अश्फाक अहमद को हर रात एक ही सपना आता है, उसके बेटों को किसी ने मार दिया. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दस फीसदी पाकिस्तानी मनोरोग से जूझ रहे हैं.
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पाकिस्तान में करीब 300 मनोचिकित्सक हैं, यानि करीब 80,000 लोगों पर एक मनोचिकित्सक. अहमद के डॉक्टर मियां इफ्तिखार हुसैन बताते हैं, "जब वह उठते हैं तो रोने लगते हैं. फिर उन्हें एहसास होता है कि उनके बेटे तो मर चुके हैं और वह एक बार फिर इसी बारे में बुरा ख्बाव देख रहे थे."
पाकिस्तान में बारा खैबर एजेंसी के आसपास के आतंकवाद से प्रभावित कबायली इलाके संघीय प्रशासन (एफएटीए) के अधीन हैं. 51 वर्षीय अहमद इनमें से एक कबायली इलाके में स्कूल में काम करते थे. एक साल पहले इलाके में हिंसा के दौरान उनके बेटे मारे गए. आज भी उनकी तकलीफ में कोई कमी नहीं आई है.
हेल्थ प्रमोशन वेल्फेयर सोसाइटी (एचपीडब्ल्यूएस) के उपनिदेशक हुसैन कहते हैं, "वह पिछले साल दिसंबर में यहां लाए गए थे. उनके ठीक होने की संभावना बहुत कम है. अगर वह पहले आए होते तो बेहतर होता." हुसैन पेशावर के बाहरी इलाके में बनाए गए एचपीडब्ल्यूएस में मानसिक रोगियों की मदद करते हैं, उनके यहां 40 मरीजों के लिए बिस्तर हैं.
जंग और जिंदगी के बीच अफगानिस्तान
पुरस्कृत फोटोग्राफर मजीद सईदी की तस्वीरें सालों से जंग की आग में झुलसते अफगानिस्तान के हालात दिखाती हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
नशे में डूबा बचपन
अफगानिस्तान में नशा एक बड़ी समस्या है. बचपन से ही अफीम की लत लगने का खतरा रहता है. नशे के शिकार बच्चों के कोई आधिकारिक आंकड़े नहीं हैं लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह संख्या करीब तीन लाख है.
तस्वीर: Majid Saeedi
त्रासदी के खिलौने
काबुल में दो छोटी लड़कियां कृत्रिम हाथ से खेल रही हैं. इस तस्वीर के लिए मजीद सईदी को कई अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुझे कहना है
मजीद सईदी ने 16 साल की उम्र में फोटोग्राफी करना शुरू किया. तब से वह लोगों के जीवन के संघर्ष को अपनी तस्वीरों में दिखाते आए हैं. उनकी तस्वीरें श्पीगल, वॉशिंगटन पोस्ट और न्यूयॉर्क टाइम्स जैसी नामचीन पत्रिकाओं में छप चुकी हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान बच्चे
दसियों सालों से अफगान जंग के साए में जी रहे हैं. सईदी की तस्वीरें उनकी जिंदगी से रूबरू कराती हैं, जैसे यह अफगान बच्चा जो एक धमाके में अपने हाथ खो बैठा.
तस्वीर: Majid Saeedi
दास्तां सुनाते खंडहर
अफगानिस्तान के अतीत की कहानी सिर्फ लोग ही नहीं, देश भर में इमारतों के खंडहर भी सुनाते हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
सावधान!
काबुल में हर सुबह सैनिकों की ट्रेनिंग होती है. जर्मन सेना भी अफगान सेना की ट्रेनिंग में मदद कर रही है. मकसद है कि जब 2014 के अंत में जर्मन सेना अफगानिस्तान से वापसी करे तो अफगान सेना परिस्थितियों का खुद मुकाबला कर सके.
तस्वीर: Majid Saeedi
मुश्किल बचपन
अफगानिस्तान में अच्छी शिक्षा व्यवस्था की भी कमी है. कई बच्चों को परिवार को सहारा देने के लिए बीच में ही पढ़ाई छोड़ कर काम में लगना पड़ता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
पढ़ाई मयस्सर नहीं
1979 के बाद से देश में शिक्षा व्यवस्था पर बेहद खराब असर पड़ा. जर्मन सरकार द्वारा 2011 में जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार अफगानिस्तान के 72 फीसदी पुरुष और 93 फीसदी महिलाओं को कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली है.
तस्वीर: Majid Saeedi
गुड़ियां बनाते हाथ
एक मलेशियाई गैर सरकारी संगठन द्वारा दिए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रम में लड़कियां गुड़ियां बनाना सीख रही हैं. मकसद हैं उन्हें आत्मनिर्भर बनाना.
