भारत में रेस्पिरेटरी एलर्जी का सबसे बड़ा कारण है धूल और देश में महिलाओं की तुलना में एलर्जी से पीड़ित पुरुषों की संख्या अधिक है. इसके अलावा एलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है.
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यह विश्लेषण 2013 से 2017 के दौरान 5 साल की अवधि में किए परीक्षणों पर आधारित है, जिसमें 63,000 से अधिक मरीजों में एलर्जी की जांच के लिए ब्लड आईजीई लेवल का परीक्षण किया गया. विश्लेषण में हालांकि एलर्जी रिएक्टिविटी के लिए जोनल वेरिएशन सामने नहीं आए हैं. इसमें पाया गया है कि 30 साल से कम आयु वर्ग के युवाओं में एलर्जन रिएक्टिविटी ज्यादा है. अध्ययन का एक रोचक परिणाम यह भी है कि देश के विभिन्न हिस्सों में एलर्जी के 60 फीसदी से अधिक मामलों का कारण कॉकरोच है.
एलर्जिक अस्थमा पर ध्यान
यह जांच एलर्जिक अस्थमा के लिए की गई है, जो कि अस्थमा का सबसे आम कारण है. इन परिणामों पर अपने विचार अभिव्यक्त करते हुए एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के सलाहकार डॉक्टर बीआर दास ने कहा, "एलर्जिक रिएक्शन मध्यम से गंभीर प्रवृत्ति के हो सकते हैं. यह जरूरी है कि लोग एलर्जी का कारण जानें, ताकि इनसे अपने आप को बचा सकें. पिछले दो दशकों के दौरान एलर्जी के लिए लैब जांच प्रक्रिया में जबरदस्त सुधार आया है."
उन्होंने आगे कहा, "आजकल साधारण सी रक्त जांच के द्वारा कई एलर्जन्स का पता चल जाता है. हम जानते हैं कि ये कारक एलर्जी के लक्षणों को और गंभीर बना देते हैं, ऐसे में एलर्जी की जांच बेहद फायदेमंद हो सकती है. हमारे विश्लेषण के लिए देश भर की प्रयोगशालाओं से आंकड़े जुटाए गए और इन आंकड़ों के माध्यम से हमने एलर्जी के कारणों को पहचानने की कोशिश की. हालांकि धूल में छिपे कण एलर्जिक अस्थमा का सबसे आम कारण पाए गए हैं."
दूषित हवा में सांस लेने से होती हैं ये बीमारियां
भारत के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर खतरे के लेवल से बहुत ऊपर है. हाल में दिल्ली एक धूम्रपान ना करने वाली लड़की को कैंसर सामने आया था. प्रदूषण हमें सीधे तौर पर तो नहीं लेकिन बीमार कर के जरूर मारता है.
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दमा
दूषित हवा से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है और अगर यह तकलीफ दमे का रूप ले ले, तो जानलेवा भी साबित हो सकती है. खास कर बच्चों पर इसका बेहद बुरा असर होता है.
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खराब फेफड़े
सिगरेट पीना फेफड़ों की लिए हानिकारिक माना जाता है लेकिन अगर हवा ही दूषित हो, तो क्या किया जाए? दिल्ली के हाल ऐसे रहे हैं कि एक दिन वहां सांस लेना 44 सिगरेट पीने के बराबर था.
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निमोनिया
निमोनिया का ताल्लुक भी फेफड़ों से ही है. दूषित हवा के साथ निमोनिया का बैक्टीरिया शरीर के अंदर चला जाता है और तेज बुखार हो जाता है.
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ब्रोंकाइटिस
हवा के साफ ना होने पर थोड़ी बहुत खांसी और आंखों में जलन आम सी बात हो गयी है लेकिन अगर यह ब्रोंकाइटिस का रूप ले ले, तो इससे जान पर खतरा हो सकता है.
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कमजोर दिल
दूषित हवा दिल के दौरे और खून की धमनियों को ब्लॉक करने के लिए भी जिम्मेदार है. आप खाने का जितना भी परहेज कर लें लेकिन अगर हवा ही साफ नहीं होगी, तो बीमारी से बचना मुमकिन नहीं है.
