थाइलैंड से फ्रांस का लंबा सफर, वो भी एक टेम्पो में, बिना पेट्रोल या डीजल के. जर्मनी और फ्रांस के तीन छात्रों ने दुनिया को स्वच्छ ऊर्जा का संदेश देते हुए, ये जबरदस्त कारनामा कर दिखाया.
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70 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पश्चिम की ओर यात्रा और पेट्रोल भरवाने की कोई चिंता नहीं. लक्ष्य तक पहुंचने में अब सिर्फ 50 किलोमीटर बचे हैं. थ्री व्हीलर पर बैंकॉक से टुलूस की यात्रा का बीड़ा उठाया है फ्रांस और जर्मनी के तीन स्टूडेंट्स ने.
ग्रुप के कैप्टन कारेन हैं सही शहर तक पहुंचाना उनका काम है. कम्युनिकेशंस इंचार्ज रेमी हैं. वह युवा लोगों से बात कराने में मदद करते हैं. लुडविष ग्रुप के इंजीनियर हैं. जब कोई बैटरी या बैटरी के खर्च के बारे में पूछता है तो उनका जवाब होता है, लुडविष से पूछो.
16 देशों का सफर
बैंकॉक में एक फील्ड सेमेस्टर पूरा करने के बाद इनके दिमाग में एक अजीबोगरीब आइडिया आया और वह प्रोजेक्ट बन गया. दरअसल ये खाली हाथ घर नहीं लौटना चाहते थे. इसलिए 16 देशों से होते हुए 20,000 किलोमीटर का सफर तय कर वापस लौटने की ठानी.
कैसी कैसी साइकिलें
साइकिल किसी के लिए जरूरत है, तो किसी के लिए कसरत का जरिया. लेकिन कभी कभी साइकिल मजे के लिए भी चलाई जाती है. देखिए कुछ तस्वीरें.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
छत वाली साइकिल
बारिश हो रही हो या धूप बहुत तेज हो, तो साइकिल की इस छतरी को खोल लीजिए. स्विट्जरलैंड के रेने वुटिज ने इसे डिजाइन किया है. और अगर मौसम का लुत्फ उठाना हो, तो इसे बंद भी किया जा सकता है.
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इलेक्ट्रो साइकिल
हाल के दिनों में बैट्री से चलने वाली साइकिलों की मांग तेजी से बढ़ी है. इसमें साइकिल चलाने से बहुत थकान भी नहीं होती और जरूरत पड़े तो भारी सामान भी ढोया जा सकता है.
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साइकिल चार्जर
और बैट्री चार्ज करने के लिए ऐसे स्टेशन बने हैं. जब साइकिल की बैट्री चार्ज करनी हो, तो बस इन स्टेशनों में थोड़ी देर पार्क कर दें. फिर आपकी साइकिल दोबारा तेज रफ्तार से दौड़ने को तैयार रहेगी.
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फुर्सत की साइकिल
हॉलैंडराड नाम की यह साइकिल जर्मनी और यूरोप के दूसरे देशों में खूब चलती है. आम तौर पर फुर्सत और आराम के पल इन साइकिलों का ज्यादा इस्तेमाल होता है.
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काम की साइकिल
कार के कम इस्तेमाल और पर्यावरण की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए पश्चिमी देशों में कई लोग साइकिल से काम पर जाना पसंद करते हैं. ये जनाब पादरी हैं और साइकिल से चर्च जा रहे हैं.
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साइकिल के रास्ते
इन रास्तों पर जरा संभल कर. जर्मनी में मोटरकार और गाड़ियों के अलावा पैदल चलने वालों के लिए अलग रास्ता होता है. कहीं कहीं उसका भी आधा हिस्सा साइकिल के लिए. बाएं से साइकिल, दाएं से पैदल.
तस्वीर: Fotolia/Brilt
सीखने की साइकिल
पश्चिमी देशों में बच्चों को कुछ इस तरह साइकिल चलाना सिखाया जाता है. एक बार अभ्यस्त होने के बाद उन्हें छोटी और सुरक्षित साइकिलें दी जाती हैं. उसके बाद, जैसी उनकी मर्जी.
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मदद वाली साइकिल
और यह है दो सीटों वाली साइकिल. अगला थक जाए, तो पिछला चलाए. पिछला थक जाए तो अगला.. या फिर मिल जुल कर चलाएं...
