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दक्षिण अफ्रीका में दिल्ली का असर

७ फ़रवरी २०१३

छात्रा के सामूहिक बलात्कार के बाद भारत में जिस तरह के प्रदर्शन हुए, उनकी गूंज दक्षिण अफ्रीका तक भी पहुंची है. देश खुद से पूछ रहा है कि बलात्कार तो यहां भी रोज होते हैं लेकिन दिल्ली जैसे प्रदर्शन क्यों नहीं होते.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

दक्षिण अफ्रीका की राजधानी प्रिटोरिया में हाल में ही पांच लोगों ने 21 साल की एक युवती को झाड़ियों में खींचा और उससे सामूहिक बलात्कार किया. छात्रा यूनिवर्सिटी में दाखिला लेने के लिए लगने वाली लाइन में खड़ी होने के लिए जा रही थी. चार हफ्ते बाद भी पुलिस किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है.

बीते तीन महीनों में दक्षिण अफ्रीका में महिलाओं और बच्चों के खिलाफ यौन अपराध के 9,000 मामले सामने आए. महिला अधिकारों की बात करने वाले संगठनों के मुताबिक दिल्ली के एक मामले की वजह से भारत में ऐसे प्रदर्शन हुए कि नेताओं को कड़ा कानून बनाना पड़ा. संगठन के कार्यकर्ता अपने लोगों से सवाल कर रहे हैं कि दक्षिण अफ्रीका में इन अपराधों के खिलाफ ऐसी चुप्पी क्यों है.

लंबे समय तक दक्षिण अफ्रीका को विश्व की बलात्कार राजधानी कहा जाता रहा. हालात अब भी बहुत ज्यादा नहीं बदले हैं. मशहूर रेडियो पत्रकार रेदी तलहाबी कहती हैं, "हम ही अकेले ऐसे देश नहीं हैं जहां अपराध, सेक्सिज्म, पुरुष प्रधान व्यवहार और गरीबी है. लेकिन ऐसा लगता है कि हम अकेले ऐसे देश हैं जो बलात्कार होने पर नींद में चला जाता है."

बच्चों की हालत भी बुरीतस्वीर: AP

बुरी हालत

सन 2000 में कहा गया कि इंटरपोल के 120 सदस्य देशों में दक्षिण अफ्रीका में बलात्कार के सबसे ज्यादा अपराध होते हैं. मेडिकल रिसर्च काउंसिल की रैचेल जेवकेस कहती हैं, "इससे इस बात की ओर इशारा होता है कि हमारे समाज में एक बुनियादी बीमारी है. हम अब भी एक पुरुष प्रधान समाज है, जहां पुरुषों को लगता है कि वह जो चाहे कर सकते है, फिर वह बलात्कार ही क्यों न हो."

अप्रैल 2011 से अप्रैल 2012 तक देश में बलात्कार समेत यौन अपराधों के 64,000 मामले सामने आए. पांच करोड़ आबादी वाले देश में बच्चों से यौन दुर्व्यवहार के 25,000 मामले दर्ज हुए. सामाजिक कार्यकर्ता कहते हैं कि संख्या इससे भी कहीं ज्यादा हो सकती है, क्योंकि कई मामलों में पीड़ितों को पुलिस की अनदेखी से भी गुजरना पड़ता है. सिर्फ 12 फीसदी मामलों में अपराधियों को सजा होती है. प्रिटोरिया के इंस्टीट्यूट फॉर सिक्योरिटी स्टडीज के क्राइम एंड जस्टिस प्रोग्राम के प्रमुख गारेथ न्यूहैम कहते हैं, "कई पुलिसवाले मानते है कि बलात्कार के लिए बलात्कार पीड़ित ही जिम्मेदार है. वे मानते हैं कि लड़की ने भड़काऊ कपड़े पहने होंगे या फिर वह उन इलाकों में गई होगी, जहां उसे नहीं जाना चाहिए था. वे पीड़ित को ही जिम्मेदार ठहराने लगते हैं."

महिला समलैंगिक समुदाय की कार्यकर्ता फुनेका सोलडाट कहती हैं, "यह झल्ला देने वाला है क्योंकि जब आप पुलिस के पास जाते हैं तो आप दूसरी बार पीड़ित बन जाते हैं. खीझ इस बात से भी होती है कि इन मामलों को लेकर हम महिला समाज होने के बावजूद भी चुप हैं. यह ठीक नहीं है."

लैंगिक असमानता बड़ी समस्यातस्वीर: picture-alliance/dpa

जघन्य मामले

बीते साल दक्षिण अफ्रीका में एक वीडियो बहुत प्रसारित हुआ. वीडियो से पता चला कि 14 से 20 साल के सात लड़कों ने 17 साल की एक मानसिक रूप से अक्षम किशोरी से बलात्कार किया. इस दौरान मोबाइल फोन पर वीडियो भी बनाया. लेकिन इसके बावजूद समाज में कोई हरकत नहीं हुई. ऑनलाइन अखबार डेली मावेरिक ने लिखा, "मानसिक रूप से अक्षम 17 साल की लड़की के साथ हुआ बलात्कार भी लोगों को प्रदर्शन के लिए सड़कों पर लाने में नाकाम रहा."

जोहानिसबर्ग की कारोबारी महिला एंडीसिवे कावा के साथ 2010 में पांच लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया. सभी आरोपियों के खिलाफ सबूतों के अभाव में मुकदमा गिरा दिया गया.

लेकिन भारत की राजधानी में 16 दिसंबर की रात हुई बलात्कार की घटना और उसके बाद उपजे आक्रोश से अब दक्षिण अफ्रीकी कार्यकर्ताओं को भी रास्ता मिलता दिख रहा है. 14 फरवरी को लैंगिक हिंसा के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका में ग्लोबल मार्च निकल रहा है. कावा उसमें शामिल हो रही हैं और सभी महिलाओं से वक्त निकालकर मार्च का हिस्सा बनने की अपील कर रही हैं.

ओएसजे/एमजे (रॉयटर्स)

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