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साहित्य

थोमस मान: बुडेनब्रुक्स

आयगुल चिमचियोग्लू
१० दिसम्बर २०१८

एक हजार पेज से ज्यादा की ये उत्कृष्ट कृति 19वीं सदी के समाज की एक विराट झांकी दिखाती है. यह एक व्यापारी परिवार के ढह जाने की दास्तान है, पहचानविहीन बेटे, मायूस बेटियां और मध्यवर्गीय आदर्शों का नाश.

Der deutsche Schriftsteller Thomas Mann
तस्वीर: picture-alliance/dpa

शुरुआत में भला कौन ये कल्पना कर सकता था? 26 साल का एक आदमी, जिसके पास हाईस्कूल का डिप्लोमा तक नहीं लेकिन अरमान बड़े हैं, उदासी के भाव वाली करीब एक किलो वजन की किताब लिखता है. "मैं कतई खुश नहीं हूं,” उसके प्रकाशक की शुरू में यही प्रतिक्रिया होती है. लेकिन आखिरकार वो उपन्यास को प्रकाशित कर देता है, भरोसे से ज्यादा सदिच्छा की वजह से. इसके बाद तो इतिहास ही बन गया.

बहुत से लोग, थोमस मान की बुडेनब्रुक्स को एक विशिष्ट जर्मन सामाजिक उपन्यास मानते हैं. ये वास्तव में एक क्लासिक रचना है जिसे 1929 में साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला था. भूमंडलीय प्रसिद्धि, अंतरराष्ट्रीय बेस्ट सेलर और बहुत से जर्मन छात्रों के लिए एक अनिवार्य पुस्तक. थोमस मान का उल्लेख आए और बुडेनब्रुक्स का जिक्र न हो, ऐसा हो नहीं सकता. आखिर क्यों?

साहित्यिक मॉडल के रूप में जिंदगी

क्या इस बात का जवाब लेखक और उसकी रचना के बीच आत्मकथात्मक जुड़ावों में निहित है?

थोमस मान का जन्म ल्युबेक में एक व्यापारी परिवार में हुआ था लेकिन उनकी कलात्मक अभिलाषाएं, मध्यवर्गीय मुख्यधारा में ठीक से फिट नहीं हो पाई. मान की ये पहली रचना इस संघर्ष से प्रेरित थी. पिता के निधन के बाद परिवार के अच्छे-खासे कारोबार को आगे न बढ़ा पाने की उस संवेदनशील बोहेमियन की नाकाबिलियत पर लोगों ने नाक-भौं सिकोड़ी और उसकी खिल्ली उड़ाई.

अपने उपन्यास के किरदार हान्नो की तरह ही मान के पास एक समृद्ध परिवार में ऐशो-आराम की जिंदगी थी लेकिन उसके ढह जाने का खतरा मंडरा रहा था. एक उभरते हुए उपन्यासकार को दूसरों की उम्मीदों पर पानी फेर देने के लिए खुद को तैयार करना था. कलात्मक जिंदगी के अपने स्वप्न की हिफाजत के लिए उसे मजबूर किया गया था. भले ही वह वास्तविक जीवन से प्रेरित था लेकिन उसने पूरी ताकत से रचना में जीवनी के ब्यौरों की जगह अपने खास साहित्यिक निशान उकेर दिए.

शहर को थोमस मान पर नाज हैतस्वीर: picture alliance/AP

अर्थ पर भारी आभास

लेकिन क्या उन लोगों के लिए इस बात का वास्तव में कोई मतलब था जिन्होंने लेखक के जीवन और उसके रचनाकार्य के बीच अंतर न करने का विकल्प चुना? भले ही उपन्यास में "ल्युबेक” नाम जाहिर नहीं हुआ है, लेकिन वहां के निवासियों ने, 1901 में बुडेनब्रुक्स के प्रकाशन के बाद खुद को खासा अपमानित महसूस किया था.

ये बात इस तथ्य में निहित है कि लेखक ने जो छवि पेश की थी वो एक रमणीक मनोहारी उत्तरी जर्मन शहर की नहीं, बल्कि ऐसी जगह की थी जिसे परंपरा के साथ आधुनिकता को संजोने में कठिनाई होती थी.

