थाईलैंड और कंबोडिया के टकराव का क्या कारण है
२५ जुलाई २०२५
दक्षिणपूर्व एशिया के इन पड़ोसी देशों के बीच तनाव मई में बढ़ना शुरू हुआ. तब दोनों ओर से हुई फायरिंग में कंबोडिया के एक सैनिक की मौत हो गई थी. उसके बाद यह झगड़ा बढ़ता गया जो आगे चल कर कूटनीतिक तनाव और अब सशस्त्र संघर्ष में बदल गया है.
वर्तमान स्थिति क्या है?
24 जुलाई की सुबह दोनों देशों के बीच संघर्ष ने जोर पकड़ा. विवादित सीमा पर एक प्राचीन मंदिर से शुरू हुआ संघर्ष दूसरे सीमावर्ती इलाकों में जल्दी ही फैल गया और इसके बाद टैंकों से भारी फायरिंग शुरू हो गई जो अगले दिन 25 जुलाई को भी जारी है. थाईलैंड ने अपने राजदूत को नोम पेन्ह से 23 जुलाई को वापस बुला लिया था और कंबोडिया को राजदूत को वापस भेज दिया. यह कार्रवाई बैंकॉक में एक लैंडमाइन धमाके में एक सैनिक की टांग उड़ने के बाद की गई. थाईलैंड का आरोप है कि यह लैंडमाइन कंबोडियाई सैनिकों ने लगाया था. कंबोडिया ने इन आरोपों को आधारहीन कहा है.
दोनों देश एक दूसरे पर फायरिंग शुरू करने का आरोप लगा रहे हैं जिससे 24 जुलाई को गोलीबारी होने लगी. इस गोलीबारी में अब तक कम से कम 15 आम लोगों की मौत हुई है जिनमें ज्यादातर थाईलैंड की तरफ के हैं. कंबकोडिया ने ट्रक पर लगे रॉकेट लॉन्चरों को तैनात किया है. थाईलैंड का कहना है कि इसका इस्तेमाल नागरिक इलाकों को निशाना बनाने में किया जा रहा है. इस बीच थाई सेना ने अमेरिकी एफ-16 लड़ाकू विमानों को भेजा है. इन विमानों ने सीमा पार के सैन्य ठिकानों पर बम गिराए हैं.
थाईलैंड में अब तक 1,30,000 लोगों को सीमावर्ती इलाकों से निकाल कर सुरक्षित जगहों पर ले जाया गया है. कंबोडिया के स्थानीय अधिकारियों के मुताबिक सीमावर्ती इलाकों से 12,000 परिवारों को हटाया गया है.
विवाद की जड़ क्या है?
थाईलैंड और कंबोडिया करीब एक शताब्दी से ज्यादा समय से 817 किलोमीटर से लंबी जमीनी सीमा के कुछ गैरचिह्नित इलाकों पर अपनी संप्रभुता के लिए संघर्ष कर रहे हैं. इसका नक्शा पहली बार 1907 में बना था जब कंबोडिया फ्रांस का उपनिवेश था. इस नक्शे को बाद में थाईलैंड ने इस आधार पर चुनौती दी कि सीमा को दोनों देशों के बीच प्राकृतिक जल के बहाव के साथ चिह्नित किया जाना चाहिए.
साल 2000 में दोनों देश एक संयुक्त सीमा आयोग बनाने पर सहमत हुए ताकि विवादित इलाकों में एक दूसरे के दावों का शांति से समाधान निकाला जा सके. हालांकि विवादों के समाधान में कोई खास प्रगति नहीं हुई. ऐतिहासिक जगहों पर स्वामित्व के दावों ने दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ाया. 2003 में दंगाई नोम पेन्ह में थाई दूतावास और कारोबारी ठिकानों को जला दिया. यह थाईलैंड की मशहूर हस्तियों के विश्व धरोहरों में शामिल अंकोर वाट पर कंबोडिया के अधिकार पर सवाल उठाने की प्रतिक्रिया में हुआ था.
पहले के विवादों के अहम कारण
11वीं सदी के एक हिंदू मंदिर प्रीया विहियर या फिर थाईलैंड में खाओ फ्रा विहार्न कई दशकों से दोनों देशों के बीच विवाद के केंद्र में है. थाईलैंड और कंबोडिया दोनों इस पर ऐतिहासिक दावा करते हैं. अंतरराष्ट्रीय अदालत (आईसीजे) ने इस मंदिर पर 1962 में कंबोडिया का अधिकार माना था. हालांकि थाईलैंड इसके आसपास की जमीन पर दावा करता है.
