भारत का गुप्ता परिवार दक्षिण अफ्रीका में भ्रष्टाचार की मिसाल सा बन चुका है. अब एक जर्मन कंपनी पर रिश्वत देने के आरोप लगे हैं और सामने फिर गुप्ता परिवार है.
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भारतीय मूल का गुप्ता परिवार, दक्षिण अफ्रीका में बेहद ताकतवर है. उस पर देश की भीतरी राजनीति और नीति निर्माण में दखल देने के आरोप लगते हैं. गुप्ता परिवार के दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा से करीबी रिश्ते हैं. यह माना जाता है कि तीन गुप्ता बंधुओं ने एक सीक्रेट डील के तहत दक्षिण अफ्रीकी की कैबिनेट के चेहरे तय करने में भूमिका निभाई. इसके पीछे कारोबारी हित छुपे थे, जिनका फायदा जुमा के परिवार तक पहुंचना तय था.
लेकिन अब इस विवाद में जर्मनी की दिग्गज सॉफ्टवेयर कंपनी SAP का भी नाम आ रहा है. एक गैरलाभकारी संस्था एमाभुंगाने के खोजी पत्रकारों ने यह दावा किया है. रिपोर्ट के मुताबिक SAP दो साल पहले गुप्ता परिवार की मिल्कीयत वाली एक कंपनी ने 70 लाख यूरो की रिश्वत दी. पत्रकारों को लगता है कि रिश्वत की मदद से SAP को सरकारी कंपनी ट्रांसनेट से कारोबार करने का मौका मिला. डील हुई.
माना जा रहा है कि SAP ने रिश्वत को छिपाने के लिए 10 फीसदी डिस्ट्रीब्यूशन भत्ते की आड़ ली. यह भत्ता 3डी प्रिंटर बनाने वाली कंपनी सीएडी हाउस को दिया गया. भुगतान के बाद रकम का ज्यादातर हिस्सा दूसरी कंपनियों को चला गया. स्थानीय मीडिया की रिपोर्टों के मुताबिक दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा का बेटा दुदुजान जुमा गुप्ता की कंपनी में 10 फीसदी का हिस्सेदार है.
असल में जून में दक्षिण अफ्रीका के मीडिया में 2,00,000 ईमेल लीक हुए. पत्रकारों ने इन्हीं ईमेलों की छानबीन की. एमाभुंगाने की पत्रकार सुजाने कॉमरी कहती हैं, "हमें भरोसा है कि लीक दस्तावेज असली हैं. ईमेल कई कर्मचारियों के हैं, जो गुप्ता (कंपनियों) के लिए करते हैं."
SAP के अफ्रीका के मैनेजिंग डायरेक्टर ब्रेट पार्कर ने आरोपों को निराधार बताया है. फिलहाल वह छुट्टी पर हैं. SAP यूरोप की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनी है. मामले के सामने आने के बाद जर्मनी में कंपनी के मुख्यालय में आंतरिक जांच शुरू हो चुकी है. कंपनी ने दो प्रेस विज्ञप्तियां भी निकाली हैं, जिनके मुताबिक चार मैनेजिंग डायरेक्टरों को हटा दिया गया है. SAP की प्रवक्ता निकोला लेस्के ने डॉयचे वेले को लिखित प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कंपनी इस मसले पर फिलहाल और ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहती है.
कंपनी का कहना है कि सीएडी हाउस को रिश्वत नहीं दी गई बल्कि सेवाओं के लिए मुआवजा दिया गया. लेकिन पत्रकार सुजान कॉमरी इस दलील को नहीं मानतीं.
यह पहला मौका नहीं है कि जब दक्षिण अफ्रीका का गुप्ता परिवार विवादों के केंद्र में हो. राष्ट्रपति जुमा पर जब जब भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं, तब तब गुप्ता परिवार का नाम किसी न किसी तरह सामने आता है. लेकिन गुप्ता परिवार इन आरोपों को छवि खराब करने वाला दुष्प्रचार कहता है. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक गुप्ता परिवार एयर ट्रैवल, एनर्जी, टेक्नोलॉजी और मीडिया से जुड़ा है. परिवार की संपत्ति की सही सही जानकारी नहीं है.
(शर्मनाक हरकतें करने वाली कंपनियां)
गंदा है, पर धंधा है ये
होड़ में आगे निकलने के लिए कुछ कंपनियां किसी भी हद तक गिर सकती हैं. देखिये आपराधिक गतिविधियों के कारण बदनाम हुई कंपनियों को.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo
फोल्क्सवागेन
डीजल कार के प्रदूषण को कम दिखाने के लिए सॉफ्टवेयर लगाने वाली जर्मन कार कंपनी फोल्क्सवागेन का इतिहास भी विवादों से भरा है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान कंपनी को मजबूरन हथियार बनाने पड़े. लेकिन कंपनी ने यह बात छुपाई कि वह नाजी सरकार की मदद कर रही थी. कंपनी ने हिटलर के शासन के दौरान यातना शिविर बनाने में भी मदद की.
