द्वितीय विश्वयुद्ध समाप्त हुए सालों बीत गए लेकिन जर्मन नाजी शासक आडोल्फ हिटलर की मौत पर सवाल उठते रहे. कई बार ये संशय व्यक्त किया गया कि हिटलर उस वक्त मरा नहीं था. लेकिन अब दांतो ने मौत के रहस्य से पर्दा उठा दिया है.
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हाल में हुआ एक परीक्षण यह दावा करता है कि हिटलर ने साल 1945 में आत्महत्या कर ली थी. माना जाता है कि अपने जीवनकाल में हिटलर अपने दांतों को लेकर खुश नहीं था. कहा तो यह भी जाता है कि हिटलर के दांत बेहद ही खराब थे. इसलिए शायद अब यही दांत हिटलर के मारे जाने की अटकलों पर विराम लगाते नजर आ रहे हैं.
फ्रेंच पैथोलॉजिस्टों की एक टीम ने मॉस्को में रखे दांतों के एक सेट पर जांच की. यह वही दांतों का सेट था जिसे मई 1945 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन से बरामद किया गया था. पिछले 70 सालों में यह पहला मौका है जब रूसी प्रशासन ने किसी भी जांच दल को दांतों के परीक्षण की अनुमति दी. इस परीक्षण के नतीजे कहते हैं कि ये दांत हिटलर के हैं. इस जांच के मुख्य पैथोलॉजिस्ट फिलिप शार्लिये ने समाचार एजेंसी एएफपी से कहा, "ये दांत असली हैं और इसके बाद शक की कोई गुजांइश नहीं बचती. हमारा अध्ययन बताता है कि हिटलर साल 1945 में मर गया था."
दांतों का सबूत
इस रिसर्च टीम ने हिटलर के सिर के मिले अवशेषों की भी जांच की ताकि यह पता चल सके कि उसने आत्महत्या भी कैसे की थी. जांचकर्ताओं के मुताबिक दांतों का पूरा ढांचा, हिटलर के डेंटिस्ट से मिली जानकारी से मेल खाता है. साथ ही दांतों से मांस का कोई तत्व नहीं मिला है, जो बताता है कि वह शाकाहारी था.
ये नए नतीजे कई अटकलों पर विराम लगा सकते हैं. ऐसी अटकलें जिनके मुताबिक नाजी नेता युद्ध के आखिरी दिनों में भागने में सफल हो गया था. शार्लिये कहते हैं, "हमें हिटलर के जीवन से जुड़ी सभी अफवाहों पर विराम लगा देना चाहिए. वह न तो किसी पनडुब्बी से अर्जेंटीना भागकर गया और न ही वह अंटार्कटिका के किसी गुप्त बेस में रहा. इन अटकलों की बजाय कई इतिहासकारों की तरह इस पर विश्वास कर लेना चाहिए कि हिटलर ने अपनी जीवन-लीला बर्लिन के बंकर में आत्महत्या कर खत्म कर ली थी.
30 अप्रैल, 1945 को रूसी सेना जर्मनी की राजधानी बर्लिन में बंकर में स्थित हिटलर के अंडरग्राउंड कमांड सेंटर के पास पहुंच गई थी. इस वक्त तक हिटलर यह समझ गया था कि उसके हजारों साल तक चलने वाले साम्राज्य का सपना अब टूट गया है. इसी दिन दोपहर को हिटलर ने अपने निजी क्वार्टर में अपनी गर्लफैंड और बाद में पत्नी बनी एफा ब्राउन के साथ मरने की योजना बना ली थी. यहां उन दोनों ने साइनाइड कैप्सूल खाया और खुद को गोली मार ली.
इन दोनों की बॉडी दोपहर करीब 3:15 बजे तक मिली. इतना ही नहीं हिटलर ने अपने पीछे यह निर्देश भी छोड़े थे कि कैसे उसकी और एफा की बॉडी का निपटान किया जाए. इन निर्देशों में कहा गया था कि दोनों के मृत शरीर को बंकर के बाहर ले जाकर जला दिया जाए. करीब 5 मई तक सोवियत संघ की सेना हिटलर के जले हुए शरीर की पहचान नहीं कर सकी थी.
