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दिल्ली की अवैध कॉलोनियां में फिर से जगी है नियमन की आस

चारु कार्तिकेय
२४ अक्टूबर २०१९

दिल्ली में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और एक बार फिर राजनितिक दलों ने दिल्ली की सैकड़ों अनियमित कॉलोनियों में रहने वाले लाखों लोगों को उम्मीद के एक मोहपाश में बांध दिया है.

Indien Neu Delhi | nicht autorisierte Siedlungen
तस्वीर: Imago Images/The Hindustan Times/B. Bhuyan

बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस करके घोषणा की है कि सरकार ने इन अनियमित कॉलोनियों को नियमित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. केंद्रीय मंत्रियों ने निर्णय की कोई विस्तृत रूप-रेखा तो नहीं दी, पर इतना जरूर बताया कि इस निर्णय को लागू करने के लिए सरकार 18 नवम्बर से शुरू होने वाले संसद के शीत-कालीन सत्र में एक बिल लेकर आएगी.

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस घोषणा का स्वागत किया और केंद्र का धन्यवाद देते हुए यह भी कहा है कि इस प्रस्ताव को दिल्ली सरकार ने ही केंद्र को 2015 में भेजा था. 

क्या हैं अनियमित कॉलोनियां

ये वो कॉलोनियां हैं जो पिछले करीब चार दशकों से दिल्ली की नियामक संस्थाओं की अनुमति के बगैर शहर के अलग अलग हिस्सों में बसती आई हैं. इनकी संख्या 1800 के आसपास होने का अनुमान है. केंद्र की घोषणा में 1797 कॉलोनियों का जिक्र है. इनमें रहने वाले लोगों की कुल आबादी 40 लाख के करीब  बताई जाती है, मतलब दिल्ली की कुल आबादी का 20 प्रतिशत. ये कम से कम 175 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई हैं जो दिल्ली के कुल इलाके का लगभग 12 प्रतिशत है.

तस्वीर: Getty Images/AFP/C. Khanna

कच्ची कॉलोनियों में अधिकतर गरीब या मध्यम वर्ग के परिवार रहते हैं. आलीशान कोठियों और विशाल फार्म हाउस वाली कुछ उच्चवर्गीय कॉलोनियां भी अनियमित हैं पर इस दौर में उन पर विचार नहीं किया जा रहा है.

माना जाता है कि अधिकतर कच्ची कॉलोनियों में रहने वाले लोग दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश की पूर्वी सीमा से सटे राज्य बिहार के रहने वाले हैं, जिन्हें साथ में जोड़ कर राजनीतिक शब्दावली में पूर्वांचली कहा जाता है. ये दोनों राज्य एक लम्बे अरसे से आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य रहे हैं. इस पिछड़ेपन के अनेक आयामों में बेरोजगारी भी एक प्रमुख पहलू रही है. आजीविका की तलाश में इन दोनों राज्यों के लोग दशकों से दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों का रुख करते आए हैं.

तस्वीर: Imago Images/The Hindustan Times/B. Bhuyan

दिल्ली में रहते हुए जब इनके लिए शहर की मुख्य कॉलोनियों में मकानों के किराए महंगे हो गए तो ये लोग दिल्ली के ग्रामीण इलाकों की तरफ रहने चले गए. दिल्ली में 350 से भी ज्यादा गांव हैं जिनमें से कई शहरी कॉलोनियों के साथ भी बसे हुए हैं और कई शहर की बाहरी सीमा पर. इनमें शहरी कॉलोनियों जैसी सुविधायें नहीं मिलतीं लेकिन इनमें रहने का खर्च शहर की दूसरी कॉलोनियों से कम है. यही कारण है कि धीरे धीरे देश के कई राज्यों से आए प्रवासी यहां बसने लगे और देखते ही देखते ये अपने आप में छोटे शहर ही बन गए. 

शहर की रूप-रेखा में इनकी क्या जगह है

दिल्ली की सारी अवैध कॉलोनियां अनधृकित रूप से शहर के मास्टरप्लान का उल्लंघन करते हुए बनी हैं. नियमित नहीं होने की वजह से नागरिकों को मिलने वाली सेवायें, जैसे बिजली, पानी, नाला, कचरा प्रबंधन जैसी चीजों का यहां कोई इंतजाम नहीं है.  जमीन की खरीद-बिक्री भी वैध नहीं होती. मतलब जिन लोगों ने अवैध कॉलोनियों में अपने घर बना लिए हैं वो उनमें रह तो रहे हैं, पर मालिकाना हक के बिना.

तस्वीर: Imago Images/The Hindustan Times/B. Bhuyan

क्या इनसे पहली बार नियमित करने का वादा किया गया है?

पहली बार 1977 में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की नीति लाई गई थी. इसके लागू होने में लंबा समय लगा लेकिन 1993 तक 567 कॉलोनियां नियमित हो गईं. 

2004 में एक नई नीति आई जिसके तहत समय सीमा की तारीख को अक्तूबर 1993 से बढ़ाकर मार्च 2002 कर दिया गया. 

2008 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व कर रहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 1200 कच्ची कॉलोनियों को अस्थायी नियमन प्रमाण पत्र दिए. 

2012 में शीला दीक्षित ने फिर से वादा किया कि जिन कॉलोनियों को अस्थायी नियमन प्रमाण पत्र मिल गए थे, उन्हें स्थायी रूप से नियमित किया जाएगा. 

2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने नियमन का नया प्रस्ताव बनाया और केंद्र को भेजा. 

इस तरह कई चुनाव आए और गए और हर बार चुनाव के ही मौके पर कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा हुई. पर 1993 के बाद एक भी कॉलोनी नियमित नहीं हुई है.

क्या इस बार कॉलोनियां नियमित हो जाएंगी?

ये इतना आसान नहीं है क्योंकि नियमित करने की प्रक्रिया पेचीदा है. सबसे पहली जरूरत है नक्शे जिनमें कॉलोनियों की सीमा निर्धारित हो. इसकी जिम्मेदारी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को सौंपी गई है जो दिल्ली की सारी जमीन की मालिक है. डीडीए ने कहा है कि ये प्रक्रिया 3 महीनों में पूरी हो जाएगी. इसका मतलब कम से कम जनवरी तक का समय सिर्फ सीमा निर्धारित होने में लगेगा. उसके बाद डीडीए लोकल एरिया प्लान बनाएगा, फिर कन्वेयेंस डीड बनाएगा और तब जमीन का पंजीकरण होगा. विधान सभा चुनाव फरवरी में होने हैं.

हर बार की तरह इस बार भी ये घोषणा चुनावों के बहुत करीब हुई है इसलिए इसके समय को लेकर संदेह जरूर है. पर संदेह के साथ साथ ही उम्मीद भी है कि जो काम दशकों से लंबित है वो शायद अब पूरा हो जाए.

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