पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों का हर विश्लेषण आखिरकर अगले साल होने वाले आम चुनाव पर ही जाकर टिकता है. खास तौर से मोदी बनाम राहुल की बहस और तेज हो गई है
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पिछले चार साल के दौरान कई राज्यों में सत्ता गंवाने वाली कांग्रेस पार्टी के लिए तीन राज्यों के चुनाव नतीजे एक संजीवनी की तरह हैं. ऐसे में वो यह भी भूल सकती है कि मिजोरम की सत्ता गंवाने के साथ ही पूर्वोत्तर में उसका ‘सफाया' हो गया है.
वहीं दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी इस हार को भले ही ऊपरी तौर पर ‘सदमे की तरह' ना दिखा रही हो लेकिन भीतरी स्थिति ये है कि उसकी जड़ें उन राज्यों में हिलनी शुरू हो गई हैं जिनकी बदौलत साल 2014 में उसे लोकसभा में ऐतिहासिक बहुमत मिला था.
पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जहां छत्तीसगढ़ में 15 साल से सत्तारूढ़ बीजेपी सरकार को एकतरफा पटकनी दी है वहीं राजस्थान में भी वह वापसी करने में सफल रही है. हां, मध्य प्रदेश में थोड़ी कमी जरूर रह गई है लेकिन माना यही जा रहा है कि वहां भी आखिरकार बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के विधायकों की बदौलत सरकार बना लेगी.
कितने राज्यों में बीजेपी सरकार है, जानिए
कितने राज्यों में है बीजेपी और एनडीए की सरकार
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
तस्वीर: picture alliance/dpa/S. Kumar
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
तस्वीर: Imago/Zumapress
त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
तस्वीर: Reuters/J. Dey
मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/R. K. Singh
बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
तस्वीर: AP
गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
तस्वीर: Getty Images/AFP/P. Singh
हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/M. Kiran
हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
तस्वीर: Getty Images/M. Sharma
गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
तस्वीर: Reuters
असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
तस्वीर: IANS
मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
तस्वीर: IANS
सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
तस्वीर: DW/Zeljka Telisman
मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
तस्वीर: IANS
2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.
तस्वीर: DW/A. Anil Chatterjee
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मिजोरम में कांग्रेस पार्टी को लगभग उसी तरह का झटका और दस साल तक सत्ता में रहने से सरकार विरोधी लहर का खामियाजा भुगतना पड़ा है जैसा छत्तीसगढ़ में भाजपा को. मिजो नेशनल फ्रंट ने लगभग दो तिहाई सीटें जीतकर उसे सत्ता से बाहर कर दिया और तेलंगाना में टीआरआएस ने दोबारा सत्ता में वापसी करके कांग्रेस और तेलुगुदेशम गठबंधन का सत्ता में आने का सपना चकनाचूर कर दिया.
पांचों राज्यों के विधानसभा चुनावों को अगले साल होने वाले आम चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा था. राजनीतिक दलों ने भी चुनाव उसी रणनीति और ऊर्जा से लड़ा और नतीजों के बाद उसकी व्याख्या भी उसी अनुसार हो रही है. हालांकि मध्य प्रदेश के अलावा अन्य किसी राज्य के परिणाम उम्मीद के मुताबिक नहीं रहे, खासकर छत्तीसगढ़ और राजस्थान के.
कांग्रेस पार्टी पर नजर रखने वाले वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते हैं, "इन नतीजों ने कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी के आत्मविश्वास को मजबूत किया है और बीजेपी का विजय रथ रुकने से उसके आत्मविश्वास को डिगाया भी है. लेकिन सबसे अहम बात यह है कि राजस्थान में पांच साल और मध्य प्रदेश में पंद्रह साल की सत्ताविरोधी लहर के बावजूद बीजेपी उतना पीछे नहीं है, जितना कि सोचा जा रहा था.”
