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भाजपा के मिशन 84 की चुनौती

प्रभाकर१० मार्च २०१६

अप्रैल में जिन पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, उनमें पूर्वोत्तर का प्रवेशद्वार कहे जाने वाले असम के चुनाव सबसे अहम हैं. यहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के तमाम बड़े नेताओं की साख दांव पर है.

तस्वीर: Imago/Hindustan Times

केंद्र में शासन कर रही पार्टी को अबकी राज्य में सत्ता का कड़ा दावेदार माना जा रहा है. उसने खुद ही दो-तिहाई बहुमत हासिल करने का दावा कर दिया है. बाकी राज्यों में तो उसकी कोई पकड़ नहीं है. लेकिन कभी ताकतवर अखिल असम छात्र संघ (आसू) के अध्यक्ष रहे सर्वानंद सोनोवाल को भाजपा का चेहरा बना कर पार्टी सत्ता पाने की होड़ में उतर गई है. दूसरी ओर सत्ता में लगातार तीन कार्यकाल पूरा कर चुकी तरुण गोगोई की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार भी सत्ता में वापसी का दावा कर रही है.

असम में शुरू से ही क्षेत्रीय दलों की भूमिका अहम रही है. इसलिए यह कहना सही नहीं होगा कि यहां भाजपा और कांग्रेस में सीधा मुकाबला होगा. भाजपा को भी राज्य की सत्ता पाने का सपना पूरा करने के लिए क्षेत्रीय दलों का सहारा लेना पड़ रहा है. अबकी भी विधानसभा चुनावों में असम गण परिषद (अगप), अल्पसंख्यकों पर खासी पकड़ रखने वाली आल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रैटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) और बोड़ो दलों की भूमिका अहम होगी. भाजपा ने बोड़ो के ताकतवर गुट बोड़ो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) और असम गण परिषद (अगप) से हाथ मिला लिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी बोड़ो-बहुल कोकराझाड़ इलाके में रैली कर चुके हैं. उन्होंने बोड़ो और कारबी जनजातियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का वादा कर सियासी चाल चल दी है.

तालमेल की नीति

वर्ष 2011 के विधानसभा चुनावों में राज्य की 126 में से भाजपा को महज पांच सीटें मिली थीं. लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में उसे राज्य की 14 में से सात सीटों पर जीत मिली. ऊपरी असम में पार्टी का जनाधार काफी मजबूत है. लेकिन निचले असम के कुछ इलाकों में अपनी कमजोर पकड़ को ध्यान में रखते हुए पार्टी छोटे दलों के साथ तालमेल को प्राथमिकता दे रही है. हाल के महीनों में अगप और कांग्रेस से दर्जनों नेता व विधायक भी भाजपा में शामिल हुए हैं. इनमें गोगोई सरकार में मंत्री रहे हिमंत विश्वशर्मा का नाम प्रमुख है.

दिलचस्प बात यह है कि बीते लोकसभा में राज्य की 14 में से सात सीटों पर जीत के बाद भाजपा ने मिशन 84 का लक्ष्य तय किया था यानी राज्य की 126 में से 84 सीटें जीत कर दो-तिहाई बहुमत हासिल करना. लेकिन तमाम क्षेत्रीय दलों के साथ तालमेल के तहत सीटों के बंटवारे के बाद उसके पास अपनी झोली में लगभग इतनी सीटें ही बची हैं. वैसे उसने पहली सूची में 88 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान किया है. लेकिन 3-4 सीटें उसे और छोड़नी पड़ सकती है.
भाजपा ने असम गण परिषद (अगप) से हाथ तो मिला लिया है, लेकिन इन दोनों दलों के चुनावी तालमेल पर सिर फुटव्वल शुरू हो गई है. इस गठजोड़ से नाराज दोनों दलों के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं ने बगावत करते हुए नई पार्टी बना ली है या उसकी तैयारी में हैं. भाजपा के बागी नेताओं ने तृणमूल भाजपा नामक एक नई पार्टी का गठन कर अगप के खिलाफ अपने उम्मीदवार उतारने का एलान कर दिया है. लगातार तेज होती यह बगावत दोनों दलों के शीर्ष नेतृत्व के लिए सिरदर्द बनती जा रही है.

