शायद आपने फिल्मी गानों में इन रहस्यमयी पत्थरों को देखा हो. इंग्लैंड में प्राचीन पत्थरों की संरचना स्टोनहेंज की कहानी पांच हजार साल से चली आ रही है. आज भी रिसर्च हो रही है कि इन्हें कैसे बनाया गया होगा.
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इंग्लैंड के विल्टशायर में स्थित स्टोनहेंज मूल रूप से मिट्टी को खोदकर खड़े किए गए पत्थरों से निर्मित घेरा है. मौजूदा वक्त में सिर्फ अवशेष रह गए हैं, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं. ऐसा माना जाता है कि ‘स्टोनहेंज' इसके आसपास रहने वाली जनजातियों के नेता का नाम था और यहां कब्रिस्तान हुआ करता था. इसे दो प्रकार के पत्थरों-सारसेन्स और ब्लूस्टोन से मिलाकर बनाया गया था.
ये पत्थर इसलिए खास हैं क्योंकि इन्हें जोड़ने के लिए ऐसे जोड़ों का प्रयोग किया गया था जिनका प्रयोग सामान्यतः लकड़ी के काम में किया जाता है. ऐसा पांच हजार साल पहले होना बड़ी बात है.
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के छात्र क्रिस्टोफ स्नोएक ने हाल ही में की अपनी रिसर्च में दावा किया है कि इन पत्थरों को वेल्स से लाया जाता था, जहां ब्लूस्टोन मुख्यत: पाया जाता है. हो सकता है कि पत्थर लाने वाले मजदूरों की मौत हो गई हो या उन्होंने अपने जीवन के आखिरी दिन स्टोनहेंज के करीब बिताए हों.
अद्भुत इमारतें, जिन्हें बनाने में लगे सैकड़ों साल
दुनिया में कुछ ऐसी इमारतें आज भी खड़ी हैं जिनका निर्माण पूरा होते होते सदियां बीत गईं. आइए देखें ऐसे पांच प्रभावशाली भवन.
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वेस्टमिंस्टर ऐबी
विलियम दि कॉन्करर (1066-1087) के समय से अंग्रेज राजा-रानियों की ताजपोशी यहीं होती आई है. इस इमारत का इतिहास तो इससे भी पुराना है. सातवीं सदी में यहां "वेस्ट मिंस्टर" चर्च हुआ करता था. आज मौजूद चर्च की नींव यहां सन 1245 में पड़ी. निर्माण चलता रहा और इसकी दो मुख्य मीनारें सन 1745 में बन कर तैयार हुईं - ठीक 500 साल बाद.
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मिलान कैथीड्रल
यह केवल मिलान शहर ही नहीं, इटली में गॉथिक आर्किटेक्चर का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक है. कैथीड्रल-बैसिलिका ऑफ सांता मारिया नेसेन्टे को आम बोलचाल में मिलान कैथीड्रल के रूप में जाना जाता है. इसकी नींव 1388 में पड़ी और इसे बनाने में कई आर्किटेक्ट्स ने काम किया. सन 1965 में निर्माण पूरा होने तक 577 साल बीच चुके थे.
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कोलोन कैथीड्रल
पश्चिमी जर्मनी में स्थित कोलोन शहर का मशहूर कैथीड्रल जब सन 1880 में बन कर तैयार हुआ, तब वह दुनिया की सबसे ऊंची इमारत थी. उस वक्त वह दुनिया में स्टील की सबसे बड़ी संरचना भी थी. इसका फ्री-स्विंग घंटा भी विश्व में सबसे विशाल था. कैथीड्रल में सलीब पर चढ़े जीसस क्राइस्ट का सबसे प्राचीन प्रदर्शन है. इसे बनने में करीब 632 साल लगे.
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अलहम्ब्रा
स्पेन के ग्रेनादा की साबिका पहाड़ की चोटी पर स्थित अलहम्ब्रा मूरिश आर्किटेक्चर के सबसे महत्वपूर्ण उदाहरणों में से एक है. यूनेस्को के विश्व धरोहरों में शामिल अलहम्ब्रा को देखने हर साल 30 लाख से भी अधिक लोग पहुंचते हैं. इस 'लाल किले' की नक्काशी और छतों पर लकड़ी का महीन काम देख कर अंदाजा लग जाता है कि इसे बनाने में 600 साल से भी अधिक क्यों लगे.
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स्टोनहेंज
किसी को पता नहीं है कि स्टोनहेंज को बनने में ठीक ठीक कितने साल लगे. रिसर्चरों का मानना है कि दक्षिण इंग्लैंड में स्थित इस स्थल के निर्माण के कुल पांच चरण रहे होंगे और इसे पूरा होने में कम से कम 1,400 साल लगे. हालांकि इससे भी बड़ा अनुत्तरित सवाल ये है कि स्टोनहेंज को बनाया क्यों गया.
