त्रिपुरा में पिछले दिनों हुई सांप्रदायिक हिंसा की रिपोर्टिंग करने गईं दो महिला पत्रकारों को असम में हिरासत लेने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. त्रिपुरा की एक अदालत ने उन्हें जमानत दे दी.
विज्ञापन
एचडब्ल्यू न्यूज नेटवर्क ने एक बयान में कहा है कि उसकी दो पत्रकार समृद्धि सकुनिया और स्वर्णा झा को असम के सिलचर जाते वक्त हिरासत में लिया गया था. नेटवर्क ने अपने बयान में बताया कि असम पुलिस ने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ कोई केस नहीं है लेकिन त्रिपुरा पुलिस ने उन्हें हिरासत में लेने के लिए कहा.
सकुनिया और स्वर्णा झा के खिलाफ आईपीसी की धारा 120बी, 153ए और 504 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. यह एफआईआर विश्व हिंदू परिषद के एक सदस्य की शिकायत के बाद दर्ज की गई थी. सकुनिया ने रविवार को ट्वीट किया कि उन्हें असम के करीमगंज के नीलमबाजार पुलिस स्टेशन में हिरासत में लिया गया. उन्होंने यह भी कहा कि गोमती जिले के एसपी ने हिरासत के आदेश दिए हैं.
त्रिपुरा पुलिस का कहना है कि कथित रूप से झूठी खबर प्रकाशित करने के आरोप में हिरासत में ली गईं दो महिला पत्रकारों को "पहले उत्तरी त्रिपुरा के फातिक्रोय पुलिस स्टेशन के तहत आने वाले पॉल बाजार में सांप्रदायिक नफरत फैलाने में शामिल पाया गया था."
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने यह कहते हुए ट्वीट किया कि वह गिरफ्तारी की निंदा करता है और "उनकी तत्काल रिहाई और यात्रा करने की उनकी स्वतंत्रता की बहाली की मांग करता है."
सोमवार को दोनों पत्रकारों को त्रिपुरा के गोमती जिले के सीजेएम कोर्ट ने जमानत दे दी. दोनों पत्रकारों को कोर्ट में पेश किया गया था.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के महासचिव संजय कपूर ने डीडब्ल्यू से कहा कि गिल्ड पिछले कुछ दिनों की भयावह घटनाओं का फॉलोअप कर रहा है और उसे लगता है कि त्रिपुरा प्रशासन पत्रकारिता को अपराध मानता है.
कपूर के मुताबिक, "वास्तव में परेशान करने वाली बात यह है कि स्थानीय पुलिस ने महिलाओं को गिरफ्तार करने और उन्हें देर रात हिरासत में लेने के मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित सभी मानदंडों की अवहेलना की. पत्रकार प्रशासन के संपर्क में थीं और पुलिस ने उन पर जो गंभीर आरोप लगाए हैं, उन्हें सही ठहराने के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया. इससे भी बुरी बात यह है कि उन्होंने मीडिया के कुछ तबके का इस्तेमाल उन्हें बदनाम करने के लिए भी किया है."
दोनों महिला पत्रकारों ने त्रिपुरा में हुई हिंसा की जमीनी रिपोर्टिंग की थी. दोनों महिला पत्रकारों को पहले त्रिपुरा पुलिस ने राज्य छोड़ने की अनुमति दी थी, लेकिन बाद में उन्हें असम में हिरासत में ले लिया गया. रविवार की देर रात उन्हें वापस त्रिपुरा ले जाया गया और वहां गिरफ्तार कर लिया गया.
पिछले महीने त्रिपुरा में भीड़ ने कई जगह मुस्लिम इलाकों में हिंसा की थी. बांग्लादेश में हुई हिंदू-विरोधी हिंसा के जवाब में कई हिंदू संगठनों ने राज्य में रैलियां निकाली थीं. आरोप है कि उसी दौरान भीड़ ने कम से कम चार मस्जिदों और मुस्लिम इलाके में दर्जनों घरों व दुकानों पर हमले किए थे.
पिछले हफ्ते त्रिपुरा के अधिकारियों ने कम से कम 102 सोशल मीडिया खाताधारकों के खिलाफ आपराधिक मामले में जांच शुरू की थी. यह जांच फर्जी खबर फैलाने के आरोपों के तहत की जा रही है.
यूरोप में भी हो रही है पत्रकारों के खिलाफ हिंसा
डच पत्रकार पेटर आर दे विरीज पर जानलेवा हमले ने यूरोप में लोग सदमें में हैं. प्रेस की आजादी को लेकर यूरोपीय देशों की अच्छी छवि के बावजूद, पत्रकारों के खिलाफ हिंसा के कई उदाहरण हैं.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Stringer
सदमें में एम्सटर्डम
छह जुलाई 2021 को नीदरलैंड्स की राजधानी एम्सटर्डम के बीचो बीच जाने माने क्राइम रिपोर्टर पेटर आर दे विरीज को एक टेलीविजन स्टूडियो के बाहर अज्ञात हमलावरों ने गोली मार दी. अंदेशा है कि हमले के पीछे संगठित जुर्म की दुनिया का एक गिरोह शामिल है. कई घंटों बाद दो लोगों को हिरासत में लिया गया.
