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दिल्ली का दावा, हकीकत या फसाना

२४ सितम्बर २०१४

भारत सरकार का कहना है कि दिल्ली यूनेस्को की विश्व विरासत वाले शहरों की फेहरिस्त में शुमार होने के काबिल है. यूनेस्को की टीम अक्टूबर में दिल्ली पहुंच कर यह परखेगी कि उसका दावा हकीकत के कितने करीब है.

Megacities Delhi
तस्वीर: Fotolia/jacek_kadaj

इसमें कोई शक नहीं है कि दिल्ली अपने आगोश में लगभग एक हजार साल की विरासत को समेटे है. इसके आधार पर ही दिल्ली के सत्तानशीनों का दावा है कि इस शहर में दो युगों की तस्वीर पेश करती 500 सालों की धरोहरें सहेज कर रखी गई हैं. इसके बलबूते दिल्ली विश्व विरासत शहर का तमगा हासिल करने की कुव्वत रखती है. दिल्ली के इस दावे की गूंज पेरिस तक पहुंच गई है जहां संयुक्त राष्ट्र संघ की विश्व संस्था यूनेस्को दुनिया के तमाम अन्य शहरों के ऐसे दावों को परखती है. यूनेस्को की नजरों में दिल्ली का दावा सही साबित करने की अब घड़ी आ गई है. यूनेस्को की टीम अपने कठोर मानकों के आधार पर इसकी बारीकी से जांच करेगी.

क्या है दिल्ली का दावा

इतिहास इस बात के पुख्ता सबूतों से भरी है कि लगभग एक हजार साल पहले बसी दिल्ली अब तक सात बार उजड़ी और सात बार बस चुकी है. दिल्ली के बारंबार बसने और उजड़ने की जड़ में गंगा यमुना के दोआब की वह माटी है जो सत्ता की जड़ों को भी यहां फलने फूलने का भरपूर मौका देती है. शायद यही वजह है कि रायपिथौरा से लेकर मुगल और अंग्रेजों तक, हर देशी विदेशी शासकों ने दिल्ली को अपनाने के लिए इसे रौंदने से भी परहेज नहीं किया.

एशिया की सर्वाधिक उर्वरा भूमि वाले गंगा यमुना दोआब के केन्द्र में बसी दिल्ली की माटी सत्ता की फसल के लिए भी भरपूर लाभप्रद है. अगर दावे की हकीकत को सिर्फ इतिहास के पन्नों से साबित करना होता तब तो बात आसानी से बन जाती. मगर अब दावे को जमीन पर सच साबित करते दिखाना है.

भारत में ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण में लगे सामाजिक संगठन इंटेक ने यूनेस्को में पेश करने के लिए दिल्ली का दावा बनाया है. जो दिल्ली को दुनिया की एकमात्र ऐसी शाही शहर होने की ताकीद करता है कि जिसमें 500 साल पुराने मुगल साम्राज्य और 200 साल पुराने ब्रिटिश साम्राज्य की धरोहरें आज भी जीवंत हैं. दिल्ली के अंतिम दो साम्राज्यों में बसे मुगलकालीन शहर शाहजहानाबाद और ब्रिटिशकालीन लुटियन की नई दिल्ली आज भी सत्ता का केन्द्र है इसलिए दिल्ली दुनिया की एकमात्र इंपीरियल सिटी है.

यूनेस्को के मानक

इंटेक की दिल्ली इकाई के प्रमुख एजीके मेनन बताते हैं कि यूनेस्को का तमगा हासिल करने की पहली शर्त है उस शहर की विरासत में ऐसा कोई अनूठा पहलू हो जो दुनिया के किसी और शहर में न हो. दूसरी शर्त है शहर की उस अलौकिक धरोहर को सहेजने के विश्वस्तरीय प्रबंध किए गए हों. साथ ही दावे को मजबूत आधार देती धरोहरों की विरासत को जीवंत बनाने के लिए शहर के बाशिंदों की रोजमर्रा की जिंदगी से भी इनका प्रत्यक्ष जुड़ाव हो.

