करीब 3 लाख मानसिक रोगियों को नाजी शासन के दौरान मौत के घाट उतार दिया गया था. एक बार फिर इनकी पहचान करने की कोशिश हो रही है. कुछ के मस्तिष्क को शोध के लिये सौंपा गया है और कुछ अब भी जर्मन संस्थानों में संरक्षित हैं.
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मानव मस्तिष्कों के नमूनों को म्यूनिख की माक्स प्लांक सोसायटी के संग्रहालय में रखा गया है. इनमें से कुछ नमूने नाजी पीड़ितों के भी हैं, जिन्हें सिर्फ इसलिये मार दिया गया था क्योंकि उन्हें मानसिक रूप से बीमार समझा गया. नाजी शासक हिटलर का मानना था कि ऐसे लोग जीवित रहने के लायक नहीं हैं. बच्चों सहित 3 लाख से भी अधिक लोग नाजियों के "यूथेनेशिया प्रोग्राम, टी4" के तहत मार दिये गये थे. हालांकि पीड़ितों के मस्तिष्क को संरक्षित किया गया था जिसके जरिये अब एक बार फिर उन्हें पहचानने की कोशिश की जा रही हैं.
माक्स प्लांक सोसायटी की ओर से दी गयी जानकारी के मुताबिक अब जर्मनी, ऑस्ट्रिया, ब्रिटेन और अमेरिका का एक अंतरराष्ट्रीय शोध दल नमूनों की जांच करने और पीड़ितों की पहचान करने के लिए मिलकर काम करेगा.
वियना यूनिवर्सिटी के इतिहासकार हेरविग चेक के मुताबिक, "इच्छामृत्यु कार्यक्रम नाजियों की ओर से किया गया अपराध था लेकिन अब वैज्ञानिकों के पास मस्तिष्क के ऊतकों को समझने का अच्छा मौका है, जिससे वे अन्य मानसिक रोगों की भी जांच कर सकेंगे."
इसके तहत डॉक्टर किसी खास मरीज के दिमाग की भी मांग कर सकेंगे. ज्यादातर नाजी पीड़ितों के मस्तिष्क को फॉर्मेलीन में यह सोच कर संरक्षित करवाया गया था कि युद्ध के बाद उससे शोध की तरक्की होगी. यहां तक कि 1970 के दशक तक शोधकर्ताओं ने इन मस्तिष्कों के कुछ हिस्सों का प्रयोग डाउन सिंड्रोम और अन्य रोगों के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिये किया भी था. म्यूनिख के तकनीकी विश्वविद्यालय में इतिहासकार गेरिट होहेनडॉर्फ के मुताबिक, "पहले इन शोधों को नैतिक रूप से सरल माना जाता था, शोधकर्ता मानते थे कि इन मस्तिष्कों को चिकित्सा शोध में तो इस्तेमाल किया ही जा सकता है."
साल 2015 में, बर्लिन में माक्स प्लांक सोसायटी के संग्रहालय में एक कर्मचारी को जूते के डिब्बे जैसे आकार का लकड़ी का बॉक्स मिला था, जिसमें 100 से भी अधिक मानव मस्तिष्कों की स्लाइड थी. इनमें से कुछ को नाजी युग का माना जा रहा है. अब उनकी भी जांच की जायेगी.
कैसे सत्ता तक पहुंचा हिटलर
न तो सेना की ट्रेनिंग थी, न ही राजनीति का अनुभव, इसके बावजूद 18 महीने में एक राजनीतिज्ञ ने जर्मन लोकतंत्र को तानाशाही में बदल दिया.
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हिटलर का आना
प्रथम विश्वयुद्ध के बाद 1920 के दशक में जर्मनी की हालत बेहद खराब थी. दो वक्त का खाना जुटाना तक बड़ी चुनौती थी. देश को राजनीतिक स्थिरता की जरूरत थी. 1926 के चुनाव में हिटलर की पार्टी को सिर्फ 2.6 फीसदी वोट मिले. लेकिन सितंबर 1930 में हुए अगले चुनावों में उसकी पार्टी (NSDAP) को 18.3 फीसदी वोट मिले. लेकिन कैसे?