कैसे सत्ता तक पहुंचा हिटलर
न तो सेना की ट्रेनिंग थी, न ही राजनीति का अनुभव, इसके बावजूद 18 महीने में एक राजनीतिज्ञ ने जर्मन लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया.
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हिटलर का आना
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1920 के दशक में जर्मनी की हालत बेहद खराब थी. दो वक्त का खाना जुटाना तक बड़ी चुनौती थी. देश को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत थी. 1926 के चुनाव में हिटलर की पार्टी को सिर्फ 2.6 फीसदी वोट मिले. लेकिन सितंबर 1930 में हुए अगले चुनावों में उसकी पार्टी (NSDAP) को 18.3 फीसदी वोट मिले. लेकिन कैसे?
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लोगों को रिझाना
लोगों को रिझाने के लिए हिटलर ने अपनी आत्मकथा माइन काम्फ (मेरा संघर्ष) का इस्तेमाल किया. सरल ढंग से लिखी गई किताब के अंश लोगों को याद रहे. किताब के जरिये पाठकों की भावनाओं को हिटलर की तरफ केंद्रित किया गया.
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नफरत का फैलाव
यहूदी जर्मन बुद्धिजीवी हाना आरेन्ट के मुताबिक नाजियों ने यहूदियों और विदेशियों के प्रति जनमानस में घृणा फैलाई. इस दौरान वामपंथियों और उदारवादियों को दबा दिया गया. आरेन्ट के मुताबिक घृणा और राजनीतिक संकट को हथियार बनाकर हिटलर ने जमीन तैयार की.
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किसानों और कारोबारियों की मदद
एक नए शोध के मुताबिक NSDAP को वोट देने वालों में ज्यादातर किसान, पेंशनभोगी और कारोबारी थे. उन्हें लगता था कि हिटलर की पार्टी ही आर्थिक तरक्की लाएगी. लेकिन हाइवे बनाने जैसे कार्यक्रमों के जरिये रोजगार पैदाकर हिटलर ने आम लोगों का भी समर्थन जीता.
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बर्लिन की झड़प
1932 के चुनावों से पहले बर्लिन में गृह युद्ध जैसी नौबत आई. हिटलर समर्थक गुंडों ने जुलाई 1932 में हड़ताल या प्रदर्शन करने वाले कामगारों को मार डाला. हिटलर का विरोध करने वाली पार्टियों को उम्मीद थी कि इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा. लेकिन नतीजे बिल्कुल सोच से उलट निकले. हिटलर की पार्टी को 37.4 फीसदी वोट मिले.
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सत्ता की भूख
1932 के पहले चुनाव के बाद कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने में नाकाम रहा. लिहाजा नवंबर 1932 में फिर चुनाव हुए. इस बार हिटलर की पार्टी को नुकसान हुआ और सिर्फ 33 प्रतिशत सीटें मिली. वामपंथियों और कम्युनिस्टों को 37 फीसदी सीटें मिलीं. लेकिन वे विभाजित थे. सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण हिटलर को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला. इस तरह हिटलर सत्ता में आया.
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ताकत की छटपटाहट
30 जनवरी 1933 को हिटलर ने चांसलर पद की शपथ ली. इसके बाद राजनीतिक गतिरोध का हवाला देकर उसने राष्ट्रपति से संसद को भंग करने को कहा. 1 फरवरी को संसद भंग कर दी गयी लेकिन हिटलर चांसलर बना रहा. उसके बाद एक महीने के भीतर अध्यादेशों की मदद से राजनीतिक और लोकतांत्रिक अधिकार छीने गए और लोकतंत्र को नाजी अधिनायकवाद में बदल दिया गया.
