंबर देने वाली टीचर वहीं थी जिसे तोहफा मिला था. छात्र के पिता ने इसमें संबंध देखा और शिकायत कर दी. एक ओर लोकप्रिय टीचर तो दूसरी ओर नियमों के पालन की मांग करता पिता.
मामले को भड़कना ही था. अब सरकारी जांच कार्यालय ने आपराधिक जांच शुरू की. शिक्षक का तोहफा लेना गलत था, लेकिन जांच अभिभावकों के खिलाफ भी हुई जिन्हों तोहफा देने में मदद दी थी. अंत में उनके खिलाफ कोई मामला तो नहीं बना क्योंकि यह पता नहीं चल पाया कि किसने कितने पैसे दिए थे, लेकिन आपराधिक कार्रवाई में बचाव के लिए उन्हें वकील लेना पड़ा जिसपर कुछ सौ यूरो का खर्च तो आया ही. और टीचर को 4000 यूरो का जुर्माना हुआ.
क्लास का माहौल खराब हो गया, कुछ रिश्ते टूटे, लेकिन 2013 के अंत में लगा कि मामला निबट गया. पर उसके बाद खबरें छपनी शुरू हुईं. पहले स्थानीय अखबारों में, फिर क्षेत्रीय और राष्ट्रीय अखबारों में. 4000 यूरो के जुर्माने पर सार्वजनिक आक्रोश का इजहार हुआ लेकिन अभियोक्ता कार्यालय का कहना है कि जुर्माना शिक्षक की आय के आधार पर किया गया है क्योंकि सरकारी कर्मचारियों का तोहफा लेना गैरकानूनी है. अब राजनीतिज्ञ सरकारी अधिकारियों के तोहफे के नियमों को बदलने पर चर्चा कर रहे हैं. इस समय वे 10 यूरो से ज्यादा का तोहफा नहीं ले सकते. तोहफे वाली मूर्ति इस बीच अभियोक्ता कार्यलय के गोदाम में धूल खा रही है.
जर्मनी में छात्रों के ठिकाने
जर्मनी में बाहर से आने वाले छात्रों की तादाद इतनी ज्यादा कभी नहीं थी, जितनी अभी है. केवल कक्षा में ही नहीं, रहने के लिए भी घर का इंतजाम आसान नहीं. देखिए तस्वीरों में किस तरह के घरों में रहते हैं छात्र यहां....
तस्वीर: Manfred Kovatsch
यह है म्यूनिख का ओ2 विलेज. 6.8 वर्ग मीटर क्षेत्र वाले सात घनाकार कमरे. इनका किराया करीब 13,000 रुपये है जो कि बाकी मकानों के मुकाबले कुछ भी नहीं.
तस्वीर: cc-by-nc-sa3.0/Church of emacs
नया सेमेस्टर शुरू हो गया है. घर नहीं मिला तो भी कोई ना कोई रास्ता तो निकालना ही होगा. म्यूनिख और फ्रैंकफर्ट छात्रों के लिए सबसे महंगे शहर साबित होते हैं. म्यूनिख में एक कमरा 40,000 रुपये और फ्रैंकफर्ट में करीब 35,000 का पड़ता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
27 फीसदी जर्मन छात्र अभी भी माता पिता के साथ रहते हैं. इससे किराए के अलावा खाने पीने और कपड़े धुलने जैसे कामों पर पैसे बचते हैं. लेकिन हां, ऐसे में उनका कहना भी तो मानना पड़ता है.
तस्वीर: Fotolia/Jeanette Dietl
म्यूनिख, कोलोन और फ्रैंकफर्ट जैसे शहरों में घर मिल जाना अक्सर लॉटरी लगने जैसा होता है. सेमेस्टर के शुरुआत में कई युवा बेघर ही होते हैं. ऐसे में कई बार कैंपस के ही जिम में सोना पड़ जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
जर्मनी के कुल छात्रों में से सिर्फ 12 फीसदी को ही यूनिवर्सिटी की होस्टल में जगह मिल पाती है. ठीक ठाक होस्टल में कमरा 17 वर्ग मीटर का होता है लेकिन कई जगह और छोटा भी हो सकता है. कोई अपार्टमेंट मिल जाए, तो तीन चार छात्र एक साथ भी रह लेते हैं. कोलोन में औसत किराया लगभग 20,000 रुपये है.
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1983 में गोएटिंगेन के छात्र संघ ने लकड़ी के इस घर की काफी सस्ते में मरम्मत की. तस्वीर में दिख रहे लोग मरम्मत के बाद इस घर में रहने वाले पहले लोग हैं. यह घर आज भी इस शहर के छात्रों के बीच काफी लोकप्रिय है.
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सर्बिया की तियाना को बॉन में सैनिकों के बैरक जैसा यह घर मिला है. एक व्यक्ति के लिए बमुश्किल 10 वर्ग मीटर क्षेत्र. टॉयलेट और किचन पर किसी एक का अधिकार नहीं, सब साझे में. खाना बनाने की सबकी एक एक कर के बारी आती है.
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क्लारा फुर्स्ट ने अपने घर में सारा को किराएदार रखा हुआ है. सौदा आसान है. सारा को रहने के लिए कमरा मिला है, तो बदले में उन्हें घर की देखरेख, गार्डन और किचन के कामों में फुर्स्ट की मदद करनी होती है. 1992 से लिविंग फॉर हेल्प संस्था देश भर में इस तरह के कार्यक्रमों को बढ़ावा दे रही है.
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पुरानी फैक्ट्री हो, अस्पताल या स्कूल खाली रहें, तो खतरा रहता है. 2010 से इन इमारतों की रखवाली के लिए छात्र आगे आ रहे हैं. जगह की कोई कमी नहीं लेकिन तोड़फोड़ या अजनबी लोगों से इमारत को बचाना इनका काम है. यहां सिगरेट, पालतू जानवर और 10 से ज्यादा लोगों की पार्टी की इजाजत नहीं.
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2012 से 27 छात्र उल्म के एक खाली मठ में रह रहे हैं. जो विदेशी छात्र किराया नहीं भर सकते, उनके लिए चर्च की तरफ से यहां 10 कमरे मुफ्त हैं. हालांकि भविष्य में क्या होगा, इस बारे में चर्च ने फिलहाल कुछ तय नहीं किया है इसलिए छात्रों के साथ कांट्रैक्ट लंबे समय के लिए नहीं किए जाते.
तस्वीर: DW/V. Wüst
हथौड़ी और पेंच, थोड़ा इधर, थोड़ा उधर, और नया सस्ता सुंदर घर तैयार. स्वीडन की एक कंपनी के इस कंप्यूटर ग्राफिक में देखा जा सकता है कि इस तरह के घर कैसे दिखते हैं. जर्मनी में भी भविष्य में छात्रों के लिए ऐसे घर बनाने की योजना है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/LandProp SE
ये कंटेनर नहीं, घर हैं. ये आज से नहीं बल्कि 1980 से प्रचलित हैं, जब आर्थिक हालत ऐसी थी कि घर बनाना आसान नहीं हुआ करता था. इनका साइज 15 से 17 वर्ग मीटर होता है.