दबाव में दुकानें
१३ मार्च २०१३जर्मन पुस्तक विक्रेता संघ के महानिदेशक अलेक्जांडर स्कीपिस का कहना है कि नए साल की शुरुआत कारोबार के हिसाब से अच्छे तरीके से हुई है. पिछले साल लोगों ने 9.6 अरब यूरो की किताबें खरीदी थीं और इस साल के पहले महीनों में पिछले साल के मुकाबले बिक्री करीब पौने दो प्रतिशत बढ़ी है. पिछले नौ साल से किताबों का कारोबार अच्छा चल रहा है, फिर भी भावी चुनौती से निबटने पर ध्यान दिया जा रहा है.
जर्मनी में किताबों के कारोबार की अच्छी संरचना है और लोगों में पढ़ने की आदत न सिर्फ बनी हुई है बल्कि बढ़ भी रही है. इस साल खासकर पर्यटन, कहानियां और सलाह वाली किताबों की मांग ज्यादा है. पर्यटन संबंधी किताबों की बिक्री साढ़े छह प्रतिशत बढ़ी है तो सलाह संबंधी किताबों की बिक्री में चार प्रतिशत की तेजी आई है. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक किताबों की बिक्री भी धीरे धीरे बढ़ रही है. 2011 में कुल बिक्री में उसका हिस्सा सिर्फ एक प्रतिशत था जो 2012 में बढ़कर दो प्रतिशत हो गया. आंकड़े चौंकाने वाले हैं. 2012 में 16 लाख लोगों के पास ई-बुक पढ़ने की मशीन थी. एक साल पहले उनकी संख्या सिर्फ चार लाख थी.
लेकिन किताब की दुकानों की हालत उतनी अच्छी नहीं है. छोटी दुकानों को तो मुश्किल हो ही रही है, बड़े चेन को भी अपनी शाखाएं बंद करनी पड़ रही है. लोग किताबें पढ़ तो रहे हैं लेकिन उसे इंटरनेट में खरीद रहे हैं. सिर्फ एक चौथाई दुकानदार अच्छे कारोबार की उम्मीद कर रहे हैं, आधे से ज्यादा को सिर्फ औसत कारोबार की उम्मीद है. लोग फिर से दुकानों में आएं और वहां किताबें खरीदें, इसके लिए पुस्तक विक्रेता संघ ने एक अभियान शुरू किया है जिसका नाम "सावधान, किताब" रखा गया है. लक्ष्य है लोगों को किताब की ओर आकर्षित करना और पढ़ने के लिए उनमें फिर से उत्साह जगाना.
यह अभियान देश भर में फैली किताब बेचने वाली 5000 रिटेल दुकानों, होलसेलरों और प्रकाशनगृहों की मदद से चलाया जाएगा. इस अभियान में आम लोग भी हिस्सा ले पाएंगे. वे खुद पोस्टर बनाकर इंटरनेट में डाल सकते हैं या फिल्म बनाकर उसे यूट्यूब पर डाल सकते हैं. पुस्तक विक्रेता संघ का इरादा एक तरह का आंदोलन शुरू करने का है जिसके केंद्र में किताब की दुकानें होंगी.
जर्मन प्रकाशन भी परिवर्तन के दौर से गुजर रहे हैं. लेखक होने के लिए अब प्रकाशकों की जरूरत नहीं रह गई है. इंटरनेट के आने के बाद खुद अपनी किताबें प्रकाशित करने वालों की तादाद बढ़ रही है. लाइपजिग में अपने किताबों की खुद मार्केटिंग करने वाले लेखकों के लिए पुरस्कार का गठन किया गया है. पुरस्कार विजेता इना कोएर्नर ने अमेजोन ऑनलाइन पोर्टल के जरिए 2.99 यूरो के हिसाब से 70,000 प्रतियां बेची हैं. अमेरिका में अमेजोन लेखकों को प्रकाशन की पूरी सुविधा दे रहा है और मुनाफे में भागीदारी भी दे रहा है. यह प्रकाशनगृहों से मिलने वाले रॉयल्टी से कहीं ज्यादा है.
इससे ग्राहकों को सस्ती किताबें मिल रही हैं और लेखकों को ज्यादा रॉयल्टी लेकिन एक स्थापित बिजनेस मॉडल खतरे में है, जिसने कई सौ सालों तक साहित्यिक परीक्षण को संभव बनाया है. ज्यादा बिकने वाली किताबों की कमाई से प्रकाशनगृहों ने अच्छे साहित्य को भी बढ़ावा दिया है. सस्ता किताब खरीदने की खुशी इस चिंता के साथ जुड़ी है कि आधुनिक गोएथे, काफ्का या शरदचंद्र के लिए किताबों की नई दुनिया में कोई जगह नहीं रहेगी.
17 मार्च तक चलने वाला लाइपजिग का पुस्तक मेला फ्रैंकफर्ट के बाद जर्मनी का दूसरा विख्यात पुस्तक मेला है. पिछले साल की ही तरह इस साल भी यहां 43 देशों के 2070 प्रदर्शक अपनी किताबों का प्रदर्शन कर रहे हैं. मंडपों पर एक लाख टाइटल प्रदर्शित की जा रही हैं जिनमें 20,000 नई रचनाएँ हैं. लोकप्रिय पुस्तक मेले के दौरान शहर में "लाइपजिग पढ़ता है" के नाम से पुस्तक समारोह का भी आयोजन किया जाता है. इसके दौरान लेखक और प्रसिद्ध हस्तियां अपनी रचनाओं का पाठ करते हैं. मेले के दौरान 365 जगहों पर 2,800 सभाएं होंगी. इस साल करीब 3,000 लेखक मेले में पहुंच रहे हैं. प्रमुख भारतीय लेखक भी लाइपजिग पुस्तक मेले में हिस्सा ले चुके हैं.
एमजे/एमजी (डीपीए, रॉयटर्स)