हिंदुस्तान की नियति ने 26 मई 2014 को एक ऐसे शख्स का साक्षात्कार किया था जिसके उत्थान ने लोकतंत्र की जुबान पर पट्टी बांध दी है. अजीब संयोग है कि जो भी आशंकाएं प्रकट की जा रही थीं वो समय के साथ सच साबित होती जा रही हैं.
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इससे छह दिन पहले 20 मई को जब भारत के मनोनीत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद की सीढ़ियों पर सिर झुकाकर उस महान परंपरा को प्रणाम किया था जिसकी बुनियाद गांधी और नेहरू ने रखी थी तो थोड़ी उम्मीद जगी थी. ये उम्मीद सिर्फ इस बात के लिए थी कि मोदी के लिए जो कहा जा रहा है उसे वे आगे चलकर गलत साबित करेंगे. इस उम्मीद को थोड़ी और ताकत उनके उन भाषणों से भी मिली जिसमें वे अक्सर कहा करते हैं कि सवा सौ करोड़ देशवासियों को साथ लेकर चलना है, कि सामान्य मानव के जीवन में बदलाव लाना है, कि अब सबका साथ सबका विकास होगा. लेकिन अफसोस कि उम्मीद का पौधा बड़ा होने से पहले ही मुरझा गया. उम्मीद का पौधा थपेड़े पर थपेड़े खाता रहा और मोदी बड़ी चतुराई से, पैसा खर्चा करके बनाई गई अपनी ही ‘विकास' पुरुष की छवि से जड़बद्ध होते रहे.
खतरे में लोकतंत्र?
भारत में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद लोकतांत्रिक संस्थाओं के कमजोर होने की शिकायतें होती रही हैं. अब बीजेपी नेता आडवाणी ने कहा है कि इमरजेंसी जैसी हालत पैदा होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता.
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मन की बात?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हिंदू संगठन आरएसएस के प्रचारक रहे हैं. प्रधानमंत्री बनने के बाद उनसे नेतृत्व की उम्मीद की जा रही है लेकिन हिंदुत्ववादी संगठनों के मुसलमानों के धर्मांतरण या "घर वापसी" जैसे विभिन्न अभियानों के खिलाफ उन्होंने कुछ नहीं कहा है.
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आरएसएस का प्रभाव
नरेंद्र मोदी की सरकार पर आरोप है कि उनके मंत्री राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के इशारे पर काम करते हैं और हर महत्वपूर्ण मामले में उससे सलाह लेते हैं. मोहन भागवत आरएसएस के नेता हैं और उनके संगठन का एक सदस्य भारतीय जनता पार्टी का संगठन सचिव है.
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लोकतंत्र पर बादल
पारिवारिक राजनीति के लिए धार्मिक राजनीति का इस्तेमाल - अकाली दल के नेता प्रकाश सिंह बादल ने कहा है कि धर्म के विकास के लिए राज्य सत्ता जरूरी है. वे पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, उनके पुत्र उप मुख्यमंत्री और पतोहु केंद्रीय मंत्री हैं.
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विकास में बाधा
बिहार को सालों बाद राजनीतिक स्थिरता देने के बावजूद विकास के बदले वंशवाद को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया. चारा घोटाले में लिप्त होने के कारण लालू यादव महीनों जेल में रहे और इस समय उनके चुनाव लड़ने पर रोक है.
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समाजवादी वंश
समाजवादी आंदोलन से उभरे मुलायम सिंह यादव परिवार को मजबूत करने और लालू यादव के साथ पारिवारिक गठबंधन बनाने के बाद अब जनता परिवार के मुखिया है. चुनावी राजनीति का संयोग ही है कि उत्तर प्रदेश से उनकी पार्टी के सारे सांसद उनके परिवार के ही हैं.
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आकंठ घोटाले
कांग्रेस का विरोध कर ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी बनाई. कम्युनिस्टों के विरोध के नाम पर सत्ता में आई. चूंकि पार्टी चलाने के लिए पैसे की भी जरूरत होती है, उन्होंने पार्टी के लिए धन जुटाने का काम गैरकानूनी तरीकों पर छोड़ दिया. इसी कारण से आज उनके कई सांसदों के खिलाफ जांच चल रही है.
