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दिमाग पढ़ता रोबोट

२५ अगस्त २०१४

52 साल की जैन शॉयरमैन को दिमाग की ऐसी बीमारी हुई जो समय बीतने के साथ बढ़ती गई, लेकिन गरदन से नीचे लकवा से पीड़ित यह महिला रोबोट के जरिए लोगों तक अपनी बात पहुंचा लेती हैं.

तस्वीर: picture-alliance/dpa

13 साल पहले शॉयरमैन की बीमारी का पता चला. अब वह रोबोट वाले हाथ के जरिए अपना कुछ काम खुद संभाल लेती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि यह दिमाग से सीधा संचालित होने वाली रोबोट तकनीक की दुनिया के लिए बड़ी खोज है. इस तरह के उपकरणों के जरिए मरीज लिख भी सकते हैं. पिछले महीने स्विट्जरलैंड के वैज्ञानिकों ने एक अंधे मरीज की रेटिना में इलैक्ट्रोड लगाए जिससे कि वह पढ़ सके. रेटिना आंख के पीछे एक परत होती है जिस पर रोशनी के प्रतिबिंब बनने से दिमाग में छवि बनती है. इसके बिना देखना असंभव है.

वैज्ञानिकों का कहना है कि दिमाग वाली मशीनों की तकनीक तेजी से विकसित हो रही है. इससे खराब तंत्रिका के बावजूद एक मरीज की मांसपेशियों को चलाया जा सकता है. वैज्ञानिक कहते हैं कि इसे अगर रोबोट के रूप में एक "शरीर से बाहर कंकाल" को जोड़ा जाए तो अपाहिज भी चल सकते हैं.

लैंसेट मेडिकल जर्नल के मुताबिक इस महिला के दिमाग की बाहरी परत कोर्टेक्स की बाईं तरफ दो माइक्रोइलैक्ट्रोड लगाए गए. यह दिमाग का वह हिस्सा है जो चलने फिरने को नियंत्रित करता है. इन माइक्रोइलैक्ट्रोड को फिर एक कंप्यूटर के जरिए रोबोट तक सिग्नल पहुंचाने के लिए एक कंप्यूटर प्रोग्राम बनाया गया. उसके बाद दिमाग की स्कैनिंग की गई और मरीज से कहा गया कि वह अपने हाथों को चलाए. इससे पहले वह अपने हाथों को चलाने में असमर्थ थी.

इस रिसर्च में हिस्सा ले रहे माइकल बोनिंगर ने कहा कि यह इलैक्ट्रोड बहुत ही छोटे हैं और प्रोग्राम के जरिए दिमाग की सिग्नलों का अनुवाद किया जाता है ताकि रोबोट को यह समझ आ सके. यह कृत्रिम अंग बनाने की सबसे बड़ी चुनौती है. उनका कहना है कि मनुष्य के हिलने डुलने को कंप्यूटर प्रोग्राम में अनुवादित करने की कोई सीमा नहीं है. हाथ या पैर में यह काम मुश्किल होता है लेकिन अगर एक बार पता चल जाए कि यह काम कैसे करता है तो फिर आसान हो जाता है.

तस्वीर: AP

ट्रेनिंग पूरी करने में शॉयरमैन को कई हफ्ते लगे लेकिन उसके बाद दो दिनों में ही वह अपने हाथ हिलाने लगीं और चीजें उठाने और रखने में 91 फीसदी तक सफल रहीं. अभ्यास के साथ उनकी तेजी बढ़ती रही. वैज्ञानिक अब एक ऐसी तकनीक खोज रहे हैं कि मरीज के दिमाग और रोबोट को बिना तारों के जोड़ा जा सके. उनका कहना है कि वह एक सेंसरी लूप भी बना सकते हैं जो दिमाग को संदेश भेजेगा और मरीज को पता चल सकेगा कि कोई चीज गरम है या ठंडी और खुरदरी या फिर चिकनी.

इसके साथ ही अब इस तकनीक के गलत इस्तेमाल पर सवाल उठ रहे हैं. आलोचक कहते हैं कि इस तरह के उपकरणों का गलत इस्तेमाल सामान्य लोग करेंगे और आम जनता से कुछ भी काम करने में ज्यादा सफल रहेंगे. हालांकि वेस्ट स्कॉटलैंड में प्रोफेसर ऐंडी मिया कहते हैं, "लेजर आंख सर्जरी पिछले दशक में बहुत हो रहे हैं और कोई शिकायत नहीं कर रहा कि इससे सुपरमैन बन रहे हैं."

बहरहाल जैन शॉयरमैन के लिए यह अनुभव अच्छा रहा है. बोनिंगर कहते हैं कि उन्हें जिंदगी में एक नया मकसद मिल गया है.

एमजी/एनआर(रॉयटर्स)

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