जर्मनी के ग्लेशियर बहुत तेजी से पिघल रहे हैं और एक रिपोर्ट कहती है कि हो सकता है दस साल बाद जर्मनी में एक भी ग्लेशियर ना हो.
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ऐल्प्स पर्वत श्रृंखला का जर्मन केंद्र दक्षिण में है. बावेरिया के पर्यावरण मंत्री थॉर्स्टन ग्लाउबर ने गुरुवार को कहा कि राज्य में ग्लेशियरों के दिन गिनती के बचे हैं. उन्होंने कहा, "बावेरिया का आखरी अल्पाइन ग्लेशियर दस साल में गायब हो सकता है.” इससे पहले वैज्ञानिकों ने अनुमान जाहिर किया था कि इस सदी के मध्य तक ग्लेशियर जर्मनी में बने रहेंगे. लेकिन पिछले कुछ सालों में उनके पिघलने में तेजी आई है.
बेर्खटेसगाडन ऐल्प्स के त्सुग्सपित्से इलाके में स्थित जर्मनी के पांच ग्लेशियर पिछले एक दशक में अपना करीब दो तिहाई हिस्सा खो चुके हैं. उनका क्षेत्रफल भी एक तिहाई यानी करीब 36 फुटबॉल मैदानों के बराबर कम हो चुका है. गंभीर चेतावनी जारी करते हुए ग्लाउबर ने कहा कि ग्लेशियर सिर्फ धरती के बर्फ से बने इतिहास के स्मारक नहीं हैं. उन्होंने कहा, "वे हमारे मौसम की स्थिति के थर्मामीटर हैं.”
बुधवार को जारी एक वैश्विक अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया के लगभग सभी ग्लेशियर अपना भार खो रहे हैं और इसकी रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. ऐसा होना इस सदी में समुद्र के जल स्तर में बढ़ोतरी के करीब 20 फीसदी के लिए जिम्मेदार है. नासा द्वारा ली गई तस्वीरों के अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं की एक टीम ने पाया कि 2000 से 2019 के बीच दुनिया भर के हिमनदों से हर साल औसतन 267 अरब टन बर्फ पिघली है.
यह स्विट्जरलैंड को हर साल छह मीटर पानी के भीतर डुबोने के लिए काफी है. इसी अप्रैल में मौसमविज्ञानियों ने कहा था कि जर्मनी पिछले चार दशक में सबसे ठंडा रहा है. यूरोप के बाकी हिस्सों की तरह जर्मनी में भी मौसम में बड़े बदलाव देखे जा रहे हैं. सर्दी में फरवरी में जहां तापमान जीरो डिग्री से नीचे चला गया, वहीं 1 अप्रैल को 25.9 डिग्री तापमान दर्ज किया गया. लेकिन बाकी महीने तक तापमान में 15 डिग्री तक की कमी रही.
पर्यावरणविद इस तरह के उतार-चढ़ावों के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार मानते हैं और सरकारों से इसे रोकने के लिए कदम उठाने की मांग करते हैं. 2015 के पैरिस समझौते के तहत वैश्विक तापमान को दो डिग्री से ज्यादा न बढ़ने देने और 2050 तक इस वृद्धि को 1.5 फीसदी के करीब रखने की बात कही गई थी. गुरुवार को ही जर्मनी की संवैधानिक अदालत ने एक फैसले में सरकार की पर्यावरण सुरक्षा योजना को नाकाफी बताया था.
वीके/सीके (डीपीए, एपी)
खत्म हो रहे हैं दुनिया के ग्लेशियर
आइसलैंड ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से उसका एक ग्लेशियर पिघल चुका है. दुनिया के अन्य हिस्सों में मौजूद ग्लेशियर भी पिघल रहे हैं. एक नजर डालते हैं कि दुनिया में मौजूद प्रमुख ग्लेशियरों की स्थिति पर.
तस्वीर: picture-alliance/AP Photo/NASA
मर गया एक ग्लेशियर
आइसलैंड ने अपनी 'ओक्जोकुल' बर्फ की चादर को श्रद्धांजलि अर्पित की है. जलवायु परिवर्तन की वजह से आइसलैंड ने अपने एक ग्लेशियर को खो दिया. ओक्जोकुल को लोग 'ओके' भी कहते हैं. वर्ष 2014 में इसने ग्लेशियर का दर्जा खो दिया. ओक्जोकुल के खत्म होने पर दुख जताने पहुंचे लोगों ने एक पट्टिका का अनावरण किया जिसमें कहा गया था कि देश के मुख्य ग्लेशियरों का हाल अगले 200 वर्षों में ओक्जोकुल की तरह होने की उम्मीद है.
