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थाईलैंड में आपात स्थिति लागू

७ अप्रैल २०१०

थाईलैंड में सरकार विरोधी प्रदर्शनकारियों द्वारा संसद पर धावा बोले जाने के बाद प्रधानमंत्री अभिसीत वेज्जाजीवा ने आपात स्थिति लगा दी है.

विरोध करते प्रदर्शनकारीतस्वीर: AP

प्रधानमंत्री ने आपात स्थिति की घोषणा करते हुए एक टेलिविजन प्रसारण में कहा कि यह "शांति और व्यवस्था बहाल करने" के लिए ज़रूरी था. उन्होंने कहा, "इस देश में एक दल है जो अव्यवस्था फैलाना चाहता है और गलत सूचना फैला रहा है ताकि दूसरे लोग उसका समर्थन करें."

आपात स्थिति के तहत राजधानी बैंकाक और आसपास के प्रांतों में पांच से अधिक लोगों के एक साथ इकट्ठा होने पर प्रतिबंध है. सुरक्षा की ज़िम्मेदारी सेना को सौंप दी गई है.

प्रदर्शनकारी नए चुनाव की मांग कर रहे हैंतस्वीर: AP

यह स्पष्ट नहीं है कि क्या 30 हज़ार से अधिक प्रदर्शनकारी सरकार के इस क़दम से डर जाएंगे. सरकार विरोधी आंदोलन के एक नेता वीरा मूक्सीकापोंग ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा, "मुझे नहीं लगता कि सेना के जवान अभिजीत के आदेश को पसंद करते हैं." आंदोलनकारियों का कहना है कि वे शांतिपूर्ण विरोध जारी रखेंगे.

अभिजीत पर दबाव था. उन पर आरोप लगाया जा रहा था कि वे आंदोलनकारियों से कड़ाई से नहीं निबट रहे हैं. राजधानी के व्यापारी कारोबार में लाखों का घाटा होने की शिकायत कर रहे थे जबकि आंदोलनकारियों ने तीन सप्ताह से अधिक से राजधानी का जनजीवन अस्तव्यस्त कर रखा था.

आपात स्थिति की घोषणा से पहले प्रदर्शनकारीतस्वीर: AP

अभिजीत सरकार की रीढ़ की हड्डी समझी जाने वाली सेना ने अब तक हस्तक्षेप नहीं किया. जबकि प्रदर्शनकारियों ने पुलिस के आदेशों को ठुकरा दिया. पिछले मंगलवार को सेना प्रमुख अनुपोंग पाओजिंदा ने हस्तक्षेप की मांग यह कहकर ठुकरा दी कि सेना निहत्थे लोगों पर हमला नहीं कर सकती.

स्थिति बुधवार को तब बिगड़ गई जब प्रदर्शनकारियों ने पुलिस पर आरोप लगाया कि उसने प्रदर्शनकारियों पर दो धुंआ छोड़ने वाले बम फेंके. उसके बाद 20 प्रदर्शनकारी जवाब मांगने संसद के अंदर घुस गए. संसद भवन में उपस्थित कुछ मंत्री बाड़ फांद कर भाग गए तो कुछ को हेलिकॉप्टर से बाहर निकाला गया.

यूडीडी अपने दसियों हज़ार समर्थकों के साथ मध्य मार्च से तुरंत चुनावों की मांग के साथ सरकार के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहा है. उनमें से अधिकांश थकसिन चिनावट के समर्थक हैं जिंहे सेना ने भ्रष्टाचार के आरोप लगाकर सत्ता से हटा दिया था. वे जेल भेजे जाने के डर से निर्वासन में रहते हैं.

रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य

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