ये विरोधाभास उपन्यास के प्रत्येक किरदार में नजर आता है. जैसा दिखता है वैसा है नहीं. मान संदेहवाद की ये प्रस्थापना प्रारंभ में ही कर देते हैं, उस दृश्य में, जो अक्टूबर 1835 के एक बहुत ही साधारण बृहस्पतिवार को घटित होता है. बुडेनब्रुक परिवार दोपहर के भोजन के लिए कुछ देर से, एक साथ पधार रहा है.

"वे सब वहां बैठे थे, भारी, ऊंची पीठ वाली कुर्सियों पर, सुंदर चांदी की प्लेटों से सुंदर भारी खाना उठाते हुए, शानदार वाइन पीते हुए, और तमाम विषयों पर अपने विचार खुलकर जाहिर करते हुए. जब उन्होंने खरीदारी के बारे में बात करना शुरु किया, तो वे न चाहते हुए भी ज्यादा से ज्यादा देसी बोली की ओर फिसलने लगे, और सुविधाजनक लेकिन अटपटे से ऐसे मुहावरे इस्तेमाल करने लगे जो उनकी कारोबारी दक्षता और बढ़िया सेहत को ही अभिव्यक्त करते थे. कभी कभार वे अपना और एक दूसरे का मजाक उड़ाते हुए कुछ ज्यादा ही खिंचे हुए उच्चारण का भी इस्तेमाल कर लेते थे, और अपने कतरे हुए वाक्यांशों और अतिरंजित स्वरों पर आनंदित हो उठते थे ठीक जैसे अपने भोजन पर.”

भव्य गिरावट

वहां पूरे परिवार का मुखिया, बुजुर्ग योहान बुडेनब्रुक बैठा हुआ है. साथ में उसकी पत्नी, उसका बेटा और सपरिवार आया वकील इयान. नाती पोते भी वहां हैं, ख्वाब देखने वाला टोनी, झगड़ालू विद्रोही क्रिश्चियान, और थोमस, सबसे बड़ा पोता.

थोमस ही है जिस पर परिवार की परंपरा को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी है, किसी भी कीमत पर. मान इस मुख्य परिवार के साथ अपना आख्यान बुनना शुरू करते हैं. और फिर कई पीढ़ियों तक जाते हैं.

लेकिन परिवार में उपस्थितियां धोखे में डालने वाली हैं. पाठक महसूस करता है कि सब कुछ पतन की ओर अग्रसर है. बुडेनब्रुक्स परिवार नया घर एक समय रसूखदार रहे परिवार से हासिल कर लेता है, जिसे वित्तीय बरबादी से गुजरना पड़ा है.

योहान और उसका परिवार इससे कुछ बेहतर निकालना चाहता है. वे आर्थिक रूप से जरूरी फैसले करते हैं, लेकिन वित्तीय तौर पर, पारस्परिक तौर पर और मानसिक तौर पर विफल हो जाते हैं.

टोनी और थोमस सामाजिक रूप से अपने से कमतर लोगों के प्यार में पड़ जाते हैं, लेकिन अपने मातापिता के सामने खड़ा होने का साहस नहीं कर पाते. वे सुविधा का ब्याह तो कर लेते हैं, लेकिन इन वैवाहिक भागीदारियों में वे विरोधाभासपूर्ण तरीके से तबाही ही बुला बैठते हैं.

आईने जैसी भाषा

कच्ची उम्र से ही, थोमस मान, शोपेनहावर के उस निराशावादी ख्याल से प्रभावित थे कि दुनिया में इच्छा ही एक अदृश्य कारगर शक्ति है. सो, बुडेनब्रुक्स परिवार के पास बचाव का रास्ता नहीं है. वे भावनाओं और नैतिकता के बारे में बातें करते हैं, लेकिन उनका जहाज पैसे और आर्थिकी से ही चलता है. विफलता, पतन और यहां तक कि मौत ही अकेला निष्कर्ष लगने लगती है.

थोमस मान इस नाउम्मीदी को एक शैलीगत ढंग से अभिव्यक्त करते हैं, समूचे वाक्यों को शब्द दर शब्द लगातार दुहराते हैं, या परिवार रजिस्ट्री या संपत्ति जैसे मूल भावों को उनके तमाम विभिन्न रूपों में उभारते हैं.