कांग्रेस की मुश्किलें

दूसरी ओर, सत्तारुढ़ कांग्रेस का दावा है कि उसने राज्य का चेहरा बदल दिया है. इसलिए लोग चौथी बार भी उसे ही सत्ता में बिठाएंगे. असम कांग्रेस के प्रवक्ता प्रद्युत बोरदोलोई कहते हैं, "सत्ता के तमाम दावेदार राज्य के लोगों को झूठे सपने दिखा रहे हैं. लेकिन हमने तो कर दिखाया है. हमने 15 वर्षों में असम का जितना विकास किया है उतना आजादी के बाद नहीं हुआ था." बोरदोलोई कहते हैं कि बीते दो विधानसभा चुनावों के दौरान हमने बोड़ो पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के साथ तालमेल किया था. इससे कांग्रेस का नुकसान ही हुआ. बीपीएफ अब भाजपा के साथ है. एक सवाल पर उनका कहना था कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे नेता ही पार्टी छोड़ कर भाजपा में गए हैं. इससे हमारी सेहत पर कोई अंतर नहीं पड़ेगा. लेकिन बोरोदोलोई चाहे जितने भी दावे करें, अबकी कांग्रेस की राह आसान नहीं है. सरकार के कई मंत्री भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रहे हैं. सत्ताविरोधी लहर भी चुनाव में अहम भूमिका निभाएगी.

निचले असम के बोड़ोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल में सत्तारुढ़ बोड़ोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के भाजपा के हाथ मिलाने के बाद राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस ने राजनीतिक संतुलन साधने के लिये दूसरे बोड़ो संगठनों की तलाश शुरू कर दी है. बोड़ोलैंड इलाके में बीपीएफ विरोधी बोड़ो संगठन यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी (यूपीपी) के बैनर तले एकजुट होने की कवायद में जुटे हैं. कांग्रेस ने इसी का हाथ थामा है. इलाके के प्रमुख बोड़ो नेता व राज्यसभा के पूर्व सदस्य यू.जी.ब्रह्म की अगुवाई वाले यूपीपी को पीपुल्स कन्वेंशन फॉर डेमोक्रैटिक राइट्स (पीसीडीआर), नेशनल डेमोक्रैटिक फ्रंट आफ बोड़ोलैंड (एनडीएफबी) के बातचीत समर्थक गुट और ताकतवर अखिल बोड़ो छात्र संघ (आब्सू) का भी समर्थन हासिल है. बोड़ोलैंड टेरीटोरियल काउंसिल और उससे सटे इलाके में विधानसभा की 20 सीटें हैं. भाजपा और बीपीएफ के बीच हुए गठजोड़ ने उसे इस इलाके में मजबूती दे दी है. अब उसकी काट के लिए कांग्रेस ने भी चुनावों से पहले यूपीपी से हाथ मिला कर उसे चार सीटें दी हैं.

असम आंदोलन की कोख से पैदा होने वाली असम गण परिषद भाजपा से तालमेल की शुरूआती बातचीत परवान नहीं चढ़ने के बाद अकेले चुनाव लड़ने का मन बना रही थी. लेकिन चुनावों के एलान से ठीक पहले आखिर उसने भाजपा के साथ गठजोड़ कर लिया. अगप अध्यक्ष अतुल बोरा कहते हैं, "अगप क्षेत्रीय दल के तौर पर सत्तारुढ़ कांग्रेस-विरोधी वोटों का विभाजन रोकना चाहती थी. इसलिए हमने कुछ नुकसान सह कर भी भाजपा से हाथ मिलाने का फैसला किया है." राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के मैदान में उतरने और राज्य के जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए असम में अबकी विधानसभा चुनाव बेहद दिलचस्प होने के आसार हैं.

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