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सत्तामोह या मजबूरी
भ्रष्टाचार कांड में अयोग्य करार दिए जाने के बाद ऊंची अदालत में अपील जीतकर तमिल राजनीति की "अम्मा" जयललिता फिर से सत्ता में लौटी हैं. राजनीतिज्ञों की लोकप्रियता के कारण भारत राजनीतिक भ्रष्टाचार से निबटने का रास्ता नहीं ढूंढ पाया है.
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राजनीति क्यों?
अलगाववाद की राजनीति करने वाले उद्धव ठाकरे सांप्रदायिक शिवसेना के नेता है. अब तक चुनाव नहीं लड़ा है, लेकिन पिता के बाद पार्टी के सर्वमान्य नेता और अधिनायक हैं. उनकी पार्टी मराठा सम्मान के लिए लड़ती है और मुंबई में बाहर से आए लोगों का विरोध करती हैं.
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अनसुलझी समस्या
गरीबी और विकास के अलावा भारत की प्रमुख समस्याओं में कश्मीर विवाद शामिल है. कश्मीर ढाई दशक से अलगाववादी विद्रोह का सामना कर रहा है. राजनीतिक प्रक्रियाएं लोगों को पर्याप्त रोजगार और सुरक्षा नहीं दे पाई हैं.
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समांतर सरकार
माओवादी भी समाज की मुख्य धारा से बाहर हैं और खासकर जंगली इलाकों में स्थानीय निवासियों के अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं. उन्हें बातचीत की मेज पर लाने और उनकी मांगों पर लोगों का समर्थन जीतने के सार्थक प्रयास नहीं हुए हैं.
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वे या तो बेलगाम हो चुके हिंसक हिंदूवादी संगठनों को काबू करने लायक बचे ही नहीं है या फिर वे करना नहीं चाहते. मोदी जैसे मजबूत शख्सियत के व्यक्ति के लिए दूसरी बात ज्यादा सही साबित होती है. वर्ना क्या वजह है कि जो प्रधानमंत्री चौबीसों घंटे ट्विटर पर ऑनलाइन रहते हैं वे एक बुजुर्ग अल्पसंख्यक की भीड़ द्वारा हत्या जैसे मामले में चुप्पी साध जाएं? कितना निर्मम, वीभत्स और डरावना था वह सब! सिर्फ गोमांस रखने की अफवाह पर हिंदुओं की भीड़ ने दिल्ली के पास दादरी में एक बुजुर्ग मुसलमान के घर में घुसकर पीट-पीटकर मार डाला. भारत के किसी दूर दराज इलाके में यह घटना हुई होती तो खुद को झूठा दिलासा दिया जा सकता है लेकिन यहां राजधानी दिल्ली के ठीक बगल में. और जैसे यह ‘अंत' और अपमान काफी नहीं था. हत्या के बाद मोदी के संस्कृति मंत्री ने कहा कि यह हत्या नहीं ‘हादसा' था. मतलब कि यह सब कुछ यूं ही स्वत:स्फूर्त तरीके से हो गया. फिर लाउडस्पीकर पर किसने आवाज लगाई थी? लोगों को किसने इकट्ठा करके हमले के लिए उकसाया था? हत्या के आरोप में जिस स्थानीय बीजेपी नेता के बेटों को पकड़ा गया है उसके साथ संस्कृति मंत्री की तस्वीर कैसे आ गई? हिंदू रक्षक दल के लोग अचानक दादरी में कहां से सक्रिय हो गए थे?
गौहत्या पर हत्या कितनी जायज?
दादरी में गोमांस रखने की अफवाह के बाद भीड़ ने एक व्यक्ति का कत्ल कर डाला. इस घटना पर हमने लोगों से पूछी उनकी राय. जवाब परेशान करने वाले हैं.
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50 साल के मोहम्मद अखलाक की जान एक अफवाह के कारण गयी, जो वॉट्सऐप के जरिए फैली. वॉट्सऐप संदेशों में लिखा गया कि उसने गाय को काटा है. फेसबुक पर कई लोगों ने इस हत्या को जायज बताया है. हालांकि कुछ ऐसे समझदार भी मिले जो मिलजुलकर रहने का आग्रह कर रहे हैं.
