दो साल पहले राजस्थान के अलवर जिले में गो तस्करी के संदेह में पहलू खान की हत्या के मामले में अलवर की जिला अदालत ने सभी छह अभियुक्तों को बरी कर दिया है.
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साल 2017 में भीड़ ने गाय की तस्करी के शक में पहलू खान की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी. कोर्ट ने इस मामले में संदेह का लाभ देते हुए सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया है. इस मामले में कुल आठ अभियुक्तों को गिरफ्तार किया गया था जिनमें से दो नाबालिग हैं. इन दोनों की सुनवाई किशोर न्यायालय में चल रही है.
हालांकि सरकारी वकील का कहना है कि वो इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे जबकि बचाव पक्ष ने अदालत के फैसले को ऐतिहासिक बताया है. अभियुक्तों को सजा न दिला पाने के पीछे मुख्य वजह ये रही कि एक तो सरकारी पक्ष अदालत में सबूतों को साबित करने में नाकाम रहा, दूसरी ओर कुछ गवाह भी पलट गए.
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जिस मामले में घटना के वीडियो साक्ष्य रहे हों, पीड़ित ने मरने से पहले खुद बयान दिया हो, सैकड़ों लोग उस घटना के गवाह रहे हों उस घटना को सही साबित करने में सरकारी वकीलों के साक्ष्य कैसे कम पड़ गए और उनकी दलीलें कैसे कमजोर रह गईं? जांच प्रक्रिया पर तो सवाल उठते ही हैं.
क्या है राज्यों में "गाय" की स्थिति
भारत में गौहत्या को लेकर विवाद बढ़ता ही जा रहा है. हाल में राजस्थान में तथाकथित गौरक्षकों द्वारा एक व्यक्ति को इतना पीटा गया कि उपचार के दौरान उसकी मौत हो गई. डालते हैं एक नजर इसके संवैधानिक प्रावधान पर.
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राज्यों का अधिकार
हिंदू धर्म में गाय का वध एक वर्जित विषय है. गाय को पारंपरिक रूप से पवित्र माना जाता है. गाय का वध भारत के अधिकांश राज्यों में प्रतिबंधित है उसके मांस के सेवन की भी मनाही है लेकिन यह राज्य सूची का विषय है और पशुधन पर नियम-कानून बनाने का अधिकार राज्यों के पास है.
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गौहत्या पर नहीं प्रतिबंध
केरल, पश्चिम बंगाल, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, मेघालय, नगालैंड, त्रिपुरा और सिक्किम जैसे राज्यों में गौहत्या पर कोई प्रतिबंध नहीं है. हालांकि संविधान के अनुच्छेद 48 में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के तहत गौहत्या को निषेध कहा गया है.
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आंध्रप्रदेश और तेलंगाना
इन दोनों राज्यों में गाय और बछड़ों का वध करना गैरकानूनी है. लेकिन ऐसे बैल और सांड जिनमें न तो प्रजनन शक्ति बची हो और न ही उनका इस्तेमाल कृषि के लिये किया जा सकता हो और उनके लिये "फिट फॉर स्लॉटर" प्रमाणपत्र प्राप्त हो, उन्हें मारा जा सकता है.
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उत्तर प्रदेश
राज्य में गाय, बैल और सांड का वध निषेध है. गोमांस को खाना और उसे स्टोर करना मना है. कानून तोड़ने वाले को 7 साल की जेल या 10 हजार रुपये जुर्माना, या दोनों हो सकता है. लेकिन विदेशियों को परोसने के लिये इसे सील कंटेनर में आयात किया सकता है. भैंसों को मारा जा सकता है.
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असम और बिहार
असम में गायों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन जिन गायों को फिट-फॉर-स्लॉटर प्रमाणपत्र मिल गया है उन्हें मारा जा सकता है. बिहार में गाय और बछड़ों को मारने पर प्रतिबंध है लेकिन वे बैल और सांड जिनकी उम्र 15 वर्ष से अधिक है उन्हें मारा जा सकता है. कानून तोड़ने वाले के 6 महीने की जेल या जुर्माना हो सकता है.
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हरियाणा
राज्य में साल 2015 में बने कानून मुताबिक, गाय शब्द के तहत, बैल, सांड, बछड़े और कमजोर बीमार, अपाहिज और बांझ गायों को शामिल किया गया है और इनको मारने पर प्रतिबंध हैं. सजा का प्रावधान 3-10 साल या एक लाख का जुर्माना या दोनों हो सकता है. गौमांस और इससे बने उत्पाद की बिक्री भी यहां वर्जित है.
