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समाज

थम गई तेजस की रफ्तार

समीरात्मज मिश्र
२४ नवम्बर २०२०

तेजस देश की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसमें एयर होस्टेस की तर्ज पर यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रेन होस्टेस की व्यवस्था की गई थी. इसका किराया हवाई जहाज की टिकट से भी महंगा पड़ता था.

Indien Mumbai Zug im Bahnhof Chhatrapati Shivaji Terminus
तस्वीर: IANS

भारतीय रेलवे ने निजी क्षेत्रों की ओर से चलाई जाने वाली तेजस ट्रेनों का परिचालन फिलहाल रोक दिया है. इससे पहले लॉकडाउन के चलते दूसरी सवारी ट्रेनों की तरह तेजस ट्रेन भी बंद रही लेकिन इस बार इसका परिचालन पर्याप्त संख्या में यात्रियों के न मिलने के कारण बंद किया जा रहा है.

निजी क्षेत्र की पहली ट्रेन पिछले साल 4 अक्टूबर को तेजस नाम से लखनऊ से दिल्ली के बीच संचालित की गई थी. इसके बाद अहमदाबाद-मुंबई-अहमदाबाद तेजस एक्सप्रेस को 19 जनवरी 2020 को शुरू किया था. दोनों ही तेजस ट्रेनों को आईआरसीटीसी ने शुरू किया था. तीसरी प्राइवेट ट्रेन काशी महाकाल एक्सप्रेस है, जो इंदौर और वाराणसी के बीच चलाई जानी है लेकिन अभी इसकी सेवा शुरू नहीं हुई है.

लखनऊ-दिल्ली और अहमदाबाद-मुंबई तेजस ट्रेनों का परिचालन पिछले साल मार्च में कोविड-19 के चलते देश भर में हुए लॉकडाउन के बाद बंद कर दिया गया था. 17 अक्टूबर से इनका परिचालन दोबारा शुरू किया गया था लेकिन दोनों ही ट्रेनों में यात्रियों की संख्या औसत से भी कम रही जिसकी वजह से आईआरसीटीसी ने इसके परिचालन को फिलहाल बंद रखने का फैसला किया है.

हालांकि आईआरसीटीसी ने कहा है कि दोनों ट्रेनों का परिचालन अस्थाई तौर पर बंद किया गया है और दिसंबर में एक बार फिर इसकी समीक्षा की जाएगी. यदि स्थितियां ठीक रहीं तो ट्रेन का संचालन दोबारा शुरू किया जा सकता है.

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18 लग्जरी कोच वाली इस तेजस एक्सप्रेस में एग्जीक्यूटिव क्लास की 56 सीटों पर पिछले डेढ़ महीने में औसतन बीस से भी कम सीटें बुक हो रही थीं जबकि चेयरकार की 78 सीटों पर भी 40 से कम सीटें बुक हो रही थीं. पूरी ट्रेन में लगभग 800 सीटों पर आधी सीटें भी नहीं भर पा रही थीं जिसकी वजह से ट्रेन का संचालन बंद करना पड़ रहा है.

आरसीटीसी इंडियन रेलवे को रोजाना 13 लाख रुपये का भुगतान कर रही थी और इसके चलते तेजस ट्रेन के हर फेरे में उसे छह लाख रुपये से ज्यादा का नुकसान हो रहा था. यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए ट्रेन का किराया भी कम कर दिया गया लेकिन यात्रियों को यह ट्रेन लुभाने में नाकाम रही. हालांकि आईआरसीटीसी ने तेजस ट्रेन में काम करने वाले अस्थाई कर्मचारियों को अभी हटाया नहीं है जिससे उम्मीद है कि शायद आने वाले दिनों में इसका परिचालन फिर से शुरू किया जा सके.

तेजस देश की पहली ऐसी ट्रेन थी, जिसमें एयर होस्टेस की तर्ज पर यात्रियों की सुविधा के लिए ट्रेन होस्टेस की व्यवस्था की गई थी. इन महिला कर्मचारियों की नियुक्ति ठेके पर की गई थी और यह सुविधा प्राइवेट एजेंसियां दे रही थीं. ऐसी लक्जरी सुविधाओं के लिए इस ट्रेन का किराया भी अन्य ट्रेनों की तुलना में काफी ज्यादा रखा गया था.

