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दफ्तर के काम से अमेरिकी जनता परेशान

१० सितम्बर २०१०

सुबह हड़बड़ी में नाश्ता करना और फिर दफ्तर के लिए दौड़ लगाना. एक अध्ययन में सामने आया है कि ज्यादातर अमेरिकी ऐसा करते हुए छुट्टियों के लिए रोते रहते हैं और ऐन टाइम पर अपनी छुट्टियां लेना भूल जाते हैं.

तस्वीर: picture-alliance/ dpa

1,500 अमेरिकी कर्मचारियों पर किए गए इस अध्ययन से पता चला है कि ज्यादातर लोग सनक की हद तक काम में डूबे रहते हैं. इसका सीधा असर उनकी मानसिक स्थिति, पारिवारिक माहौल और छुट्टियों पर पड़ता है. अध्ययन में पता चला है कि आधे से ज्यादा अमेरिकी दफ्तर में ऐसे फंसे रहते हैं कि उनकी कई छुट्टियां बर्बाद चली जाती हैं.

अध्ययन करने वाली संस्था स्टडी लॉजिक के उपाध्यक्ष सैमुएल नाहमियास कहते हैं, ''यह कोई अच्छी तस्वीर नहीं है. लोग छुट्टियों का मजा लेना भूल रहे हैं. वह चुन चुनकर छुट्टियां लेना चाहते हैं लेकिन आखिरकार उनकी छुट्टियां बर्बाद हो जाती हैं.'' स्टडी लॉजिक के मुताबिक यूरोप के लोग इस मामले में बिंदास हैं. वे साल में करीब चार हफ्ते की छुट्टी तो ले ही लेते हैं.

तस्वीर: Bilderbox

इसके उलट ज्यादातर अमेरिकी साल भर में सिर्फ छह से 10 दिन की छुट्टी ले पाते हैं. 20 फीसदी कर्मचारी तो छुट्टी के नाम पर सिर्फ तीन दिन खर्च कर पाते हैं. इस साल ही 64 फीसदी लोगों ने अपनी छुट्टियां या तो रद्द की या टाल दीं. इनमें से 33 फीसदी लोगों ने कहा कि काम की वजह से उन्हें छुट्टियां कुर्बान करनी पड़ीं.

नाहमियास कहते हैं कि इसका असर कर्मचारियों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर दिखाई पड़ता है. कम छुट्टियां लेने वाले कई लोग चिड़चिड़े हो जाते हैं, उनके काम में नयापन नहीं आ पाता है. उनसे गलतियां भी होने लगती हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

अध्ययन में सामने आया है कि कम छुट्टियां लेने वाले लोगों की पारिवारिक जिंदगी भी अशांति के थपेड़ों से जूझती रहती है. कई लोगों ने कहा कि वह घर और दफ्तर के बजाए सुनसान जगह पर अकेले चले जाने की ख्वाहिश रखते हैं.

हैरानी की बात है कि कम छुट्टियां लेने वाले लोग ही लंबी छुट्टी पर जाने के लिए सबसे ज्यादा बेचैन रहते हैं. इसके पीछे बेरोजगारी को भी एक बड़ा कारण माना गया है. अमेरिका में इस वक्त बेरोजगारी की दर 9.6 फीसदी है. ऐसे में दफ्तर में जमे रहने वाले लोगों को लगता है कि ज्यादा छुट्टी लेने पर कहीं उनकी नौकरी न चली जाए.

रिपोर्ट: एजेंसियां/ओ सिंह

संपादन: वी कु्मार

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