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गुजरात
गाय, बछड़े, बैल और सांड का वध करना गैर कानूनी है. इनके मांस को बेचने पर भी प्रतिबंध है. सजा का प्रावधान 7 साल कैद या 50 हजार रुपये जुर्माना तक है. हालांकि यह प्रतिबंध भैंसों पर लागू नहीं है.
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दिल्ली
कृषि में इस्तेमाल होने वाले जानवर मसलन गाय, बछड़े, बैल, सांड को मारना या उनका मांस रखना भी गैर कानूनी है. अगर इन्हें दिल्ली के बाहर भी मारा गया हो तब भी इनका मांस साथ नहीं रखा जा सकता, भैंस इस कानून के दायरे में नहीं आती.
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महाराष्ट्र
राज्य में साल 2015 के संशोधित कानून के मुताबिक गाय, बैल, सांड का वध करना और इनके मांस का सेवन करना प्रतिबंधित है. सजा का प्रावधान 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का जुर्माना है. हालांकि भैंसों को मारा जा सकता है.
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सरकारी वकील का कहना है कि उन्हें जो भी साक्ष्य पुलिस से मिले, उनके आधार पर पीड़ित को न्याय दिलाने की पूरी कोशिश की गई लेकिन अदालत ने उनकी दलीलें नहीं मानीं. लेकिन कोर्ट ने अभियोजन पक्ष की दलीलों को कमजोर समझा और साक्ष्य पर्याप्त नहीं रहे तो उसके पीछे कई कारण थे. मसलन, कोर्ट ने घटनास्थल के वीडियो को एडमिसेबल सबूत नहीं माना है क्योंकि वीडियो की फोरेंसिक जांच नहीं कराई गई थी. इसके अलावा पुलिस अदालत को इस बारे में भी संतुष्ट नहीं कर सकी कि वीडियो किसने बनाया था और वो पुलिस को कैसे मिला था.
दो साल पहले हरियाणा के मेवात जिले के रहने वाले पहलू खान जयपुर से दो गाय खरीद कर वापस अपने घर जा रहे थे. शाम करीब सात बजे बहरोड़ पुलिया से आगे निकलने पर भीड़ ने उनकी गाड़ी को रुकवाया और उनके साथ मारपीट की. इस दौरान पहलू खान के बेटे भी उनके साथ थे. इलाज के दौरान पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई.
इस मामले में दो सौ से ज्यादा लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई थी लेकिन राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच ने आरंभिक जांच के बाद सभी को क्लीन चिट दे दी और सिर्फ छह लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया. इसके बाद ये सभी जुलाई से सितंबर 2017 के बीच जमानत पर रिहा हो गए.
इस मामले में नया मोड़ तब आया जब अदालत में सुनवाई के दौरान ही राजस्थान पुलिस ने कहा कि वो पहलू खान और उनके बेटों के खिलाफ गो तस्करी के मामले में केस दर्ज करके इसकी दोबारा जांच करेगी.
दरअसल, पुलिस ने इस मामले में दो एफआईआर दर्ज की थी. एक एफआईआर पहलू खान की हत्या के मामले में आठ लोगों के खिलाफ और दूसरी बिना कलेक्टर की अनुमति के मवेशी ले जाने पर पहलू और उनके दो बेटों के खिलाफ. दूसरे मामले में पहलू खान और उनके दो बेटों के खिलाफ इसी साल चार्जशीट दाखिल की गई है. पहलू खान के दोनों बेटे इस मामले में जमानत पर हैं.
गाय से मशहूर हुआ गांव
बनारस एयरपोर्ट से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर बसा रामेश्वर गांव आजकल चर्चा में है. वैसे तो गाय की वजह से भारत में तमाम विवाद हो रहे हैं लेकिन रामेश्वर गांव "काउ टूरिज्म" के लिए मशहूर हो रहा है.
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गाय और गौशालाएं
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के छात्र दिव्यांशु उपाध्याय और कुछ दूसरे छात्र साथियों की मेहनत ने इस गांव को देश के पहले "काउ विलेज" की तरह विकसित किया है. गांव में सौ साल से अधिक पुरानी चार गौशालाएं हैं जिनकी स्थापना बीएचयू के संस्थापक भारत रत्न महामना मदन मोहन मालवीय जी ने की थी. दिव्यांशु और उनके दोस्तों ने इन्हीं गौशालाओं का रूपरंग बदल दिया है.
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गौशालाओं की बदली तस्वीर
गौशालाओं में एक हजार से ज्यादा गाय हैं. दिव्यांशु को इस काम की प्रेरणा एक विदेशी जोड़े ने दी जिसने एक भारतीय गांव में घूमने की इच्छा जाहिर की थी. दिव्यांशु खुद एलएलबी के छात्र हैं. उन्होंन मेहनत कर के इस गांव की सफाई की, गौशाला को खूबसूरत बनाया.