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लोकतंत्र का अंत
1936 के चुनावों में बहुमत मिलने के बाद नाजियों ने यहूदियों को कुचलना शुरू किया. सरकारी एजेंसियों और विज्ञापनों का सहारा लेकर हिटलर ने अपनी छवि को और मजबूत बनाया. वह जर्मनी को श्रेष्ठ आर्य नस्ल का देश कहता था और खुद को उसका महान नेता. आत्ममुग्धता के इस मायाजाल में लोग फंस गए.
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फोरेंसिक का सहारा
फोरेंसिक पैथोलॉजिस्ट मार्क बेनेके ने अपने आर्टिकल में कहा था कि हिटलर के दांत बहुत खराब थे. यहां तक कि उसके खराब दांतों के चलते ही हिटलर की लाश की पहचान की जा सकी थी. मार्क को नेशनल जियोग्राफिक टेलीविजन ने हिटलर के अवशेषों की जांच के लिए नियुक्त किया था. अपने आर्टिकल में मार्क ने कहा कि हिटलर के दांत और उसके मसूड़ों की बीमारी ही हिटलर के मुंह से आने वाली सांस की बदबू के कारण रहे होंगे. रूस ने लाश से मिले दांतों का उस जानकारी से मेल करके देखा जो हिटलर की डेंटल अस्सिटेंट केथ हॉयजरमन से मिली थी. इसके बाद हिटलर के निजी डेंटिस्ट हूगो ब्लास्के ने भी मित्र देशों के सामने इस बात की पुष्टि की थी.
युद्ध के वक्त रूस की ओर से बतौर इंटरप्रेटर का काम कर रही एलेना झेव्स्काया की पोती लिबोन सुम कहती हैं कि हिटलर के दांतों का आकार अच्छा नहीं था. यहां तक कि उसके डेंनिस्ट भी उसके साथ बंकर में थे. एक इस्राएली अखबार को लिबोव ने कहा था कि उस वक्त की कुछ तस्वीरें हैं जो देखने में बिल्कुल भी अच्छी नहीं है.
झेव्स्काया को हिटलर के दांतों का सेट सौंपा गया था. झेव्स्काया के मुताबिक, "ऐसा इसलिए किया गया था क्योंकि यह डर था कि कही रेड आर्मी के पुरुष सदस्य शराब के नशे में दांतों के उस सेट को इधर-उधर न कर दें. इसलिए वह उसे अपने साथ मॉस्को ले आईं थी. उस वक्त तक सोवियत संघ को भी विश्वास हो चुका था कि हिटलर मर चुका है. लेकिन स्टालिन ने इस खबर को दबाने के आदेश दिए और हिटलर की मौत को लेकर अनिश्चितता का बीज भी बोया. साथ ही ऐसी अफवाहों को हवा दी कि पश्चिमी खेमे ने हिटलर की भागने में मदद की. झेव्स्काया ने अपने संस्मरण में लिखा कि यहां धोखा देने की मंशा थी. और लाश के मिलने जैसी बात को छुपाने की बेहद ही बेकार कोशिश थी. 1965 में सामने आए ये संस्मरण 2018 में जाकर अंग्रेजी में छपे. इसके मुताबिक रूस ने इस अभियान को "ऑपरेशन मिथ" का नाम दिया था.
इतिहासकार एंथनी बीवर ने अपनी किताब, बर्लिन-द डाउनफॉल: 1945, में लिखा है कि स्टालिन की नीति बहुत ही स्पष्ट थी, वह नाजीवाद को ब्रिटेन और अमेरिका के साथ जोड़कर सामने रखना चाहता था. इस बात को और भी हवा दी साल 1976 में आई फिल्म "द बॉयज फ्रॉम ब्राजील ने" जिसमें हिटलर की वापसी का प्लॉट भी शामिल किया गया था.