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स्नोएक ने लैब टेस्ट के दौरान पाया कि इन पत्थरों के अवशेष में स्ट्रोनटियम नामक तत्व है. यह इंसानी हड्डियों में पाया जाता है और 1000 डिग्री तक के तापमान को भी सह सकता है. स्नोएक के मुताबिक, ''शव को दफनाने के बाद डीएनए समेत शरीर के सारे ऑर्गेनिक मैटर नष्ट हो जाते हैं, सिर्फ इनऑर्गेनिक मैटर बचा रहता है. स्ट्रोनटियम इनऑर्गेनिक मैटर है जिसकी पड़ताल की जाए तो मालूम चल सकेगा कि हम पांच हजार साल पहले क्या खाते थे.''
शोधकर्ताओं ने जांच में पाया कि स्टोनहेंज में दफन हुए लोगों में कम से कम 10 अलग-अलग इलाकों से आते होंगे. यह भी पता किया जा रहा है कि अंतिम क्रिया के दौरान इस्तेमाल होनी वाली लकड़ी स्टोनहेंज के इलाके की थी या वेल्स के जंगलों से आई थी. शोधकर्ताओं का अनुमान है कि कुछ लोगों को स्टोनहेंज की साइट पर दफनाया गया. उससे पहले उनकी अंतिम क्रिया पश्चिमी ब्रिटेन में की गई होगी और यहां उनकी अस्थियों को लाया गया होगा.
रिसर्च से यह निष्कर्ष निकाला गया कि पश्चिमी वेल्स से न सिर्फ ब्लूस्टोन पत्थर लाए गए, बल्कि लोग भी आए और उन्हें स्टोनहेंज में दफनाया गया. अनुमान है कि स्टोनहेंज में 150 से 240 कब्रें खोदे गईं.
वीसी/आईबी (एएफपी)
स्टोनहेंज में मिले और स्मारक
स्टोनहेंज में मिले और स्मारक
रिसर्चरों के मुताबिक अब तक ज्ञात स्टोनहेंज तो बस शुरुआत थी. जमीन के अंदर बहुत कुछ और है जिसका डिजिटल मैप तैयार किया गया है...
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रिसर्चरों की टीम के प्रमुख विंसेंट गैफ्नी के मुताबिक यह स्टोनहैंज के बारे में नई जानकारी नहीं बल्कि जानकारियां मिलने की एक नई शुरुआत है. चार साल तक काम करके रिसर्चरों को जमीन के भीतर पत्थर के और भी धार्मिक स्मारक होने के सबूत मिले हैं.
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स्टोहेंज की मौजूदगी वैज्ञानिकों को हैरान करती आई है और इसके इतिहास के बारे में कोई ठोस जानकारी नहीं है. इस इलाके पर रिसर्च के दौरान टीम को 17 ऐसे स्मारक मिले हैं जिनके बारे में पहले कोई जानकारी नहीं थीं.
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यह डिजिटल मैप है जो स्टोनहैंज के इलाके में मिले नए स्मारकों की मौजूदगी दिखाता है. रिसर्चरों ने इनका पता लगाने के लिए मैग्नोमीटर, जमीन भेदने वाले रडार, इलेक्ट्रो मैग्नेटिक इंडक्शन सेंसर और 3डी लेजर का इस्तेमाल किया.
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चार साल का यह प्रोजेक्ट स्टोनहेंज पर अब तक का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. इस तस्वीर में एक रिसर्चर मोटर में फिट मैग्नेटोमीटर की मदद से जानकारी हासिल करने की कोशिश कर रहा है.
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डुरिंग्टन वॉल्स का अस्तित्व 4500 साल पहले का माना जाता है. इसे उस समय का पारंपरिक कारणों से महत्वपूर्ण स्मारक माना जाता है. परिधि में यह करीब 1.5 किलोमीटर है. रिसर्चरों को उम्मीद है कि स्टोनहेंज की तरह इसके इर्द गिर्द भी जमीन के नीचे बड़े बड़े पत्थर हैं.
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मैप में एक बड़ी सी लकड़ी की बनी इमारत का भी जिक्र है. माना जाता है कि यहां पुराने समय में अंतिम संस्कार किया जाता रहा होगा.
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लकड़ी का बना यह ढांचा स्टोहेंज से भी पुराना माना जा रहा है. रिसर्चरों का मानना है कि इसका निर्माण 3000 और 2000 ईसा पूर्व के बीच किया गया होगा.
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रिसर्च में शामिल लुडविग बोल्ट्समान इंस्टीट्यूट के निदेशक वोल्फगांग नॉयबाउअर के मुताबिक हमारे समय की सबसे बड़ी चुनौती है बिना आक्रामक तरीके के सांस्कृतिक धरोहर का पता लगाना. उन्होंने कहा यह सिर्फ आधुनिक तकनीक से ही संभव है.
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डिजिटल तस्वीरों में कई प्रागैतिहासिक काल के गड्ढे और कुछ कब्र जैसे टीले भी मिले हैं. इनसे कांस्य युग, लौह युग और रोमन काल की रिहाइश का पता चलता है.
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5 सितंबर 2014 को अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा स्टोनहेंज पहुंचे. माना जाता है कि स्टोनहेंज का निर्माण नवपाषाण और कांस्य युग में किया गया था. यह भी धारणा है कि इस इलाके का इस्तेमाल अंतिम संस्कार और अन्य धार्मिक रस्मों के लिए किया जाता था.