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थिएटर एक नशा है: मंदिरा

१७ अक्टूबर २०१२

टीवी सीरियल से लेकर फिल्म, माडलिंग और क्रिकेट होस्ट की भूमिका निभा चुकी अभिनेत्री मंदिरा बेदी मानती हैं कि थिएटर एक नशा है. कहती हैं, नाटकों के लिए टीवी सीरियल और फिल्मों के मुकाबले 25 गुना ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है.

तस्वीर: DELSTR/AFP/Getty Images

छोटे परदे पर शांति नामक सीरियल में एक दबंग युवती का किरदार निभा कर प्रशंसा बटोरने वाली मंदिरा बेदी का व्यक्तित्व बहुआयामी है. उन्होंने अपने फिल्मी करियर की शुरूआत दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे से की थी. उसके बाद सास भी कभी बहू थी सीरियल में नकारात्मक किरदार निभाया. लेकिन उन्होंने उसी समय तय कर लिया कि अब आगे से नकारात्मक भूमिकाएं नहीं करनी हैं. उसके अलावा कभी वह विज्ञापनों में नजर आती रही तो वर्ष 2003 में दक्षिण अफ्रीका में आयोजित क्रिकेट विश्वकप के दौरान मेजबान की भूमिका में अपनी पोशाक की वजह से उन्होंने सुर्खियां बटोरीं. दो साल पहले एक पत्रिका के लिए टापलेस फोटो शूट की वजह से भी वह खबरों में रहीं.

पहले एकाध नाटकों में काम कर चुकी मंदिरा बेदी अब फिर स्टेज पर लौटी हैं. इस बार वे विक्रांत पवार के नए नाटक साल्ट एंड पेपर के मंचन के सिलसिले में देश के प्रमुख शहरों के दौरे पर हैं. यह नाटक दस-दस मिनट के दस लघु नाटकों को मिला कर बना है और मंदिरा ने इसमें 30 से लेकर 75 साल तक की महिलाओं की अलग-अलग भूमिकाएं निभाई हैं. इसके साथ ही वह दो हिंदी फिल्मों में भी काम कर रही हैं. मंदिरा बेदी कहती हैं कि अगर नाटक में आपकी भूमिका को वाहवाही मिले तो थिएटर का नशा कभी आपके सिर से नहीं उतरेगा. डायचे वेले से बातचीत में मंदिरा ने अपने उतार-चढ़ाव भरे करियर, नाटकों से अपने लगाव, शुरूआती सफर और भावी योजनाओं के बारे में बातचीत की.

तस्वीर: STRDEL/AFP/GettyImages

स्टेज पर लौटना कैसा लग रहा है?

लौटती तो तब जब इससे दूर गई होती. मैं तो कभी इससे दूर गई ही नहीं. मैंने एनीथिंग बट लव नामक नाटक में अभिनय किया है. सात-आठ साल पुराने इस नाटक के डेढ़ सौ से ज्यादा शो हो चुके हैं. हां, साल्ट एंड पेपर में अभिनय बेहद चुनौतीपूर्ण है. मुझे कम समय में ही अलग-अलग उम्र का किरदार निभाना पड़ता है.

लगता है आपको थिएटर का नशा हो गया है?

थिएटर अपने आप में एक नशा है. अगर किसी एक नाटक में आपकी भूमिका को वाहवाही मिले तो थिएटर का नशा आपके सिर चढ़ कर बोलने लगेगा. यहां बात पैसों की नहीं बल्कि रोमांच की है.

नाटकों और सिनेमा में क्या अंतर है?

नाटक में कोई री-टेक नहीं होता. इसमें फिल्मों या सीरियल के मुकाबले 25 गुना ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. एक बार मुंह से संवाद निकल गए तो उसे सुधारा नहीं जा सकता. इसलिए हमेशा अलर्ट रहना पड़ता है. स्टेज पर पहुंचने के बाद आपका आत्मविश्वास ही सबसे बड़ा साथी है. वहां दूसरा कोई आपकी मदद नहीं कर सकता.

