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दिमाग के सेंसर

६ मार्च २०१३

ठंड, किसी को कान में लगती है तो किसी को पैर या माथे पर. इंसान की त्वचा ठंड लगने पर अलग अलग ढंग से मस्तिष्क को चेतावनी देने लगती है. चेतावनियां मिलते ही दिमाग इंसान को जिंदा रखने के लिए जबरदस्त इंतजाम करने लगता है.

तस्वीर: AP

जर्मन स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी कोलोन के वैज्ञानिक योआखिम लाट्श के मुताबिक इंसान की त्वचा में तापमान भांपने वाले सेंसर होते हैं. इन्हें 'हीट सेंसर' कहा जाता है. सेंसर इंसानों को गर्मी, सर्दी या सुहाने मौसम का अहसास कराते हैं. किसी के कान में सबसे ज्यादा हीट सेंसर होते हैं, किसी के हाथ या पैर में और किसी के सिर में. जहां हीट सेंसर ज्यादा होंगे, ठंड का ज्यादा अनुभव पहले वहीं होगा. गर्मी लगने पर भी सेंसर सक्रिय होते हैं. उनके सिग्नल तुरंत दिमाग तक जाते हैं और शरीर खुद को ठंडा रखने के लिए पसीना छोड़ने लगता है.

हीट सेंसरों की संख्या भी अलग अलग हो सकती है. लाट्श कहते हैं, "यह कुछ इसी तरह है जैसे लोगों के पैर, उनका का भी आकार अलग अलग होता है. सेंसरों के मामले में भी ऐसा ही है, कुछ लोगों में ज्यादा होते हैं तो कुछ में कम."

तस्वीर: AP

शरीर का अलार्म सिस्टम

इंसान भले कहीं रहे, चाहे हिमालय में या सहारा रेगिस्तान में, उनके शरीर का तापमान करीबन एक समान होता है. लाट्श कहते हैं, "हमारे शरीर का तापमान करीब 36.5 डिग्री सेल्सियस होता है. यह हल्का घटता बढ़ता रहता है. अगर शरीर का तापमान 41 डिग्री के पार या 30 डिग्री के नीचे चला जाए तो जीवन खतरे में पड़ सकता है." ऐसा होने पर शरीर के कुछ अंग काम करना बंद करने लगते हैं. इंसान बेहोश हो सकता है, उसे हाइपोथर्मिया हो सकता है. ज्यादा देर ऐसी स्थिति रहने पर मौत भी हो सकती है.

लेकिन इतनी बुरी हालत से पहले दिमाग बेहद सक्रिय हो जाता है. वह किसी तरह इंसान को जिंदा रखने की कोशिश करता है. हीट सेंसरों के जरिए चेतावनी मिलने लगती है कि ठंड ज्यादा है और शरीर इससे प्रभावित हो रहा है.

ठंड लगने पर बदन कांपना शुरू हो जाता है. त्वचा के रोम रोम में छोटे छोटे उभरे दाने बनने लगते हैं. लाट्श के मुताबिक इंसान के साथ ऐसा आदिकाल से होता आ रहा है, "शरीर पर जो बाल होते हैं उनमें बहुत ही छोटी मांसपेशी होती है. यह उस जगह पर होती है जहां बाल हमारी त्वचा से जुड़ा रहता है. जब ठंड लगती है तो मांसपेशी सिकुड़ने लगती है और बाल खड़ा हो जाता है."

शरीर पर खूब बाल हों तो ठंड से कुदरती सुरक्षा मिलती है. जानवरों के शरीर में बालों का फर गर्माहट की एक परत बनाता है, जो हवा रोक लेता है.

इंसान के शरीर में ज्यादा बाल नहीं होते, लिहाजा बाल खड़े होने से एक छोटी सी फरनुमा परत बनने लगती है. लाट्श कहते हैं कि जान बचाने की एक और कला यह है कि "जब शरीर को पता चलता है कि ज्यादा गर्माहट की जरूरत है तो मांसपेशियां खिंचनी शुरू हो जाती हैं."

हमारा निचला जबड़ा ढीला पड़कर किटकिटाने लगता है. जबड़ा सिर के साथ सिर्फ दो बिंदुओं पर जुड़ा रहता है. ठंड में शरीर ज्यादा से ज्यादा ऊर्जा बचाते हुए खून के बहाव को तेज करने की कोशिश करता है. जबड़े या हार पैरों के कांपने से खून का बहाव तेज होता है और शरीर गर्म होने लगता है.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

महिला पुरुष में अंतर

ठंड से बचाव के लिए मांसपेशियां भी जरूरी हैं. औसतन एक महिला का शरीर 25 फीसदी मासंपेशियों से बना होता है, जबकि पुरुषों में मांसपेशियां करीब 40 फीसदी होती हैं. जिस व्यक्ति के शरीर में जितनी ज्यादा मांसपेशियां होती है, उसे ठंड का अहसास उतना ही कम होता है.

लेकिन इसके बावजूद एक लिहाज से महिलाओं के शरीर में ठंड से बचने की काबिलियत पुरुषों से ज्यादा होती है. महिलाओं का शरीर इस तरह बना होता है कि अंदरूनी अंग ज्यादा सुरक्षित रहें. ऐसा इसलिए होता है ताकि गर्भ में पल रहा बच्चा भी गर्म रहे.

वैसे आम धारणा है कि मोटे व्यक्तियों को ठंड कम लगती है. लाट्श के मुताबिक यह कुछ हद तक सही भी है. जिन लोगों के शरीर में चर्बी ज्यादा होती है वे दुबले पतलों के मुकाबले दो डिग्री कम तापमान सहन कर सकते हैं.

अगर आप कड़ाके की सर्दी में भी बाहर निकलना पंसद करते हैं तो आपके लिए लाट्श का एक आसान सुझाव है, "वजन बढ़ाने के बारे में मत सोचिए बल्कि ज्यादा शारीरिक श्रम कीजिए." इससे मांसपेशियां बनेंगी, शरीर में ताकत आएगी और ठंड भी दूर भागेगी.

रिपोर्ट: बबेटे ब्राउन/ओंकार सिंह जनौटी

संपादन: ए जमाल

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