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योगेंद्र पांडेय ने लिखा है, "दादरी मे जो कुछ हुआ, वह किसी भी सभ्य समाज मे स्वीकार्य नहीं है, पर क्या यह सच्चाई नहीं है कि इसी तरह ईशनिंदा की अफवाह उड़ाकर हर साल सैकड़ों निर्दोष पाकिस्तान, अफगानिस्तान और अरब मुल्कों में मौत के घाट उतार दिए जाते हैं? क्रिया के बराबर और विपरीत प्रतिक्रिया होती ही है."
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फरीद खान ने लिखा है, "इन कट्टरवादी ताकतों का मुकाबला मिलजुल कर और आपसी ऐतेमाद कायम करके ही किया जा सकता है. आजकल जिस तरह उकसावे की राजनीति करके मुसलमानों के साथ व्यवहार किया जा रहा है, वह ना तो किसी प्रकार उचित है, न ही इस देश की एकता व अखंडता के लिए शुभ संकेत है. कल को अगर यही मजलूम मुसलमान मजबूर होकर हथियार उठा ले, तो उसका जिम्मेदार कौन होगा?"
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कुलदीप कुमार मिश्र ने बीफ के निर्यात की ओर ध्यान दिलाते हुए सवाल किया है, "गोमांस के निर्यात में भारत ने विश्व रिकार्ड बना डाला! ब्राजील को पीछे छोड़ कर पहले स्थान पर कब्जा! (2015 का आंकड़ा दिया जा रहा है!) और देश में गाय का मांस खाने पर प्रतिबंध लगता है."
तस्वीर: Shaikh Azizur Rahman.
अजय राज सिंह ठाकुर की टिप्पणी, "भीड़ ने जो किया, वह निश्चित ही बहुत गलत और असभ्य था. कुछ भी करने से पहले उस बात कि सच्चाई को जानना चाहिए था. गौ माता और नारियां, दोनों का समान रूप से सम्मान होना चाहिए. ऐसा व्यवहार बहुत ही खेदजनक और शर्मनाक है!!"
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कमलकिशोर गोस्वामी लिखते हैं, "हजारों बार देखा है मैंने भारतीय लोकतंत्र को तार तार होते. सत्तर बरस की आजादी लाखों बरस की सभ्यता और ऐसा जंगलीपन. सौ लोगों की भीड़ जो अब कई गांवों में तब्दील हो गई है. सोशल मिडिया पर लोग इतना गंद लिख रहे हैं एक दूसरे के खिलाफ पर कुछ नहीं हो रहा. क्या कहें ऐसे लोकतंत्र पर और क्या कहें उन महानुभवों को जिन्होंने हमें ऐसे लोकतंत्र का तोहफा दिया."
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हरिओम कुमार का कहना है, "जिन देशों की आबादी ज्यादा होती है उन देशो में लोकतंत्र काम नहीं करता. खासकर जिन देशों की एक बहुत बड़ी आबादी अनपढ़ हो." इसी तरह रली रली ने लिखा है, "लगाया था जो उसने पेड़ कभी, अब वह फल देने लगा; मुबारक हो हिन्दुस्तान में, अफवाहों पे कत्ल होने लगा." गोपाल पंचोली ने एक अहम बात कही, "गाय और सूअर, फिर आ गई अंग्रेजों वाली राजनीति!"
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सवाल यह नहीं है कि बतौर प्रधानमंत्री मोदी को प्रतिक्रिया देने के लिए बाध्य करने वाले हम कौन हैं? बल्कि यह है कि जब एक प्रधानमंत्री किसी मुद्दे पर अपनी राय रखता है या चेतावनी जारी करता है तो उसका दूसरा अर्थ होता है. दादरी हत्याकांड तो उन सिलसिलों का क्लाइमैक्स है जो मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ ही शुरू हो गए थे. अगर प्रधानमंत्री की हैसियत का इस्तेमाल करते हुए मोदी ने समय रहते ही घुड़की लगा दी होती तो शायद भारत को हिंदू राष्ट्र बनाने का ख्वाब देखने वाले फासीवादी दक्षिणपंथी संगठन कुछ सहम गए होते और हो सकता है कि दादरी में अखलाक नाम के अल्पसंख्यक की हत्या नहीं होती.