एक दुखी अंत
कल्पनाएं जितनी वाहियात थीं, असलियत उससे भी कहीं दर्दनाक. इंटरप्रेटर का काम करने वाली झेव्स्काया आगे चलकर एक लेखिका बन गई. लेकिन स्टालिन की मौत के बाद ही वह अपनी कहानी दुनिया के सामने ला सकीं. वहीं हिटलर की डेंटल अस्सिटेंट केथ हॉयजरमन को युद्ध में शामिल होने के चलते सजा काटनी पड़ी. माना गया कि उसने हिटलर के दांतों का इलाज किया, और उसने युद्ध के जारी रहने में भूमिका निभाई.
झेव्स्काया ने लिखा की हॉयजरमन कुछ नहीं बस एक प्रतिबद्ध नाजी थी लेकिन उसने अपने घर में एक यहूदी डेनिस्ट को छुपाया था. द्वितीय विश्वयुद्ध के इतिहास में एक छोटी सी भूमिका में सामने आई हॉयजरमन का साल 1995 में देहांत हो गया.
1945: त्रासदी का अंत
हार, मुक्ति और कब्जा. मई 1945 में जर्मनी के आत्मसमर्पण के साथ यूरोप में द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म हुआ. जर्मनी मलबे में था. अमेरिकी और सोवियत सैनिक जर्मनी के सैनिकों और नागरिकों से मिले जिनके खिलाफ वे सालों से लड़ रहे थे.
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अंत की शुरुआत
नॉर्मंडी में 6 जून 1944 को मित्र राष्ट्रों की सेना के उतरने के साथ नाजी जर्मनी के पतन की शुरुआत का बिगुल बज गया. 1945 के शुरू में अमेरिकी सैनिक जारलैंड पहुंचे और जारब्रुकेन के करीब उन्होंने एक गांव पर कब्जा कर लिया. अभी तक जर्मन सैनिक हथियार डालने को तैयार नहीं थे.
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प्रतीक से ज्यादा
हिटलर की टुकड़ियों की हार को रोकना काफी समय से संभव नहीं था, फिर भी राजधानी बर्लिन में अप्रैल 1945 में जमकर लड़ाई हो रही थी. सोवियत सेना शहर के बीच में ब्रांडेनबुर्ग गेट तक पहुंच गई थी. उसके बाद के दिनों में राजधानी बर्लिन में हजारों सैनिकों और गैर सैनिक नागरिकों ने आत्महत्या कर ली.
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कोलोन में पेट्रोलिंग
पांच साल में 262 हवाई हमलों के बाद राइन नदी पर स्थित शहर कोलोन में भी मई 1945 में युद्ध समाप्त हो गया. करीब करीब पूरी तरह नष्ट शहर में कुछ ही सड़कें बची थीं जिनपर अमेरिकी सैनिक गश्त कर रहे थे. ब्रिटिश मार्शल आर्थर हैरिस के बमवर्षकों ने शहर का हुलिया बदल दिया था जो आज भी बना हुआ है.
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प्रतीक वाली तस्वीर
जर्मनी को दो ओर से घेरने वाली सेनाओं का मिलन टोरगाऊ में एल्बे नदी पर स्थित पुल के मलबे पर हुआ. 25 अप्रैल 1945 को सोवियत सेना की 58वीं डिवीजन और अमेरिकी सेना की 69वीं इंफेंटरी डिवीजन के सैनिक एक दूसरे से मिले. इस प्रतीकात्मक घटना की यह तस्वीर पूरी दुनिया में गई.
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सदमे में विजेता
अमेरिकी सेना के पहुंचने तक म्यूनिख के निकट दाखाऊ में स्थित नाजी यातना शिविर में बंदियों को मारा जा रहा था. इस तस्वीर में अमेरिकी सैनिकों को शवों को ट्रांसपोर्ट करने वाली एक गाड़ी पर देखा जा सकता है. दिल के कड़े सैनिक भी संगठित हत्या के पैमाने पर अचंभित थे.