मेनन का मानना है कि मानकों की कसौटी को देखते हुए दिल्ली के दावे को हकीकत में तब्दील करना नामुमकिन बेशक न हो मगर आसान भी नहीं है. खासकर तब जबकि दिल्ली का यह दावा तैयार करने की कागजी कार्रवाई पूरी करने का लक्ष्य हासिल करने में भी चार साल की देरी हो गई हो. इस साल फरवरी में दिल्ली का दावा यूनेस्को में पेश हुआ. नियमानुसार यूनेस्को कम से कम सात महीने के भीतर दावे की सच्चाई का जमीनी परीक्षण करने आती है.

दिल्ली की दिक्कत

यूनेस्को की टीम के आने की सुगबुगाहट के साथ ही दिल्ली की दिक्कत भी शुरु हो गई है. दरअसल दिल्ली को शाहजहानाबाद और लुटियन दिल्ली में इन दोनों युगों के साम्राज्य की निशानियों को जीवंत साबित करना है. हकीकत यह है कि दिल्ली के दावे के दोनों आधारों का मजबूत पक्ष लुटियन दिल्ली है जबकि कमजोर पक्ष शाहजहानाबाद है. लुटियन दिल्ली से आज भी सत्ता का संचालन हो रहा है इसलिए इस इलाके की जीवंतता दूर से ही महसूस की जा सकती है. जबकि पुरानी दिल्ली की तंग गलियों से घिरा और भीड़ के बोझ से दबा शाहजहानाबाद, दिल्ली के दावे को बदरंग कर देता है.

दरअसल चांदनी चौक की चटोरी गलियां और दरियागंज की सड़कों पर कारोबारियों की दरियादिली ही इस शहर को दिलवालों की दिल्ली कहलाने का हकदार बनाती रही है. मगर लाल किला, जामा मस्जिद और चांदनी चौक से घिरा शाहजहानाबाद बीते दो दशकों में बदइंतजामी और गंदगी का गढ़ बन गया है. यह भी सच है कि दिल्ली को विश्व विरासत शहर बनाने की इस कवायद में बीते चार सालों के दौरान भी इस तस्वीर को बदलने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए गए.

कड़वी सच्चाई

ऐसे में दिल्ली के दावे का पूरा दारोमदार नई दिल्ली पर टिका है. जबकि पुरानी दिल्ली को संवारने के लिए किए जा रहे प्रबंधों को यूनेस्को की टीम को दिखाकर ही कटती नाक बचाने की कोशिश होगी. मेनन की दलील है कि सरकार ने पुरानी दिल्ली की मुगलिया रंगत को बहाल करने के गंभीर प्रयास शुरु किए हैं. इनमें विश्व विरासत सचिवालय का गठन और चांदनी चौक, जामा मस्जिद एवं लाल किले के आसपास बिखरी पड़ी बदइंतजामी को दुरुस्त करने की परियोजनाएं शुरु करना शामिल है.

मेनन ने भरोसा जताया कि शाहजहानाबाद जैसे नितांत विपरीत हालात वाले इलाके में किए जा रहे इन कामों को बेहतर प्रबंधन के संजीदा प्रयास के दायरे में ही रखा जाएगा. इसके बलबूते ही दिल्ली के दावे को मजबूती मिलेगी. दिल्ली वाले चाहते हैं कि उसके हुक्मरानों की ये दलीलें सच साबित हों. मगर बड़े दावे हकीकत की ठोस जमीन तैयार करने के बाद ही किए जाएं तभी ये हर इम्तिहान का सामना करने लायक बन पाते हैं. दिलवालों की दिल्ली के दावे को फसाना नहीं मानने की दरियादिली यूनेस्को दिखाएगा या नहीं यह तो वक्त ही बताएगा.

ब्लॉग: निर्मल यादव

संपादन: महेश झा

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