दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका की टिप्पणी को चीन ने बताया बकवास
१४ जुलाई २०२०
अमेरिका ने दक्षिण चीन सागर में चीन की दावेदारी को गैरकानूनी बताया है, तो चीन ने अमेरिका की इस टिप्पणी को अनुचित बताते हुए कहा है कि अमेरिका चीन और उसके पड़ोसी देशों के बीच फूट डालने की कोशिश कर रहा है.
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वॉशिंगटन स्थिति चीन के दूतावास ने कहा है कि अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पेयो का दक्षिण चीन सागर पर दिया गया बयान जानबूझ कर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर पेश करता है और चीन तथा इलाके के अन्य देशों के शांति प्रयासों की अवमानना करता है. दूतावास ने अपनी वेबसाइट पर लिखा है, "अमेरिका इस विवाद में सीधे रूप से शामिल नहीं है. फिर भी वह इस मामले में दखल देता रहा है. अब वह स्थिरता का बहाना बना कर इस इलाके में तनाव को और बढ़ा रहा है." अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पेयो ने सोमवार को बयान जारी कर कहा था कि दक्षिण चीन सागर में चीन ने अपनी सीमा के बाहर जितने भी इलाके पर दावेदारी जताई है, अमेरिका उस सब को गैरकानूनी करार देता है.
अब तक अमेरिका यह कहता रहा है कि चीन और उसके पड़ोसी देशों के बीच सीमा विवाद को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता द्वारा सुलझाया जाना चाहिए. नानयिंग यूनिवर्सिटी के साउथ चाइना सी स्टडीज सेंटर के निदेशक झु फेंग का कहना है कि पॉम्पेयो का बयान अमेरिका की दक्षिण चीन सागर नीति में एक बड़ा बदलाव है. ऐसा पहली बार हुआ है जब अमेरिका ने चीन की पूरी दावेदारी को ही गैरकानूनी कह दिया है. झु फेंग का कहना है कि अमेरिका के खुल कर इस तरह के बयान देने के बाद चीन के पड़ोसी देशों को आक्रामक होने में प्रोत्साहन मिलेगा. वह बताते हैं, "अमेरिका दक्षिण चीन सागर की संप्रभुता पर टिप्पणी नहीं किया करता था क्योंकि इस मामले में वह खुद एक पक्ष नहीं है. लेकिन इस बार वह खुद जज या मध्यस्थ की भूमिका में आ गया है. इससे अस्थितरता और तनाव बढ़ेगा."
प्रोफेसर फेंग के अनुसार चीन को इस वक्त अमेरिका को तीखी प्रतिक्रया देने से बचना चाहिए, "ट्रंप अपने चुनाव के लिए चीन को सबसे अहम मुद्दा बना रहे हैं ताकि महामारी से जूझने में अपनी नाकामी को छिपा सकें और लोगों का ध्यान भटका सकें. मैं नहीं कह सकता कि वे चीन के मुद्दे को और कितना आगे ले कर जाएंगे."
कैसे अमेरिका को चुनौती देने वाली महाशक्ति बन गया चीन
सोवियत संघ के विघटन के बाद से अमेरिका अब तक दुनिया की अकेली महाशक्ति बना रहा. लेकिन अब चीन इस दबदबे को चुनौती दे रहा है. एक नजर बीते 20 साल में चीन के इस सफर पर.
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मील का पत्थर, 2008
2008 में जब दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था आर्थिक मंदी से खस्ताहाल हो रही थी, तभी चीन अपने यहां भव्य तरीके ओलंपिक खेलों का आयोजन कर रहा था. ओलंपिक के जरिए बीजिंग ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपने बलबूते क्या क्या कर सकता है.
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मंदी के बाद की दुनिया
आर्थिक मंदी के बाद चीन और भारत जैसे देशों से वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की उम्मीद की जाने लगी. चीन ने इस मौके को बखूबी भुनाया. उसके आर्थिक विकास और सरकारी बैंकों ने मंदी को संभाल लिया.