इस अंत का फैलाव, भाषाई तौर पर ढलवां और अतिरंजित नजर आता है. संस्कारों वाला उत्तरी जर्मन बुडेनब्रुक्स परिवार दरअसल निरर्थक फ्रांसीसी अभिव्यक्तियों से जड़ी हुई देसी भाषा बोलता है. "Je, den Düwelook, c'est la question, matrèschèredemoiselle!"

नाचीज नौकर, गणिकाएं और पतिताएं, ये सारे लोग गली कूचे की भाषा बोलते हैं, कच्ची और खुरदुरी. आवाजों के इस विराट समूह को अपनी उत्कृष्ट शैली में थोमस मान, 19वीं सदी के समाज के दृश्यपटल में गूंथ देते हैं. तब बुडेनब्रुक्स परिवार का दंभ, बहुत पहले गुम हो चुके समय का अवशेष जैसा नजर आता है. समय के साथ बदल न पाने और तरक्की पर भरोसा न कर पाने की उनकी अक्षमता का यह एक प्रतीक है.

2008 में बुडेनब्रुक्स पर फिल्म भी बनीतस्वीर: picture-alliance/dpa/Bavaria Film/S. Falke

उबाऊ पति और बेचैन बेटे

कई पीढ़ियों तक फैली हुई ये विस्तृत रचना, सौंदर्यबोध की ज्यादती के बोझ से दबी नहीं है तो ये विशुद्ध रूप से लेखक के तौर पर थोमस मान की प्रतिभा है. वो शब्दों के जरिए अपने बहुत सारे किरदारों में हरेक का जीवन उकेर पाने में समर्थ हैं. वो जीवन जो जटिलताओं, विरोधाभासों, उलझनों और संशयों से भरा हुआ है. इनमें से कुछ किरदार पेज दर पेज पाठक के साथ चलते हैं, बाकी बस कुछ समय के लिए ही प्रकट होते हैं.

और तब भी पाठक ये बात ध्यान से सोचना शुरू करता है कि कैसे ग्रुइनलिश जैसा शख्स, मक्कार और बेशर्म पति बन सकता है और यह भी कि छटपटाया सा पाठक भयभीत हान्नो को संगीत-घर से बाहर खदेड़ देना चाहता है, उस पर चिल्लाता हुआ, "जाओ, खुद को जिंदगी में झोंक दो! तुम नाकाम इंसान नहीं हो.” ठीक यही वो हमदर्दी और संवेदना है जो पाठक को रात भर पढ़ते रहने के लिए कोंचती है और तमाम पेचीदा वाक्यों और फलसफाई विषयांतरों पर उसे दबी दबी सी हंसी के लिए उकसाती है.

थोमस मान: बुडनब्रुक्स, विंटेज क्लासिक्स / पेंग्विन रेंडम हाउस, 1901.

थोमस मान का जन्म 1875 में ल्युबेक के एक रसूखदार व्यापारी परिवार में हुआ था. उनका निधन 1955 में स्विट्जरलैंड के ज्युरिख में हुआ. उन्होंने एक बार अपने बारे में लिखा कि "मैं एक शहरवाला हूं, जर्मन बुर्जुआ समाज का एक नागरिक, एक बच्चा और एक पड़पोता. 1929 में मान को अपने पहले उपन्यास बुडेनब्रुक्स के लिए नोबेल साहित्य पुरस्कार मिला था. अपने व्यापक कार्यों के लिए उन्होंने और भी कई पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए. पुरस्कृत रचनाओं में "वेनिस में मृत्यु (डेथ इन वेनिस-1911), "जादुई पहाड़ (द मैजिक माउंटेन-1924) और त्रयी "योसेफ और उसके भाई (जोसेफ ऐंड हिज ब्रदर्स- 1933-1943) शामिल हैं. 1933 में वो स्विट्जरलैंड चले गए और 1939 में अमेरिका. वहां से उन्होंने अपनी विख्यात रेडियो वार्ताएं पेश कीं जिनमें वे नाजियों पर जमकर बरसे. 1952 में थोमस मान स्विट्जरलैंड लौट आए.

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