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'दसवीं परीक्षा ख़त्म करने को नहीं कहा'

२९ जून २००९

भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने इस बात से इंकार किया है कि उन्होंने देश में दसवीं की बोर्ड परीक्षा को ख़त्म करने की बात कही थी. डॉयचे वेले से ख़ास बातचीत में सिब्बल ने कहा कि वह इस बाबत बहस चाहते हैं.

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बलतस्वीर: AP

सिब्बल ने ये भी कहा कि देश के सभी राज्यों के शिक्षा बोर्डों में बदलाव की बात भी उन्होंने इसी रूप में कही थी कि इस बारे में बहस होनी चाहिए. सिब्बल ने कहा कि देश में एक जैसी शिक्षा पद्धति समय की मांग है और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के दौर में उसे लंबे समय तक अनदेखा नहीं किया जा सकता. सिब्बल ने शिक्षा के विकास में विदेशी पूंजी निवेश की ज़रूरत पर भी ज़ोर दिया.

कपिल सिब्बल जर्मनी के लिंडाउ शहर में नोबल पुरस्कार से सम्मानित हो चुके वैज्ञानिकों के एक सेमिनार में हिस्सा लेने आए भारतीय प्रतिनिधिमंडल के साथ थे. भारत के मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल मानते हैं कि देश में एक तरह की शिक्षा लागू करना आसान नहीं. उन्होंने कहा कि यह काम ‘ सौ दिन क्या, पांच साल में भी मुश्किल ’ है.

भारत में सौ दिन का शिक्षा एजेंडा पेश करने के बाद अपने पहले इंटरव्यू में कपिल सिब्बल ने जर्मन रेडियो डॉयचे वेले से कहा, "हमारा आख़िरी लक्ष्य होना चाहिए कि हिन्दुस्तान में एक तरह की शिक्षा हो. लेकिन यह काम सौ दिन क्या, पांच साल में भी मुश्किल है." उन्होंने कहा, "शिक्षा में एक नियम के साथ जो प्रतियोगिता होगी, उसके साथ ही हिन्दुस्तान का भविष्य बढ़ेगा और हिन्दुस्तान आगे बढ़ेगा."

पिछले दिनों उन्होंने शिक्षा क्षेत्र में केंद्र सरकार का एजेंडा पेश किया, जिसमें प्रस्ताव है कि पूरे भारत में एक तरह की शिक्षा होनी चाहिए और मैट्रिक परीक्षा की ज़रूरत ख़त्म होनी चाहिए.

मानव संसाधन विकास मंत्री ने साफ़ किया कि भारत में शिक्षा स्तर बेहतर करने के लिए राज्य शिक्षा बोर्डों से मिलकर चलने की ज़रूरत है. उन्होंने कहा, " राज्य बोर्डों से बातचीत के बग़ैर, उनकी सहमति के बग़ैर आगे बढ़ना संभव नहीं होगा और इसके बिना शिक्षा का स्तर बदला जा ही नहीं सकता. " सिब्बल नॉबेल पुरस्कार विजेताओं के एक सम्मेलन में हिस्सा लेने जर्मनी के लिंडाऊ शहर आए हुए हैं.

नोबेल पुरस्कार विजेताओं का सम्मेलन जर्मनी के लिंडाऊ मेंतस्वीर: picture-alliance / Bildagentur Huber

उन्होंने कहा कि "जैसे जैसे वैश्वीकरण हो रहा है और जैसे जैसे हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगिता की ज़रूरत पड़ रही है, वैसे वैसे हमें भारत के बच्चों को ज़्यादा मुक़ाबले का बनाने की ज़रूरत है."

केंद्र सरकार के प्रस्ताव का विरोध करने वालों को आड़े हाथों लेते हुए सिब्बल ने कहा कि अगर लोग शिक्षा के पुराने ढांचे से ख़ुश हैं, तो सामने आकर कहें कि इसमें बदलाव की ज़रूरत नहीं. मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा, " मैं चाहूंगा कि जो लोग समझते हैं कि शिक्षा का ढांचा सही है और उससे वे संतुष्ट हैं, तो वे सार्वजनिक तौर पर बोलें. चाहे विपक्ष के लोग हों, चाहे कोई और लोग हों. उनको कहना चाहिए कि हां, हम अपने सिस्टम से बहुत ख़ुश हैं. तो फिर हम यह राष्ट्रीय बहस ख़त्म कर देंगे."

शिक्षा में विदेशी निवेश का समर्थन करते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि विदेशी निवेश से सस्ती शिक्षा मुमकिन है. हालांकि उन्होंने कहा कि अभी इस दिशा में ज़्यादा दूरी तय नहीं की गई है. मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा, "अभी विदेशी निवेश नहीं आया है. एक चर्चा का विषय है. इसमें हिन्दुस्तान में चर्चा होनी चाहिए. सभी लोगों में चर्चा होनी चाहिए. और उसके बाद जो हिन्दुस्तान के हित में होगा, वही हिन्दुस्तान की सरकार करेगी."

कपिल सिब्बल ने जर्मन रेडियो डॉयचे वेले से कहा कि हम शिक्षा का ख़र्च कम करना चाहते हैं. लेकिन अगर अच्छी पढ़ाई में ज़्यादा ख़र्च होता है, तो सुविधाएं भी ज़्यादा मिलनी चाहिएं. उन्होंने जर्मनी की मिसाल देते हुए कहा कि यहां उच्च शिक्षा तक का ख़र्चा सरकार देती है और बच्चों को ख़र्च नहीं करना पड़ता. उन्होंने कहा कि भारत में अगले पांच साल में शिक्षा का स्तर बदलने की पूरी कोशिश की जाएगी.

आउटसोर्सिंग के मुद्दे पर मचे बवाल के बीच मानव संसाधन विकास मंत्री ने कहा कि वैश्वीकरण की प्रक्रिया को कोई एक शख़्स नहीं रोक सकता. हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने भारत को दिए जाने वाले आउटसोर्सिंग पर लगाम कसने का इशारा किया था.

सिब्बल ने राष्ट्रपति ओबामा पर टिप्पणी किए बग़ैर कहा, " वैश्विक ताक़तों की अपनी एक गति है. इस गति को कोई रोक नहीं सकता. कोई एक व्यक्ति नहीं रोक सकता. कोई एक देश नहीं रोक सकता. अगर हम वैश्विक ताक़त बन चुके हैं तो उसमें वैश्विक मुक़ाबला होगा. कोई कहे कि हम यहां से या वहां से आउटसोर्स नहीं करेंगे, तो यह संभव नहीं. " उन्होंने कहा कि इसका नतीजा यह भी हो सकता है कि कंपनियां अपने हेड ऑफ़िस ही बदल लें.

रिपोर्ट-पुखराज चौधरी, लिंडाऊ

संपादन-ए जमाल


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