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ग्लोबल ब्रांड “मेड इन चाइना”
लोकतांत्रिक अधिकारों से चिढ़ने वाले चीन ने कई दशकों तक बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने में खूब संसाधन झोंके. इन योजनाओं की बदौलत बीजिंग ने खुद को दुनिया का प्रोडक्शन हाउस साबित कर दिया. प्रोडक्शन स्टैंडर्ड के नाम पर वह पश्चिमी उत्पादों को टक्कर देने लगा.
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मध्य वर्ग की ताकत
बीते दशकों में जहां, दुनिया के समृद्ध देशों में अमीरी और गरीबी के बीच खाई बढ़ती गई, वहीं चीन अपने मध्य वर्ग को लगातार बढ़ाता गया. अमीर होते नागरिकों ने चीन को ऐसा बाजार बना दिया जिसकी जरूरत दुनिया के हर देश को पड़ने लगी.
चीन के आर्थिक विकास का फायदा उठाने के लिए सारे देशों में होड़ सी छिड़ गई. अमेरिका, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और ब्रिटेन समेत तमाम अमीर देशों को चीन में अपने लिए संभावनाएं दिखने लगीं. वहीं चीन के लिए यह अपने राजनीतिक और आर्थिक प्रभाव को विश्वव्यापी बनाने का अच्छा मौका था.
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पश्चिम के दोहरे मापदंड
एक अरसे तक पश्चिमी देश मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों के लिए चीन की आलोचना करते रहे. लेकिन चीनी बाजार में उनकी कंपनियों के निवेश, चीन से आने वाली मांग और बीजिंग के दबाव ने इन आलोचनाओं को दबा दिया.
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शी का चाइनीज ड्रीम
आर्थिक रूप से बेहद ताकतवर हो चुके चीन से बाकी दुनिया को कोई परेशानी नहीं थी. लेकिन 2013 में शी जिनपिंग के चीन का राष्ट्रपति बनने के बाद नजारा बिल्कुल बदल गया. शी जिनपिंग ने पहली बार चीनी स्वप्न को साकार करने का आह्वान किया.
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शुरू हुई चीन से चुभन
आर्थिक विकास के कारण बेहद मजबूत हुई चीनी सेना अब तक अपनी सीमा के बाहर विवादों में उलझने से बचती थी. लेकिन शी के राष्ट्रपति बनने के बाद चीन ने सेना के जरिए अपने पड़ोसी देशों को आँखें दिखाना शुरू कर दिया. इसकी शुरुआत दक्षिण चीन सागर विवाद से हुई.
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लुक्का छिप्पी की रणनीति
एक तरफ शी और दूसरी तरफ अमेरिका में बराक ओबामा. इस दौरान प्रभुत्व को लेकर दोनों के विवाद खुलकर सामने नहीं आए. दक्षिण चीन सागर में सैन्य अड्डे को लेकर अमेरिकी नौसेना और चीन एक दूसरे चेतावनी देते रहे. लेकिन व्यापारिक सहयोग के कारण विवाद ज्यादा नहीं भड़के.
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कमजोर पड़ता अमेरिका
इराक और अफगानिस्तान युद्ध और फिर आर्थिक मंदी, अमेरिका आर्थिक रूप से कमजोर पड़ चुका था. चीन पर आर्थिक निर्भरता ने ओबामा प्रशासन के पैरों में बेड़ियों का काम किया. चीन के बढ़ते आक्रामक रुख के बावजूद वॉशिंगटन कई बार पैर पीछे खींचता दिखा.
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संघर्ष में पश्चिम और एकाग्र चीन
एक तरफ जहां चीन दक्षिण चीन सागर में अपना प्रभुत्व बढ़ा रहा था, वहीं यूरोप में रूस और यूरोपीय संघ बार बार टकरा रहे थे. 2014 में रूस ने क्रीमिया को अलग कर दिया. इसके बाद अमेरिका और उसके यूरोपीय साझेदार रूस के साथ उलझ गए. चीन इस दौरान अफ्रीका में अपना विस्तार करता गया.
