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थोड़ा कोरोना बेकाबू हो गया है, बाकी सब चंगा सी...

२८ अप्रैल २०२१

कोई शक नहीं है कि भारत में कोरोना की हालत इस कदर बिगड़ने के पीछे खुद जनता भी जिम्मेदार है. लेकिन सरकारों का काम जनता को रास्ता दिखाना होता है और भारत सरकार इसमें नाकाम रही है.

Indien | Corona dramatische Situation in Delhi
तस्वीर: ADNAN ABIDI/REUTERS

आपको 'बॉर्डर' फिल्म का वो सीन याद है, जब सिपाही घर से आई चिट्ठियां पढ़ते हैं? एक सिपाही की बीवी ने लिखा होता है: करनाल वाले मामाजी गुजर गए... बाकी सब ठीक है. गाय ने बछड़ा दिया था, पैदा होते ही मर गया... बाकी सब ठीक है. चार दिन हो गए, मुन्नी का बुखार नहीं उतर रहा... बाकी सब ठीक है!

भारत का हाल भी इन दिनों कुछ ऐसा ही है. कोरोना के कारण लोग मर रहे हैं... बाकी सब ठीक है. अस्पतालों में ऑक्सीजन की कमी है... बाकी सब ठीक है. लोगों को ना दवा मिल रही है, ना अस्पताल में बेड... बाकी सब ठीक है! या कहिए... बाकी... सब चंगा सी...

प्रधानमंत्री मोदी... सॉरी... मोदी जी ने सितंबर 2019 में अमेरिका जा कर "हाउडी मोदी" कार्यक्रम में नौ भारतीय भाषाओं में बताया था कि भारत में "आल इज वेल". फिलहाल तो वो कोरोना की वजह से बाहर जा नहीं पा रहे हैं, नहीं तो लोगों को यकीन दिलाने के लिए वे विदेश में एक-आध बड़ा सा रॉकस्टार स्टाइल शो कर ही देते और 9 की जगह इस बार 19 भाषाओं में बता देते कि कोविड-19 के बावजूद "सब चंगा सी."

ईशा भाटिया सानन

वैसे, पश्चिम बंगाल के आसनसोल की चुनावी रैली ने तो "हाउडी मोदी" को टक्कर दे ही दी थी. वहां प्रधानमंत्री को चारों तरफ "लोग ही लोग दिखे, बाकी कुछ दिखा ही नहीं." और सिर्फ उन्हें ही नहीं, उनके गृह मंत्री अमित शाह को भी कुछ नहीं दिखा. इसीलिए तो उन्होंने कहा कि कोरोना का और चुनावी रैलियों का एक दूसरे से कोई लेना देना नहीं है.

बिलकुल वैसे ही, जैसे कुम्भ मेले का कोरोना से कोई लेना देना नहीं है. भीड़ भाड़ में कोरोना वायरस तेजी से फैलता है, यह बात डब्ल्यूएचओ ने पिछले साल कही थी. तब जमातियों ने बात नहीं मानी और देश भर में कोरोना फैला दिया. लेकिन अब एक साल बाद यह चेतावनी बहुत पुरानी पड़ चुकी है. और फिर "मोदी जी ने किया है, तो कुछ सोच कर ही किया होगा."

एक तरफ कोरोना और दूसरी तरह प्रोपगैंडा वाला पश्चिमी मीडिया. 'द ऑस्ट्रेलियन' को ही लीजिए. बिना भारत सरकार से पूछे कोरोना की बेकाबू हुई दूसरी लहर का जिम्मेदार सरकार को ठहरा दिया. मजबूर हो कर भारतीय उच्चायोग को लिखना पड़ा कि "जहां हमारा वैज्ञानिक समुदाय अचानक बढ़े संक्रमण की वजह को समझने की कोशिश कर रहा है - जिसमें भारत के बाहर से आए नए स्ट्रेन भी मुमकिन हैं - वहां लेख में अजीब आननफानन में आदरणीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सीमित चुनाव प्रचार और एक धार्मिक आयोजन को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया."

यानी ये हाल तब है जब चुनाव प्रचार "सीमित" रूप से किया गया! इसमें कोई शक नहीं है कि भारत में हालत इस कदर बिगड़ने के पीछे खुद जनता भी जिम्मेदार है. लेकिन सरकारों का काम जनता को रास्ता दिखाना होता है. अगर सरकार ही हजारों-लाखों की संख्या में भीड़ जमा करेगी, तो शादियों और पार्टियों में कुछ सौ लोगों को बुलाने से आम जनता को कैसे रोकेगी?

दिल्ली, लखनऊ, कानपुर से पिछले दिनों जिस तरह की तस्वीरें आ रही हैं, उन्हें देख कर कलेजा मुंह को आता है. ऐसे में किसी भी लोकतंत्र में सरकार से यही उम्मीद की जाती है कि वह जिम्मेदारी ले. लेकिन हाहाकार वाली स्थिति के बावजूद गलतियों पर पर्दा डालने की नीति ही जारी है. हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर मृतकों की तादाद कम बताने के आरोप पर कहते हैं कि ये बहस मृतकों को वापस नहीं लाएगी, लोगों को राहत देने पर फोकस करिए. उत्तर प्रदेश में तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां तक कह दिया है कि ना ऑक्सीजन की कमी है, ना बेड की और जो भी अस्पताल ऐसा कह रहे हैं, वे अफवाह फैला रहे हैं, उन्हें इसके लिए दंडित किया जाना चाहिए. मतलब, जितना मिल रहा है, उसी का शुक्र अदा कीजिए, शिकायत मत कीजिए.

और अगर शिकायत करने के लिए आप सोशल मीडिया पर उतरने के बारे में सोच रहे हैं, तो आईटी एक्ट के तहत देश की "संप्रभुता और अखंडता" को बचाने के लिए आपके ट्वीट सेंसर कर दिए जाएंगे. मतलब फिर वही.. जितना मिल रहा है, उसी का शुक्र अदा कीजिए, शिकायत मत कीजिए! क्योंकि देश में थोड़ा सा कोरोना बेकाबू हो गया है, बाकी सब चंगा सी...

इस बार कोरोना इतना घातक क्यों है?

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