दिल्ली में विधान सभा चुनाव होने वाले हैं और एक बार फिर राजनितिक दलों ने दिल्ली की सैकड़ों अनियमित कॉलोनियों में रहने वाले लाखों लोगों को उम्मीद के एक मोहपाश में बांध दिया है.
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बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार के तीन मंत्रियों ने बुधवार को एक प्रेस कांफ्रेंस करके घोषणा की है कि सरकार ने इन अनियमित कॉलोनियों को नियमित करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. केंद्रीय मंत्रियों ने निर्णय की कोई विस्तृत रूप-रेखा तो नहीं दी, पर इतना जरूर बताया कि इस निर्णय को लागू करने के लिए सरकार 18 नवम्बर से शुरू होने वाले संसद के शीत-कालीन सत्र में एक बिल लेकर आएगी.
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस घोषणा का स्वागत किया और केंद्र का धन्यवाद देते हुए यह भी कहा है कि इस प्रस्ताव को दिल्ली सरकार ने ही केंद्र को 2015 में भेजा था.
क्या हैं अनियमित कॉलोनियां
ये वो कॉलोनियां हैं जो पिछले करीब चार दशकों से दिल्ली की नियामक संस्थाओं की अनुमति के बगैर शहर के अलग अलग हिस्सों में बसती आई हैं. इनकी संख्या 1800 के आसपास होने का अनुमान है. केंद्र की घोषणा में 1797 कॉलोनियों का जिक्र है. इनमें रहने वाले लोगों की कुल आबादी 40 लाख के करीब बताई जाती है, मतलब दिल्ली की कुल आबादी का 20 प्रतिशत. ये कम से कम 175 वर्ग किलोमीटर में फैली हुई हैं जो दिल्ली के कुल इलाके का लगभग 12 प्रतिशत है.
कच्ची कॉलोनियों में अधिकतर गरीब या मध्यम वर्ग के परिवार रहते हैं. आलीशान कोठियों और विशाल फार्म हाउस वाली कुछ उच्चवर्गीय कॉलोनियां भी अनियमित हैं पर इस दौर में उन पर विचार नहीं किया जा रहा है.
माना जाता है कि अधिकतर कच्ची कॉलोनियों में रहने वाले लोग दिल्ली के पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश और उत्तर प्रदेश की पूर्वी सीमा से सटे राज्य बिहार के रहने वाले हैं, जिन्हें साथ में जोड़ कर राजनीतिक शब्दावली में पूर्वांचली कहा जाता है. ये दोनों राज्य एक लम्बे अरसे से आर्थिक रूप से पिछड़े राज्य रहे हैं. इस पिछड़ेपन के अनेक आयामों में बेरोजगारी भी एक प्रमुख पहलू रही है. आजीविका की तलाश में इन दोनों राज्यों के लोग दशकों से दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों का रुख करते आए हैं.
दिल्ली में रहते हुए जब इनके लिए शहर की मुख्य कॉलोनियों में मकानों के किराए महंगे हो गए तो ये लोग दिल्ली के ग्रामीण इलाकों की तरफ रहने चले गए. दिल्ली में 350 से भी ज्यादा गांव हैं जिनमें से कई शहरी कॉलोनियों के साथ भी बसे हुए हैं और कई शहर की बाहरी सीमा पर. इनमें शहरी कॉलोनियों जैसी सुविधायें नहीं मिलतीं लेकिन इनमें रहने का खर्च शहर की दूसरी कॉलोनियों से कम है. यही कारण है कि धीरे धीरे देश के कई राज्यों से आए प्रवासी यहां बसने लगे और देखते ही देखते ये अपने आप में छोटे शहर ही बन गए.
शहर की रूप-रेखा में इनकी क्या जगह है
दिल्ली की सारी अवैध कॉलोनियां अनधृकित रूप से शहर के मास्टरप्लान का उल्लंघन करते हुए बनी हैं. नियमित नहीं होने की वजह से नागरिकों को मिलने वाली सेवायें, जैसे बिजली, पानी, नाला, कचरा प्रबंधन जैसी चीजों का यहां कोई इंतजाम नहीं है. जमीन की खरीद-बिक्री भी वैध नहीं होती. मतलब जिन लोगों ने अवैध कॉलोनियों में अपने घर बना लिए हैं वो उनमें रह तो रहे हैं, पर मालिकाना हक के बिना.
क्या इनसे पहली बार नियमित करने का वादा किया गया है?
पहली बार 1977 में अवैध कॉलोनियों को नियमित करने की नीति लाई गई थी. इसके लागू होने में लंबा समय लगा लेकिन 1993 तक 567 कॉलोनियां नियमित हो गईं.