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विदेशी सैलानी
आज इस गांव में विदेशी पर्यटक भी आते हैं. वो गाय के साथ समय बिताते हैं, सेल्फी लेते हैं. इस गांव में करीब 11 धर्मशालाएं हैं जहां रुक कर छुट्टियां मनाई जा सकती है और साथ ही साथ होम स्टे की व्यवस्था भी है. आमतौर पर इस गांव में आने वाले एक रात यहां जरूर बिताते हैं. काशी में विख्यात पंचकोशी यात्रा का तीसरा पड़ाव भी इसी गांव में पड़ता है.
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गांव की दीवारों पर गाय ही गाय
छात्रों ने सफाई के बाद दीवारों पर खूबसूरत पेंटिंग की है. बीएचयू के फाइन आर्ट्स के छात्रों ने अपनी कला इन दीवारों पर बिखेरी है. गांव में लगभग दो किलोमीटर लंबी दीवारों पर गाय के कई चित्र बनाए गए हैं. जिसमें गाय के शरीर में देवताओं का वास और गाय को कामधेनु की तरह प्रदर्शित किया गया है. हर तरफ इस गांव में आपको मंदिर, गाय और उसके चित्र ही दिखेंगे.
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गाय का दूध
इस गांव में अतिथियों का स्वागत दूध से बनी चीजें परोस कर किया जाता है. गांव की गौशाला के अलावा भी यहां लगभग सभी के घर गाय हैं और लोग बहुत खुशी से इनकी सेवा करते हैं. गाय का दूध इनके लिए कमाई का जरिया भी है.
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सेल्फी विद काउ
अब इस "काउ विलेज" में आपको कई आकर्षण मिल जाएंगे, सेल्फी विद काउ, वॉक विद काउ जिसमें आप गाय के साथ घूमेंगे, फीड द काउ, जिसमें आप गाय को चारा खिलाएंगे. आपको खाने में दूध, पेड़ा जो ठेठ गवईं तरीके से गाय के दूध से बना होगा, दिया जाएगा. गांव को पर्यटन विभाग अपने स्तर पर प्रमोट करे इसके लिए दिव्यांशु ने पत्र लिखा है.
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देखा जाए तो घटना की एफआईआर में ही फैसले की पटकथा लिख दी गई थी. अपनी मौत से पहले पहलू खान ने साफ तौर पर छह लोगों की पहचान हमलावरों के रूप में की थी. लेकिन जो एफआईआर पुलिस ने दर्ज की उसमें इन छह में से किसी का भी नाम नहीं डाला. इसके अलावा पुलिस की जांच में ये बात भी आई कि जिस वक्त ये घटना हुई, उनमें से कोई भी व्यक्ति वहां मौजूद नहीं था.
कथित गोरक्षकों के हाथों पहलू खान की हत्या की घटना ने देश भर में राजनीतिक हलचल पैदा की. इस दौरान देश के अन्य हिस्सों से भी ऐसी खबरें आईं. ये घटना जब हुई उस समय राजस्थान में वसुंधरा राजे के नेतृत्व में बीजेपी की सरकार थी. जाहिर है, विवेचना पुलिस करती है और पुलिस राज्य सरकार के अधीन रहती है. अभियोजन पक्ष भी उन्हीं साक्ष्यों पर निर्भर रहता है जो पुलिस अपनी विवेचना के दौरान उसे मुहैया कराती है.
कांग्रेस पार्टी ने उस समय घटना को लेकर राज्य सरकार को जमकर घेरा था. हालांकि यह भी संयोग ही है कि इस साल जब पहलू खान और उनके बेटों के खिलाफ गो तस्करी के मामले में पुलिस ने चार्ज शीट लगाई तो खुद अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार घिरी नजर आई. हालांकि अशोक गहलोत ने तब दलील दी थी कि पुलिस ने जो जांच की थी वो पहले की है.
अलवर की जिला अदालत के इस फैसले के बाद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कि उनकी सरकार भीड़ हत्या यानी मॉब लिंचिंग के शिकार हुए पहलू खान के परिवार वालों को न्याय दिलाने के लिए प्रतिबद्ध है और राज्य सरकार इस मामले में निचली अदालत के फैसले को चुनौती देगी.
सरकार भले ही इस फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती दे लेकिन जिन गवाहों, सबूतों और साक्ष्यों के आधार पर अदालतें फैसले देती हैं, उनमें किसी तरह के बदलाव की संभावना ना के बराबर है. ऐसी स्थिति में इस बात का पता शायद ही चल सके कि आखिर पहलू खान की हत्या किसने की?