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Richard
अंटार्कटिका: विशाल ग्लेशियर, बड़ा जोखिम
माना जा रहा है कि पश्चिमी अंटार्कटिक का हिस्सा थ्वेट्स ग्लेशियर भविष्य में समुद्र के बढ़ते जल स्तर के लिए सबसे बड़ा खतरा हो सकता है. इस साल के शुरुआत में नासा के एक अध्ययन में यह बात सामने आयी है कि अगर यह टूट कर समुद्र में बहता है तो समुद्री जलस्तर में 50 सेंटीमीटर का इजाफा हो सकता है. अंटार्कटिका में दुनिया के पहाड़ों पर मौजूद सभी ग्लेशियरों की तुलना में 50 गुना अधिक बर्फ है.
तस्वीर: Imago Images/Zuma/NASA
पटागोनियन भी पिघल रहा
चिली का ग्रे ग्लेशियर पैटागोनियन आइसफील्ड्स में है जो अंटार्कटिका के बाहर दक्षिणी गोलार्ध के सबसे बड़े क्षेत्र में फैला हुआ है. शोधकर्ता इस क्षेत्र में बर्फ पिघलने का नजदीक से अध्ययन कर रहे हैं. इससे वैज्ञानिकों को अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड जैसे दूसरे ग्लेशियर के बारे में समझने में सहायता मिलेगी.
स्विट्जरलैंड में रोन ग्लेशियर रोन नदी का स्रोत है. कई सालों से वैज्ञानिक यूवी रेसिस्टेंट वाले सफेद कंबल से गर्मियों के समय में इसे ढंक रहे हैं ताकि यह कम पिघले. शोधकर्ता कहते हैं कि गर्म होती जलवायु की वजह से इस सदी के अंत तक अल्पाइन ग्लेशियरों का दो तिहाई हिस्सा पिघल सकता है.
तस्वीर: Imago Images/S. Spiegl
तेजी से सिकुड़ रहा फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर
न्यूजीलैंड के दक्षिण द्वीप में फ्रांज जोसेफ ग्लेशियर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. ग्लेशियर की खासियत यह है कि यह कभी आगे बढ़ता है, कभी पीछे होता है. लेकिन वर्ष 2008 के बाद से यह तेजी से सिकुड़ रहा है. पहले गाइड पर्यटकों को सीधे ग्लेशियर पर पैदल ले जाते थे लेकिन अब वहां जाने का एकमात्र साधन हेलिकॉप्टर बचा है.
तस्वीर: DW/D. Killick
गायब हो रहे अफ्रीकन बर्फ
किलिमंजारो पर्वत के ग्लेशियर पर भी खतरा मंडरा रहा है. वर्ष 2012 में नासा के सहयोग के शोध करने वाले शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया कि 2020 तक अफ्रीका के सबसे ऊंचे पर्वत किलिमंजारो से बर्फ गायब हो सकता है. किलिमंजारो तंजानिया में पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक बड़ा केंद्र है. साथ ही यह आय का भी एक बड़ा स्त्रोत है.
तस्वीर: Imago Images/robertharding/C. Kober
100 गुना तेजी से पिघल रही बर्फ
अमेरिकी राज्य अलास्का में हजारों की संख्या में ग्लेशियर हैं. 2019 में एक अध्ययन में पाया गया कि वैज्ञानिकों ने जैसा अनुमान लगाया था, उससे 100 गुना तेजी से यहां के बर्फ पिघल रहे हैं. इस महीने की शुरुआत में वाल्देज ग्लेशियर झील पर कयाकिंग के बाद दो जर्मन और एक ऑस्ट्रियाई नागरिक मृत पाए गए थे. अधिकारियों का कहना है कि ग्लेशियर के बर्फ गिरने से पर्यटकों के मारे जाने की आशंका है.
तस्वीर: imago/Westend61
ग्लेशियर का क्षेत्र बढ़ने के बावजूद चिंता
जैकब्शेवन ग्रीनलैंड का सबसे बड़ा ग्लेशियर है. इस साल नासा द्वारा किए गए एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि यह बढ़ रहा है. 2016 के बाद ग्लेशियर का एक हिस्सा जहां थोड़ा मोटा हो गया है, वहीं दूसरा हिस्सा तेजी से पिघल रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ग्लेशियर में वृद्धि उत्तरी अटलांटिक से असामान्य रूप से ठंडे पानी के बहाव के कारण है. (रिपोर्टः लवडे राइट)