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रिक्शे वाली साइकिल
भारतीय रिक्शा की तरह ऐसी साइकिलें जर्मनी में खूब लोकप्रिय हो रही हैं. कई शहरों में तो पर्यावरण को बचाने के अभियान के तौर पर भी इनका इस्तेमाल होता है.
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मजे की साइकिल
और अगर आराम से लेट कर साइकिल चलाने का मन हो, तो ऐसी साइकिलें भी बाजार में हैं. लेकिन सुरक्षा जरूरी है. हेलमेट जरूर लगाएं.
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जीत की साइकिल
और इन्हीं के बीच रेसिंग वाली साइकिल भी. फ्रांस में दुनिया की सबसे बड़ी साइकिल रेस होती हैः टूअर डे फ्रांस.
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कारेन कूलाकियां इसका कारण बताते हैं, "हमने थ्री व्हीलर का इस्तेमाल किया क्योंकि यह इलेक्ट्रिक मोबिलिटी और ग्रीन एनर्जी के बारे में जागरूकता फैलाने का अच्छा तरीका था." वे चार महीने सफर पर रहे. टुलूस पहुंचने से पहले यह आखिरी पड़ाव है. इस थ्री व्हीलर को इस यात्रा के लिए खास तौर पर तैयार किया गया था.
रेमी फर्नांडेस डांड्रे कहते है, "ये सौ फीसदी बिजली से चलता है. हालात ठीक हों तो 15 प्रतिशत ऊर्जा सोलर पैनल से आती है. बिजली का बड़ा हिस्सा गाड़ी के नीचे लगी लिथीयम बैटरी से आता है. हमें हर रोज सिर्फ ये करना पड़ता है कि इसे चार्ज कर लें."
आसान नहीं था सफर
लेकिन ये करना अक्सर इतना आसान नहीं होता था. कारेन ने रास्ते में आई मुश्किलों का जिक्र करते हुए कहा, "कुछ जगहों पर, खासकर चीन में, हमें इसे चार्ज करने में कुछ समस्या होती थी. लेकिन शुरू में हमें अपनी गाड़ी के बारे में ठीक से पता भी नहीं था कि बैटरी की क्षमता क्या है. एक बार तो हमें पहाड़ के ऊपर गाड़ी को धक्का देना पड़ा क्योंकि बैटरी खत्म हो गई थी."
यह इको रिक्शा इतना हल्का भी नहीं है. इसका वजन 1200 किलोग्राम है. लेकिन असली समस्या टूटी फूटी सड़क और खराब मौसम की वजह से हुई. खासकर ठंड और बरसात से. फिर भी सारी समस्याओं के बावजूद एक बात उन्हें लगातार उत्साहित करती रही. ये था स्थानीय लोगों का प्यार और उनकी मेहमाननवाजी.
दुनिया भर की 12 टैक्सियां
टैक्सी - शायद इससे ज्यादा अंतरराष्ट्रीय शब्द कोई नहीं. लगभग हर देश और हर जुबान में टैक्सी को टैक्सी ही कहते हैं. आप किसी भी देश में जाएं, वहां पहुंचने के बाद सबसे पहली सवारी टैक्सी होती है.
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क्रांतिकारी पीला
न्यू यॉर्क की यह टैक्सी दुनिया की सबसे खास है क्योंकि यहीं से पीले रंग की टैक्सी की परंपरा शुरू हुई. हालांकि 1980 के दशक में चेकर्स कैब की यह टैक्सी बनना बंद हो गई. 1999 में ऐसी आखिरी टैक्सी की नीलामी एक लाख 34 हजार डॉलर में हुई.
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गुलाबी सी टैक्सी
अगर इस रंग की टैक्सी में सफर करना है, तो मेक्सिको जाना होगा. वहां मेक्सिको सिटी और पुएबला में महिलाएं गुलाबी टैक्सी चलाती हैं. इनमें सिर्फ महिलाएं या बच्चे सफर कर सकते हैं. इनमें तीज चीजें जरूर होती हैं - जीपीएस, इमरजेंसी और कॉस्मेटिक किट.
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क्यूबा में अमेरिका
यूं तो इन दोनों देशों के रिश्ते जगजाहिर हैं. लेकिन क्यूबा की राजधानी में जहां कहीं भी विंटेज शेवरोले टैक्सी दिखती है, उसे बड़े सम्मान से देखा जाता है. ये टैक्सियां बहुत पुरानी हैं क्योंकि बाद में क्यूबा ने बाहर से कारों के आयात पर रोक लगा दी थी.
