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दखलंदाजी और लोकतंत्र में आपाधापी

६ जून २०१३

काहिरा में जर्मन संस्थान कॉनराड आडेनाउअर फाउंडेशन के दो कर्मचारियों को जेल भेजने के आदेश दिए गए हैं. राजनीतिक और मीडिया मुद्दों पर काम कर रहा फाउंडेशन मिस्र के नेताओं के लिए विदेशी दखलंदाजी से कम नहीं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

सभी पार्टियों ने एकमत से काहिरा की अदालत के फैसले के प्रति विरोध जताया है कि कोनराड आडेनाउअर फाउंडेशन के दो कर्मचारियों को दो और पांच साल की कैद सुनाई गई है. दूसरे अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठनों को भी सजा मिली है. जर्मनी की चांसलर अंगेला मैर्केल ने इस फैसले को बड़ा झटका बताया है. सरकार के प्रवक्ता श्टेफान साइबर्ट ने बताया कि अदालती फैसला जर्मन मिस्र संबंधों के लिए बड़ा दबाव है.

इससे पहले जर्मन विदेश मंत्री गिडो वेस्टरवेले ने कहा," काहिरा में कोनराड आडेनाउअर प्रतिष्ठान के कर्मचारियों को मिली सजा और कार्यालय बंद करने के फैसले से हम क्षुब्ध हैं और बहुत अशांत भी." वेस्टरवेले का कहना है कि इससे नागरिक समाज को हानि पहुंचेगी, जो मिस्र में लोकतंत्र का बड़ा हिस्सा है. वेस्टरवेले ने कहा कि उनका दफ्तर फाउंडेशन की मदद करेगा ताकि यह फैसला वापस हो सके.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में नेता मिस्र की अदालत के फैसले से काफी नाराज हैं. क्रिस्टियन सोशल यूनियन के राजनीतिज्ञ पेटर गाउवाइलर का मानना है कि जर्मनी को मिस्र के साथ सारे राजनयिक रिश्ते तब तक तोड़ देने चाहिए जब तक यह फैसला वापस नहीं लिया जाए. उनका मानना है कि यह फैसला देश के ऊच्च वर्गों ने लिया है और उन्हें बताया जाना चाहिए कि अगर वहां जर्मनी के नागरिकों को गिरफ्तार किया जा रहा है तो मिस्र को आर्थिक मदद भी नहीं मिलनी चाहिए.

लेकिन अरब जगत पर शोध कर रहे गुंटर मायर कहते हैं कि फैसले में कोई खास बात नहीं है. अदालत ने मुबारक के जमाने का कानून इस्तेमाल किया है और इसके मुताबिक जो अंतरराष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन मिस्र में पंजीकृत नहीं हैं उन्हें देश छोड़ना होगा. कॉनराड आडेनाउअर फाउंडेशन ने ऐसा नहीं किया क्योंकि मुबारक के जमाने में भी इस कानून को सही तरह से लागू नहीं किया जा रहा था.

लेकिन मायर यह भी मानते हैं कि इस फैसले से मिस्र एक संदेश भेजना चाहता है, "इसके पीछे का मकसद है कि मिस्र की सरकार नहीं चाहती कि राजनीतिक और मानवाधिकार से संबंधित सवालों में अंतरराष्ट्रीय दखलंदाजी हो."मायर का मानना है कि फैसले का राजनीतिक असर जर्मनी के बाहर भी हुआ है. अमेरिका भी इस हालत से नाराज है. अमेरिका आर्थिक मदद देता है और यह उनके मानवाधिकार संगठनों के साथ भी होता है.

जर्मनी में विदेशी राजनीति पर काम कर रहे संगठन डीजीएपी के क्रिस्टियान आखराइनर कहते हैं कि इस फैसले का असर मिस्र के अंदर भी होगा. इसका मतलब है कि मुबारक के वक्त में और अब भी इस्लामी सरकार लोगों की भागीदारी में कम दिलचस्पी ले रही है. "नागरिक समाज विपक्ष का हिस्सा है. और दोनों अपनी ताकत इस बात से सुरक्षित करना चाहते हैं कि समाज उनकी बहुत आलोचना न करे."

लेकिन आखराइनर का यह भी मानना है कि मिस्र के समाज में पहले से ही यह प्रवृत्ति रही है कि वह बाहर से दखलंदाजी को नहीं सहता. सरकार ही नहीं, बल्कि विपक्ष और कई गैर सरकारी संगठन पश्चिम के प्रभाव से दूर रहने की कोशिश करते हैं क्योंकि मतदाता इससे नाराज हो सकते हैं. एक संगठन की कोशिश होनी चाहिए, कि चाहे वह एक राजनीतिक संगठन हो या कुछ और, वह ज्यादा से ज्यादा निष्पक्ष रहे. "एक फाउंडेशन की हैसियत से आप कोशिश कर सकते हैं कि समाज में बहस का अवसर प्रदान करें."

लेकिन फैसला अब भी पूरी तरह अमल में नहीं लाया गया है. अपील अदालत ने कई बार राजनीतिक फैसलों को खारिज किया है. विश्लेषक यह भी मानते हैं कि इससे निजी कंपनियां भी डरेंगी. क्योंकि अगर किसी कंपनी के मालिक को लगे कि उसके कर्मचारी जेल जा सकते हैं तो वह मिस्र जाने से पहले सोचेगा.

रिपोर्टः केर्स्टन क्निप/एमजी

संपादनः आभा मोंढे

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