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खून का कैंसर
पेट्रोल और डीजल का धुआं सांस के साथ हमारे शरीर में जाता है और खून में मिल जाता है. इससे खून के कैंसर का खतरा बन जाता है.
यकृत यानि लिवर भी दूषित हवा के चलते ठीक से काम करना बंद कर देता है. इसमें छोटे छोटे ट्यूमर बन जाते हैं, जो जानलेवा होते हैं.
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फेफड़ों का कैंसर
प्रदूषण के कारण होने वाला यह सबसे आम किस्म का कैंसर है. भारत, चीन और पाकिस्तान में दूषित हवा के कारण फेफड़ों के कैंसर के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है.
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ऑटिज्म
रिसर्च दिखाती है कि गर्भावस्था के दौरान दूषित हवा में सांस लेने से गर्भ में ही बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है और नवजात ऑटिस्टिक हो सकता है.
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वक्त से पहले मौत
आंकड़े बताते हैं कि भारत में सालाना दस लाख से ज्यादा लोगों की जान प्रदूषित हवा में सांस लेने के कारण जा रही है. वक्त से पहले हो रही इन मौतों को रोका जा सकता है.
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क्यों होती है एलर्जी
एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के मेंटर डॉक्टर अविनाश फड़के ने इस बारे में कहा, "बच्चों में अस्थमा के 90 फीसदी तथा व्यस्कों में 50 फीसदी मामलों का कारण एलर्जिक रिएक्शन होता है. यह मूल रूप से एलर्जी के कारणों जैसे धूल, पराग, घास, कीड़े, घरेलू जानवरों के रोंए आदि के लिए शरीर की प्रतिक्रिया होती है."
उन्होंने आगे बताया, "यहां तक कि कई बार खाद्य पदार्थ भी एलर्जी का कारण हो सकते हैं. वास्तव में ऐसा इसलिए होता है कि शरीर इन हानिरहित पदार्थों को अपने लिए हानिकारक मान लेता है और शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली आईजीई वर्ग के एंटीबॉडी बनाने लगती हैं. साथ ही शरीर में हिस्टामाइन जैसे रसायन भी बनने लगते हैं. यह नाक में कंजेशन, नाक बहना, आंखों में खुजली और त्वचा पर लाल दाने तथा कुछ लोगों में अस्थमा का कारण बन जाता है."
रोकथाम इलाज से बेहतर
हाल ही में हुए एक अध्ययन 'इंडियन स्टडी ऑन एपीडेमोलॉजी ऑफ अस्थमा, रेस्पिरेटरी सिंपटंस एंड क्रोनिक ब्रोंकाइटिस' के अनुसार भारत में अस्थमा से पीड़ित 1.8 करोड़ लोगों में से 2.05 फीसदी लोगों की उम्र 15 वर्ष से कम है.
एलर्जन डायग्नॉस्टिक्स के महत्व पर जोर देते हुए एसआरएल डायग्नॉस्टिक्स के मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरिंदम हालदार ने कहा, "हम सभी जानते हैं कि हमारे शहरों में प्रदूषण के बढ़ते स्तर के कारण सांस की बीमारियां बढ़ रही हैं. अध्ययनों से साफ हो गया है कि वायु प्रदूषण अस्थमा के लक्षणों को और गंभीर बना देता है. ऐसे में जरूरी है कि वे मरीज जो एलर्जी के लक्षणों से जूझ रहे हैं, तुरंत एलर्जन की जांच करा लें. रोकथाम इलाज से बेहतर है."
आईएएनएस/आईबी
कहीं रोटी और पराठा ही तो आपको बीमार नहीं कर रहा?
इंसान सदियों से रोटी खाता आ रहा है, इसलिए यह सोचना भी मुश्किल है कि किसी को रोटी से एलर्जी हो सकती है. बहुत से लोग गेहूं में मिलने वाले प्रोटीन ग्लूटेन को पचा नहीं सकते. जानिए ग्लूटेन एलर्जी के लक्षणों के बारे में.
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पाचन में दिक्कत
किसी को अक्सर कब्ज रहती है, तो किसी को दस्त. बहुत से लोग गैस की शिकायत करते हैं, कुछ को एसिडिटी की समस्या रहती है. अगर आपके साथ भी ऐसा है, तो 3-4 हफ्ते के लिए गेहूं वाले उत्पाद खाना बंद करें और देखें कि क्या कोई फर्क पड़ता है. अगर आपको बदलाव महसूस होता है, तो यह ग्लूटेन एलर्जी का संकेत है.