कितना अजीबोगरीब और एक हद तक शर्मनाक लगता है ये सब कि जो देश खुद को विकसित कहलाने का सपना देखता है, जो सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए दावेदारी पेश करना चाहता है और जो मुल्क अपनी कल्पना में अमेरिका बनना चाहता है, उस देश के राष्ट्रीय बहस में गोमांस, गोमूत्र और गोबर है. मोदी के मातृसंगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने बाकायदा एक बुकलेट निकालकर दावा किया है कि अगर घर की दीवारों पर गाय का गोबर चिपका दिया जाए तो परमाणु बम का भी असर नहीं होगा. आधुनिकता, तर्क और विज्ञान को बोगस साबित करती इन दलीलों को खारिज करने का जोखिम कौन उठाएगा?
भारतीय राजनीति के प्रमुख खिलाड़ी
भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार लोक सभा में बहुमत के बावजूद संसद में अपने कानूनों को पास करवाने में मुश्किल झेल रही है. विपक्ष को राजी करवाने में विफलता ने बीजेपी सरकार की प्रतिष्ठा और प्रधानमंत्री के रुतबे को कम किया है.
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नरेंद्र मोदी
प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी की मुख्य चुनौती चुनाव में किए गए अपने वादों को पूरा करना है. वे देश को विकास के रास्ते पर लाने के लिए अपनी नीतियों के लिए संसद की मंजूरी चाहते हैं.
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सोनिया गांधी
संसद में बीजेपी को पर्याप्त बहुमत नहीं है. लोक सभा में उसे बहुमत पाने में कामयाबी मिली लेकिन प्रातों में मजबूत नहीं होने के कारण राज्य सभा में कांग्रेस अभी भी उसे रोक सकने की हालत में है.
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राहुल गांधी
कांग्रेस पार्टी अपनी इसी शक्ति का इस्तेमाल राज्य सभा में विधेयकों को रोकने में कर रही है. लोक सभा में सिर्फ 44 सांसदों वाली कांग्रेस बाधा डालने की रणनीति अपना रही है. बीजेपी भी पहले ऐसा कर चुकी है.
तस्वीर: UNI
सुषमा स्वराज
विदेश मंत्री भ्रष्टाचार कांडों में देश से भागे क्रिकेट प्रशासक ललित मोदी के लिए ब्रिटेन की सरकार को पत्र लिखकर फंस गई हैं. कांग्रेस संसद को चलने देने के लिए उनके इस्तीफे की मांग पर अड़ी है.
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अरुण जेटली
प्रधानमंत्री के विपरीत केंद्रीय वित्त मंत्री दिल्ली के हैं और सत्ता प्रतिष्ठान को जानते हैं. राज्य सभा के नेता होने के नाते वे सरकार और विपक्ष के बीच सुलह में अहम भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन अब तक नाकाम रहे हैं.
तस्वीर: picture-alliance/dpa
मुलायम सिंह यादव
समाजवादी पार्टी के नेता उत्तर प्रदेश में बीजेपी का विरोध कर सत्ता में आए हैं लेकिन केंद्र की सरकार की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते. उन्होंने सदन में चर्चा का पक्ष लिया है और मोदी की तारीफ पाई है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/Raveendram
ममता बनर्जी
कम्युनिस्टों को कमजोर करने के बाद बंगाल के मुख्यमंत्री की चुनौती बीजेपी है जो प्रदेश में अपना आधार बढ़ाने में लगी है. केंद्र सरकार ने वित्तीय घोटाले में उसके सांसदों और विधायकों पर नकेल कस रखी है.
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जयललिता
तमिलनाडु की मुख्यमंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों में काफी समय जेल में रही हैं. हाईकोर्ट से राहत पाकर वे फिर से सत्ता में अपनी स्थिति मजबूत कर रही हैं. केंद्र सरकार से वे कोई पंगा लेने की हालत में नहीं हैं.
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लालू यादव
मुख्यमंत्री के रूप में आरजेडी नेता ने बीजेपी के धार्मिक अभियान को रोकने की हिम्मत दिखाई थी और अल्पसंख्यकों का भरोसा जीता था. बिहार चुनाव जीतने के लिए वे बीजेपी विरोध की अपनी छवि भुना रहे हैं.
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नीतीश कुमार
बिहार के मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी की हरेक बात का विरोध कर रहे हैं. बिहार में इस साल विधान सभा चुनाव होने वाले हैं जिसमें उनकी कुर्सी और राजनीतिक भविष्य, तो प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगी है.
