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दमनकारी सरकारें नहीं हो सकतीं यूरोप की साझेदार

राइनर सोलिच/आईबी३० अक्टूबर २०१५

सऊदी अरब के ब्लॉगर रइफ बदावी को साखारोव पुरस्कार से सम्मानित कर, यूरोपीय संसद ने सही संदेश दिया है. डॉयचे वेले के राइनर सोलिच का कहना है कि दमनकारी सरकारें मित्र नहीं हो सकतीं.

Berlin Demonstration für die Freilassung Raif Badawis
तस्वीर: imago/Mauersberger

रइफ बदावी इस पुरस्कार के हकदार हैं. 31 वर्षीय सऊदी ब्लॉगर बदावी उन्हीं सिद्धांतों को दर्शाते हैं, जो यूरोपीय संसद के साखारोव पुरस्कार की नींव रखते हैं. यह पुरस्कार उन लोगों को दिया जाता है जो कड़ी मुश्किलों के बावजूद मानवाधिकार और अभिव्यक्ति की आजादी के लिए खड़े होते हैं और कई बार ऐसा करने पर बड़ा जोखिम भी उठाते हैं. बदावी पिछले तीन साल से कैद में हैं, क्योंकि उन्होंने सऊदी सरकार और उसकी इस्लाम की दकियानूसी व्याख्या की आलोचना की और इसके लिए उन्हें 1,000 कोड़ों की सजा सुनाई गयी. अब तक उन्हें 50 कोड़े खाने पड़े हैं.

डॉयचे वेले के राइनर सोलिचतस्वीर: DW/P. Henriksen

इस पुरस्कार के साथ यूरोपीय संसद यूरोप और उसके मित्र देशों को सही संदेश पहुंचा रही है कि दमनकारी सरकारों को कभी समर्थन नहीं दिया जाएगा, तब भी अगर उन्हें लंबे समय से "साझेदार" के रूप में देखा जा रहा हो, जैसा कि यहां सऊदी के साथ. यह बात सच है कि सऊदी अरब के बिना सीरिया और यमन में शांति बहाल नहीं की जा सकती. लेकिन यही बात सऊदी अरब के सबसे बड़े दुश्मन ईरान के बारे में भी कही जा सकती है. ईरान परमाणु समझौता तो कर चुका है लेकिन फिर भी वह अब तक पश्चिम के "साझेदार" की हैसियत तक नहीं पहुंच सका है.

सऊदी अरब का फिलहाल जो हाल है, उसे देखते हुए तो लगता है कि भविष्य में वह खुद ही खतरा बन सकता है. सऊदी में राजनीतिक और आर्थिक बदलाव लाने के लिए हिम्मत की जरूरत है और अब तक शाह सलमान ने ऐसे किसी साहस का परिचय नहीं दिया है. जाहिर है, उनमें ना तो इच्छाशक्ति है और शायद ना ही क्षमता. सऊदी की राजनीतिक व्यवस्था में कट्टरपंथी वहाबी इस्लाम का बहुत ज्यादा प्रभाव है. वहां अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बिलकुल भी नहीं है, ना ही व्यक्तिगत आजादी है और ना मानवाधिकारों का सम्मान. कई मायनों में तो उनकी न्याय प्रणाली वैसे ही काम करती है जैसे कि इस्लामिक स्टेट. देश में पूरी तरह दमन का माहौल है.

अरब दुनिया का कड़वा और दुखद सच यह है कि जब बदावी जैसे लोग आवाज उठाते हैं, तो उनके समर्थन में कोई भी सामने नहीं आता. आजादी, लोकतंत्र और आत्म सम्मान के जिन सिद्धांतों पर अरब वसंत की नींव रखी गयी थी, वे सऊदी अरब में देखने को नहीं मिलते. ऐसे में बदावी जैसे बहादुर लोगों को पश्चिम का मोहरा करार दिया जाता है.

यूरोप का बदावी को समर्थन अरब दुनिया को एक सही और जरूरी संदेश भेजता है. हिम्मत और हौसले से ही मध्य पूर्व में नफरत, हिंसा और संकीर्ण सोच को खत्म किया जा सकता है. लोकतंत्र और सहिष्णुता पश्चिमी या ईसाई समाज के मूल्य नहीं हैं, बल्कि मुस्लिम समाज में भी उनकी उतनी ही जगह होनी चाहिए.

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