अगर आप लंबे समय से कोशिश कर रहे हैं लेकिन गर्भधारण नहीं हो रहा है, तो इसके पीछे भी ग्लूटेन एलर्जी का हाथ हो सकता है. केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी इसका उतना ही असर देखा गया है.
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लाल चकत्ते
ऐसा किसी भी तरह की एलर्जी में हो सकता है. त्वचा का लाल होना पहला संकेत होता है कि शरीर में कुछ ऐसा गया है, जिसे वह स्वीकार नहीं रहा. चकत्ते होने पर पहले ठीक से सोचें कि आपके खानपान में हाल फिलहाल में क्या बदलाव हुए हैं. फिर उस चीज को कुछ दिनों के लिए ना खाएं और देखें कि इससे फर्क पड़ता है या नहीं.
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बातें भूलना
अगर आपको लगता है कि आप भुलक्कड़ होते चले जा रहे हैं, बात बात पर असमंजस में पड़ जाते हैं, आपके लिए कहीं भी ज्यादा देर तक ध्यान लगाना मुश्किल हो रहा है, तो जरूरी है कि आप डॉक्टर के पास जाएं. केवल भुलक्कड़ होना ग्लूटेन एलर्जी का संकेत नहीं है लेकिन इसे टेस्ट कराने की एक वजह जरूर है.
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हाथों पैरों का सो जाना
यह एक आम समस्या है और डायबटीज के मरीजों में भी काफी देखने को मिलती है लेकिन यदि बाकी के संकेतों के साथ साथ आपके साथ ऐसा भी हो रहा है, तो इस ओर ध्यान दें. जौं, बाजरा और कुट्टू के आटे में ग्लूटेन नहीं होता. इन विकल्पों को भी आजमा कर देखें.
तस्वीर: Colourbox/N. Sangkeaw
सिरदर्द
ग्लूटेन एलर्जी वाले अधिकतर लोग सिरदर्द और माइग्रेन जैसी समस्याओं से परेशान रहते हैं. हर तरह के इलाज करने के बाद भी अगर सिरदर्द ठीक नहीं हो रहा है, तो बहुत मुमकिन है कि आपकी खाने की आदतें इसके लिए जिम्मेदार हैं. कुछ दिन रोटी, ब्रेड इत्यादि का सेवन छोड़ कर देखें और डॉक्टर को इस बारे में बताएं.
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जोड़ों में दर्द
उंगलियों, घुटनों और कूल्हों में दर्द और जोड़ों में सूजन भी ग्लूटेन एलर्जी के कारण होती है. लंबे समय से जोड़ों के दर्द की समस्या हो, तो डॉक्टर से सलाह ले कर ग्लूटेन फ्री डाइट अपना कर देखें. शायद कुछ आराम मिल सके.
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थकावट
अगर ठीक ठाक खाना खाने के बाद भी आपको चक्कर आते हैं, सिर भारी रहता है और आप थका हुआ सा महसूस करते हैं, तो यह भी ग्लूटेन एलर्जी की ओर इशारा करता है. अपनी जांच कराएं. अगर ब्लड प्रेशर या खून की कमी इसका कारण नहीं है, तो ग्लूटेन एलर्जी की जांच की ओर बढ़ें.
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ध्यान न लगना
खास कर बच्चों में यह देखा जाता है कि वे क्लास में ध्यान नहीं लगा पाते. इसे एडीएचडी यानि अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिविटी डिसऑर्डर कहा जाता है. बचपन में ही ग्लूटेन एलर्जी का पता लगना जरूरी भी है ताकि एक स्वस्थ जीवन व्यतीत किया जा सके.
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डिप्रेशन
अवसाद के कई कारण हो सकते हैं. लेकिन अगर खाना इसे बिगाड़ रहा है, तो जरूरी है कि इससे निजात पाया जाए. अगर आप इस सूची में दिए गए 4-5 लक्षणों से प्रभावित हैं, तो डॉक्टर से सलाह लें.