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पानी की टैक्सी
करीब 14 किलोमीटर लंबा दुबई का सोता शहर को दो हिस्सों में बांटता है. चूंकि यहां बहुत पुल नहीं हैं, लिहाजा लोगों को पानी की टैक्सी से एक दूसरे तरफ जाना पड़ता है. सिर्फ लकड़ी के छोटे नाव यहां चलते हैं, जिनमें 20 लोग सवार हो पाते हैं. एक तरफ का किराया 22 यूरोसेंट. यह इसे दुनिया की सबसे सस्ती टैक्सी बनाता है.
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पूरी सवारी
डीआर कांगो की राजधानी किनशासा में अधिकतम सवारियों की कोई सीमा नहीं है. अगर टैक्सी बोझ ढोने में सक्षम है, तो जितनी मर्जी सवारी लादो. इस तरह के नजारे देख कर एशिया के कुछ देश भी जेहन में आते हैं, जहां ऑटोरिक्शा पर बेतहाशा सवारियों को लाद लिया जाता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मानव मशीन
रिक्शा की आविष्कार जापान में हुआ और बाद में एशिया के दूसरे देशों में भी यह प्रचलित हुआ. इन दिनों यह दुनिया भर में नजर आता है और कई जगहों पर तो इसमें मोटर फिट कर दिए जाते हैं. लेकिन कोलकाता के रिक्शों पर पाबंदी लगाई गई है, जहां लोगों को खुद दूसरों को खींचना पड़ता था.
तस्वीर: Gemeinfrei
कंबोडिया की टैक्सी
यहां सवारी के कई साधन हैं - रिक्शा से लेकर मोटरसाइकिल टैक्सी और मिनी बस तक. यहां जो पिकअप बस दिख रही है, वह सबसे सस्ते साधनों में है. इसके पीछे काफी जगह होती है. लेकिन हो सकता है कि मुसाफिरों को कोई जानवर सहयात्री के तौर पर मिल जाए.
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चीन की टैक्सी
बड़े बड़े चीनी शहरों में सबसे अच्छा साधन टैक्सी ही है. सिर्फ राजधानी बीजिंग में 66,000 टैक्सियां हैं. लेकिन एक बात का ख्याल रखना होता है कि इनके ड्राइवरों को इंग्लिश नहीं आती. बेहतर है कि आप अपनी मंजिल का नाम चीनी भाषा में लिख लें और वह कागज ड्राइवर को पहुंचा दें.
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बदलेगा लंदन
अगर लंदन के नाम से मेट्रो ट्यूब और काली टैक्सी याद आती है, तो इसे बदलने की तैयारी कर लीजिए. लंदन के मेयर को लगता है कि टैक्सियां मुसाफिरों का बोझ नहीं उठा सकतीं और इसके बदले सिर्फ पर्यावरण के अनुरूप विकल्प उतारे जाएंगे.
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बर्लिन के ड्राइवर
जर्मन राजधानी में 7600 टैक्सियां हैं. इस तस्वीर की तरह बर्लिन के दूसरे हिस्सों में भी टैक्सी भारी संख्या में मिल जाते हैं. इनके ड्राइवर पूरे देश के सबसे अच्छे ड्राइवर माने जाते हैं. लेकिन उनकी बोली जरा क्षेत्रीय पुट के साथ होती है. कई बार तो जर्मन जानने वाले भी चकरा जाते हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सैलानियों की टैक्सी
अगर पानी के शहर वेनिस जाएं, तो एक बार वहां के गोंडोला में जरूर चढ़ें. इसे सैलानियों की टैक्सी कहते हैं. 40 मिनट का किराया 80 यूरो - करीब 6,500 रुपये.
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संदेश से साथ शिक्षा भी
रेमी लोगों के व्यवहार से काफी प्रभावित हुए, "हम दूसरी संस्कृतियों और लोगों के बारे में बहुत सारे नए अनुभवों के साथ वापस लौट रहे हैं. और इस विश्वास के साथ कि इलेक्ट्रिक मोबिलिटी में ही हमारा भविष्य है."
तारीफ की वजह यह है कि एक चार्जिंग के बाद बैटरी 300 किलोमीटर ले जाती है. रास्ते में तीनों छात्र दूसरी यूनीवर्सिटी भी गए, और वहां उन्होंने अपने प्रोजेक्ट के बारे में बताया.