2008 में इसे लेकर तनाव ज्यादा बढ़ गया जब कंबोडिया ने प्रीया विहियर टेंपल को यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में शामिल कराने की कोशिश की. इसे लेकर कई बार झड़पें हुई जिनमें दर्जनों लोगों की जान गई. 2011 में हुई टैंकों से हुई गोलाबारी भी इसमें शामिल है. दो साल बाद कंबोडिया ने 1962 के आईसीजे के फैसले की विवेचना की मांग की लेकिन आईसीजे फिर से फैसला उसके हक में सुनाया. फैसले में यह भी कहा गया कि मंदिर के आसपास की जमीन भी कंबोडिया का हिस्सा है और थाई सेना को वहां से हटने का आदेश दिया गया.
मौजूदा संघर्ष के पीछे क्या कारण है?
ऐतिहासिक प्रतिद्वंद्विता के बावजूद दोनों देशों की मौजूदा सरकारों के बीच अच्छे रिश्ते हैं. इसकी एक वजह दोनों देशों के प्रभावशाली पूर्व नेताओं के बीच नजदीकी संबंध होना है. ये नेता हैं थाईलैंड के थासिन शिनावात्रा और कंबोडिया के हुन सेन. थाईलैंड में पिछले साल रुढ़िवादियों ने सरकार से ऊर्जा संसाधनों की संयुक्त खोज की योजना पर कंबोडिया से बात करने के फैसले पर सवाल उठाया जिसके बाद राष्ट्रवादी भावनाएं उमड़ने लगीं. रुढ़िवादियों का कहना है कि गैरचिह्नित समुद्री इलाकों में ऊर्जा संसाधनों की खोज के नतीजे में थाईलैंड को कोह कुद द्वीप की जमीन के खोने का जोखिम पैदा हो सकता है. यह द्वीप थाईलैंड की खाड़ी में है.
फरवरी में उस वक्त भी तनाव बढ़ा था जब सेना के संरक्षण में कंबोडियाई लोगों के एक समूह ने एक और प्राचीन मंदिर में जा कर अपना राष्ट्रगान गाया. ता मोन थोम के प्राचीन हिंदू मंदिर पर भी दोनों देश दावा करते हैं. थाई सेना ने इन लोगों के ऐसा करने से रोका. उस वक्त थाईलैंड की पूर्व प्रधानमंत्री पेएंतोगतार्न शिनावात्रा थाकसिन की तनाव घटाने के लिए हुन सेन से बातचीत की कोशिश उलटी पड़ गई. दोनों नेताओं की बातचीत की रिकॉर्डिंग पहले लीक हुई और बाद में कंबोडियाई नेता ने यह पूरी बातचीत जारी कर दी.
इस बातचीत में ऐसा लगा कि पेएंतोगतार्न ने थाई सेना के कमांडर की आलोचना की है. इसके बाद देश में बवाल मच गया और फिर सांसदों की शिकायत पर कोर्ट के आदेश से उन्हें 1 जुलाई, 2025 को निलंबि कर दिया गया.
समाधान की कोशिश
28 मई के संघर्ष के बाद दोनों देशों ने तुरंत तनाव घटाने, संघर्ष रोकने और संयुक्त सीमा आयोग के जरिए 14 जून को बातचीत करने का वादा किया था. दोनों पड़ोसियों ने कूटनीतिक भाषा में बयान जारी किए हैं जिनमें शांति के लिए प्रतिबद्धता और अपने इलाकों की संप्रभुता की रक्षा की बात की गई है, हालांकि सीमा पर दोनों ओर सेना की तैनाती हो रही है.
इस बीच कंबोडिया का कहना है कि मौजूदा व्यवस्थाएं काम नहीं कर रही हैं इसलिए चार सीमावर्ती इलाकों के विवाद को आईसीजे में ले जाने की योजना बना रहा है.
थाईलैंड ने आईसीजे के फैसलों को मान्यता नहीं दी है और वह विवादों को द्विपक्षीय रूप से निपटाना चाहता है. 24 जुलाई के संघर्ष के बाद कंबोडिया ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद से आग्रह किया है कि थाईलैंड के "अकारण और जान बूझ कर किए हमलों" को रोकने के लिए बैठक बुलाए. दूसरी तरफ थाईलैंड का कहना है कि वह विवाद को आपसी बातचीत के जरिए सुलझाना चाहता है लेकिन यह बातचीत तभी होगी जब कंबोडिया हिंसा बंद करेगा.