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पत्रकारिता का गला घोंटने का प्रयासः एडिटर्स गिल्ड

प्रभाकर मणि तिवारी
२७ दिसम्बर २०२१

त्रिपुरा में पत्रकारों और मीडिया पर हो रहे हमलों पर एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने कहा है कि त्रिपुरा पुलिस और राज्य सरकार ने बढ़ती सांप्रदायिक हिंसा और इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने वालों के साथ कानून विरोधी रवैया अपनाया था.

Indien Biplab Kumar Deb Chief Minister Bundesstaat Tripura
तस्वीर: Imago/Hindustan Times

अपनी रिपोर्ट में एडिटर्स गिल्ड ने दावा किया है कि एक चुनी हुई राज्य सरकार सांप्रदायिक हिंसा और हिंदूवाद को बढ़ावा दे रही है. सरकार और प्रशासन का रवैया मीडिया और पत्रकारों के प्रति ठीक नहीं है. 28 नवंबर से एक दिसंबर तक अपने दौरे के दौरान गिल्ड की टीम ने त्रिपुरा के मुख्यमंत्री, मंत्रियों, डीजीपी, अन्य अधिकारियों और पत्रकारों के अलावा सिविल सोसायटी के लोगों से भी मुलाकात की थी. इस टीम में स्वतंत्र पत्रकार भारत भूषण, गिल्ड के महासचिव संजय कपूर और 'इंफाल रिव्यू ऑफ आर्ट्स एंड पॉलिटिक्स' के संपादक प्रदीप फंजौबाम शामिल थे.

क्या हुआ था त्रिपुरा में

दुर्गा पूजा के दौरान बांग्लादेश में कई पूजा पंडालों पर हमले, तोड़-फोड़ और आगजनी की गई थी. इन घटनाओं में कुछ लोगों की मौत भी हो गई थी. उस घटना के विरोध में  त्रिपुरा  में विश्व हिंदू परिषद की ओर से एक रैली का आयोजन किया गया था. इसी दौरान राज्य में हिंसा की घटनाएं होना शुरू हुईं, मस्जिदों पर हमलों की खबरें लगातार छपती रहीं. इसके बावजूद त्रिपुरा सरकार कहती रही कि सब कुछ ठीक चल रहा है और माहौल शांतिपूर्ण है. लेकिन सोशल मीडिया पर इन घटनाओं की कथित तस्वीरें वायरल हो गईं. दंगों और आगजनी की घटनाओं को कवर करने वाले पत्रकारों के खिलाफ कार्रवाई की गई. पत्रकारों के अलावा, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं को निशाना बनाया गया.

त्रिपुरा के एक गांव में जली हुई दुकान तस्वीर: Panna Ghosh/AP Photo/picture alliance

पुलिस ने कई लोगों के खिलाफ झूठी तस्वीरें और वीडियो अपलोड करने के मामले गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया था. इनमें से कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया. इनमें एक निजी चैनल की दो महिला पत्रकार भी शामिल थीं. पत्रकारों के उत्पीड़न के उन मामलों ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट में ऐसे दो मामलों में पत्रकारों को राहत देते हुए त्रिपुरा सरकार को झटका दिया था. फिलहाल वे मामले अदालत में लंबित हैं.

एडिटर्स गिल्ड का दौरा

राज्य में कथित सांप्रदायिक हिंसा कवर करने वाले पत्रकारों को सरकार व पुलिस की ओर से परेशान किए जाने की खबरें सामने आने के बाद एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने तीन सदस्यों की एक टीम त्रिपुरा भेजने का फैसला किया था. इस टीम ने 28 नवंबर से 1 दिसंबर तक त्रिपुरा का दौरा किया और मीडिया की स्वतंत्रता की स्थिति का आकलन करने के लिए पत्रकारों, मुख्यमंत्री, मंत्रियों और पुलिस महानिदेशक समेत राज्य सरकार के प्रतिनिधियों के साथ-साथ नागरिक समाज के कार्यकर्ताओं से भी मुलाकात की.

गिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि स्थानीय पुलिस और राजनीतिक नेतृत्व की ओर से यूएपीए जैसे कठोर कानूनों का इस्तेमाल नागरिक समाज और मीडिया को कुचलने के लिए किया जा रहा है. त्रिपुरा पुलिस और प्रशासन ने सांप्रदायिक संघर्ष से निपटने और इस मुद्दे पर रिपोर्टिंग करने वालों के साथ नियम और कानून के मुताबिक व्यवहार नहीं किया है. पुलिस प्रशासन का ये व्यवहार एकतरफा लगता है. स्थानीय पुलिस ने 'त्रिपुरा जल रहा है' जैसा ट्वीट करने वालों के खिलाफ यूएपीए का इस्तेमाल किया. 

एडिटर्स गिल्ड ने अपनी रिपोर्ट में दो महिला पत्रकारों समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा का नाम लिखा है. उनको जगह-जगह रोका गया, होटल में उनके कमरे की तलाशी ली गई और फिर उनको गिरफ्तार कर लिया गया.

समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झातस्वीर: North East Live/AP/picture alliance

त्रिपुरा मानवाधिकार संगठन ने गिल्ड की जांच टीम को बताया कि राज्य का मीडिया पर जबरदस्त दबाव था और ज्यादातर स्थानीय मीडिया ने सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे. स्थानीय मीडिया का गला घोंटने के लिए सरकारी विज्ञापनों को हथियार बनाया गया. रिपोर्ट में कहा गया है कि स्थानीय मीडिया और बीजेपी सरकार के बीच मजबूत संबंध हैं. स्थानीय मीडिया उन खबरों को ही प्रसारित/प्रकाशित करता है जो सरकार के पक्ष में हैं. यही वजह कि स्थानीय पत्रकारों ने अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दंगों और हिंसा के बारे में नहीं लिखा. मुख्यधारा की मीडिया में लिखने वाले पत्रकारों ने ही इस बारे में लिखा.

सुप्रीम कोर्ट में मामला

सुप्रीम कोर्ट ने इस महीने के पहले सप्ताह त्रिपुरा सरकार और पुलिस को झटका देते हुए एक निजी चैनल के दो महिला पत्रकारों के खिलाफ तमाम आपराधिक कार्रवाई पर रोक लगाने का निर्देश दिया था. सांप्रदायिक हिंसा कवर करने त्रिपुरा पहुंची एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क की दो महिला पत्रकारों समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को पुलिस ने आपराधिक साजिश रचने और दो समुदायों में दुश्मनी बढ़ाने समेत कई आरोपों में गिरफ्तार कर लिया था. हालांकि बाद में उनकी जमानत हो गई थी. लेकिन इस मामले ने काफी सुर्खियां बटोरी थीं. उसके बाद इस चैनल और दोनों पत्रकारों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर अपने खिलाफ त्रिपुरा पुलिस की ओर से दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की है. शीर्ष अदालत ने इस मामले में त्रिपुरा पुलिस से चार सप्ताह के भीतर हलफनामा दायर करने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने इससे पहले बीते महीने ही त्रिपुरा में सांप्रदायिक हिंसा के मुद्दे पर यूएपीए के तहत दर्ज प्राथमिकी के मामले में वकीलों व पत्रकारों को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक वकीलों व  पत्रकारों पर कठोर कार्रवाई नहीं करने के आदेश दिए थे. अदालत ने उस याचिका पर त्रिपुरा सरकार से जवाब भी मांगा था. उक्त याचिका में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) कानून को भी चुनौती दी गई थी.

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