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दिमागी बुखार से सैकड़ों बच्चों की जान गई

१६ अक्टूबर २०११

भारत के सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य उत्तर प्रदेश के गोरखपुर पर पड़ा दिमागी बुखार का साया सैकड़ों बच्चों की जान लेने के बाद भी हल्का होने का नाम नहीं ले रहा. केवल इस साल अब तक 430 लोगों की जान जा चुकी है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

दिमागी बुखार यानी जापानी इंसेफ्लाइटिस से पीड़ित कम से कम 2400 मरीज इस साल गोरखपुर के सरकारी अस्पतालों में भर्ती कराए गए हैं. इलाके के सरकारी अस्पतालों में स्वास्थ्य सुविधाओं का बुरा हाल है और ऊपर से दिनों दिन बढ़ता इस बीमारी का कहर बच्चों का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया है. गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज के मुख्य बाल चिकित्सक केपी कुशवाहा ने बताया कि पूरे उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा गोरखपुर ही इंसेफ्लाइटिस की चपेट में आया है.

नेपाल की सीमा से लगते इस शहर के अस्पताल दिमागी बुखार के पीड़ितों से भरे पड़े हैं. केपी कुशवाहा ने बताया, "हालत बहुत नाजुक है और पिछले साल के मुकाबले इस साल यह महामारी और विकराल रूप में सामने आई है. हर रोज 30-40 मरीज अस्पतालों में पहुंच रहे हैं और वहां उन्हें रखने के लिए अब कोई जगह खाली नहीं है. जनवरी से ही दिमागी बुखार के पीड़ितों का यहां आना लगा हुआ है हालांकि जुलाई के बाद से इनमें बहुत ज्यादा इजाफा हुआ है." कुशवाहा ने बताया कि इस शनिवार तक 336 बच्चों और 94 व्यस्कों की मौत हुई है.

इंसेफ्लाइटिस का प्रकोप पहले पहल 2005 में सामने आया था. तब से लेकर अब तक उत्तर प्रदेश में 1400 लोगों की जान इस बीमारी से जा चुकी है. पिछले साल दिमागी बुखार से मरने वालों की तादाद 215 थी जिसमें ज्यादातर बच्चे थे. हर साल दिमागी बुखार का कहर इस इलाके पर टूटता है और गरीब घरों के बच्चे जिन्हें पूरा पोषण नहीं मिल पाता इसके शिकार बनते हैं.

इस बीमारी में दिमाग में भयंकर जलन होती है और इसके कारण दिमाग को काफी नुकसान पहुंचता है. मौत का कारण भी दिमाग का काम करना बंद कर देना है. इस बीमारी के लक्षण सिरदर्द, दौरा और बुखार के रूप में सामने आते हैं. इस बीमारी को फैलाने वाले वायरस मच्छरों के साथ एक जगह से दूसरी जगह और एक इंसान से दूसरे इंसान तक पहुंचते हैं. गोरखपुर और आसपास के इलाकों में सफाई के बारे में लोगों की कम जागरूकता, गंदगी और गरीबी और सरकार की अनदेखी इस बीमारी के फैलने की बड़ी वजह है.

राज्य और केंद्र सरकारें एक दूसरे पर जिम्मेदारी डाल कर इसकी अनदेखी कर रही हैं और साल दर साल यह बीमारी अपना रूप और विकराल करती जा रही है. हालात इतने बुरे हैं पर अभी तक पिछले छह सालों में केवल दो बार इसके लिए टीकाकरण कार्यक्रम चलाया गया है. इस साल केंद्र सरकार ने उत्तर प्रदेश को 66 लाख टीके मुहैया कराने का भरोसा दिया था जो अब तक नहीं मिला है. राज्य सरकार भी इस मामले में संजीदा नहीं है. पार्कों और मूर्तियों पर अरबों रूपये खर्च करने वाली सरकार ने महज 18 करोड़ रूपये इस बीमारी के इलाज के लिए मेडिकल कॉलेज में अलग वॉर्ड बनाने के नाम पर दिए हैं. बीमारी को फैलने से रोकने और मौजूदा बीमारो के इलाज की तरफ कोई ध्यान नहीं है.

इस बीच बीमारी के दूसरे इलाकों में भी फैलने की खबरें आ रही हैं. दिल्ली और चंडीगढ़ में भी दिमागी बुखार के कुछ मामले सामने आए हैं. गोरखपुर के अलावा पूर्वोत्तर राज्य असम में भी इस बीमारी का भारी प्रकोप है इस साल वहां दिमागी बुखार के 2090 मरीज सामने आए हैं. इनमें से 114 लोगों की जान गई है. अकेले सिबसागर जिले के ही 42 लोगों की जान इस बीमारी ने ली है.

रिपोर्टः एएफपी/एन रंजन

संपादनः वी कुमार

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