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वेंकैया नायडू
संसदीय कार्य मंत्री की भूमिका संसद में सभी दलों के बीच सुलह कराने की होती है. लेकिन उन्होंने दबाव की नीति के तहत विपक्ष पर आरोपों की झड़ी लगाकर सुलह की संभावना को कम ही किया है.
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कर्नाटक में हम्पी युनिवर्सिटी के कुलपति और जाने माने वामपंथी विचारक एम कलबुर्गी ने इन दलीलों को खारिज करने का जोखिम उठाया था. नतीजा क्या हुआ? उन्हें घर में घुसकर गोली मार दी गई. तमाम तरह के दबाव और विरोध प्रदर्शन के बाद पुलिस ने आखिरकार जिस भुवित शेट्टी नाम के शख्स को गिरफ्तार किया वो बजरंग दल का निकला. बजरंग दल वही संगठन है जिसका परिचय इंटरनेट पर भी मिलिटेंट (उग्र या आतंकी) हिंदूवादी संगठन के तौर पर मिलता है. और जिसका घोषित लक्ष्य है अयोध्या, मथुरा और काशी (जहां से पीएम मोदी सांसद हैं) में मौजूद मस्जिदों के बगल में क्रमश राम, कृष्ण और काशी विश्वनाथ के मंदिर का निर्माण कराना. (क्या मस्जिद गिराकर?)
प्रोफेसर कलबुर्गी इकलौते उदाहरण नहीं है. उनसे पहले उनके दोस्त कॉमरेड गोविंद पनसारे और उनसे भी पहले महाराषट्र के मशहूर तर्कशास्त्री और लेखक नरेंद्र दाभोलकर की गोली मारकर इसी तरीके से हत्या की गई थी? क्या ये महज संयोग है कि इन सारी हत्याओं के पीछे दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े लोगों के नाम आ रहे हैं? जो हश्र धार्मिक अल्पसंख्यक अखलाक का हुआ वही हश्र अलग सोच रखने वाली अल्पसंख्यक अस्मिताओं का भी हो रहा है.
मॉडल गांवों के जरिए विकास
आजादी के सात दशक बाद भी भारत के गांवों की तस्वीर बहुत ज्यादा नहीं बदली है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास के लिए सांसद आदर्श ग्राम योजना शुरू की है, लेकिन सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने पर भी राजनीति हो रही है.
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मोदी की पसंद
भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में बदलाव लाने के लिए कई पहलकदमियां की हैं. स्वच्छता अभियान में प्रमुख लोगों को शामिल करने के अलावा उन्होंने सांसदों से अपने अपने चुनाव क्षेत्र में एक गांव को गोद लेने का भी आग्रह किया. प्रधानमंत्री ने वाराणसी के जिस जयापुर गांव को गोद लिया है उसकी 100 फीसदी आबादी हिंदू है.
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विपक्ष का चुनाव
मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी मुसलमानों के प्रतिनिधित्व का दावा करती है. उनके बेटे और यूपी के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव सांसद हैं. प्रधानमंत्री को जवाब देने के लिए उन्होंने अपने संसदीय क्षेत्र इत्र नगरी कन्नौज के सैय्यदपुर सकरी गांव को गोद लिया जहां 85 फीसदी मुस्लिम बसते हैं.
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परंपरा पर जोर
कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पुश्तैनी चुनाव क्षेत्र रायबरेली में उड़वा को चुना है जबकि उनके बेटे राहुल गांधी ने अमेठी के जगदीशपुर को गोद लिया है. 1857 में भारत की आजादी की पहली लड़ाई में यहां के लोग अंग्रेजों की गोलियों का निशाना बने थे. इन्हें इलाके में शहीदों के गांव के रूप में जाना जाता है.
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सड़कें नहीं
सांसदों द्वारा गांवों को गोद लेने में सबसे ज्यादा सियासत उत्तर प्रदेश में हो रही है. इस प्रांत ने भारत को सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिए हैं. विकास के साथ गांवों में भी समृद्धि आई है लेकिन संरचनाओं का सही विकास नहीं हुआ है. बच्चे अभी भी पैदल चलकर कई किलोमीटर दूर स्कूलों में जाते हैं.
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नई तकनीक
आधुनिक तकनीक गांवों तक भी पहुंची है. किसानों को खेतों में काम करते समय मोबाइल फोन पर बातें करते देखना बड़ी बात नहीं है. मोबाइल फोन ने उन्हें तत्काल सूचना पाने की नई संभावनाएं भी दी हैं.