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विजय का झंडा
2 मई 1945 को एक सोवियत सैनिक ने बर्लिन में संसद भवन राइषटाग पर हसिया हथौड़े वाला सोवियत झंडा लहरा दिया. शायद ही और कोई प्रतीक तृतीय राइष के पतन की ऐसी कहानी कहता है जैसा कि विजेता सैनिकों द्वारा नाजी सत्ता के एक केंद्र पर झंडे का लहराना.
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18 मिनट में मौत
उत्तर जर्मनी के छोडे शहर एम्डेन का त्रासदीपूर्ण दुर्भाग्य. 6 सितंबर 1944 को वहां पर कनाडा के लड़ाकू विमानों ने 18 मिनट के अंदर 15,000 बम गिराए. एम्स नदी और समुद्र के मुहाने पर स्थित बंदरगाह पर अंतिम हवाई हमला 25 अप्रैल 1945 को हुआ. युद्ध में बुरी तरह बर्बाद हुए यूरोपीय शहरों में एम्डेन भी शामिल है.
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मोर्चे से युद्धबंदी
जो जर्मन सैनिक युद्ध में बच गया उसके लिए युद्धबंदी का जीवन इंतजार कर रहा था. सोवियत कैद के बदले ब्रिटिश और अमेरिकी सेना के कैद को मानवीय समझा जाता था. 1941 से 1945 के बीच 30 लाख जर्मन सैनिक सोवियत कैद में गए. उनमें से 11 लाख की मौत हो गई. अंतिम युद्धबंदियों को 1955 में रिहा किया गया.
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सबसे अहम खबर
यही खबर पाने के लिए अमेरिकी सैनिक लड़ रहे थे. 2 मई 1945 को अमेरिकी सैनिकों को सेना के अखबार स्टार एंड स्ट्राइप्स से अडोल्फ हिटलर की मौत के बारे में पता चला. सैनिकों के चेहरों पर राहत की झलक देखी जा सकती है. द्वितीय विश्वयुद्ध का अंत करीब आ रहा था.
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मलबे में उद्योग
पहले विश्वयुद्ध की तरह स्टील और हथियार बनाने वाली एसेन शहर की कंपनी क्रुप हिटलर के विजय अभियान में मदद देने वाली प्रमुख कपनी थी. यह परंपरासंपन्न कंपनी मित्र देशों की सेनाओं की बमबारी के प्रमुख लक्ष्यों में एक है.1945 तक क्रुप के कारखानों में हजारों बंधुआ मजदूरों से काम लिया जाता था.
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नष्ट बचपन
वे युद्ध को समझ नहीं सकते, फिर भी जर्मनी में हर कहीं दिखने वाला मलबा लाखों बच्चों के लिए खेलने की जगह है. मलबों से दबे जिंदा बमों से आने वाले खतरों के बावजूद वे यहां खेलते हैं. एक पूरी पीढ़ी के लिए युद्ध एक सदमा है जिसकी झलक जर्मनों की कड़ी मेहनत और किफायत में दिखती है.
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युद्ध से क्या बचा
युद्ध में इंसान. यह जर्मन सैनिक जिंदा बच गया. लेकिन जिंदगी सामान्य होने में अभी देर है. जर्मनी में 1945 में पीने का पानी, बिजली और हीटिंग लक्जरी थी. इसमें जिंदा रहने के लिए जीजिविषा, गुजारा करने की इच्छा और मुसीबतों और अभाव से निबटने का माद्दा चाहिए.
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बर्लिन में वसंत
युद्ध की समाप्ति के 70 साल बाद बर्लिन, ठीक ब्रांडेनबुर्ग गेट के सामने. वह जगह जहां अतीत वर्तमान के साथ नियमित रूप से टकराता है. मई 45- बर्लिन में वसंत के नाम वाली एक प्रदर्शनी राजधानी में जर्मनी सेना के आत्मसमर्पण और यूरोप में दूसरे विश्वयुद्ध के खात्मे की याद दिला रही है.