2004 में एक नई नीति आई जिसके तहत समय सीमा की तारीख को अक्तूबर 1993 से बढ़ाकर मार्च 2002 कर दिया गया.
2008 में दिल्ली में कांग्रेस की सरकार का नेतृत्व कर रहीं तत्कालीन मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने 1200 कच्ची कॉलोनियों को अस्थायी नियमन प्रमाण पत्र दिए.
2012 में शीला दीक्षित ने फिर से वादा किया कि जिन कॉलोनियों को अस्थायी नियमन प्रमाण पत्र मिल गए थे, उन्हें स्थायी रूप से नियमित किया जाएगा.
2015 में आम आदमी पार्टी की सरकार ने नियमन का नया प्रस्ताव बनाया और केंद्र को भेजा.
इस तरह कई चुनाव आए और गए और हर बार चुनाव के ही मौके पर कॉलोनियों को नियमित करने की घोषणा हुई. पर 1993 के बाद एक भी कॉलोनी नियमित नहीं हुई है.
क्या इस बार कॉलोनियां नियमित हो जाएंगी?
ये इतना आसान नहीं है क्योंकि नियमित करने की प्रक्रिया पेचीदा है. सबसे पहली जरूरत है नक्शे जिनमें कॉलोनियों की सीमा निर्धारित हो. इसकी जिम्मेदारी दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को सौंपी गई है जो दिल्ली की सारी जमीन की मालिक है. डीडीए ने कहा है कि ये प्रक्रिया 3 महीनों में पूरी हो जाएगी. इसका मतलब कम से कम जनवरी तक का समय सिर्फ सीमा निर्धारित होने में लगेगा. उसके बाद डीडीए लोकल एरिया प्लान बनाएगा, फिर कन्वेयेंस डीड बनाएगा और तब जमीन का पंजीकरण होगा. विधान सभा चुनाव फरवरी में होने हैं.
हर बार की तरह इस बार भी ये घोषणा चुनावों के बहुत करीब हुई है इसलिए इसके समय को लेकर संदेह जरूर है. पर संदेह के साथ साथ ही उम्मीद भी है कि जो काम दशकों से लंबित है वो शायद अब पूरा हो जाए.
केंद्र में 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद देश में भारतीय जनता पार्टी का दायरा लगातार बढ़ा है. डालते हैं एक नजर अभी कहां कहां बीजेपी और उसके सहयोगी सत्ता में हैं.
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उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश में फरवरी-मार्च 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने अपने सहयोगी दलों के साथ मिलकर ऐतिहासिक प्रदर्शन किया और 403 सदस्यों वाली विधानसभा में 325 सीटें जीतीं. इसके बाद फायरब्रांड हिंदू नेता योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली.
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त्रिपुरा
2018 में त्रिपुरा में लेफ्ट का 25 साल पुराना किला ढहाते हुए बीजेपी गठबंधन को 43 सीटें मिली. वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्कसिस्ट) ने 16 सीटें जीतीं. 20 साल तक मुख्यमंत्री रहने के बाद मणिक सरकार की सत्ता से विदाई हुई और बिप्लव कुमार देब ने राज्य की कमान संभाली.
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मध्य प्रदेश
शिवराज सिंह चौहान को प्रशासन का लंबा अनुभव है. उन्हीं के हाथ में अभी मध्य प्रदेश की कमान है. इससे पहले वह 2005 से 2018 तक राज्य के मख्यमंत्री रहे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में पार्टी को हार का सामना करना पड़ा. कांग्रेस सत्ता में आई. लेकिन दो साल के भीतर राजनीतिक दावपेंचों के दम पर शिवराज सिंह चौहान ने सत्ता में वापसी की.
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उत्तराखंड
उत्तर प्रदेश के पड़ोसी राज्य उत्तराखंड में भी बीजेपी का झंडा लहर रहा है. 2017 के विधानसभा चुनावों में पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए राज्य की सत्ता में पांच साल बाद वापसी की. त्रिवेंद्र रावत को बतौर मुख्यमंत्री राज्य की कमान मिली. लेकिन आपसी खींचतान के बीच उन्हें 09 मार्च 2021 को इस्तीफा देना पड़ा.
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बिहार
बिहार में नीतीश कुमार एनडीए सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. हालिया चुनाव में उन्होंने बीजेपी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा. इससे पिछले चुनाव में वह आरजेडी के साथ थे. 2020 के चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी. लेकिन 74 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही बीजेपी ने नीतीश कुमार की जेडीयू के साथ मिलकर सरकार बनाई, जिसे 43 सीटें मिलीं.