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खेतों में मस्ती
कितनी आसान बना दी है मोबाइल ने जिंदगी. खेतों पर फसल कटवाने के बाद फसल की रखवाली करना बहुत बोरियत भरा होता था. अब यह समय मोबाइल या टैबलेट पर गाना सुनते हुए या फिल्म देखते हुए काटा जा सकता है.
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संरचना का अभाव
कभी गांवों में चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी या उपले का इस्तेमाल होता था. अब वहां भी गैस खरीदने की हैसियत हो गई है लेकिन उपभोक्ताओं को पहुंचाने के साधन नहीं हैं. लोगों को गाड़ियों या साइकिल पर गैस का सिलेंडर लाना होता है.
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पैसा आया रोड नहीं
किसानों के पास पैसा आया, कारें उनके पहुंच में आईं हैं. लेकिन गांवों में रोड नहीं बने हैं. गांवों का विकास करने के लिए सांसदों को बहुत श्रम करना होगा. गांवों की काया पलटने के लिए उन्हें रहने योग्य भी बनाना होगा.
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गृह मंत्री का गांव
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने लखनऊ के जिस गांव बेंती को गोद लिया है उसकी करीब ढाई हजार की आबादी पिछड़ों और दलितों की है. बेंती के लोग राजनाथ सिंह के इस फैसले से बेहद खुश हैं. अब वहां जल्द ही बैंक की शाखा खुलेगी.
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पलायन रुके
डिश एंटेना ने टेलिविजन को गांव गांव तक पहुंचा दिया है. उसकी वजह से आधुनिक विकास की खबरें पहुंची हैं और लोगों की उम्मीदें जगी हैं. अब जरूरत है विकास का ढांचा बनाने की ताकि गांव रहने लायक हों और लोग शहरों की ओर न भागें.
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कब पटेंगी दूरियां
राजीव गांधी की बेटी प्रियंका वाड्रा प्रधानमंत्रियों के परिवार में दिल्ली में पैदा हुई और वहीं रहती भी हैं. गांवों को कर्मभूमि बताने वाले उनके जैसे नेताओं को सोचना होगा कि गांवों का विकास कैसे हो. ये घर क्या हमेशा फूस के ही रहेंगे.
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एनडीटीवी के पत्रकार रवीश कुमार को इन्हीं दलीलों से लड़ने की सजा सोशल साइट्स से पलायन करके चुकानी पड़ी. याकूब मेमन की फांसी के बारे में लुंपेन राष्ट्रवादियों के उलट मैंने कुछ विचार रखे तो मेरा अकाउंट बंद करा दिया गया. इनबॉक्स में गालियां खाना जैसे आदत का हिस्सा बन चुका है. बाहर भी देख लेने की धमकी अक्सर मिलती रहती है. सवाल यह है कि एक इंसान के तौर पर हम कर क्या सकते हैं? खासतौर से उस वक्त में जब खुद को लोकतंत्र का चौथा खंभा कहलाने वाले मीडिया ने बेशर्म चुप्पी ओढ़ रखी हो. क्या पुरस्कार लौटा देना काफी है जैसा कि कई बड़े और दिग्गज साहित्यकारों ने किया? पंडित जवाहर लाल नेहरू की भतीजी नयनतारा सहगल से लेकर मलायली लेखिका सारा जोसेफ समेत उदय प्रकाश, कश्मीरी लेखक गुलाम नबी खयाल, अशोक वाजपेयी, अमन सेठी, राजेश जोशी, मंगलेश डबराल अंग्रेजी लेखक के सच्चिदानंदन जैसों ने या तो अपने पुरस्कार लौटा दिए हैं या फिर साहित्य अकादमी की ‘चुप्पी' के लिए उससे संबंध तोड़ लिया है. बेशक यह प्रतिरोध तूफान के आगे किसी दिए को जलाने के दुस्साहस जैसा लगे लेकिन एक इंसान और एक बहुलतावादी देश के नागरिक के तौर पर यह बात हमें ढाढ़स की एक थपकी जरूर दे जाती है. भरोसे की सांस आती और फिर गुजर जाती है. लगने लगता है कि रात कितनी भी गहरी क्यों न हो, एक न एक वक्त उजियारा आता है.