तस्वीर: Reuters/K. Pfaffenbach
आईबीएम
हिटलर के सत्ता में आने के कुछ समय बाद 1933 में नाजी सरकार ने यहूदियों की छंटनी शुरू की. अमेरिकी कंपनी आईबीएम की जर्मन शाखा डेहोमाग ने नाजी सरकार की मदद की और पहचान व आंकड़े जमा करने वाले पहचान पत्र बनाए. आज के पंच कार्ड इसी तकनीक पर चलते हैं. इन पहचान पत्रों का इस्तेमाल यातना शिविरों में निगरानी रखने के लिए किया गया.
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चिक्विटा
अमेरिका की इस फ्रूट कंपनी ने 1954 में ग्वाटेमाला में तख्तापलट कराया. अपने हित पूरे ना होते देख कंपनी ने राष्ट्रपति जोकोबो आर्बें गुजमन को सत्ता से हटवा दिया. गुजमन का कृषि सुधार कार्यक्रम देश में लोकप्रिय हो रहा था. अमेरिकी कंपनी को लगा कि इन सुधारों से उसका धंधा मंदा हो जाएगा. गुजमन को देश छोड़ना पड़ा, तख्तापलट के बाद ग्वाटेमाला में 40 साल तक गृहयुद्ध चला.
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बायर
1970 के दशक से 1985 तक अमेरिका के दवा उद्योग में कई विवाद सामने आए. हीमोफिलिया के रोगियों को प्रोटीन फैक्टर-8 बेचा गया. बायर कंपनी की इस दवा में एचआईवी का विषाणु भी था. 10,000 लोग इसके शिकार हुए. हानिकारक साबित होने के बावजूद जर्मन कंपनी बायर की यह दवा आज भी कुछ देशों में बिकती है.
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स्टारबक्स
कॉफी की चुस्की के साथ मुफ्त वाईफाई देने वाली अमेरिकी कंपनी स्टारबक्स और इथियोपिया सरकार के बीच 2006 में बड़ा विवाद हुआ. इथियोपिया सरकार तीन तरह की कॉफी का ट्रेडमार्क रजिस्टर करना चाहती थी, स्टारबक्स ने इसमें रोड़े अटकाये. कंपनी ने गलत प्रचार कर किसानों को अपनी ही सरकार के खिलाफ भड़काया.
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कोका कोला
2014 में भारतीय राज्य उत्तर प्रदेश में कोका कोला की एक फैक्ट्री को बंद करने का आदेश दिया गया. शिकायत के मुताबिक कोका कोला बनाने के लिए कंपनी ने जमीन से इतना पानी निकाला कि भूजल का स्तर बहुत ही नीचे चला गया. दूसरे देशों में भी कोका कोला पर ऐसे आरोप लगते रहे हैं.
तस्वीर: Coca-Cola
मॉन्सैंटो
यह अमेरिकी बीज कंपनी, दूसरे प्रोडक्ट इस्तेमाल करने वाले किसानों पर मुकदमा भी कर देती है. जीन संवर्धित बीज बेचने वाली इस कंपनी पर दुनिया भर में अपना एकाधिकार जमाने के आरोप लगते हैं. 2002 में मॉन्सैंटो पर अल्बामा नदी में कचरा डालने के आरोप भी रहे. वियतनाम युद्ध के दौरान अमेरिका ने रासायनिक हथियार एजेंट ऑरेंज का इस्तेमाल किया, यह भी मॉन्सैंटो ने ही बनाया.
तस्वीर: AP
हैलीबर्टन
फ्रैकिंग तकनीक से तेल निकालने वाली इस कंपनी को पर्यावरणप्रेमी नापसंद करते हैं. इस अमेरिकी कंपनी पर इराक युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से शामिल होने के आरोप भी लगे. कंपनी पर तेल समृद्ध देशों में भ्रष्टाचार फैलाने के आरोप भी हैं. इराक में सिर्फ इसी कंपनी को 7 अरब डॉलर का ठेका मिला, बाकी को कुछ नहीं मिला.
तस्वीर: AP
रियो टिंटो
ऑस्ट्रेलिया की दिग्गज खनन कंपनी रियो टिंटो पर मानवाधिकार उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं. 1970 के दशक में कंपनी नामीबिया में गैरकानूनी रूप से यूरेनियम खनन करने में पकड़ी गई. मुनाफे से वह दक्षिण अफ्रीकी की नस्लभेदी सरकार की मदद करती थी. कंपनी पर अफ्रीका के हथियारबंद गुटों को पैसा देने के आरोप भी लगे.