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दिमाग के राजों पर मंथन

१५ फ़रवरी २०१३

दिमाग का वजन तो केवल सवा से डेढ़ किलो ही होता है, लेकिन इस छोटे से मस्तिष्क के भीतर अपार रहस्य भरे हैं. मंथन में इस बार जानेंगे इन रहस्यों को. साथ ही मिलेंगे एक ऐसे व्यक्ति से जो सब छोड़ अकेला जंगल में जीवन बिता रहा है.

तस्वीर: DW

हमारे दिमाग में एक साथ इतनी सारी जानकारी जमा होती है कि कई बार कुछ चेहरों या किसी चीज को देखकर लगता है कि इसे पहले कहीं देखा है. याददाश्त पर जोर डालना पड़ता है. बर्लिन में वैज्ञानिक इस राज को सुलझा रहे हैं कि ऐसा क्यों होता है. वे ऐसी तकनीक तैयार कर रहे हैं कि देखी हुई चीजें सामने आने पर दिमाग के खास हिस्से खुद सक्रिय हो जाएं.

अब तक वैज्ञानिक जो जानकारी जुटा सके हैं उनके मुताबिक हमारे दिमाग में सौ अरब न्यूट्रॉन यानी एक खरब एकल कोशिकाएं होती हैं. इन सबके काम अलग अलग हैं, मसलन अचानक डर लगने पर दिमाग के एक हिस्से के न्यूट्रॉन सक्रिय होते हैं और 400 किलोमीटर प्रतिघंटा की रफ्तार से इलेक्ट्रिक सिग्नल भेजने लगते हैं. फिर खास रसायन निकलते हैं और पूरे शरीर में उनका असर दिखने लगता है. इस तरह से हम चुनौती का सामना करने के लिए तैयार हो जाते हैं.

दिमाग में होते हैं एक खरब न्यूट्रॉनतस्वीर: Fotolia/psdesign1

दिमागी हलचल में होने वाले बदलाव को पकड़ने के सिद्धांत पर ही लाई डिटेक्टर यानी झूठ पकड़ने वाली मशीन भी काम करती है. इसका एक और फायदा है, भविष्य में वैज्ञानिक शारीरिक रूप से अक्षम लोगों के निष्क्रिय अंगों को दुरुस्त कर सकेंगे.

धीरे धीरे घटता दिमाग

मंथन में जर्मनी के यूलिष रिसर्च सेंटर में दिमाग पर चल रही रिसर्च के बारे में भी बताया गया है. दरअसल यूलिष में सुपर कंप्यूटर की मदद से ब्रेन एटलस तैयार कि जा रहा है जिसे 3डी चश्मों की मदद से पढ़ा जाता है. इसे पढ़ कर अल्जाइमर और पारकिंसन जैसी बीमारियों को समझा जा सकता है. यह अब तक इस्तेमाल की जाने वाली तकनीक से अलग है.

सीटी स्कैन, एससीटी, एमआरआई या ईसीजी जैसे टेस्टों में खास सिग्नलों के जरिए दिमाग का खाका खींचा जाता है या हलचल का अंदाजा लगाया लगाया जाता है. लेकिन ब्रेन एटलस के जरिए डॉक्टर दिमाग के बाहर और भीतर के कोने कोने तक जा सकेंगे. वे रोगी के दिमाग की तुलना सेहतमंद मस्तिष्क से करेंगे और तेज कंप्यूटरों की मदद से सेकेंडों के भीतर पता चल जाएगा कि फर्क कहां है. फिलहाल जो जानकारी जुटाने के लिए कई टेस्ट करने पड़ते हैं, ब्रेन एटलस से वह पल भर में सामने आ जाएंगी.

सुपर कंप्यूटर की मदद से बन रहा है ब्रेन एटलसतस्वीर: Fotolia/Andrea Danti

हालांकि नई तकनीकों के बावजूद मस्तिष्क विज्ञान में कई चुनौतियां भी हैं. एक उम्र के बाद हमारे दिमाग का वजन घटने लगता है, हर साल करीब एक-दो ग्राम. एकल कोशिकाएं मरने लगती हैं. ऐसा क्यों होता है, अब तक पता नहीं लग पाया है. यह बात भी दिलचस्प है कि अलग अलग इंसानों में कोशिकाओं के मरने का तरीका भी अलग अलग होता है.

एक ऐसा भी जीवन

मंथन में इस शनिवार दिमाग के राज समझने के साथ साथ आप एक ऐसे व्यक्ति की कहानी भी देखेंगे जिसने जंगल की पुकार को सुन सब छोड़ छाड़ कर एक नयी दुनिया बसा ली. शहरों की दौड़ भाग से दूर 60 साल का यह व्यक्ति पोलैंड के एक जंगल में अकेला रहता है और वहीं अपनी आखिरी सांस लेना चाहता है.

यूरोप में बचा है केवल एक आदिम जंगलतस्वीर: Marta Grudzinska

साथ ही एक झलक दिखेगी यूरोप के आखिरी आदिम जंगल की. यह जंगल 12,000 साल पुराना है. माना जाता है कि यूरोप में जब बर्फ पिघलनी शुरू हुई और पौधे उगने लगे तब यह जंगल पैदा हुआ और तब से यह वैसा ही है. कहां है यह जंगल, यह जानने के लिए देखना ना भूलें मंथन, दूरदर्शन पर शनिवार सुबह 10.30 बजे.

मंथन की रोमांचक रिपोर्टों में इस बार यह भी बताया जा रहा है कि किस तरह से व्यस्त मेट्रो स्टेशन पर भीड़ पर नजर रखी जाती है और बिना लोगों को भनक भी लगे, उनके लिए कंप्यूटर प्रोग्राम के जरिए नए रास्ते भी तैयार कर दिए जाते हैं. इसके अलावा यूरोप में पहाड़ों में रोपवे या गंडोला की किस तरह से मरम्मत की जाती है, यह भी आप देख सकते हैं. आपके सुझाव भी इस बार कार्यक्रम में शामिल किए गए हैं. आप मंथन के बारे में अपने सवाल, सुझाव या अपनी शिकायतें हम तक फेसबुक के जरिए पहुंचा सकते हैं. विज्ञान से जुड़े सवाल कार्यक्रम का हिस्सा बनेंगे.

रिपोर्ट: ईशा भाटिया

संपादन: ओंकार सिंह जनौटी

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