तेजस ट्रेन को जब शुरू किया गया तो इसका काफी विरोध किया गया और आशंका जताई गई कि अब रेलवे के संसाधनों को फायदा कमाने के लिए निजी क्षेत्रों को सौंप दिया जा रहा है. इसी साल जुलाई में भारतीय रेलवे ने सौ से ज्यादा रूटों पर ट्रेन चलाने के लिए निजी कंपनियों से आवेदन मांगे थे. इन रेलगाड़ियों को अप्रैल 2003 में शुरू किए जाने का प्रस्ताव है, लेकिन तेजस का यह हश्र देखकर ट्रेन संचालन को निजी हाथों में देने जैसी योजना पर सवाल खड़ हो रहे हैं और इसे देखते हुए निजी क्षेत्र अब शायद ही इसमें दिलचस्पी दिखाएं.

रेलवे के कर्मचारी इस योजना का पहले ही विरोध कर रहे थे, अब उन्हें तंज कसने का भी मौका मिल गया है. उनका कहना है कि रेलवे कर्मचारियों की यूनियन ने पहले ही प्राइवेट पार्टनर को ट्रेन चलाने देने का विरोध किया था.

ऑल इंडिया रेलवे मेन्स फेडरेशन के महासचिव शिव गोपाल मिश्रा ने ट्वीट किया है, "जीत सत्य की होती है, AIRF के विरोध के बावजूद रेलवे ने बड़े धूमधाम से प्राइवेट पार्टनर के जरिए "तेजस" का संचालन शुरू किया, लेकिन त्योहार सीजन में भी तेजस को यात्री नही मिले, अब इसे बंद करना पड़ा! यही हाल 150 दूसरी ट्रेनों का भी होगा!”

हालांकि आईआरसीटीसी के अधिकारियों की दलील है कि लॉकडाउन के बाद से ही शताब्दी एक्सप्रेस जैसी ट्रेनों की भी हालत खराब है. लेकिन त्योहार सीजन में चलने वाली ट्रेनों में कई दिनों तक लोगों को कंफर्म टिकटें नहीं मिल रही थीं. हां, ये अलग बात है कि त्योहार से पहले सभी ट्रेनों में सीटें जरूर खाली थीं क्योंकि बिना वजह लोग यात्रा करने से अभी भी हिचक रहे हैं.

वैसे जहां तक तेजस का सवाल है तो लॉकडाउन से पहले भी वह कभी पूरी तरह से भरकर नहीं चली है. एक तो लखनऊ तक आन-जाने वालों के लिए पहले से ही शताब्दी जैसी लक्जरी और कई सामान्य ट्रेनें भी उपलब्ध हैं, दूसरे महज छह सौ किलोमीटर की दूरी के लिए सड़क मार्ग भी काफी सुगम है. यही नहीं, तेजस ट्रेन के किराये से भी कम किराये पर हवाई जहाज की सुविधा भी दिल्ली से लखनऊ के लिए आमतौर पर मिल जाती है.

लखनऊ में रेस्तरां का व्यवसाय करने वाले सूर्यभान रायजादा कहते हैं, "तेजस को वैसे भी सफल नहीं होना है. दिल्ली से लखनऊ की यात्रा छह-सात घंटे में लोग अपनी कार से भी तय कर सकते हैं. तेजस का किराया जितना है, उससे कम में हवाई जहाज की सुविधा है तो कोई क्यों ट्रेन पर बैठेगा? और हां, सिर्फ ट्रेन होस्टेस और खाने-पीने की गुणवत्ता को छोड़ दिया जाए, तो शताब्दी ट्रेन की तुलना में तेजस कहीं से बेहतर नहीं लगती है. सरकार चाहती तो शताब्दी ट्रेनों को ही और बेहतर बना सकती थी, खान-पान की गुणवत्ता सुधार सकती थी लेकिन ऐसा नहीं किया गया.”

रेलवे बोर्ड ने देशभर में 150 निजी ट्रेनें चलाने का खाका तैयार किया था लेकिन कोरोना संक्रमण और उसके बाद शुरू हुए लॉकडाउन के कारण यह योजना सुस्त पड़ गई. इन ट्रेनों में से 12 निजी ट्रेनें यूपी की राजधानी लखनऊ से विभिन्न जगहों के लिए चलनी थीं. 

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