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इस्लामिक स्टेट का उदय
2011-12 के अरब वसंत के कुछ साल बाद अरब देशों में इस्लामिक स्टेट नाम के नए आतंकवादी गुट का उदय हुआ. अरब जगत के राजनीतिक और सामाजिक संघर्ष ने पश्चिम को सैन्य और मानवीय मोर्चे पर उलझा दिया. पश्चिम को आईएस और रिफ्यूजी संकट से दो चार होना पड़ा.
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वन बेल्ट, वन रोड
2016 चीन ने वन बेल्ट वन रोड परियोजना शुरू की. जिन गरीब देशों को अपने आर्थिक विकास के लिए विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से कड़ी शर्तों के साथ कर्ज लेना पड़ता था, चीन ने उन्हें रिझाया. चीन ने लीज के बदले उन्हें अरबों डॉलर दिए और अपने विशेषज्ञ भी.
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हर जगह चीन ही चीन
चीन बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट सहारे अफ्रीका, दक्षिण अमेरका, पूर्वी एशिया और खाड़ी के देशों तक पहुचना चाहता है. इससे उसकी सीधी पहुंच पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक भी होगी और अफ्रीका में हिंद और अटलांटिक महासागर के तटों पर भी.
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सीन में ट्रंप की एंट्री
जनवरी 2017 में अरबपति कारोबारी डॉनल्ड ट्रंप ने अमेरिका के नए राष्ट्रपति का पद संभाला. दक्षिणपंथी झुकाव रखने वाले ट्रंप ने अमेरिका फर्स्ट का नारा दिया. ट्रंप ने लुक्का छिप्पी की रणनीति छोड़ते हुए सीधे चीन टकराने की नीति अपनाई. ट्रंप ने आते ही चीन के साथ कारोबारी युद्ध छेड़ दिया.
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पड़ोसी मुश्किल में
जिन जिन पड़ोसी देशों या स्वायत्त इलाकों से चीन का विवाद है, चीन ने वहाँ तक तेजी से सेना पहुंचाने के लिए पूरा ढांचा बैठा दिया. विएतनाम, ताइवान और जापान देशों के लिए वह दक्षिण चीन सागर में है. और भारत के लिए नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में.
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सहयोगियों में खट पट
चीन की बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए ट्रंप को अपने यूरोपीय सहयोगियों से मदद की उम्मीद थी, लेकिन रक्षा के नाम पर अमेरिका पर निर्भर यूरोप से ट्रंप को निराशा हाथ लगी. नाटो के फंड और कारोबारियों नीतियों को लेकर मतभेद बढ़ने लगे.
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दूर बसे साझेदार
अब वॉशिंगटन के पास चीन के खिलाफ भारत, ब्रेक्जिट के बाद का ब्रिटेन, जापान, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया और वियतनाम जैसे साझेदार हैं. अब अमेरिका और चीन इन देशों को लेकर एक दूसरे से टकराव की राह पर हैं.
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कोरोना का असर
चीन के वुहान शहर ने निकले कोरोना वायरस ने दुनिया भर में जान माल को भारी नुकसान पहुंचाया. कोरोना ने अर्थव्यवस्थाओं को भी चौपट कर दिया है. अब इसकी जिम्मेदारी को लेकर विवाद हो रहा है. यह विवाद जल्द थमने वाला नहीं है.
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चीन पर निर्भरता कम करने की शुरुआत
अमेरिका समेत कई देश यह जान चुके हैं कि चीन को शक्ति अपनी अर्थव्यवस्था से मिल रही है. इसके साथ ही कोरोना वायरस ने दिखा दिया है कि चीन ऐसी निर्भरता के क्या परिणाम हो सकते हैं. अब कई देश प्रोडक्शन के मामले में दूसरे पर निर्भरता कम करने की राह पर हैं.
