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दिमाग पर सीधा असर डाल रहा है इंटरनेट

२१ अक्टूबर २०११

सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर हर व्यक्ति के दोस्तों की संख्या उस व्यक्ति के दिमाग के एक खास हिस्से के आकार से जुड़ी है. वैज्ञानिकों को लग रहा है कि सोशल नेटवर्किंग शायद हमारे दिमाग की अंदरूनी संरचना बदल रही है.

तस्वीर: fotolia

यादाश्त, भावना, प्रतिक्रिया और सामाजिक सक्रियता जैसी गतिविधियों में दिमाग के चार हिस्से शामिल होते हैं. ब्रिटिश वैज्ञानिकों को लग रहा है कि सामाजिक रूप से सक्रियता बढ़ने की वजह से दिमाग के अंदरूनी ढांचे में बदलाव हो रहा है. हालांकि पक्के तौर पर अभी यह नहीं कहा जा रहा है कि जिस व्यक्ति के फेसबुक पर ज्यादा दोस्त होते हैं उसके दिमाग के कुछ खास हिस्से बड़े हो जाते हैं.

तस्वीर: www.2m.ma

इस विषय पर शोध कर रही यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन की रयोटा कैने कहती हैं, "रोचक सवाल यह है कि क्या समय के साथ दिमाग का ढांचा बदलता है. इससे पता चलेगा कि क्या इंटरनेट हमारे दिमाग को बदल रहा है."

शोध में कैने और उनके साथी मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग यानी एमआरआई का सहारा ले रहे हैं. यूनिवर्सिटी के 125 छात्रों के दिमाग का अध्ययन किया जा रहा है. ये सभी छात्र सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर सक्रिय रहते हैं. शोध टीम ने इन पर की गई जांच के नतीजों को 40 अन्य छात्रों की ब्रेन स्कैनिंग से मिलाया. जांच में पता चला कि जिस छात्र के फेसबुक पर जितने ज्यादा दोस्त थे उसके दिमाग का एमिगाला (प्रमस्तिष्कखंड), सुपीरियर टेम्परल सल्कस, लेफ्ट मिडल टेम्परल जेरस और राइट इंटोरिहनल कॉरटेक्स में स्लेटी हिस्सा ज्यादा बड़ा था. स्लेटी हिस्सा कोशिकाओं का एक ऐसा समूह है जिसमें दिमाग के चलते समय हलचल होती है.

एमिगाला में मौजूद स्लेटी हिस्से की बनावट दोस्ती के लिहाज से अहम होती है. असल जिंदगी में जितने दोस्त होंगे एमिगाला का स्लेटी हिस्सा उसी अनुपात का होगा. लेकिन दिलचस्प है कि एमिगाला के अलावा बाकी तीन हिस्सों का आकार ऑनलाइन कनेक्शनों से ताल्लुक रखता है. जिस छात्र के 300 दोस्त थे उसके दिमाग के ये हिस्से 1,000 फेसबुक दोस्तों वाले छात्र से अलग दिखाई पड़े.

रिसर्च टीम के गेरैंट रीस कहते हैं, "ऑनलाइन सोशल नेटवर्क्स शक्तिशाली रूप से प्रभावशाली हैं. अभी तक हम बहुत कम जान पाए हैं कि इनका हमारे दिमाग पर क्या असर होता है. इसकी वजह से ऐसी गैरजरूरी भ्रांतियां भी फैल रही हैं कि इंटरनेट किसी न किसी तरह हमारे लिए ठीक नहीं है."

ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी की हाइडी जोहानसन बेर्ग रिसर्च से इत्तेफाक नहीं रखतीं. वह कहती हैं, "शोध यह नहीं बता पा रहा है कि इंटरनेट का इस्तेमाल हमारे लिए अच्छा है या खराब." बेर्ग के मुताबिक शोध के नतीजे चौंकाने वाले जरूर हैं लेकिन फेसबुक को दिमाग के आकार से जोड़ना फिलहाल जल्दबाजी दिखाई पड़ती है.

रिपोर्ट: रॉयटर्स/ओ सिंह

संपादन: वी कुमार

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