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दिलखुश इंसान से खूंखार आतंकी बना जवाहिरी

१६ जून २०११

ओसामा बिन लादेन की जगह अल कायदा की कमान संभालने वाला मिस्र का अयमान अल जवाहिरी काहिरा की किसी झुग्गी बस्ती से उठकर चरमपंथी नहीं बना है बल्कि वह एक पढ़ा लिखा डॉक्टर है, जिसने जानते बूझते यह रास्ता चुना.

This image made from an undated Al-Qaida video distributed by U.S. government contractor IntelCenter shows Ayman al-Zawahiri in a video which was released Friday, Sept. 29, 2006. al-Zawahri condemned President Bush in the video statement, calling him a failure and a liar. (AP Photo/IntelCenter) MANDATORY CREDIT NO SALES
तस्वीर: AP

अयमान अल जवाहिरी की परवरिश मिस्र की राजधानी काहिरा के मादी इलाके में हुई, जो अमीरों का इलाका माना जाता है. उसने काहिरा की यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की और वह क्वालीफाइड डॉक्टर है. उसके पिता फार्मोकॉलोजी के प्रोफेसर थे, जो उन दिनों बहुत बड़ी बात मानी जाती थी. दरअसल 1960 के दशक में समाजवादी नेता जमाल अब्दुल नासिर के नेतृत्व में जब मिस्र सोवियत संघ की तर्ज पर एक दलीय व्यवस्था की तरफ बढ़ रहा था, इस्लामी कट्टरपंथियों के साथ होने वाले व्यवहार से बहुत से नौजवान नाराज थे. देशद्रोह के संहेद में बहुत से युवाओं को जेल में डाल दिया गया. इन्हीं में से एक युवा जवाहिरी के हीरो और मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता सैयद कुत्ब भी शामिल थे, जिन्हें राष्ट्र को अस्थिर करने के जुर्म में 1966 में फांसी दे दी गई.

चरमपंथ का रास्ता क्यों

इंग्लैंड के डरहम यूनिवर्सिटी में इस्लामी कट्टरपंथ से जुड़े मामलों के जानकार खलील अल अनानी कहते हैं, "जवाहिरी भी उन बहुत से लोगों में से है जो नासिर सरकार के शिकार बने. वे 1967 में इस्राएल के हाथों मिस्र की हार पर भी शर्मसार थे. इसलिए जवाहिरी की सोच शुरू से ही चरमपंथी रही. वह कई साल तक अल कायदा का नंबर 2 नेता रहा. लेकिन 2 मई को पाकिस्तान के एबटाबाद में अमेरिकी सैन्य अभियान में ओसामा बिन लादेन के मारे जाने के बाद अब जवाहिरी अल कायदा का नेता बन गया है.

बरसों तक बिन लादेन के साथ रह कर जवाहिरी ने खतरनाक आंतकी योजनाएं तैयार कींतस्वीर: AP

गुरुवार को एक इस्लामी वेबसाइट अंसार अल-मुजाहिदीन पर जारी बयान में कहा गया, "अल कायदा गुट के नेतृत्व की बैठक में परामर्शों के बाद शेख डॉक्टर अयमान अल जवाहिरी को गुट का नेतृत्व सौंपा जाता है. अल्लाह उन्हें कामयाबी दे."

8 जून को एक बयान में जवाहिरी ने पश्चिमी देशों पर हमले जारी रखने का संकल्प दोहराया. अल कायदा की मौत का बदला लेने की धमकी देते हुए जवाहिरी ने कहा, "जब तक हम जिंदा हैं और जब तक तुम मुस्लिम सरजमीं को नहीं छोड़ दोगे, तब तक तुम सुरक्षित रहने का सपना नहीं देख सकते." उसने अरब देशों में जारी अशांति को अमेरिका के लिए बर्बादी का रास्ता बताया. उसके मुताबिक इस क्रांति में ऐसे नेताओं को हटा दिया जाएगा, जो भ्रष्ट हैं और अमेरिका के एजेंट हैं. उसने अफगान तालिबान के नेता मुल्ला उमर के साथ भी एकजुटता बनाए रखने की बात कही और उसे मोमीन का अमीर (मुसलमानों का नेता) बताया.

'बदलाव' का सपना

1951 में काहिरा के एक खाते पीते परिवार में पैदा होने वाले जवाहिरी ने 1970 में मेडिकल सर्जरी की पढ़ाई की. वह एक आंदोलन में भी सक्रिय रहा जिसने बाद में इस्लामिक जिहाद का रूप ले लिया. जवाहिरी को जानने वालों की इस बात को लेकर अलग अलग राय है कि वह चरमपंथी रास्ते पर उग्रवादी रुझान की वजह से आगे बढ़ा या फिर मिस्र के इस्लामी कट्टरपंथियों के खिलाफ मिस्र सरकार की दमनकारी कदमों की वजह से.