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गोवा
गोवा में प्रमोद सावंत बीजेपी सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं. उन्होंने मनोहर पर्रिकर (फोटो में) के निधन के बाद 2019 में यह पद संभाला. 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद पर्रिकर ने केंद्र में रक्षा मंत्री का पद छोड़ मुख्यमंत्री पद संभाला था.
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में 2017 में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी है जिसका नेतृत्व पूर्व फुटबॉल खिलाड़ी एन बीरेन सिंह कर रहे हैं. वह राज्य के 12वें मुख्यमंत्री हैं. इस राज्य में भी कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी होने के बावजूद सरकार नहीं बना पाई.
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हिमाचल प्रदेश
नवंबर 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज कर भारतीय जनता पार्टी सत्ता में वापसी की. हालांकि पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए प्रेम कुमार धूमल चुनाव हार गए. इसके बाद जयराम ठाकुर राज्य सरकार का नेतृत्व संभाला.
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कर्नाटक
2018 में हुए विधानसभा चुनावों में कर्नाटक में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी. 2018 में वो बहुमत साबित नहीं कर पाए. 2019 में कांग्रेस-जेडीएस के 15 विधायकों के इस्तीफे होने के कारण बीेजेपी बहुमत के आंकड़े तक पहुंच गई. येदियुरप्पा कर्नाटक के मुख्यमंत्री हैं.
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हरियाणा
बीजेपी के मनोहर लाल खट्टर हरियाणा में मुख्यमंत्री हैं. उन्होंने 2014 के चुनावों में पार्टी को मिले स्पष्ट बहुमत के बाद सरकार बनाई थी. 2019 में बीजेपी को हरियाणा में बहुमत नहीं मिला लेकिन जेजेपी के साथ गठबंधन कर उन्होंने सरकार बनाई. संघ से जुड़े रहे खट्टर प्रधानमंत्री मोदी के करीबी समझे जाते हैं.
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गुजरात
गुजरात में 1998 से लगातार भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. प्रधानमंत्री पद संभालने से पहले नरेंद्र मोदी 12 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे. फिलहाल राज्य सरकार की कमान बीजेपी के विजय रुपाणी के हाथों में है.
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असम
असम में बीजेपी के सर्बानंद सोनोवाल मुख्यमंत्री हैं. 2016 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 86 सीटें जीतकर राज्य में एक दशक से चले आ रहे कांग्रेस के शासन का अंत किया. अब राज्य में फिर विधानसभा चुनाव की तैयारी हो रही है.
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अरुणाचल प्रदेश
अरुणाचल प्रदेश में पेमा खांडू मुख्यमंत्री हैं जो दिसंबर 2016 में भाजपा में शामिल हुए. सियासी उठापटक के बीच पहले पेमा खांडू कांग्रेस छोड़ पीपुल्स पार्टी ऑफ अरुणाचल प्रदेश में शामिल हुए और फिर बीजेपी में चले गए.
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नागालैंड
नागालैंड में फरवरी 2018 में हुए विधानसभा चुनावों में एनडीए की कामयाबी के बाद नेशनलिस्ट डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी (एनडीपीपी) के नेता नेफियू रियो ने मुख्यमंत्री पद संभाला. इससे पहले भी वह 2008 से 2014 तक और 2003 से 2008 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं.
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मेघालय
2018 में हुए राज्य विधानसभा चुनावों में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनने के बावजूद सरकार बनाने से चूक गई. एनपीपी नेता कॉनराड संगमा ने बीजेपी और अन्य दलों के साथ मिल कर सरकार का गठन किया. कॉनराड संगमा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के बेटे हैं.
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सिक्किम
सिक्किम की विधानसभा में भारतीय जनता पार्टी का एक भी विधायक नहीं है. लेकिन राज्य में सत्ताधारी सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का हिस्सा है. इस तरह सिक्किम भी उन राज्यों की सूची में आ जाता है जहां बीजेपी और उसके सहयोगियों की सरकारें हैं.
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मिजोरम
मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकार है. वहां जोरामथंगा मुख्यमंत्री हैं. बीजेपी की वहां एक सीट है लेकिन वो जोरामथंगा की सरकार का समर्थन करती है.
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2019 की टक्कर
इस तरह भारत के कुल 28 राज्यों में से 16 राज्यों में भारतीय जनता पार्टी या उसके सहयोगियों की सरकारें हैं. हाल के सालों में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे राज्य उसके हाथ से फिसले हैं. फिर भी राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के आगे कोई नहीं टिकता.