कितने राज्यों में कांग्रेस की सरकार है, जानिए
कितने राज्यों में है कांग्रेस की सरकार
आम चुनाव से पहले तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में मिली कामयाबी ने कांग्रेस में नई जान फूंकी है. चलिए डालते हैं एक अब कितने राज्यों में कांग्रेस सत्ता में है.
तस्वीर: Sanjay Kanojia/AFP/Getty Images
राजस्थान
आम चुनाव से चंद महीने पहले हुए विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस ने राजस्थान की सत्ता में वापसी की और पार्टी ने राज्य की कमान अनुभवी अशोक गहलोत के हाथों में सौंपी.
तस्वीर: Imago
मध्य प्रदेश
विधानसभा चुनाव के नतीजों ने मध्य प्रदेश से भी कांग्रेस को अच्छी खबर दी है. राज्य में लंबे समय तक गुटबाजी का शिकार रही कांग्रेस ने इस बार एकजुट होकर चुनाव लड़ा और नतीजे उसके पक्ष में गए और कमलनाथ ने सीएम की कुर्सी संभाली.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/M. Faruqui
छत्तीसगढ़
नक्सली हिंसा से प्रभावित राज्य छत्तीसगढ़ में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत हासिल किया है और पिछले 15 साल से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे रमन सिंह की सत्ता से विदाई तय हो गई.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/M. Quraishi
पंजाब
कैप्टन अमरिंदर सिंह पंजाब में कांग्रेस सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने राज्य में दस साल से राज कर रहे अकाली-बीजेपी गठबंधन को सत्ता से बाहर किया.
तस्वीर: Getty Images/AFP/N. Nanu
पुडुचेरी
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है जिसका नेतृत्व वी नारायणसामी (फोटो में दाएं) कर रहे हैं. 2016 में वहां चुनाव हुए और तीस सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्य पहुंचे.
तस्वीर: Reuters
बड़ी चुनौती
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह कैसे पार्टी के आधार को मजबूत करें. हालिया विधानसभा चुनावों में कामयाबी से वह गदगद हैं, लेकिन आने वाले आम चुनाव उनकी सबसे बड़ी परीक्षा हैं.
तस्वीर: IANS
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रशीद किदवई कहते हैं कि नतीजों ने ये भी दिखाया है कि कांग्रेस पार्टी ही न सिर्फ देश भर में बीजेपी से मुकाबला कर सकती है बल्कि उसके गढ़ में भी चुनौती दे सकती है. खासकर मध्य प्रदेश को आरएसएस के सबसे ज्यादा प्रभाव वाले राज्यों में गिना जाता है और पिछले पंद्रह साल से शिवराज सिंह चौहान का अपराजेय शासनकाल इसका बहुत बड़ा सबूत भी है.
वरिष्ठ पत्रकार स्मिता गुप्ता कहती हैं कि इन चुनाव नतीजों का सबसे बड़ा प्रभाव यह है कि इन्होंने अब तक बीजेपी और संघ परिवार की ओर से कथित तौर पर ‘पप्पू' के रूप में प्रचारित किए जा रहे राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के मुकाबले खड़ा कर दिया है और अब अन्य विरोधी दलों के नेताओं को भी उन्हें बतौर नेता स्वीकार करने में शायद कोई दिक्कत न हो. वह कहती हैं, "नतीजों के बाद भी राहुल गांधी ने जिस शालीनता का परिचय दिया, उसने उनकी परिपक्वता को साबित कर दिया. खासकर तब, जबकि चुनाव से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने उन पर व्यक्तिगत हमले किए और भाषा तक की मर्यादा को ताख पर रख दिया.”
स्मिता गुप्ता कहती हैं कि यह स्थिति साल 2012 के बाद की उन्हीं घटनाओं की याद दिला रही है जब कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने निजी हमले करते हुए नरेंद्र मोदी को लोकप्रिय बना दिया. उनके मुताबिक, निजी हमलों के बावजूद, शालीनता, तथ्यों और तर्कों के साथ राहुल गांधी ने जिस तरह से किसानों, गरीबों और मजदूरों की समस्याओं को चुनावी सभाओं में उठाया, उससे आम जनता का उन पर भरोसा बढ़ा.