जवाहिरी की हिंसक विचारधारा के पीछे एक राजनीतिक पृष्टभूमि हैतस्वीर: youtube.com

जवाहिरी उन सैकड़ों लोगों में भी शामिल रहा, जिन पर 1981 में राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या के सिलसिले में मुकदमा चला. सादात नासिर के उत्तराधिकारी थे. गैरकानूनी रूप से हथियार रखने के जुर्म में जवाहिरी को तीन साल तक जेल में भी रहना पड़ा, लेकिन बाद में मुख्य आरोपों से उसे बरी कर दिया गया. उसके वकील निसार गोराब का कहना है, "जवाहिरी को राजनीति में भागीदारी की अनुमति नहीं दी गई. उसने वह सभी देखा कि किस तरह धार्मिक ख्यालों वाले लोगों का अत्यधिक दमन हुआ. वह नासिर और सादात के शासनकाल वाले राजनीतिक हालात को बदलना चाहता था."

दिलखुश इंसान से चरमपंथी तक

काहिरा यूनिवर्सिटी में जवाहिरी के साथ मेडिकल की पढ़ाई करने वाले लोग उसे एक जोशीला नौजवान बताते हैं, जो सिनेमा देखने जाता था, संगीत सुनता था और दोस्तों के साथ खूब हंसी मजाक किया करता था. जवाहिरी के साथ पढ़ने वाले एक डॉक्टर का कहना है, "जब वह जेल से बाहर आया तो बिल्कुल बदल चुका था." अन्य लोगों की राय है कि जिस चीज ने जवाहिरी के भीतर राजनीतिक हिंसा की मजबूत नींव रखी, वह 1979 की ईरान की इस्लामिक क्रांति और उसी साल इस्राएल के साथ सादात की शांति संधि थी.

जवाहिरी को जानने वाले नहीं जानते कि असल में किस वजह से वह इस रास्तेतस्वीर: dapd

जवाहिरी का 26 वर्षीय भतीजा और पेशे से अकाउंटेंट अब्दुल रहमान अल-जवाहिरी का कहना है, "मुझे नहीं पता कि किस चीज की वजह से मेरे चाचा ने यह रास्ता चुना. इसकी वजह जेल जाना था या फिर जेल में रह कर दमन सहना, कह नहीं सकता. वह एक विचारक हैं और उनकी अपनी विचारधारा है."

अपनी रिहाई के बाद जवाहिरी पाकिस्तान गया, जहां उसने अफगानिस्तान में जारी लड़ाई के दौरान घायल इस्लामी मुजाहिदीनों का इलाज कर रहे रेड क्रॉस के साथ काम किया. सोवियत संघ ने 1979 में अफगानिस्तान पर हमला किया. जवाहिरी के चाचा महफूज अजम का कहना है, "बचपन और युवावस्था में वह बहुत मजाकिया था और लोगों को खूब हंसाया करता था."

'सम्मानित' जवाहिरी परिवार

1993 में मिस्र में जिहाद का नेतृत्व संभालने के बाद जवाहिरी 1990 के दशक में छिड़ी हिंसक मुहिम का मुख्य चेहरा बन गया. यह जिहाद मिस्र को एक विशुद्ध इस्लामी देश बनाने के लिए शुरू की गई. इसमें मिस्र के 1,200 के लोग मारे गए. 1999 में मिस्र की अदालत ने जवाहिरी को उसकी गैरमौजूदगी में मौत की सजा सुनाई.

जवाहिरी की जीवन एक हंसमुख इंसान से खूंखार आतंकी बनने की कहानी हैतस्वीर: AP

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आतंकवाद निरोधी सलाहकार जॉन ब्रेनन ने मंगलवार को कहा कि बिन लादेन के नेतृत्व में अल कायदा की मुख्य आयोजक रहा जवाहिरी पाकिस्तान में हो सकता है, जिसकी खोज हो रही है. काहिरा के मादा जिले में जवाहिरी का भाई रहता है और पास ही में उसका होटल भी है. जवाहिरी के भाई का कहना है कि उनके परिवार को सब लोग जानते हैं और बहुत सम्मान भी देते हैं.

रिपोर्टः टॉम फाइफर एवं मारवा अवाद (रॉयटर्स)/ए कुमार

संपादनः ए जमाल

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