उत्तर प्रदेश में मथुरा के एक सरकारी फॉरेंसिक लैब ने उस सैंपल के बीफ होने की पुष्टि की, जिसे दादरी में पीट पीट कर मार डाले गए व्यक्ति के घर से लाया बताया गया था. हालांकि सैंपल के वाकई वहीं से लाए जाने पर भी संदेह है.
विज्ञापन
सितंबर 2015 में दादरी के पास एक गांव में मोहम्मद अखलाक को घर में बीफ रखने के आरोप में पीट पीट कर मार डाला गया था. बीते महीनों में कई बार इस पर बहस हुई कि मृतक अखलाक के घर के फ्रिज में रखा मीट सचमुच बीफ था या कुछ और. तमाम राउंड की जांच के बाद भी इसका जवाब मिलाजुला रहा है.
सबसे हाल की रिपोर्ट यूपी सरकार की मथुरा स्थित फॉरेंसिक लैब से आई है, जिसमें सैंपल के बीफ होने की पुष्टि हुई. वहीं प्रमुख अंग्रेजी दैनिक टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित रिपोर्ट में यूपी के ही एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से लिखा है कि सैंपल के बीफ होने से यह तो सिद्ध नहीं होता कि अखलाक ने घर में बीफ रखा था या खाया था, और ना ही यह साबित होता है कि सैंपल उसी के घर से लाया गया है.
सबसे अहम सवाल यह है कि भारत में 58 साल के एक आम मुसलमान नागरिक की हत्या का मकसद क्या था. मीट अगर वाकई बीफ निकला भी तो क्या उसको पीट पीट कर मार डालना जायज ठहराया जा सकता है? हत्या के मामले की जांच में मीट की प्रकृति नहीं, बल्कि हत्या करने की वजह ढ़ूंढना जरूरी है.
कई आम-ओ-खास लोग सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों पर लिख रहे हैं कि सैंपल की जांच करवाने की कोई जरूरत ही नहीं होनी चाहिए थी क्योंकि किसी की हत्या के लिए ऐसी वजह साबित करने के भारतीय न्याय व्यवस्था तक में कोई मायने नहीं हैं. उत्तर प्रदेश में बीफ खाना कानून की नजर में अपराध नहीं है लेकिन गोहत्या पर प्रतिबंध है.
मोहम्मद अखलाक की हत्या की जांच के सिलसिले में अब तक 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें एक स्थानीय बीजेपी कार्यकर्ता का बेटा भी शामिल है. अखलाक मामले की सुनवाई गौतम बुद्ध नगर के फास्ट ट्रैक कोर्ट में चल रही है.
इस हत्याकांड से भारत में असहनशीलता पर एक बड़ी बहस छिड़ गई थी. असहनशीलता या इनटॉलरेंस हर उस व्यक्ति, कार्य या रहन सहन के प्रति जो बहुसंख्यकों के मानक से मेल ना खाती हो. यह भारतीय संविधान में हर नागरिक को अपनी इच्छा के धर्म, मान्यता और रहन सहन को मानने के लिए मिली बुनियादी स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है.
ये हैं भारत के बीफ खाने वाले
भारत में खानपान की आदतें केवल व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि धर्म, जाति, क्षेत्र और आय पर आधारित एक जटिल समीकरण से जुड़ी हैं. देखिए सरकारी आंकड़ों के अनुसार भारत में कौन लोग गाय या भैंस का मांस खाते हैं.
तस्वीर: AP
राष्ट्रीय सैंपल सर्वे ऑफिस एनएसएसओ के 2011-12 के आंकड़ें दिखाते हैं कि भारत में करीब 8 करोड़ लोग बीफ या भैंस का मीट खाता है.
तस्वीर: Shaikh Azizur Rahman
आंकड़ों के अनुसार बीफ यानि गौमांस और भैंस का मीट खाने वाले ये लोग सभी धर्मों और राज्यों में पाये जाते हैं. इन 8 करोड़ लोगों में करीब सवा करोड़ हिन्दू हैं.
तस्वीर: Getty Images/P. Guelland
एनएसएसओ के आंकड़ों से हाल के सालों में मीट की खपत बढ़ने का पता चलता है. इस सर्वे में करीब एक लाख लोगों से आंकड़ें इकट्ठे किए गए. देखा गया कि हफ्ते और महीने की औसत अवधि में एक परिवार खाने की किन चीजों पर कितना खर्च करता है.
तस्वीर: DW/S.Waheed
विश्व में मांस की खपत का लेखाजोखा करने वाली संयुक्त राष्ट्र की संस्था एफएओ की 2007 में जारी 177 देशों की सूची में भारत को अंतिम स्थान मिला. 43 किलो के विश्व औसत के मुकाबले भारत में प्रति व्यक्ति सालाना मांस की खपत मात्र 3.2 किलो दर्ज हुई.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/dpaweb
एफएओ बताता है कि दुनिया भर में लोगों की क्रय क्षमता बढ़ने, शहरीकरण और खानपान की आदतें बदलने के कारण मांस की खपत बढ़ी है. भारत में खपत विश्व औसत से काफी कम है लेकिन वह बीफ, भैंस के मांस और काराबीफ का सबसे बड़ा निर्यातक है.
तस्वीर: picture-alliance/dpa/U. Baumgarten
भारत में धर्म के आधार पर गाय या भैंस का मांस खाने वाला सबसे बड़ा समुदाय 6 करोड़ से अधिक मुसलमानों का है. संख्या के मामले में इसके बाद सबसे अधिक हिन्दू समुदाय आता है. जबकि प्रतिशत के अनुसार मुसलमानों के बाद ईसाई आते हैं.
तस्वीर: DW/S.Waheed
मुसलमानों के अलावा अनुसूचित जाति और जनजाति (एससी/एसटी) गाय या भैंसों का मीट खाने वाला सबसे बड़ा तबका है. हिन्दुओं में इसे खाने वाले 70 फीसदी से अधिक लोग एससी/एसटी, 21 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग और करीब 7 फीसदी उच्च जातियों से आते हैं.