हाल में ऑस्ट्रेलियाई दंपति के मामले में हुए विवाद के बाद यह कदम उठाया गया. ऑस्ट्रेलिया के एक दंपति ने थाइलैंड में एक महिला के जरिए अपना बच्चा पैदा करवाया था. पहले खबर मिली कि जुड़वां बच्चों में से एक को डाउन सिंड्रोम होनो के कारण जैविक मां बाप थाइलैंड में ही छोड़ गए. बाद में पता चला कि गर्भाशय किराये पर देने वाली महिला ने डर के कारण बच्चा नहीं दिया. उसे लगा कि ऑस्ट्रेलिया में डाउन सिन्ड्रोम वाले बच्चे की अच्छे से देखभाल नहीं होगी. ऑस्ट्रेलियाई दंपति के इस मामले के बाद से ही इस मुद्दे पर सख्ती बरती जा रही है.
पिंयाई ने बताया कि कानूनी खाके को संवैधानिक सभा के पास भेजा जा चुका है. उनके मुताबिक इस साल के अंत तक कानून को लागू किए जाने की उम्मीद है. थाइलैंड के विदेश मंत्रालय से प्राप्त हुई जानकरी के मुताबिक पिछले दिनों एक अन्य ऑस्ट्रेलियाई दंपति को सरोगेसी से पैदा हुआ बच्चा साथ ले जाने से रोक दिया गया. अधिकारियों का कहना है कि उनके पास सारे जरूरी कागजात मौजूद नहीं थे.
एक आप्रवासन अधिकारी ने बताया कि हाल में हुई घटना के बाद से सरोगेसी से पैदा हुए बच्चों के माता पिता के मामले में ज्यादा सतर्कता बरती जा रही है. उन्होंने कहा, "देश छोड़ने के लिए जरूरी है कि आपके पास इस बात की पुष्टि करते सभी कानूनी कागज हों कि आप बच्चे के माता पिता है."
वहीं ऑस्ट्रेलिया ने थाइलैंड की यात्रा के लिए अपने यहां नियमों में तब्दीली की है. सरोगेसी के मकसद से थाइलैंड जाने वाले दंपतियों को कानूनी सलाह लेनी होगी. थाइलैंड के विदेश मामलों और व्यापार विभाग के मुताबिक किराये की कोख के कारोबार पर अब तक थाइलैंड में कानूनी स्थिति बहुत साफ नहीं है. फिलहाल दोनों ही तरफ सरोगेसी के मामले में कानूनी सलाह लिए जाने को बढ़ावा दिया जा रहा है.
एसएफ/एएम (डीपीए)
तस्वीर: Fotolia/st-fotograf जन्म के समय जिन बच्चों का वजन चार किलोग्राम या उससे ज्यादा होता है, वह बड़े हो कर मोटापे का शिकार हो सकते हैं. इसीलिए इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि गर्भवती महिलाएं अत्यधिक खानपान से दूर रहें, कसरत करती रहें और उन्हें डायबिटीज न हो.
बच्चे मां का स्पर्श, उसकी खुशबू को पहचानते हैं. अक्सर कहा जाता हैं कि मां बच्चे की रुलाई पिता से बेहतर पहचानती है. लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं, मां और बाप दोनों अपने बच्चे की रोने की आवाज यकीन के साथ और समान रूप से पहचान सकते हैं.
तस्वीर: Fotolia/Marcitoहर बच्चे की नींद का पैटर्न अलग होता है, लेकिन कुल मिला कर नवजात शिशुओं को करीब 16 घंटे की नींद की जरूरत होती है. जैसे जैसे उम्र बढ़ती है यह कम होती जाती है.
तस्वीर: Gabees/Fotoliaसंयुक्त राष्ट्र के अनुसार जन्म के बाद छह महीने तक तो बच्चे को केवल मां का दूध ही पिलाना चाहिए. थाईलैंड में सिर्फ पांच फीसदी महिलाएं बच्चों को अपना दूध पिलाती हैं. भारत अभी भी इससे बचा है. यूनिसेफ ने कहा कि इस मामले में दुनिया को भारत से सीख लेनी चाहिए.
तस्वीर: AFP/Getty Imagesइन दिनों बहुत कम उम्र के बच्चों के लिए भी कंप्यूटर और स्मार्टफोन पर ऐप उपलब्ध हैं, जो बच्चों के विकास में मददगार हैं. पहले दो सालों में दिमाग का आकार तीन गुना बढ़ जाता है, जो कि चीजों को छूने, फेंकने, पकड़ने, काटने, सूंघने, देखने और सुनने जैसी गतिविधियों से मुमकिन होता है.
तस्वीर: Fotolia/bellaगर्भावस्था के समय कई बातों का सीधा असर पैदा होने वाले बच्चे और उसके आगे के जीवन पर पड़ता है. यदि गर्भवती महिला तनाव में है तो बच्चे तक पोषक तत्व नहीं पहुंचते. इसी तरह जन्म के बाद भी मां का अपनी सेहत पर ध्यान देना जरूरी है.
तस्वीर: picture-alliance/dpaछोटे बच्चों को अक्सर दवाओं से दूर रखने की कोशिश की जाती है. खास तौर से एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बच्चों के लिए हानिकारक होता है. इनसे शरीर के फायदेमंद जीवाणु मर जाते हैं. मोटापा, दमा और पेट की बीमारियां बढ़ती हैं.
तस्वीर: Fotowerk - Fotolia.comबच्चों के लिए दुनिया बेहतर बन रही है. पिछले एक दशक में पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 50 फीसदी तक की गिरावट आई है.
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