कैसे बनी स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
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हालांकि राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी कहना है कि कांग्रेस ने इन राज्यों में वापसी जरूर की है लेकिन इससे ये भी नहीं समझना चाहिए कि बीजेपी पूरी तरह से कमजोर हो गई है. दरअसल, छत्तीसगढ़ को छोड़कर मध्य प्रदेश और राजस्थान में दोनों पार्टियों के मत प्रतिशत में एक फीसद से भी कम का अंतर है.
हालांकि रशीद किदवई कहते हैं, "लेकिन यहां एक बात और महत्वपूर्ण है कि समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी की पार्टी ने ज्यादातर कांग्रेस के ही वोटों पर असर डाला है. यदि इनके मत प्रतिशत का आधा भी जोड़ दिया जाए तो सीटों की संख्या कहीं आगे निकल सकती थी.”
इन सबके अलावा जानकारों की नजर में बीजेपी को कुछ इस बात का भी खामियाजा भुगतना पड़ रहा है कि उसने अब राजनीति और कार्यशैली का वही तरीका अपना लिया है जैसा कि कभी कांग्रेस पार्टी करती थी. कांग्रेस ने जहां तीनों राज्यों में कोई चेहरा सामने नहीं रखा, वहीं बीजेपी के तीनों मुख्यमंत्री इस चुनाव में भी पार्टी के घोषित चेहरे थे.
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
इन राज्यों में हैं गैर बीजेपी सरकारें
भारतीय जनता पार्टी पूरे भारत पर छाने को बेताब है. लेकिन कई राज्य अब भी ऐसे हैं जहां गैर बीजेपी सरकारें चल रही हैं. चलिए डालते हैं इन्हीं पर एक नजर.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
पंजाब
पंजाब अब देश का अकेला ऐसा अहम राज्य है जहां कांग्रेस सत्ता में है. राज्य की कमान मुख्यमंत्री अमिरंदर सिंह के हाथों में है. पंजाब में बीजेपी का अकाली दल के साथ गठबंधन है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times
कर्नाटक
मई 2018 के विधानसभा चुनावों में किसी दल को बहुमत नहीं मिला. राज्यपाल ने सबसे पहले बीजेपी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया. लेकिन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने विश्वासमत से पहले ही इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस और जनता दल (एस) गठबंधन सरकार बनाने का न्यौता मिला.
तस्वीर: UNI
केरल
केरल में पी विजयन के नेतृत्व में वामपंथी सरकार चल रही है. कांग्रेस राज्य में मुख्य विपक्षी पार्टी है. बीजेपी भी वहां कदम जमाने की कोशिश कर रही है.
तस्वीर: imago/ZUMA Press
तमिलनाडु
तमिलनाडु में एआईएडीएमके की सरकार का नेतृत्व मुख्यमंत्री ईके पलानीस्वामी के हाथ में है. करुणानिधि की डीएमके पार्टी एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी है.
तस्वीर: Imago/Westend61
आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी टीडीपी पार्टी ने हाल ही में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन से नाता तोड़ा है. चंद्रबाबू नायडू राज्य के मुख्यमंत्री हैं.
तेलंगाना
तेलंगाना में टीआरएस की सरकार का नेतृत्व पार्टी प्रमुख के चंद्रशेखर राव कर रहे हैं. वह 2019 के आम चुनाव के पहले गैर बीजेपी गैर कांग्रेसी विपक्षी एकता की कोशिशों में भी जुटे हैं.
तस्वीर: DW/S. Bandopadhyay
ओडिशा
नवीन पटनायक के नेतृत्व में ओडिशा में 2000 से बीजू जनता दल की सरकार चल रही है. वहां विपक्षी पार्टियों में बीजेपी का स्थान कांग्रेस के बाद आता है.