वहीं जापान ने भी चीन पर वार करते हुए कहा है कि चीन महामारी के दौर में "बिना पारदर्शिता" के दक्षिण चीन सागर में अपने इलाके का विस्तार करने की कोशिश कर रहा है और इसके लिए उसने अपना रक्षा बजट भी बढ़ा लिया है. जापान के रक्षा मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है, "दक्षिण चीन सागर में चीन सैन्यीकरण का काम आगे बढ़ा रहा है, वह समुद्री क्षेत्र में अपनी गतिविधियों का विस्तार कर रहा है और स्टेटस क्वो को बदलने की दिशा में एकतरफा प्रयास जारी रख रहा है." जापान के रक्षा मंत्रालय ने यह रिपोर्ट अमेरिका द्वारा चीनी गतिविधियों को गैरकानूनी बताने के ठीक एक दिन बाद प्रकाशित की है.
चीन लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपनी दावेदारी बताता है. खनिज पदार्थों के लिहाज से यह इलाका अहम है और व्यापार के लिहाज से भी. चीन के अलावा आसपास के देश फिलीपींस, ब्रुनेई और ताइवान भी इस इलाके के अलग अलग हिस्सों पर अपना हक जताते हैं.
चीन के पास अपना एक विमानवाही पोत है. दूसरे का निर्माण चल रहा है. बीजिंग की नौसेना के पास 53 पनडुब्बियां, 78 बड़े युद्धपोत, 27 छोटे युद्धपोत, 180 गश्ती नावें, 52 एयरक्राफ्ट और 523 कोस्ट गार्ड नावें हैं. नौसैनिकों की संख्या 2,35,000 है.
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इंडोनेशिया
इलाके में चीन के बाद इंडोनेशिया सबसे बड़ी नौसैनिक शक्ति है. उसके बेड़े में दो पनडुब्बियां, 12 बड़े विध्वंसक पोत, 27 छोटे युद्धपोत, 19 टैंक लैंडिंग पोत और 43 कोस्ट गार्ड वेसल्स हैं. लेकिन यह भी सच है कि इंडोनेशियाई नौसेना का साजो सामान इलाके में सबसे पुराना है.
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सिंगापुर
सिंगापुर की नौसेना के पास 3,000 सैनिक हैं. देश के पास चार पनडुब्बियां, 6 बड़े युद्धपोत, 6 छोटे युद्धपोत, 29 गश्ती नावें और 102 तटरक्षक नावें हैं.
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थाइलैंड
विवाद में थाइलैंड सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं, लेकिन भौगोलिक नक्शे के चलते वह भी इस विवाद में शामिल हो जाता है. 44,000 सैनिकों वाली थाइलैंड की नौसेना के पास एक हैलीकॉप्टर कैरियर है. 9 बड़े युद्धपोत है. सात छोटे युद्धपोत है. इसके अलावा 77 गश्ती नावें और 94 कोस्ट गार्ड वेसल्स हैं.
तस्वीर: Ponchai Kittiwongsakul/AFP/Getty Images
फिलीपींस
24,000 नौसैनिकों वाले फिलीपींस को इस विवाद का सबसे कमजोर खिलाड़ी माना जाता है. देश के पास चार बड़े विध्वंसक युद्धपोत हैं. 10 पुराने और छोटे युद्धपोत हैं. 66 पेट्रोलिंग नावों के साथ फिलीपींस के पास 72 कोस्ट गार्ड शिप हैं.
तस्वीर: Reuters/Maritime Staff Office of the Defense Ministry of Japan
वियतनाम
वियतनाम बीते कुछ सालों से अपनी नौसेना को मजबूत कर रहा है. 40,000 सैनिकों वाली वियतनामी नौसेना के पास 7 रूसी पनडुब्बियां हैं. 2 विध्वंसक और सात युद्धपोत हैं. देश के पास 61 पेट्रोलिंग बोट्स और 78 कोस्ट गार्ड शिप भी हैं.
तस्वीर: picture-alliance/Russian Look
मलेशिया
देश के पास दो पनडुब्बियां, 10 विध्वंसक, चार जर्मन मेड युद्धपोत 33 पेट्रोलिंग बोट्स और 317 कोस्ट गार्ड शिप हैं. मलेशिया की नौसेना में 14,000 सैनिक हैं.