आपने छोटे परदे से अभिनय की दुनिया में कदम रखा था. क्या फिर छोटे परदे की ओर लौटने का इरादा है?

मैं छोटे परदे पर तभी लौटूंगी जब मुझे शांति जैसी कोई भूमिका मिलेगी. उस किरदार ने मुझे काफी कुछ सिखाया है. वह सचमुच एक दमदार और प्रेरणादायक किरदार था.

आप अभिनय के क्षेत्र में कैसे आईं?

मैं संयोग से ही इस क्षेत्र में आ गई. मैं तो दरअसल विज्ञापन फिल्में बनाना या विज्ञापनों में काम करना चाहती थी. पढ़ाई के दौरान ही शांति सीरियल के लिए निर्देशक ने आडीशन का न्योता दिया. दो आडीशन के बाद मुझे शांति की भूमिका के लिए चुन लिया गया. मैंने सोचा जब मौका मिल रहा है हाथ से क्यों जाने दूं. इस तरह शांति से अभिनय की शुरूआत हो गई.

तस्वीर: STRDEL/AFP/GettyImages

उसके बाद फिर फिल्मों में कैसे आना हुआ?

शांति सीरियल की कामयाबी की वजह से लोग मुझे पहचानने लगे थे. उसी समय करण जौहर ने फोन किया कि दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे में एक भूमिका है. क्या आप करना चाहती हैं? करण उस समय आदित्य चौपड़ा के सहायक के तौर पर काम कर रहे थे. उन्होंने कहा कि शाहरुख खान के साथ काम करना है. बस, मैंने हामी भर दी.

फिर अचानक क्रिकेट में होस्ट की भूमिका में कैसे आ गईं?

यह भूमिका भी संयोग से उसी तरह मिली जैसे पहली फिल्म मिली थी. वर्ष 2002 में श्रीलंका में चैंपियंस ट्राफी देखने के दौरान सोनी टीवी के लोगों से परिचय हुआ था. उसके बाद अगले साल विश्वकप के लिए वह होस्ट की तलाश कर रहे थे. उन्होंने मुझे फोन कर दफ्तर में बुलाया. वहां कई लोगों ने मुझसे दर्जनों सवाल पूछे और फिर पूछा कि क्या होस्ट बनने में मेरी दिलचस्पी है? आडीशन के बाद चुने जाने पर मैंने इसके लिए हामी भर दी. इस भूमिका में मेरी आलोचना जरूर हुई. लेकिन मुझे इस भूमिका में काफी कुछ सीखने को भी मिला.

मां की भूमिका और अपने काम में तालमेल किस तरह बिठाती हैं?

यह बेहद कठिन काम है. लेकिन मैंने अब तक इन दोनों में किसी तरह संतुलन बनाए रखा है. इन दोनों कामों में काफी समय देना पड़ता है.

आपने बाकी अभिनेत्रियों की तरह ज्यादा फिल्मों में काम नहीं किया. इसकी कोई खास वजह?

दरअसल, मैं कभी आंख मूंद कर फिल्में हाथ में लेने की आपाधापी में नहीं रही. मैं बिना सोचे-समझे कोई फिल्म हाथ में लेकर अपनी इमेज नहीं खराब करना चाहती थी. जब भी दमदार भूमिकाओं का ऑफर मिला, मैंने उनको निभाया. शुरू से ही मेरा प्रयास रहा कि किरदार ऐसा हो कि शांति की तरह लोग बरसों उसे याद रखें. मैं क्वांटिटी की जगह क्वालिटी पर ज्दाया ध्यान देती हूं.

भावी योजना क्या है?

अभी तो इस नाटक के अलावा दो फिल्मों में काम कर रही हूं. मैंने हाल में दो फिल्में साइन की हैं. इनमें से अतुल अग्निहोत्री की फिल्म की तो गोवा में शूटिंग भी शुरू हो गई है. इसके अलावा थिएटर, खेल और कुछ दूसरे आयोजनों की भी योजना है.

इंटरव्यू: प्रभाकर, कोलकाता

संपादन: महेश झा

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