कोई उल्का पिंड धरती से आकर टकरा गया था या कोई ज्वालामुखी फटा था - आखिर ऐसी कौन सी बड़ी घटना घटी जिससे धरती से डायनासोरों का अस्तित्व ही मिट गया.
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अब तक माना जाता आया है कि करीब 6.6 करोड़ साल पहले धरती पर रहने वाले विशालकाय डायनासोर एक साथ खत्म हो गए क्योंकि तब एक विशाल उल्कापिंड धरती से टकराया था. लेकिन अब वैज्ञानिक बता रहे हैं कि ये कहानी इतनी आसान नहीं रही होगी. उनका कहना है कि क्रिटेशियस काल के अंत में धरती पर सैकड़ों, हजारों सालों तक फूटते रहे ज्वालामुखियों की डायनासोरों के खात्मे में अहम भूमिका रही होगी.
साइंस जर्नल में प्रकाशित दो स्टडीज इसी बारे में हैं. वैज्ञानिक समुदाय में यह बहस चलती आ रही है कि आखिर वो क्या था जिसके कारण डायनासोर धरती से विलुप्त हो गए.
1980 के दशक से पहले तक अधिकतर लोगों का मानना था कि बड़े और लंबे समय तक चले ज्वालामुखीय विस्फोटों के कारण हमारी धरती की जलवायु में बहुत तेजी से बड़े बदलाव आए. इस दौरान वातावरण में राख, गैस और धूल के बड़े बादल से उठते रहे.
फिर वैज्ञानिकों को पता चला कि मेक्सिको के पास कैरेबियाई तट से दूर एक इतना बड़ा शिक्लुब क्रेटर नामका गड्ढा मिला, जो कि शायद उल्का पिंड के टकराने से बना होगा. अनुमान लगाया गया कि इस टक्कर के कारण वातावरण में इतना कचरा फैला होगा, जिससे पौधों में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया भी रुक गई होगी और इस तरह धरती का तीन-चौथाई जीवन खत्म हो गया होगा.
रिसर्चरों की एक टीम ने भारत में दक्कन के पठार में कैद लावा पर रेडिएशन पद्धति से शोध किया. दूसरी टीम ने एक खास तरह की कार्बन डेटिंग पद्धति का इस्तेमाल किया. करीब 10 लाख साल पहले हुए ज्वालामुखी विस्फोट का लावा आज भी दक्कन में बड़ी मात्रा में मिलता है.
दोनों टीमों ने अलग अलग तरीकों का इस्तेमाल किया लेकिन नतीजा समान आया. दोनों को पता चला कि यह ज्वालामुखीय विस्फोट डायनासोरों की सामूहिक विलुप्ति से ठीक पहले ही हुआ था.
दूसरी टीम को यह भी पता चला कि उल्का पिंड की टक्कर के कारण धरती पर इतना बड़ा भूकंप आया होगा जिसकी तीव्रता आज के हिसाब से रिक्टर स्केल पर 11 रही होगी. इंसान के रहते हुए इतना बड़ा भूकंप कभी नहीं आया है. इसी भूकंप के कारण ज्लावामुखी विस्फोट के सिलसिले शुरु हो गए होंगे, जो करीब तीन लाख साल तक चले. डायनासोरों के गायब होने को लेकर यह आज तक की सबसे स्पष्ट थ्योरी मानी जा सकती है.
आरपी/एए (एएफपी)
इन जानवरों को बचाने का आखिरी मौका
अंधाधुंध शिकार और आवास के नष्ट होने के कारण दुनिया भर में कई जीव खतरे में पड़ गए हैं. आइए जानते हैं ऐसी विलुप्त हो रही आठ प्रजातियों के बारे में जिन्हें बचाने के लिए तुरंत कदम उठाने होंगे.
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उत्तरी सफेद राइनो
इस प्रजाति का आखिरी नर सूडान भी हाल ही में मर गया. विलुप्त हो चुकी इस प्रजाति को अब भी वैज्ञानिक आईवीएफ तकनीक के जरिए फिर से वापस लाने की कोशिशों में लगे हैं. वहीं बाकी ने मान लिया है कि हमने इन्हें हमेशा हमेशा के लिए खो दिया.
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दक्षिण चीनी बाघ
बाघों की सभी प्रजातियों में यह सबसे ज्यादा खतरे में है. सन 1970 से ही एक भी दक्षिण चीनी बाघ प्राकृतिक माहौल में नहीं दिखा है. कब्जे में रखे गए ऐसे बाघ भी संख्या में 80 से कम ही हैं. इन्हें भी एक तरह से खत्म मान ही लिया गया है.
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आमूर तेंदुआ
प्रकृति में ऐसे 80 से भी कम तेंदुए रहते हैं. इस तरह यह हमारी पृथ्वी पर पाई जाने वाली सबसे दुर्लभ बड़ी बिल्लियों में से एक है. दक्षिणी चीन, उत्तरी रूस और कोरियाई प्रायद्वीप के जंगलों में इसका प्राकृति आवास रहा है. इसे सबसे बड़ा खतरा शिकार और घटते जंगलों से है.
तस्वीर: AP
वाक्विता या खाड़ी सूंस
खाड़ी सूंस के नाम से लोकप्रिय वाक्विता दुनिया की सबसे दुर्लभ समुद्री जीव है. इस समय शायद ऐसी केवल 15 मछलियां ही बची हों. हालांकि इसका कभी भी सीधे शिकार नहीं किया गया लेकिन कैलिफोर्निया के खाड़ी इलाके में एक दूसरी मछली टोटोआबा को पकड़ने के लिए डाले जाने वाले जालों में यह अकसर खुद ही फंस जाया करती है.
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काला गैंडा
इनका भी वही हश्र हो सकता है जो सफेद राइनो का हो गया है. यह तादाद में केवल 5,000 ही बचे हैं. जिनकी तीन उपजातियां पहले ही गायब हो चुकी हैं. अवैध शिकार के कारण इनकी यह हालत हुई है और अब भी लोग सींग के लिए इनके पीछे पड़े हैं.
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लाल भेड़िया
दुनिया में केवल 30 लाल भेड़िए ही बचे हैं. रेड वुल्फ को गंभीर रूप से खतरे में पड़ी प्रजाति माना जाता है और इसे बचाने के काफी प्रयास जारी हैं. यह ग्रे वुल्फ और कायोटे के बीच का एक आनुवंशिक मिश्रण है. 1960 के दशक में चलाए गए एक अभियान से इन्हें काफी नुकसान पहुंचा. अब यह केवल उत्तरी कैरोलाइना में ही बचे हैं.
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साओला
इन्हें सबसे पहले 1992 में देखा गया. शर्मीले और छुप कर रहने वाले साओला को 'एशियाई यूनिकॉर्न' भी कहा जाता है. इनका दिखना इतना दुर्लभ है कि आज तक केवल चार को ही रिसर्चर उनके प्राकृतिक आवास में देख सके हैं. विएतनाम और लाओस के जंगलों में इनका आवास माना जाता है. वे भी शायद 100 के आसपास ही बचे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
पूर्वी गोरिल्ला
धरती पर जिंदा बचा सबसे बड़ा प्राइमेट अब अवैध शिकार और जंगलों के कटने के कारण खुद खतरे में है. गोरिल्ला की यह उपजाति आबादी में कुल 3,800 के आसपास बची है. इनकी आबादी को स्थाई बनाने में अब भी काफी प्रयास किए जाने बाकी हैं. (इनेके मूलेस/आरपी)