तस्वीर: UNI
पश्चिम बंगाल
पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी काफी जोर लगा रही है. लेकिन मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की राज्य पर मजबूत पकड़ है, जो 2011 से सत्ता में हैं.
तस्वीर: DW
मिजोरम
कांग्रेस सरकार का नेतृत्व ललथनहवला कर रहे हैं. 2008 से वह मुख्यमंत्री पद पर हैं. 40 सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 34 सदस्य हैं.
तस्वीर: IANS/PIB
पुडुचेरी
केंद्र शासित प्रदेश पुडुचेरी में भी इस समय कांग्रेस की सरकार है जिसका नेतृत्व वी नारायणसामी (फोटो में दाएं) कर रहे हैं. तीस सदस्यों वाली विधानसभा में कांग्रेस के 17 सदस्य हैं.
तस्वीर: Reuters
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राजनीतिक विश्लेषक राधिका रामाशेषन कहती हैं, "बीजेपी आज पूरी तरह से नरेंद्र मोदी और अमित शाह के हाथों में केंद्रीकृत हो चुकी है जैसा कि कभी कांग्रेस पार्टी हुआ करती थी. चुनाव में टिकट वितरण से लेकर चुनावी सभाएं तक इन्हीं लोगों की मर्जी से तय हो रही हैं. जबकि कांग्रेस ने ठीक इसके उलट रणनीति अपनाई. राज्यों में नेताओं का एक समूह तैयार किया और उन्हें पूरे अधिकार दिए. राहुल गांधी ने सिर्फ सबके बीच समन्वय का काम किया और ये रणनीति उनकी कामयाब रही.”
राज्यों के नेताओं के अलावा कांग्रेस पार्टी के चुनाव प्रचार की कमान मुख्य रूप से राहुल गांधी ने ही सँभाल रखी थी, वहीं बीजेपी में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी प्रमुख प्रचारक रहे. फायरब्रांड नेता के तौर पर प्रचारित योगी ने प्रचार भी उसी शैली में किया लेकिन आश्चर्य की बात ये है कि तीनों राज्यों के जिन इलाकों में भी वो गए, बीजेपी ने ‘खोया ज्यादा, पाया कम.'
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ये इस बात का साफ संकेत है कि जनता अब भाषणों से ज्यादा परफॉर्मेंस को तरजीह दी रही है और आने वाले चुनाव में भी वो अपने मतदान का पैमाना परफॉर्मेंस को ही बनाने वाली है.
भारत की कौन सी पार्टी कितनी अमीर है
भारत की सात राष्ट्रीय पार्टियों को 2016-2017 में कुल 1,559 करोड़ रुपये की आमदनी हुई है. 1,034.27 करोड़ रुपये की आमदनी के साथ बीजेपी इनमें सबसे ऊपर है. जानते हैं कि इस बारे में एडीआर की रिपोर्ट और क्या कहती है.
तस्वीर: Imago/Hindustan Times/S. Mehta
भारतीय जनता पार्टी
दिल्ली स्थित एक थिंकटैंक एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक भारतीय जनता पार्टी को एक साल के भीतर एक हजार करोड़ रूपये से ज्यादा की आमदनी हुई जबकि इस दौरान उसका खर्च 710 करोड़ रुपये बताया गया है. 2015-16 और 2016-17 के बीच बीजेपी की आदमनी में 81.1 फीसदी का उछाल आया है.
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कांग्रेस
राजनीतिक प्रभाव के साथ साथ आमदनी के मामले भी कांग्रेस बीजेपी से बहुत पीछे है. पार्टी को 2016-17 में 225 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने खर्च किए 321 करोड़ रुपये. यानी खर्चा आमदनी से 96 करोड़ रुपये ज्यादा. एक साल पहले के मुकाबले पार्टी की आमदनी 14 फीसदी घटी है.
