कभी सोचा है कि स्मार्टफोन और इंटरनेट का मस्तिष्क पर कैसा प्रभाव पड़ता होगा? दक्षिण कोरिया के शोधकर्ताओं का दावा है कि इंटरनेट और स्मार्टफोन की लत इंसानी दिमाग की कैमेस्ट्री को बिगाड़ देती है.
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दक्षिण कोरियाई यूनिवर्सिटी में रेडियोलॉजी के प्रोफेसर ने ह्यूंग सुक सियो के साथ काम कर रही टीम का दावा है कि इंटरनेट और स्मार्टफोन का प्रयोग दिमाग की कैमेस्ट्री को प्रभावित करता है. शोधकर्ताओं ने 15 साल की उम्र के 19 किशोरों पर किये गये अपने अध्ययन में ऐसे लक्षण पाये हैं. शोधकर्ताओं के मुताबिक जांच में शामिल किये गये ये सभी किशोर स्मार्टफोन या इंटरनेट की लत से जूझ रहे थे. डॉक्टर्स पता करना चाहते थे कि क्या स्मार्टफोन या इंटरनेट की लत का मस्तिष्क पर कोई प्रभाव पड़ता है? इसके लिए इनका एक टेस्ट किया गया. टेस्ट में इनसे पूछा गया कि वे किस स्तर तक इंटरनेट या स्मार्टफोन का इस्तेमाल करते हैं. साथ ही इंटरनेट और स्मार्टफोन इनके रोजाना के पैटर्न को कितना प्रभावित करता है. मसलन उनके दिन के काम, उनके कार्य करने की क्षमता, सोने का तरीका और भावनायें. इसके अतिरिक्त शोधकर्ताओं ने ऐसे 19 अन्य लोगों की भी जांच की जो इसी उम्र के थे लेकिन उनमें इंटरनेट की लत जैसा कोई लक्षण नहीं था. जांच में पाया गया कि जो इंटरनेट और स्मार्टफोन की लत से जूझ रहे हैं उनमें नींद नहीं आने और गुस्सा आने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है. साथ ही अवसाद, डिप्रेशन और चिंता जैसी शिकायतों से भी ग्रस्त होते हैं.
मत बनो स्मार्टफोन के कीड़े
स्मार्टफोन, जीवन को आसान बनाते हैं, लेकिन इनकी लत कई बीमारियां और मुश्किलें सामने ला रही है.
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हमेशा थकी थकी आंखें
स्मार्टफोन की स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी में नीली लाइट सबसे ज्यादा होती है. काफी देर तक स्क्रीन को करीब से देखने पर आंखों पर बहुत दबाव पड़ता है. अगले दिन भी आंखों में असहजता सी महसूस होती है. लंबे समय तक ऐसा करने से आँखों की पुतली प्रभावित हो सकती है.
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नींद में खलल
रात में सोने की तैयारी की लेकिन तभी व्हट्सऐप पर एक मैसेज आ गया. मैसेज को पढ़ने वाला सोच में डूब गया. ऐसा होने पर नींद आना बहुत आसान नहीं होता. स्मार्टफोन की रोशनी नींद के लिए जिम्मेदार हॉर्मोन मेलाटोनिन को भी प्रभावित करती है.
यूरोप और अमेरिका में हुए कई शोधों के बाद यह साफ हो गया है कि टेबलेट और मोबाइल फोन के अति इस्तेमाल से गर्दन, बांह और रीढ़ की हड्डी पर जरूरत से ज्यादा जोर पड़ता है. इसका नतीजा टीस देने वाले दर्द के रूप में सामने आता है.
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कमर में दर्द
ब्रिटेन की चीरोप्रैक्टिस एसोसिएशन के मुताबिक बीते सालों में युवाओं में कमर दर्द के बढ़ते मामले हैरान करने वाले हैं. 2015 में ब्रिटेन में 45 फीसदी युवाओं को कमर में दर्द की शिकायत हुई. 16 से 24 साल के इन युवाओं को ऐसा दर्द होने लगा जैसा रीढ़ की हड्डी में दबाव पढ़ने से महसूस होता है.