लुडविष मैर्त्स कहते हैं, "मैं समझता हूं कि हम एक अहम संदेश दे रहे हैं. अपनी यात्रा से हमने दिखाया है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों से सफर मज़ेदार हो सकता है और आधी दुनिया के इस टूयर को हमने पर्यावरण की रक्षा के संदेश के साथ भी जोड़ा. मैं समझता हूं कि अपनी यात्रा से हमने बहुत ही अच्छा नतीजा हासिल किया है."
इस तरह के प्रोजेक्ट पर खर्च भी होता है, जो इन तीनों ने चंदे से जुटाया. कुछ प्रायोजकों ने दिया तो कुछ क्राउडफंडिंग से आया. टुलूस पहुंचने के साथ ही यात्रा खत्म हुई. कारेन और लुडविष के लिए यह यात्रा उनके मास्टर थिसिस का एक्पेरिमेंट भी थी. और तीनों के लिए गाड़ियों के वैकल्पिक इंधन के लिए प्रयासों की एक शुरुआत.
आईबी/ओएसजे
रिसाइक्लिंग की मजेदार दुनिया
इस्तेमाल की गई चीजों के दोबारा इस्तेमाल को लेकर बहस लंबे वक्त से चल रही है. सही तरीके से करें तो यह तकनीक काफी काम आ सकती है. तस्वीरों में देखते हैं कि आखिर रीसाइक्लिंग की जरूरत क्या है और उनसे क्या कुछ तैयार हो सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
सुंदर थैला
प्लास्टिक के दोबारा इस्तेमाल को लेकर सबसे ज्यादा परेशानी होती है. लेकिन अगर इसका सही इस्तेमाल कर लिया जाए, तो इस तरह के खूबसूरत थैले बन सकते हैं, जैसे कि जमाइका की एक महिला ने बना डाले.
तस्वीर: DW/N.Davis
जर्मनी की मिसाल
रिसाइक्लिंग को लेकर जर्मनी बेहद संजीदा मुल्क है. यहां काफी अर्से से कचरे को फेंकने की खास व्यवस्था है. खास तरह का कूड़ा खास बक्से में जाता है. पीला प्लास्टिक का, नीला कागज का और इसी तरह दूसरे रंगों के बक्से.
तस्वीर: Imago
बोतल दो, पैसे लो
रिसाइक्लिंग को लेकर जो कुछ समझदारी वाले कदम हैं, उनमें बोतलों की खरीद के साथ कुछ डिपॉजिट ले लिया जाता है. इस पैसे को उस वक्त वापस किया जाता है, जब बोतल खास बक्सों में वापस किए जाएं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
कचरे की छंटाई
जर्मनी जैसे कुछ चुनिंदा देशों में कचरे को लेकर अहम कदम उठाए जाते हैं. इनमें कचरों की छंटाई भी जरूरी है, इसके बाद अलग अलग कचरों को रिसाइक्लिंग के लिए अलग अलग जगहों पर भेजा जाता है.
तस्वीर: DW
हजारों साल बेकार
अगर प्लास्टिक को बिना सोचे समजे फेंक दिया जाए, तो यह हजारों साल तक यूं ही पड़ी रहती है. लेकिन अगर इसका सही इस्तेमाल कर लिया जाए, तो इस तरह के कटोरे भी तैयार हो सकते हैं.
तस्वीर: GAFREH
प्लास्टिक ही प्लास्टिक
मौजूदा वक्त में बिना प्लास्टिक के काम नहीं चल सकता. लेकिन भारत और चीन जैसे देशों में इसके निपटारे की सही व्यवस्था नहीं हो पाई है. नतीजा, कई जगहों पर प्लास्टिक के ऐसे ढेर जमा हैं. अगर इनकी सही ढंग से रिसाइक्लिंग की जाए, तो हल निकल सकता है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
अपसाइक्लिंग
और सिर्फ रिसाइक्लिंग ही क्यों, अब तो अपसाइक्लिंग का चलन है. यूक्रेन के एक कलाकार ने बेकार कागजों से रोशनी की कुछ ऐसी तस्वीर बना डाली.
तस्वीर: Alina Kopytsya
गत्ते की साइकिल
अगर थोड़ी क्रिएटिविटी दिखाई जाए, तो क्या कुछ नहीं हासिल हो सकता. इस्राएल के इस कलाकार ने गत्ते से पूरी साइकिल तैयार कर दी.