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लोगों को रिझाना
लोगों को रिझाने के लिए हिटलर ने अपनी आत्मकथा माइन काम्फ (मेरा संघर्ष) का इस्तेमाल किया. सरल ढंग से लिखी गई किताब के अंश लोगों को याद रहे. किताब के जरिये पाठकों की भावनाओं को हिटलर की तरफ केंद्रित किया गया.
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नफरत का फैलाव
यहूदी जर्मन बुद्धिजीवी हाना आरेन्ट के मुताबिक नाजियों ने यहूदियों और विदेशियों के प्रति जनमानस में घृणा फैलाई. इस दौरान वामपंथियों और उदारवादियों को दबा दिया गया. आरेन्ट के मुताबिक घृणा और राजनीतिक संकट को हथियार बनाकर हिटलर ने जमीन तैयार की.
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किसानों और कारोबारियों की मदद
एक नए शोध के मुताबिक NSDAP को वोट देने वालों में ज्यादातर किसान, पेंशनभोगी और कारोबारी थे. उन्हें लगता था कि हिटलर की पार्टी ही आर्थिक तरक्की लाएगी. लेकिन हाइवे बनाने जैसे कार्यक्रमों के जरिये रोजगार पैदाकर हिटलर ने आम लोगों का भी समर्थन जीता.
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बर्लिन की झड़प
1932 के चुनावों से पहले बर्लिन में गृह युद्ध जैसी नौबत आई. हिटलर समर्थक गुंडों ने जुलाई 1932 में हड़ताल या प्रदर्शन करने वाले कामगारों को मार डाला. हिटलर का विरोध करने वाली पार्टियों को उम्मीद थी कि इसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा. लेकिन नतीजे बिल्कुल सोच से उलट निकले. हिटलर की पार्टी को 37.4 फीसदी वोट मिले.
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सत्ता की भूख
1932 के पहले चुनाव के बाद कोई भी राजनीतिक दल सरकार बनाने में नाकाम रहा. लिहाजा नवंबर 1932 में फिर चुनाव हुए. इस बार हिटलर की पार्टी को नुकसान हुआ और सिर्फ 33 प्रतिशत सीटें मिली. वामपंथियों और कम्युनिस्टों को 37 फीसदी सीटें मिलीं. लेकिन वे विभाजित थे. सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण हिटलर को सरकार बनाने का निमंत्रण मिला. इस तरह हिटलर सत्ता में आया.
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ताकत की छटपटाहट
30 जनवरी 1933 को हिटलर ने चांसलर पद की शपथ ली. इसके बाद राजनीतिक गतिरोध का हवाला देकर उसने राष्ट्रपति से संसद को भंग करने को कहा. 1 फरवरी को संसद भंग कर दी गयी लेकिन हिटलर चांसलर बना रहा. उसके बाद एक महीने के भीतर अध्यादेशों की मदद से राजनीतिक और लोकतांत्रिक अधिकार छीने गए और लोकतंत्र को नाजी अधिनायकवाद में बदल दिया गया.
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लोकतंत्र का अंत
1936 के चुनावों में बहुमत मिलने के बाद नाजियों ने यहूदियों को कुचलना शुरू किया. सरकारी एजेंसियों और विज्ञापनों का सहारा लेकर हिटलर ने अपनी छवि को और मजबूत बनाया. वह जर्मनी को श्रेष्ठ आर्य नस्ल का देश कहता था और खुद को उसका महान नेता. आत्ममुग्धता के इस मायाजाल में लोग फंस गए.
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इतिहासकार चेक कहते हैं कि शोध के लिये इन मानव ऊतकों का इस्तेमाल करना अपमानजनक है. हालांकि चेक और होहेनडॉर्फ दोनों ही इस शोध कार्यक्रम में हिस्सा ले रहे हैं. साल 1990 में भी माक्स प्लांक सोसायटी ने म्यूनिख के कब्रिस्तान से तकरीबन 1 लाख मानव नमूनों को खोद कर निकाला था. ये नमूने भी उन्हीं लोगों के थे, जिन पर नाजी पीड़ित होने का शक था या वे जिन्हें जबरन श्रम और यातना शिविरों में रखा गया था.
इस साल जून में शुरू होने वाले नये शोध न केवल नये नमूनों की पहचान करेंगे बल्कि उन नमूनों के पहचान का काम भी करेंगे जिन्हें साल 1990 में निकाला गया था.