तस्वीर: Evert Elzinga/ANP/picture alliance
एक दमदार पत्रकार
दे विरीज ने अपने देश में संगठित जुर्म पर कई सालों से रिपोर्टिंग की है. इस हमले से पहले वो एक कुख्यात जुर्म सरगना के खिलाफ बयान देने वाले एक सरकारी गवाह के निजी सलाहकार के रूप में काम कर रहे थे. इस व्यक्ति के भाई और वकील की कई सालों पहले हत्या हो गई थी. आज दे विरीज अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं.
तस्वीर: ANP/imago images
उम्मीद और डर
दे विरीज पर हमले के बाद देश के कई लोगों की प्रतिक्रिया थी, "ऐसा यूरोप के बीचो बीच नहीं हो सकता!" कई लोगों ने हमले के स्थल पर जा कर वहां घायल पत्रकार के लिए शुभकामनाओं के साथ फूल चढ़ाए हैं. दुख की बात यह है कि दे विरीज जानलेवा हमला झेलने वाले पहली यूरोपीय पत्रकार नहीं हैं.
तस्वीर: Koen Van Weel/dpa/picture alliance
लोकतंत्र का जन्म-स्थल
यूनानी क्राइम रिपोर्टर गिओर्गोस करइवाज की एथेंस में नौ अप्रैल को हत्या कर दी गई थी. मुखौटे पहने मोटरसाइकिल पर सवार दो हमलावरों ने करइवाज पर 10 बार गोलियां चलाईं. करइवाज ने देश के नौकरशाहों के भ्रष्टाचार और संगठित जुर्म के गिरोहों पर कई खबरें की थीं.
माल्टा की खोजी पत्रकार डैफ्ने कारूआना गालिजिया ने देश के राजनीतिक और व्यापारिक क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को काफी कवर किया है. लेकिन 19 अक्टूबर 2017 को 53 वर्षीय डैफ्नै की गाड़ी में एक बम धमाका कर उनकी हत्या कर दी गई. इस मामले में एक व्यक्ति के जुर्म कबूलने के बाद उसे 15 साल जेल की सजा दे दी गई. मुख्य आरोपी एक जाना माना व्यवसायी है जिसके खिलाफ सुनवाई अभी चल ही रही है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/L. Klimkeit
घर पर ही हत्या
21 फरवरी 2018 को स्लोवाकिया के खोजी पत्रकार यान कुशियाक और उनकी मंगेतर की भाड़े के हत्यारों ने गोली मार कर हत्या कर दी. 28-वर्षीय कुशियाक संगठित जुर्म के गिरोहों, टैक्स चोरी और देश के राजनेताओं और कुलीन लोगों के भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करते थे. उनकी हत्याओं के बाद पूरे यूरोप में इतना विरोध हुआ कि प्रधानमंत्री रोबर्ट फीको को इस्तीफा देना पड़ा.
तस्वीर: Mikula Martin/dpa/picture alliance
पोलैंड का हाल
2015 में पोलैंड के एक पत्रकार लुकास मासियाक की एक बॉलिंग क्लब में पीट- पीटकर हत्या कर दी गई थी. मासियाक भ्रष्टाचार, गैर कानूनी नशीली पदार्थों का व्यापार और मनमानी गिरफ्तारियों पर खबरें किया करते थे. पोलैंड की सरकार पर आज भी कई तरह के मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते हैं.
तस्वीर: Attila Husejnow/SOPA Images/ZUMAPRESS.com/picture alliance
'मैं हूं शार्ली'
जनवरी 2015 में फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो के दफ्तर पर किए गए एक हमले में 12 लोग मारे गए थे. तब पूरी दुनिया में सैकड़ों लोगों ने अभिव्यक्ति और प्रेस की आजादी के लिए "मैं हूं शार्ली" हैशटैग के साथ विरोध प्रदर्शन किया.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
बर्लिन में तुर्क पत्रकार पर हमला
सात जुलाई 2021 को बर्लिन-स्थित तुर्क पत्रकार एर्क अकारेर पर उनके अपार्टमेंट में तीन लोगों ने हमला कर दिया. एर्क तुर्की के राष्ट्रपति रैचेप तैयप एर्दोआन के कड़े आलोचक हैं. उन्होंने ट्विटर पर लिखा, "मुझ पर बर्लिन में मेरे घर के अंदर चाकुओं और मुक्कों से हमला किया गया." तीनों संदिग्धों ने उन्हें धमकी भी दी कि अगर उन्होंने रिपोर्टिंग बंद नहीं की तो वे वापस आएंगे.
तस्वीर: twitter/eacarer
प्रेस के काम में बाधा
ऐसा नहीं है कि पत्रकारों को हमेशा उनकी जान की चिंता ही लगी रहती है. लेकिन उनके काम की रास्ते में अड़चनें डालने का चलन बढ़ता का रहा है, चाहे ये काम प्रदर्शनकारी करें, पुलिस करे या सुरक्षाबल करें. इस तस्वीर में फ्रांस की दंगा-विरोधी पुलिस नए सुरक्षा कानून के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान एक पत्रकार से भिड़ रही है. (बुराक उनवेरेन)