तस्वीर: Majid Saeedi
तालिबान का बदला
2011 में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद तालिबान हमले में चार लोग मारे गए और 36 घायल हुए. यह तस्वीर इनमें से दो पीड़ितों की है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अफगान खेल
अफगानिस्तान में बॉडी बिल्डिंग को पुरुष बेहद पसंद करते हैं. कसरत के बाद आराम करते दो नौजवान.
तस्वीर: Majid Saeedi
जंग की फसल
पिछले तीस सालों ने अफगान जीवन को बहुत प्रभावित किया है. यहां के खेत और खलिहान भी जंग के शिकार हुए हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मदरसे
2011 की तस्वीर. कंधार के एक मदरसे में पढ़ते बच्चे.
तस्वीर: Majid Saeedi
मारने को तैयार
अफगानिस्तान में कुत्तों की आम लड़ाई लोकप्रिय है. कुत्तों को मुकाबले में लड़ने और मारने का प्रशिक्षण दिया जाता है.
तस्वीर: Majid Saeedi
अलग थलग
मनोवैज्ञानिक बीमारियों से जूझ रहे लोग बाकियों से अलग कई बार आमानवीय परिस्थितियों में रखे जाते हैं. हेरात शहर के एक अस्पताल का दृश्य.
तस्वीर: Majid Saeedi
बदकिस्मती
अकरम ने अपने दोनो हाथ खो दिए. सोने से पहले वह अपने दोनों कृत्रिम हाथ निकाल कर अलग रख देता है. उसके जैसे कई और बच्चे हैं जो ऐसी बदनसीबी को झेल रहे हैं.
तस्वीर: Majid Saeedi
मकसद
मजीद सईदी अपनी तस्वीरों के जरिए समाज के बारे में बहुत सी जरूरी बातें कहने की कोशिश करते हैं. पिछले दिनों पेरिस में उन्हें 2014 के लूकास डोलेगा पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
तस्वीर: Maryam Ashrafi
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सैन्य कार्रवाई के कारण खैबर पख्तूनख्वाह के पड़ोसी कबायली इलाके से अब तक करीब दो लाख लोग विस्थापित हो चुके हैं. अपनों को खोना, विस्थापन और जिंदगी के तंग हालात में मानसिक रोग यहां आम हो रहे हैं. लेकिन चिकित्सा के अभाव में इनमें से ज्यादातर मामलों के बारे में पता भी नहीं चल पाता है. हुसैन बताते हैं, "मरीज अक्सर अपने रिश्तेदारों की बुलेट या रॉकेट से भुनी हुई लाशें सपनों में देखते हैं." उन्होंने बताया कि मरीज के ठीक हो जाने के बाद वे उन्हें कुछ कामकाज से जुड़ा प्रशिक्षण भी देते हैं.
महिलाएं बच्चे ज्यादा प्रभावित
कबायली इलाके बाजोड़ के किसान जियारत गुल की पत्नी भी मनोरोग से जूझ रही हैं. गुल ने बताया, "उसका बेटा घर के बाहर खेलता हुआ मारा गया था. जब उसने उसकी खून से सनी हुई लाश देखी तो सदमे में आ गई." इलाज के कारण उनकी तबीयत अब पहले से बेहतर हैं.
इलाके में जारी हिंसा और सैन्य कार्रवाई ने यहां के परिवारों को बुरी तरह प्रभावित किया है. गुल कहते हैं, "हमारे बच्चे हिंसा के बीच बड़े हुए हैं. वे सेना, तालिबान बम धमाकों और ड्रोन हमलों की बात करते हैं." यहां से विस्थापित ज्यादातर लोग खैबर पख्तूनख्वाह में रह रहे हैं.
कबायली इलाके मोहमंद के डॉक्टर मुर्तजा अली ने बताया, "प्रभावित इलाकों में महिलाओं और पुरुषों के बीच अनुपात 2:1 है. हादसों के बाद के सदमे से ग्रसित महिलाओं की संख्या पुरुषों से कहीं ज्यादा है. पुरुष तो दिल बहलाने घर से बाहर निकल भी जाते हैं लेकिन महिलाएं अक्सर सामाजिक दबाव के चलते घर से बाहर भी नहीं निकल पाती है जिससे और भी बुरा असर पड़ता है." इन परिवारों की बड़ी समस्या गरीबी भी है.
खैबर टीचिंग हॉस्पिटल में मनोचिकित्सा विभाग के अध्यक्ष डॉक्टर सैयद मुहम्मद सुलतान मानते हैं कि मरीजों को इलाज के अलावा काउंसलिंग की सख्त जरूरत है.