1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दक्षिण एशिया में प्रदूषण के कारण बढ़े बवंडर

३ नवम्बर २०११

फैक्टरियों और गाड़ियों से उठने वाले धुंए के करण वातावरण को नुकसान पहुंचता है और बीमारियां फैलती हैं, यह बात तो सभी जानते हैं. लेकिन यह बात लोग नहीं जानते कि इस के कारण अरब महासागर में बवंडर बनने लगे हैं.

तस्वीर: AP

इन बवंडरों के कारण अब तक हजारों जानें जा चुकी हैं और अरबों का नुकसान हो चुका है. ब्रिटिश पत्रिका 'नेचर' में छपे एक लेख में एशिया के ऊपर एक भूरे बादल की बात की गई है. यह बादल हिंद महासागर तथा भारत और पाकिस्तान के ऊपर है और तीन किलोमीटर से भी ज्यादा क्षेत्र में फैला हुआ है. यह बादल फैक्टरियों से निकलने वाले धुंए तथा डीजल और जैव इंधन के धुएं से बना है. इस बादल में कार्बन और सल्फेट की भारी मात्रा है.

जान माल का नुकसान

जानकारों का मानना है कि इसके कारण भारत और पाकिस्तान के मानसून में बदलाव आए हैं और हिमालय का बर्फ पिघल रहा हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ वर्जीनिया के अमातो एवन ने अन्य पर्यावरणविदों के साथ मिल कर 1979 से 2010 के बीच अरब महासागर में बवंडरों पर शोध किया. उन्होंने पाया कि इस इलाके में हर साल दो से तीन बवंडर ही बना करते थे और वे बहुत कम तीव्रता के थे. इसका कारण जुलाई और अगस्त में मानसून के दौरान उठने वाली गरम हवा थी. इस हवा के कारण अरब महासागर में बवंडर नहीं बन पाते थे. लेकिन मानसून से पहले और बाद में इस गर्म हवा के अभाव में एक दो बवंडर बन जाया करते थे.

तस्वीर: AP

लेकिन पिछले दस से बारह सालों में यह स्थिति बदल गई है. मानसून शुरू होने से पहले तेज तूफान उठने लगे हैं. 1998 में गुजरात में आए तूफान के कारण तीन हजार लोगों की जान गई. 2007 में ईरान और ओमान में आए गोनू नाम के तूफान के कारण 49 लोगों की जान गई और चार अरब डॉलर का नुकसान हुआ. ओमान की खाड़ी में इस पहले कभी इस तरह का कोई तूफान नहीं आया था. इसी तरह जून 2010 में पाकिस्तान और ओमान में फेट नाम के तूफान के कारण 26 लोगों की जान गई और दो अरब डॉलर का नुकसान हुआ.

भूरे बादल का कहर

शोध करने वाली टीम के अनुसार 1930 की तुलना में अब इस भूरे बादल का आकार छह गुना बढ़ चुका है और प्रदूषण के कारण यह और तेजी से बढ़ रहा है. गहरा रंग होने के कारण बादल सूरज की गर्मी खींच लेता है और इसे नीचे महासागर तक नहीं पहुंचने देता. इस से सागर का पानी ठंडा रह जाता है और वातावरण पर भी प्रभाव पड़ता है.

तस्वीर: picture alliance/dpa

अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन की अंजुली बमजई ने इस बारे में कहा, "इस हैरान कर देने वाले उदाहरण से यह पता चलता है कि बिन चाहे ही मानव गतिविधियों का कितना भयंकर असर हो सकता है." बमजई का कहना है कि तीस साल पहले तक इस इलाके में इस तरह के बवंडरों की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि आने वाले समय में इस तरह के बवंडर बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं.

रिपोर्ट: एएफपी/ ईशा भाटिया

संपादन: आभा एम

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी को स्किप करें

डीडब्ल्यू की टॉप स्टोरी

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें को स्किप करें

डीडब्ल्यू की और रिपोर्टें