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अवसाद
स्मार्टफोन और उसमें बसी सोशल मीडिया की दुनिया अवसाद का कारण भी बन रही है. नॉर्थवेस्ट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक स्मार्टफोन पर ज्यादा समय बिताने वालों पर मानसिक अवसाद का खतरा बहुत ज्यादा रहता है.
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सामाजिक रिश्तों में अंतर
लोगों से मिलना, खाना पकाना, कसरत करना या फिर घूमना फिरना, ये आदतें इंसान को मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ रखती हैं. लेकिन स्मार्टफोन की लत लग जाए तो इंसान ये सब करने के बजाए कीड़े की तरह फोन में ही घुसा रहता है.
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टाइम की बर्बादी
एक चीज देखने के लिए स्मार्टफोन उठाया. फिर कुछ और देखा, फिर कुछ और...अंत में बैटरी खत्म होने तक यह अंतहीन सिलसिला चलता रहा. सेहत तो गई ही साथ में टाइम भी बर्बाद हुआ. स्मार्टफोन लाइफस्टाइल में यह बड़ी आम समस्या है.
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सेल्फी, सेल्फी
भारत में 2015 और 2016 में कई लोगों की सेल्फी के चक्कर में जान गई. दुनिया भर में आए दिन सेल्फी डेथ के मामले सामने आ रहे हैं.
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इंटरनेट के लिए जीना
क्या जिंदगी सिर्फ इंटरनेट पर जी जाती है. सोशल मीडिया और स्मार्टफोन का कॉकटेल जीवन के आयाम को कैद भी कर रहा है.
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ऐन टाइम पर फुस्स
स्मार्टफोन का खूब इस्तेमाल किया लेकिन जब कॉल करने जैसे असली काम की जरूरत महसूस हुई तो बैटरी खत्म, ये भी स्मार्टफोन लाइफस्टाइल की आम समस्या है.
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न्यूरोट्रांसमीटर्स पर जांच
डॉक्टरों ने जांच में शामिल सभी लोगों के दिमाग की मैग्नेटिक रेसोनेस स्पेक्ट्रोस्कोपी (एमआरएस) का इस्तेमाल कर 3डी इमेज ली. यह एमआरआई (मैगनेटिक रेसोनेस इमेंजिंग) की तरह काम करती है. एमआरआई इमेजिंग की तरह, एमआरएस भी फैब्रिक और कोशिकाओं में मौजूद रसायनियक सामग्री को दिखाने में भी सक्षम होती है. शोधकर्ता खासतौर पर गामा अमिनियोब्यूटरिक एसिड (जीएबीए) की जांच में खासी दिलचस्पी लेते हैं. यह मस्तिष्क में एक तरह का न्यूरोट्रांसमीटर होता है जो मस्तिष्क को भेजे जाने सिग्नल को धीमा करता है या रोकता है. इसके अतिरिक्त जीएबीए के संपर्क में आने वाले अमिनो एसिड ग्लयूटामेट और ग्लयूटामीन से भी मिलते हैं. इस जीएबीए का दृष्टि से लेकर मस्तिष्क के तमाम कार्यों मसलन उत्सुकता, चिंता, नींद आदि पर बड़ा प्रभाव होता है.
रिसर्च में पता चला कि इंटरनेट और स्मार्टफोन की लत से जूझ रहे किशोरों के मस्तिष्क में जीएबीए का स्तर मस्तिष्क के खास हिस्सों में बढ़ जाता है. यह बढ़त इनके मस्तिष्क की कैमेस्ट्री को प्रभावित करती है. रिसर्च में देखा गया कि मस्तिष्क में रासायनिक सामग्री में पैदा होने वाला अंतर तनाव, अवसाद और चिंता जैसे लक्षणों को बढ़ाता है.