तस्वीर: Reuters/A. Dave
बहुजन समाज पार्टी
मायावती की बहुजन समाज पार्टी को एक साल के भीतर 173.58 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्चा 51.83 करोड़ रुपये हुआ. 2016-17 के दौरान बीएसपी की आमदनी में 173.58 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. पार्टी को हाल के सालों में काफी सियासी नुकसान उठाना पड़ा है, लेकिन उसकी आमदनी बढ़ रही है.
तस्वीर: DW/S. Waheed
नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी
शरद पवार की एनसीपी पार्टी की आमदनी 2016-17 के दौरान 88.63 प्रतिशत बढ़ी. पार्टी को 2015-16 में जहां 9.13 करोड़ की आमदनी हुई, वहीं 2016-17 में यह बढ़ कर 17.23 करोड़ हो गई. एनसीपी मुख्यतः महाराष्ट्र की पार्टी है, लेकिन कई अन्य राज्यों में मौजूदगी के साथ वह राष्ट्रीय पार्टी है.
तस्वीर: AP
तृणमूल कांग्रेस
आंकड़े बताते हैं कि 2015-16 और 2016-17 के बीच ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की आमदनी में 81.52 प्रतिशत की गिरावट हुई है. पार्टी की आमदनी 6.39 करोड़ और खर्च 24.26 करोड़ रहा. राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने वाली तृणमूल 2011 से पश्चिम बंगाल में सत्ता में है और लोकसभा में उसके 34 सदस्य हैं.
तस्वीर: DW
सीपीएम
सीताराम युचुरी के नेतृत्व वाली सीपीएम की आमदनी में 2015-16 और 2016-17 के बीच 6.72 प्रतिशत की कमी आई. पार्टी को 2016-17 के दौरान 100 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसने 94 करोड़ रुपये खर्च किए. सीपीएम का राजनीतिक आधार हाल के सालों में काफी सिमटा है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/D. Dutta
सीपीआई
राष्ट्रीय पार्टियों में सबसे कम आमदनी सीपीआई की रही. पार्टी को 2016-17 में 2.079 करोड़ की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 1.4 करोड़ रुपये रहा. लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी का एक एक सांसद है जबकि केरल में उसके 19 विधायक और पश्चिम बंगाल में एक विधायक है.
तस्वीर: DW/S.Waheed
समाजवादी पार्टी
2016-17 में 82.76 करोड़ की आमदनी के साथ अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी सबसे अमीर क्षेत्रीय पार्टी है. इस अवधि के दौरान पार्टी के खर्च की बात करें तो वह 147.1 करोड़ के आसपास बैठता है. यानी पार्टी ने अपनी आमदनी से ज्यादा खर्च किया है.
तस्वीर: DW
तेलुगु देशम पार्टी
आंध्र प्रदेश की सत्ताधारी तेलुगुदेशम पार्टी को 2016-17 के दौरान 72.92 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि 24.34 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े. पार्टी की कमान चंद्रबाबू के हाथ में है जो आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/Str
एआईएडीएमके और डीएमके
तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके को 2016-17 में 48.88 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसका खर्च 86.77 करोड़ रुपये रहा. वहीं एआईएडीएमके की प्रतिद्वंद्वी डीएमके ने 2016-17 के बीच सिर्फ 3.78 करोड़ रुपये की आमदनी दिखाई है जबकि खर्च 85.66 करोड़ रुपया बताया है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
एआईएमआईएम
बचत के हिसाब से देखें तो असदउद्दीन औवेसी की पार्टी एआईएमआईएम सबसे आगे नजर आती है. पार्टी को 2016-17 में 7.42 करोड़ रुपये की आमदनी हुई जबकि उसके खर्च किए सिर्फ 50 लाख. यानी पार्टी ने 93 प्रतिशत आमदनी को हाथ ही नहीं लगाया. (स्रोत: एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म)