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दिलीप कुमार का घर, पाकिस्तान में धरोहर

८ फ़रवरी २०१२

बेमिसाल हिन्दुस्तानी अदाकार दिलीप कुमार को इज्जत बख्शते हुए पाकिस्तान की सरकार ने उनके पुश्तैनी मकान को राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया है. सरकार ने पेशावर का यह घर बाकायदा तीन करोड़ रुपये में खरीदा.

तस्वीर: AP

दिलीप कुमार इसी घर में 11 दिसंबर, 1922 को पैदा हुए थे. तब उनका नाम मोहम्मद यूसुफ खान हुआ करता था. उनका यह मकान पेशावर में किस्सा ख्वानी बाजार के मोहल्ला खुदादाद इलाके में हुआ करता था.

पाकिस्तान के समाचार चैनल जियो न्यूज ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि खैबर पख्तून ख्वाह के सांस्कृतिक विभाग ने मौजूदा मालिक से यह मकान तीन करोड़ रुपये (लगभग एक करोड़ 65 लाख भारतीय रुपये) में खरीद लिया. अधिकारियों ने बताया कि इस तीन मंजिला मकान के सभी छह कमरों की मरम्मत का काम दो महीने के अंदर कर लिया जाएगा और बाद में इसे आम लोगों के लिए खोल दिया जाएगा.

तस्वीर: Getty Images

खस्ताहाल घर

दिलीप कुमार के रिश्तेदार आठ साल पहले तक इस मकान में रहते थे. लेकिन इसके बाद उन्होंने यह मकान किसी को 56 लाख रुपये में बेच दिया. जियो न्यूज ने घर का जो वीडियो दिखाया है, उसमें यह बेहद जर्जर हाल में दिख रहा है. घरों की छतों से मकड़ी के जाले लटक रहे हैं. कई जगहों पर दीवार की प्लास्टर झड़ गया है और जगह जगह जंग लग गया है. हालांकि घर के दरवाजे और खिड़कियां मजबूत हालत में हैं.

खैबर पख्तून ख्वाह के सूचना मंत्री मियां इफ्तिखार हुसैन ने दिसंबर में ही इस बात का एलान कर दिया था कि वे लोग दिलीप कुमार और राज कपूर के घरों को राष्ट्रीय धरोहर बनाना चाहते हैं. हुसैन ने कहा था कि दोनों ही इमारतों को राष्ट्रीय धरोहरों का दर्जा दिया जाएगा. उनका कहना है कि दोनों ही अभिनेता पेशावर में पैदा हुए, जो उनके लिए बेहद गर्व की बात है.

जीवन पर फिल्म

प्रांतीय सरकार दिलीप कुमार के जीवनी पर डॉक्यूमेंट्री और ड्रामा भी बनाना चाहती है. दिलीप कुमार बार बार कह चुके हैं कि वह पेशावर जाकर भावुक हो जाते हैं. उनके पिता लाला गुलाम सरवर फलों के कारोबारी थे, जिनके पेशावर और महाराष्ट्र में बागान थे. हाल ही में अपने ब्लॉग में दिलीप कुमार ने लिखा कि पाकिस्तान सरकार के इस फैसले से बेहद खुश हैं. उन्होंने लिखा कि पेशावर के साथ उनकी खास यादें जुड़ी हैं और वहीं तो उन्होंने पहली बार कहानी बताने की तरकीब सीखी.

तस्वीर: AP

उन्होंने लिखा, "मुझे अपने घर की, अपने मां बाप की, अनगिनत चाचाओं, चाचियों और चचेरे भाइयों की याद आ गई, जो घर में होते थे और जिनके कहकहों से घर भरा पूरा लगा करता था."

दिलीप कुमार ने लिखा, "मेरे पास किस्सा ख्वानी बाजार की शानदार यादें हैं. यहीं मैंने कहानी बताने का पहला सबक सीखा. बाद में मैंने उससे सीख लेते हुए अपनी फिल्मों को तय किया." दिलीप कुमार को पाकिस्तान के दूसरे सबसे बड़े असैनिक सम्मान निशाने इम्तियाज से नवाजा जा चुका है. हालांकि लंबे वक्त से उन्हें भारत रत्न दने की भी मांग चल रही है.

रिपोर्टः पीटीआई/ए जमाल

संपादनः आभा एम

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